1 नवंबर 2016
सुबह सात बजे जब उठे तो बाहर हल्की धुंध थी, अन्यथा पौड़ी से चौखंबा समेत कई चोटियाँ बहुत नज़दीक दिखायी देती हैं। फिर भी चौखंबा दिख रही थी। आज हमें चोपता तक जाना था। दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिये आराम-आराम से चलेंगे।
पौड़ी से वापस बुवाखाल आये। यहाँ से एक रास्ता तो वही है, जिससे कल हम आये थे - कोटद्वार वाला। एक अन्य रास्ता भी पता नहीं कहाँ जाता है। हम इसी ‘पता नहीं कहाँ’ वाले पर चल दिये। थोड़ा आगे जाकर इसमें से खिर्सू वाला रास्ता अलग हो जायेगा।
रास्ता धार के साथ-साथ है, इसलिये दाहिने भी और बायें भी नज़ारों की कोई कमी नहीं। दाहिने जहाँ सतपुली की घाटी दिखती है, वही बायें चौखंबा।
कुछ ही आगे खिर्सू वाला रास्ता अलग हो गया। अब जंगल शुरू हो गया और इस मौसम में मुझे जंगल में एक चीज से बहुत डर लगता है - ब्लैक आइस से। यह ऐसे कोनों में आसानी से बनती है, जहाँ धूप अक्सर नहीं पहुँचती। गनीमत थी कि ब्लैक आइस नहीं मिली। वैसे मुझे काफ़ी हद तक ‘ब्लैक-आइस-फोबिया’ भी है।
रास्ते में एक गाँव पड़ा - चोपट्टा। हमने आज की यात्रा का नाम रखा - चोपट्टा से चोपता तक।
खिर्सू कोई बहुत बड़ा टूरिस्ट स्पॉट नहीं है। यह एक छोटा-सा गाँव है। सामने चौखंबा और कई हिमालयी चोटियाँ दिखती हैं। एकाध सरकारी विश्रामगृह है। कुछ प्राइवेट होटल भी हैं। और गाँववाले भी अपने यहाँ ठहरा लेते हैं, यानी होमस्टे। होमस्टे का मुझे पक्का नहीं पता, केवल अंदाज़े भर से बता रहा हूँ। और ऐसे मामलों में मेरा अंदाज़ा गलत नहीं होता। :)
खिर्सू जाकर आप क्या करेंगे? उत्तर है धूप में बैठकर चाय पीयेंगे, खेतों में घूमेंगे, घरों में झाँकेंगे और जंगल में भी टहलकदमी कर सकते हैं। और कुछ नहीं। न यहाँ कोई पुरातन कुछ है, न आधुनिक कुछ। हाँ, चौखंबा आपको अकेला नहीं छोड़ेगी। जिन्हें भीड़ से दूर ऐसे स्थानों की तलाश है, जहाँ आप ‘कुछ भी नहीं’ करना चाहते हैं, वे सीधे खिर्सू पहुँच जायें। रुकने-खाने की चिंता और एड़वांस बुकिंग की चिंता ऐसे लोग नहीं किया करते। पारिवारिक यात्रा के लिये एकदम आदर्श स्थान है खिर्सू। श्रीनगर से भी एक सड़क सीधे खिर्सू आती है।
दूरियाँ लिखी थीं - चेरीबंगला 11 किमी, पिठूण्डी 14 किमी, डबरुखाल 21 किमी, फुरकण्डा 4 किमी, मेलसैंण 8 किमी, बुंखाल 16 किमी।
हम खिर्सू नहीं रुके। लेकिन धीरे-धीरे बाइक चलाते रहे। श्रीनगर वाली सड़क पर चल पड़े। इस सड़क पर बाइक चलाने का अलग ही आनंद है। कारण है चौखंबा। जंगल नहीं है। गाँव ही गाँव हैं। ऐसे गाँव जिन्हें सीधे हिमालय देख रहा हो, या वे हिमालय को देख रहे हों। गाँव हैं तो खेत भी होंगे और खेतों के बीच से जाती सड़क भी होगी।
एक सड़क डुंग्रीपथ जाती है, जो यहाँ से 38 किमी दूर है। यह नाम मैंने पहली बार सुना। वापस आकर नक्शे में देखा, डुंग्रीपथ नहीं मिला।
सड़क किनारे एक जगह राजकीय पक्षी मोनालों की सभा हो रही थी। अगर हम न रुकते, तो सभा निर्बाध चलती रहती। हम रुक गये, सभी मोनाल तितर-बितर हो गये। कोई इधर छुपा, कोई उधर छुपा। इधर छुपने वाले को लगा कि उधर वाले ज्यादा सुरक्षित हैं, उधर वाले को लगा इधर वाले मजे में हैं। बड़ी देर तक सब के सब इधर से उधर और उधर से इधर आते-जाते रहे। हमें अच्छा मौका मिला इनके फोटो लेने का।
बुघाणी के पास एक तिराहा है। सीधे सड़क श्रीनगर चली जाती है। दाहिने मुड़कर देवलगढ़। हम देवलगढ़ की ओर मुड़ गये। देवलगढ़ गढ़वाल के बावन गढ़ों में से एक है। काफी पुराना एक मंदिर भी है। हम नहीं रुके। कहते हैं यह जागृत शक्तिपीठ है। देवी माँ की इच्छा नहीं रही होगी। जब इच्छा होगी, तो फिर आने में कितनी देर लगती है? देवलगढ़ से यही सड़क आगे चमधार चली जाती है और हरिद्वार-बद्रीनाथ मार्ग में मिल जाती है। यहाँ से दाहिने थोड़ा ही आगे धारी देवी है, और थोड़ा आगे रुद्रप्रयाग।
पौड़ी |
पौड़ी से दिखती चौखंबा |
खिर्सू मार्ग से दिखता पौड़ी शहर |
पौड़ी खिर्सू मार्ग |
खिर्सू |
उत्तराखंड़ का राजकीय पक्षी मोनाल |
उत्तराखंड़ का राजकीय पक्षी मोनाल |
खिर्सू श्रीनगर मार्ग |
देवलगढ़ |
जैसे-जैसे अलकनंदा घाटी में उतरने लगते हैं, चौखंबा भी छुपने लगती है। |
अगला भाग: देवरिया ताल
1. बाइक यात्रा: मेरठ-लैंसडौन-पौड़ी
2. खिर्सू के नज़ारे
3. देवरिया ताल
4. तुंगनाथ और चंद्रशिला की यात्रा
5. चोपता से दिल्ली बाइक यात्रा
1. बाइक यात्रा: मेरठ-लैंसडौन-पौड़ी
2. खिर्सू के नज़ारे
3. देवरिया ताल
4. तुंगनाथ और चंद्रशिला की यात्रा
5. चोपता से दिल्ली बाइक यात्रा
NAI NAI JAGAHE KHOJ LETE HO
ReplyDeleteAUR GHOOM LETE HO
WAAH KYA BAAT HAI
BHAGWAN SE MAUJ LIKHVA KAR LAAYE HO
GREAT KABHI JODHPUR AAO
धन्यवाद जी...
Deleteबहुत अच्छी यात्रा ...
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश जी...
Deleteउत्तराखंड़ का राजकीय पक्षी मोनाल --- एसी जानकारी मिलती रही तो ..... बहुत हि अच्छा होगा.... नहीं तो यह जानकारी कहा मिलती !... आज नीरज, तुम्हारे पोस्ट मैं पराठा नजर नही आया.... लेकिन पंछी तो आया
ReplyDeleteपराँठा समय आने पर पर मिलेगा...
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद सर जी...
भाई, इतना छोटा न लिखो।
ReplyDeleteअच्छा जी...
Deleteकोई इधर छुपा, कोई उधर छुपा। इधर छुपने वाले को लगा कि उधर वाले ज्यादा सुरक्षित हैं, उधर वाले को लगा इधर वाले मजे में हैं। बड़ी देर तक सब के सब इधर से उधर और उधर से इधर आते-जाते रहे। हमें अच्छा मौका मिला इनके फोटो लेने का। मतलब इंसानों वाली प्रवृत्ति ! बाइक से जाने का ये फायदा होता है , आप हर स्थानीय चीज , जो भी रास्ते में मिलती है , उससे परिचित हो जाते हैं ! ये चार पांच बिटौड़ा से क्या हैं नीरज भाई , जिन पर फूंस लगी है ?
ReplyDeleteयह सर्दियों का इंतज़ाम है। सूखी घास है, जो सर्दियों में जानवरों को खिलाने के काम आयेगी।
Deleteदेवलगढ़ देखना चाहिए था।
ReplyDeleteपत्थर पर बैठ कर कितना सुखद लग रहा है।
ReplyDeleteNeeraj Bhai, apki sabhi post mast hai...
ReplyDeleteरास्ते में एक गाँव पड़ा - चोपट्टा। हमने आज की यात्रा का नाम रखा - चोपट्टा से चोपता तक।
ReplyDeleteदरअसल आपकी गलती नहीं है उसे स्थानीय भाषा में चोबट्टा लिखा और पढ़ा जाता है गड्वाली में चोबट्टा का मतलब है जहाँ चार रास्ते मिलते है हमारे शेहरों में इसे चोराहा कहा जाता है मेरठ में इसे चोपला कहा जाता है और गड़वाल में इसे चोबट्टा कहा जाता है चोबट्टा खाल तो जब आप पौड़ी से श्रीनगर जाने के लिए इस रास्ते से जा रहे थे तो आपने लम्बा रस्ता चुना सीधा रास्ता 29 किलोमीटर है हालाकि उसमे गंगा दर्शन के आलवा और कुछ नहीं है सिवाय मेरे गाँव जाने की सड़क के लेकिन जिस रास्ते पर आप चल रहे हो उसे में हार्ट लाइन कहुगा ट्री लाइन से मिलता जुलता क्योकि उस रास्ते पर मेरी नानी का गाँव है मसूर सायद आप उससे थोडा पहले देवेलगढ़ के लिए मुड गए श्रीनगर जाने के लिए तो आपने क्या मिस किया मेरे नजरिये से गड़वाल का या कहे उत्तराखंड का सबसे बड़ा गाँव सुमाडी बहुत बड़ा गाँव है किसी से पूछ लेना समय के साथ विरोधाभास हो गया है लेकिन ज्यदा नहीं सिर्फ एक दो गाँव और है जो कहते है हमारा गाँव बड़ा है निसणी और उजेड़ी बचपन में सुना था की सुमाडी से बारह आई ए एस है भारत सरकार में है खैर देवेलगढ़ की कहानी भी मशहूर है कभी सुनाएंगे फुर्सत में तो आप मेरी हार्ट लाइन से गुजर रहे थे नानी का मतलब तो बखूबी समझते होंगे बचपन में और आज भी आखो से पानी आ जाता है नानी का घर छोड़ते हुए हालाकि आज नानी जिंदा नहीं है ....