23 जून 2015
हम किसी भी जल्दी में नहीं थे। हमें परसों दोपहर तक दिल्ली पहुंचना था और केलांग से हम आराम से दो दिन में दिल्ली पहुंच सकते हैं। इसी वजह से रोज की तरह आज भी देर तक सोये। उठे तो मनदीप का फोन आया। वो आज सपरिवार मनाली आ रहा है और अभी बिलासपुर के आसपास था। यानी दोपहर तक वह मनाली पहुंच जायेगा। उसके पास अपनी गाडी है। हमने भी इरादा बना लिया कि आज हम मनदीप के साथ ही रुकेंगे और शाम को शानदार डिनर करेंगे।
दस बजे केलांग से चले। जल्दी ही टांडी पहुंच गये। यहां बारालाचा-ला से निकलकर दो अलग-अलग दिशाओं में बही चन्द्रा और भागा नदियों का संगम होता है। आलू के परांठे खाये और बाइक की टंकी फुल करा ली। हिमाचल में रोहतांग पार पूरे लाहौल में एकमात्र पेट्रोल पम्प टांडी में ही है। टांडी से आगे अगला पेट्रोल पम्प लगभग साढे तीन सौ किलोमीटर दूर लेह के पास कारू में है। बाइक की टंकी लगभग खाली हो चुकी थी, इसमें 11.83 लीटर पेट्रोल आया। कम्पनी के अनुसार टंकी की क्षमता 10 लीटर है। मैंने गुजरात से लेकर हिमाचल और जम्मू-कश्मीर तक हर जगह टंकी फुल कराई है, इसमें हमेशा 10 लीटर से ज्यादा ही तेल आता है। अब या तो कम्पनी गलत बता रही है कि टंकी दस लीटर की है। पेट्रोल पम्पों पर धांधलियां होती हैं लेकिन हर पेट्रोल पम्प ऐसा नहीं होता। खैर।
टांडी से गेमूर तक दस किलोमीटर तक रास्ता खराब है और इस पर काम चल रहा है। पिछले साल अगस्त में जब मैं जांस्कर ट्रेक से लौट रहा था तो यहां ब्लास्ट करके पहाड तोडा था। उसके कारण एक किलोमीटर से भी ज्यादा पर मलबा फैल गया था और हमें यह दूरी पैदल पार करनी पडी थी। बस ने एक तरफ छोड दिया और उधर दूसरी बस तैयार खडी थी। एक साल बीत जाने के बाद भी यहां सडक नहीं बनी है। अभी भी खराब रास्ते से ही निकलना पडा।
गेमूर के बाद रास्ता कुछ खराब है, कुछ ठीक है। इसके बावजूद चन्द्रा घाटी दुनिया की सुन्दरतम घाटियों में से एक है। मन लगा रहता है। मौसम अगर जून का या मानसून का हो तो अनगिनत छोटे-बडे झरने भी मिलते हैं। कई जगह सडक पर भी पानी था लेकिन बहाव ज्यादा तेज न होने के कारण उतनी दिक्कत नहीं आई।
साढे बारह बजे कोकसर पहुंचे। यहां से बीस किलोमीटर दूर रोहतांग है और फिर उस तरफ मनाली। हमें आज मनाली में ही रुकना है। पुलिस की चेकपोस्ट पर बाइक की एण्ट्री की, कुछ खाना-पीना किया और रोहतांग की चढाई शुरू कर दी।
कोकसर से आगे रास्ता बेहद खराब है। फिर ऊपर से आता पानी इसे कीचड में तब्दील कर देता है। दिल्ली की एक कार दिखी। मियां-बीवी ही थे। इतने धीरे धीरे चला रहा था कि पैदल लोग भी उसे ओवरटेक कर रहे थे। निश्चित ही उसे डर लग रहा होगा। रोहतांग की ओर जा रहे थे। हम इससे आगे निकल गये और कुछ दूर जाकर बैठ गये। वे आये तो हमने इन्हें रुकने को कहा। रुकने को कहा नहीं बल्कि वो कार रुकी हुई ही थी जो चलने का आभास दे रही थी। वे दिल्ली में एक डॉक्टर थे जो लद्दाख घूमकर आ रहे थे। मैं हैरान रह गया। पहले तो हमने सोचा था कि ये लोग रोहतांग देखने आये होंगे और थोडा सा ‘रोहतांग पार’ का आनन्द लेने कोकसर तक चले गये होंगे। मैंने पूछा कि इतना धीरे धीरे क्यों चला रहे हो? अब तो आपको खूब अभ्यास हो गया होगा ऐसे रास्तों पर गाडी चलाने का। बोले- भाई, वो घरवाली है- उसका भी आदेश मानना पडता है। उसे कहीं भी गड्ढे का आभास नहीं होना चाहिये और न ही गाडी में कोई स्क्रैच पडना चाहिये।
एक जगह कीचड में बाइक बन्द हो गई। स्टार्ट तो हो गई लेकिन आगे नही बढी। मेरे दोनों पैर बर्फीले पानी में थे। मैंने निशा को जल्दी से जल्दी नीचे उतरने को कहा। उसने आराम से जूते उतारे और पत्थरों पर पैर रखकर पानी से बचकर बाहर निकल गई। तब तक मेरे पैर सुन्न होने लगे थे। जितने पैर सुन्न हुए, उतना ही सिर गर्म हो गया। सोच लिया कि इसे मजा चखाकर रहूंगा।
रोहतांग से पांच-छह किलोमीटर पहले अच्छी सडक है। दोनों तरफ खूब बर्फ थी। बर्फ का पानी सडक पर भी आ रहा था। मैंने यहां बाइक दौडा दी। इससे खूब पानी उछला और हम दोनों के जूतों में भरता चला गया। मेरे तो जूते पहले ही भीगे थे, इसलिये ज्यादा दिक्कत नहीं आई लेकिन निशा के लिये यह भारी आफत थी।
तीन बजे रोहतांग पहुंचे। आज मंगलवार था। प्रतिबन्ध से पहले हर मंगलवार को रोहतांग पर पर्यटकों की गाडियां नहीं आती थीं, इसलिये रास्ता खाली रहता था। लेकिन अब दिनभर में एक हजार गाडियां ही रोहतांग आ सकती हैं और अब ये सातों दिन आ सकती हैं। इसलिये ज्यादा भीड तो नहीं थी लेकिन चहल-पहल थी।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून (एनजीटी) ने अब रोहतांग के लिये कुछ नियम बनाये हैं। पूरे नियम तो मुझे नहीं पता लेकिन कुछ नियम पता हैं। पहली बात तो ये है कि ‘रोहतांग का परमिट’ केवल मनाली से रोहतांग जाने के लिये ही है। अगर आप लद्दाख की तरफ से आ रहे हैं या स्पीति की तरफ से आ रहे हैं तो आपको रोहतांग जाने के लिये किसी परमिट की आवश्यकता नहीं है। अगर मनाली से रोहतांग जाना है तो कई बातें हैं। एक बात तो ये है कि आपको केवल रोहतांग तक ही जाना है और बर्फ में मस्ती करके वापस आ जाना है। इसके लिये एक दिन में एक हजार गाडियों का ही परमिट बनता है। इसमें भी हिमाचल और गैर-हिमाचल, टैक्सी और प्राइवेट गाडियों का अलग अलग कोटा है। आपको एक दिन पहले एसडीएम कार्यालय जाकर निर्धारित फीस भरनी होती है और आपको परमिट मिल जाता है। दूसरी बात है कि अगर आपको रोहतांग पार करके लाहौल, स्पीति या लद्दाख जाना है तो उसका भी कुछ विशेष निर्धारण है। मेरी जानकारी के अनुसार एक दिन में लद्दाख के लिये केवल तीस गाडियों को ही परमिट मिलता है और बिल्कुल फ्री। लाहौल और स्पीति के लिये भी शायद कुछ फीस है। अगर आप फ्री में लद्दाख का परमिट लेकर चले गये और रोहतांग देखकर ही वापस आ गये तो उसके लिये भी नियम है कि आपको कम से कम सरचू तक जाना है और कोई ऐसा सबूत लाना है जिससे लगे कि आप वाकई सरचू गये थे। इसी तरह लद्दाख से आने वालों को भी सिद्ध करना पडेगा कि वे वाकई लद्दाख से आ रहे हैं। अन्यथा रोहतांग जाने वाले पर्यटक लद्दाख का परमिट लेकर चले जाया करेंगे और रोहतांग देखकर आ जाया करेंगे।
अब बाइकों के लिये भी परमिट व्यवस्था लागू कर दी है। अभी बाइक का रोहतांग परमिट शायद फ्री में है। आपको केवल रोहतांग देखना है या लाहौल, लद्दाख, स्पीति जाना है; तो आपको परमिट लेना ही पडेगा। ध्यान रहे, परमिट केवल मनाली की तरफ से जाने के लिये ही है; लाहौल की तरफ से आने के लिये किसी परमिट की जरुरत नहीं है। इस नियम का उल्लंघन करने वालों के लिये भारी अर्थदण्ड के अलावा जेल का भी प्रावधान है।
हम रोहतांग पर नहीं रुके। हम पहले ही इतनी ज्यादा और साफ-सुथरी बर्फ देखकर आ चुके थे कि रोहतांग की बर्फ कम और गन्दी मालूम पडी। फिर घोर व्यावसायिकता; निशा को भी अच्छा नहीं लगा।
लेकिन रोहतांग पार करते ही बादल मिल गये। वैसे तो ये बादल कोकसर से रोहतांग के रास्ते से ही दिखने लगे थे लेकिन जैसे ही रोहतांग की ‘दीवार’ पार की तो जबरदस्त बादल आ गये। हैड लाइट जलानी पड गई। रेनकोट पहनना पड गया। मढी आते-आते खूब तेज बारिश होने लगी।
मढी में खूब चहल-पहल थी। सभी ढाबे खुले थे। दो साल पहले साइकिल यात्रा के समय ये सभी ढाबे बन्द थे- कोर्ट के आदेश के कारण। मैंने दुकान की मालकिन से इस बारे में पूछा तो उसने बताया कि पिछले साल ही दुकान खोलने का आदेश आ गया था। अभी भी मामला कोर्ट में विचाराधीन है कि यहां मढी में ये ढाबे रहेंगे या नहीं; तो कोर्ट ने यह व्यवस्था की है कि जब तक फैसला नहीं आ जाता, ढाबों को खुलने दिया जाये।
मढी से चले, तब तक चार बज गये थे। मढी के बाद भी बारिश जारी रही। और जब कोठी के पास बादलों से निकलकर धूप में प्रवेश किया तो गर्मी से बुरी हालत हो गई। हम पिछले बारह दिनों से 3000 मीटर से 5000 मीटर की ऊंचाई पर रह रहे थे। अब अचानक 2000 मीटर पर आकर गर्मी तो लगेगी ही। हालांकि जो लोग आज ही दिल्ली या मैदानी इलाकों से आये होंगे, उन्हें मनाली में काफी ठण्ड लग रही होगी।
मनदीप को फोन किया लेकिन उसने नहीं उठाया। खूब फोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं। हमें नहीं पता था कि वे लोग कहां ठहरे हैं। केलांग से मनाली के बीच फोन नेटवक नहीं है अन्यथा हम सम्पर्क में रहते। मनाली में खूब लम्बा जाम लगा था लेकिन बाइक तो निकल ही जाती है। बस अड्डे के पास आकर भी फोन किया लेकिन उसने नहीं उठाया। अभी छह बजे थे। मैं थका भी नहीं था। फैसला किया कि आगे बढते हैं। कुल्लू या उससे भी आगे जहां तक जा सकेंगे, जायेंगे।
मलानी-कुल्लू सडक पर खूब ट्रैफिक था। अन्धेरा हो जायेगा तो सामने से आने वाले वाहनों की हैड लाइटें ढंग से बाइक नहीं चलाने देंगी, इसलिये इतना तो निश्चित है कि हम आज कुल्लू से आगे नहीं जायेंगे। अन्यथा एक बार सुन्दरनगर तरुण गोयल के यहां पहुंचने का इरादा भी बन गया था। कुल्लू से थोडा पहले एक होटल में कमरा पूछने गया तो उनका किराया चार अंकों में मिला। मैं वापस लौटने लगा तो बोला कि आपको सस्ते में चाहिये ना? मैंने कहा- हां। बोला- तो आपके लिये उधर रेस्टोरेण्ट में गद्दे बिछवा देंगे। छह सौ रुपये दे देना। मैंने मना कर दिया- कुल्लू में पांच सौ तक में अच्छा कमरा मिल जायेगा।
कुल्लू पहुंचे, सवा सात बजे थे। एक बडी सी धर्मशाला देखकर ललचा गये। लेकिन वहां भी बडा महंगा हिसाब था। फिर एक जगह हमारी दोनों की पसन्द का कमरा 500 रुपये में मिल गया। बाइक भी अन्दर ही खडी हो गई। सामान भी नहीं खोलना पडा। सामान खोलते तो सुबह बांधना पडता; और बांधने में बडी मेहनत लगती है। कल केलांग में बाइक सडक किनारे ही खडी थी, इसलिये सामान खोलना पडा था। परसों भरतपुर में भी सडक के किनारे ही थे लेकिन सामान बंधा ही रहने दिया। उससे पहले दिन शो-कार के पास भी बाइक बाहर सडक पर ही खडी थी लेकिन वहां भी हमने सामान बंधा रहने दिया था।
मनदीप का फोन आया। वो दिल्ली से मनाली तक अपनी गाडी चलाकर आया था, थक गया था तो मोबाइल को साइलेण्ट करके सो गया। अब हमें मनाली आने को कहने लगा लेकिन हम कुल्लू से मनाली जाने वाले नहीं थे।
24 जून 2015
सुबह आठ बजे उठे। नहा-धोकर, आलू के परांठे खाकर सवा नौ बजे तक चलने को तैयार हो गये। बस अड्डे के पास से बायें मुड गये और ब्यास पार करके बाईपास पहुंच गये। यह रास्ता सीधे भून्तर जाता है और हम कुल्लू शहर की भीड से बच जाते हैं। फिर तो चलते रहे और चलते रहे और भारत की सबसे लम्बी सडक सुरंग को पार करके ही दम लिया। इस सुरंग का एक छोटा सा दृश्य ‘थ्री ईडियट्स’ फिल्म में भी दिखाया गया है। असल में यहां ब्यास पर एक बांध है। उसके कारण पुरानी सडक डूब गई। नई सडक को सुरंग के अन्दर से पुरानी सडक के समान्तर ही बनाया गया है।
अभी तक ब्यास एक चौडी घाटी से होकर बह रही थी, अब अचानक संकरी घाटी में तब्दील हो गई। हणोगी मन्दिर भी इसी संकरी घाटी में स्थित है। यह बेहद संकरी घाटी है और पहाड इतने सीधे हैं कि कई बार तो रोंगटे भी खडे हो जाते हैं। असल में यह ब्यास द्वारा एक पर्वतमाला को पार करने का नतीजा है। वह पर्वतमाला धौलाधार का अंश है। धौलाधार कांगडा के उत्तर में पश्चिम से पूरब तक है। अपने पूर्वी मुहाने पर यह दो भागों में बंट जाती है। एक भाग थोडा सा उत्तर में जाकर पीर पंजाल से मिल जाता है और बडा भंगाल जैसे दुर्गम क्षेत्र का निर्माण करता है। दूसरा भाग दक्षिण में आता है। पराशर झील धौलाधार के इसी दक्षिणी भाग में स्थित है। फिर यह श्रंखला और दक्षिण में चली जाती है और जंजैहली के पास से होती हुई सतलुज के पास तक फैली है। जंजैहली के पास इसी की एक चोटी पर शिकारी देवी का मन्दिर है। पराशर झील के थोडा दक्षिण में ब्यास नदी इसी पर्वतमाला को फाडती हुई निकल जाती है। यह दस-पन्द्रह किलोमीटर का सडक मार्ग बेहद रोमांचक है, उसके बाद पण्डोह है और फिर तो सभी जानते हैं कि ब्यास पुनः चौडी घाटी बना लेती है।
ग्यारह बजे हम पण्डोह पहुंचे। एक तो जून का महीना वैसे भी बहुत गर्म होता है लेकिन हमें भीषण गर्मी लग रही थी। गन्ने का रस पीया। साढे ग्यारह बजे मण्डी पहुंच गये और उसके बाद नेरचौक से दाहिने मुडकर ऊना वाली सडक पकड ली। हम परम्परागत राजमार्ग से इसलिये नहीं जाना चाहते थे कि एक तो वह बेहद खराब है और फिर उस पर ट्रैफिक भी खूब होता है। हमने दो महीने पहले अप्रैल में इस ऊना वाली सडक को देखा था। दो लेन की यह सडक शानदार बनी है और खाली पडी रहती है, इसलिये इधर से जाना बिल्कुल भी घाटे का सौदा नहीं था।
नेरचौक से कलखर तक 14 किलोमीटर की बेहद संकरी सडक है। रास्ते में एक जगह निशा ने बाइक रुकवाई और सडक किनारे थोक में उगे पडे करी-पत्ते तोडकर बैग में भर लिये। बाद में उन्हें सुखाकर कई दिनों तक इन्हें हमने काम में लिया। कलखर से एक सडक रिवालसर झील भी जाती है जो यहां से पांच-छह किलोमीटर दूर ही है। कलखर के बाद शुरू होती है शानदार टू-लेन सडक। बस जाहू के पास थोडी सी खराब है अन्यथा ऊना तक शानदार बनी है। शाम पांच बजकर चालीस मिनट पर हम ऊना पहुंच गये।
ऊना तो मैदान में ही स्थित है। यहां चार लेन की सडक मिल जाती है जिस पर डिवाइडर भी है। शहर से निकलते ही पंजाब शुरू हो जाता है। पंजाब का पहला शहर है नंगल डैम। यहां फाटक लगा था और नंगल डैम- अम्ब अन्दौरा पैसेंजर जा रही थी। इस पैसेंजर में हिमाचल एक्सप्रेस के डिब्बे काम में लाये जाते हैं। यही पैसेंजर अम्ब अन्दौरा जाकर हिमाचल एक्सप्रेस बन जायेगी और दिल्ली के लिये रवाना हो जायेगी।
शाम छह बजकर चालीस मिनट पर हम कीरतपुर साहिब पहुंच गये। यहां मनाली से आने वाली वो सडक भी मिल जाती है जिसे हमने नेरचौक में छोड दिया था। नेरचौक से यहां कीरतपुर तक यह बेहद खराब हालत में है। हमें कुछ किलोमीटर ज्यादा जरूर चलने पडे लेकिन हम भारी ट्रैफिक में खराब सडक पर चलने से बच गये।
रोपड तक पहुंचते-पहुंचते अन्धेरा होने लगा था। अब हमने फिर बनूड में रात रुकने का इरादा बना लिया। दिल्ली से जम्मू जाते समय भी हम बनूड में ही रुके थे। तब तो हमें शम्भू से थोडा सा डायवर्जन लेना पडा था लेकिन इस बार तो बनूड रास्ते में ही आयेगा। भाई को सूचित कर दिया।
रात पौने नौ बजे हम बनूड में थे। शानदार डिनर किया, शानदार सोये और सुबह शानदार ब्रेकफास्ट भी किया। हम छह बजे ही निकलना चाहते थे लेकिन निकलते-निकलते सवा आठ बज गये। फिर तो आधे घण्टे में यानी पौने नौ बजे अम्बाला, साढे नौ बजे पीपली, दस बजे नीलोखेडी, ग्यारह बजे पानीपत पार, बारह बजे कुण्डली और एक बजे शास्त्री पार्क।
लद्दाख यात्रा समाप्त हो गई। बाइक का मीटर बता रहा था कि दिल्ली से दिल्ली तक कुल 3400 किलोमीटर की दूरी हमने तय की।
टाण्डी में आलू के परांठे खाये। |
टाण्डी से आगे की सडक |
चन्द्रा घाटी में खूब झरने हैं। |
सिस्सू के पास बर्फ |
कोकसर से रोहतांग का रास्ता |
कोकसर से रोहतांग का रास्ता |
कोकसर-रोहतांग सडक रोहतांग के पास कुछ अच्छी बनी है। |
रोहतांग पर |
रोहतांग |
रोहतांग-मनाली सडक पर बारिश हो रही थी। |
मढी |
मढी |
कुल्लू में आलू के परांठे खाये। |
भारत की सबसे लम्बी सडक सुरंग। इससे पहले यह खिताब जवाहर सुरंग के पास था। |
ब्यास नदी हणोगी माता के पास दुर्गम पथ से होकर बहती है। |
पण्डोह में |
निशा कलखर के पास करी-पत्ते तोड रही है। |
कलखर से एक सडक रिवालसर झील को जाती है। |
जाहू के पास सडक थोडी सी खराब है। |
बडसर में अल्पाहार |
ऊना की ओर |
ऊना की ओर |
नंगलडैम-अम्ब अन्दौरा पैसेंजर अम्ब अन्दौरा जा रही है जहां से यह हिमाचल एक्सप्रेस बन जायेगी और दिल्ली जायेगी। |
बनूड से आगे शम्भू तिराहे पर। |
और यह है दिल्ली। |
अगला भाग: लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च
1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
11. लद्दाख बाइक यात्रा-11 (खालसी-लेह)
12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च
बहुत बहुत धन्यवाद नीरज जी!!! एक और प्रेरणादायी यात्रा! आगामी यात्रा के लिए शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteआपका भी बहुत बहुत धन्यवाद निरंजन जी...
Deleteनीरज जी आपकी ये लाधक यात्रा मैने शुरुवत से अंत तक पढ़ी है पढ़ कर मैने बैठे बैठे लाधक यात्रा कर ली है पर आप मुझे बता सकते हैं की कम पैसे मैं यात्रा कैसे की जाए मैं हर साल मैं एक बार ट्रेक पे जाता हूँ पर मेरे कम से कम 30000/- से 40000/- खर्च हो जाते हैं और इतनी लंबी यात्रा भी नहीं कर पता इस बारे मै मुझे जानकारी दें की मैं लंबी और बहोट अची यात्रा कैसे करूँ और क्या मैं लाधक यात्रा बिने बाइक के कर सकता हूँ और इसके बारे मैं जानकारी वाले मेप मुझे कहाँ मिलनगे जिनमे पूरी तरह से रास्तों के और छोटे छोटे गाँव की जानकारी का विवरण हो ऐसे माप या कोई किताब कहाँ मिलेगी कृपया इसके बारे मैं डीटेल मैं जानकारी दें
ReplyDeleteधन्यवाद नवीन जी...
Deleteआपके 30000-40000 रुपये एक ट्रेक पर खर्च हो जाते हैं तो इसका अर्थ है कि आप अपने बलबूते ट्रेकिंग नहीं करते बल्कि ट्रेकिंग एजेंसियों की सहायता लेते हैं। अगर आप कम खर्चे में यात्रा करना चाहते हैं तो स्वयं आपको ही देखना पडेगा कि आप कहां ज्यादा खर्च कर रहे हैं और कौन-कौन से खर्चों में कटौती की जा सकती है। लद्दाख यात्रा बिना बाइक के भी की जा सकती है। नक्शे की जानकारी ज्यादा बडी बात नहीं है। आपको लद्दाख में कहां की यात्रा करनी है, पहले यह सोचिये और फिर आपको जानकारी भी मिल ही जायेगी।
enjoyed your ladakh trip
ReplyDeleteधन्यवाद महेश दिव्य जी...
Deleteबहुत ही शानदार यात्रा वृत्तांत रहा लद्दाख की ।
ReplyDeleteधन्यवाद चौधरी साहब...
Deleteबहुत ही शानदार यात्रा वृत्तांत रहा लद्दाख की ।
ReplyDeleteपेट्रोल के विषय ने मुझे भी भ्रम रहता है..
ReplyDeleteफिर भी कंपनी के पैमाने द्वारा पेट्रोल टेंक को कुछ खाली छोड़ कर मापा जाता है...
जबकि पेट्रोल पम्प वाले फुल टेंक करने का कहने पर इतना पेट्रोल भरते हे की...पेट्रोल टेंक से छलकने की कगार पर आ जाता है...
यह भी एक कारण हो सकता है।
रोहंताग, मनाली , कुल्लू में ऑक्सीजन की या सॉस लेने में परेशानी तो नही आती ना ?
ReplyDeleteजाहू के पास सडक थोडी सी खराब है। :-) dekh kar toh lagta hai ke sadak hi nahi hai :-)
ReplyDeleteAgli series ka intezaar rahega. Maaf ki jiyega hum thodey lalchi hai aapki posts ko le kar :-)
शानदार ............... जबरदस्त............................ जिंदाबाद ...........................
ReplyDeleteDear Naveen Singh, i read ur concern about excessive expenditure over trekking. i will suggest you to join YHAI i.e Youth Hoster, its life time membership is Rs 2000 only and they offer good programmes at merelt Rs. 5000 approx. Very cost effective and you will enjoy there hotels n hostels. For more information u can call me at 9758677717
ReplyDeleteNeeraj bhai aapki GHUMMAKDII ko salam...beautiful writeup,,,
ReplyDeleteएक शानदार यात्रा का समापन हुआ। यह यात्रा कई मायनों मे शानदार रही।यह यात्रा किफायती व नई नई जगहों से सम्बंधित रही ।
ReplyDeleteनीरज भाई वास्तव में ही पूरी लाद्दक यात्रा ही रोमांच एवं जिज्ञासा से भरपूर रही. पूरी यात्रा में एक बार भी यह अहसास नहीं हुआ की हम आपके साथ नहीं है यह शायद आपकी भाषा शैली और लिखने के बेहतरीन अंदाज के कारण है और शायद मेरठ के आस पास के होने के कारण भी है ,
ReplyDeleteखैर यात्रा की समाप्ति पर बहुत बहुत बधाईयाँ. आशा करता हूँ आगे भी आप इस प्रकार का रोमांच ज़ारी रखेगे और परम पिता परमेश्वर से पग पग पर आपकी सफलता और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करता हूँ .
कृपया एक बात और बताइए कि क्या लाद्दक की यात्रा septembar से December के दरम्यान भी की जा सकती है.
हिंदी में ब्लॉग लिखना जयदा सरल है क्योकि यह हमारी मात्र भाषा है आप का ब्लॉक में जो भिंड व् ग्वालियर के बारें बात है तो सुने चम्बल यह वानगी बात करें दो टूक एक हाथ में मूच्छ है तो दूसरें हाथ बन्दूक यह जानकारी केन लियें धन्यबाद शंकर सिंह कुशवाहा आगरा ९३५८३४३८८४
ReplyDeleteशानदार यात्रा अपने अंदर भयंकर यायावरी और जिजीविषा लिए हुए एक इंसान की पहाड़ी होने के नाते बहुद याद आती है अपने पहाडो की अब तक
ReplyDeleteदो बार रोहांतंग जा चूका हूँ एक कोई बीस साल पहेले और एक कोई पाच साल पहेले पहली बार सोलंग नाले से छलांग लगाई थी और दूसरी बार
ठान कर चला की इस बार रोहांतंग से छलांग लगनी है उपर जाते समय कई पेराग्लादिर मिले कहा यहाँ से लगा लो लेकिन नहीं मने हम भी और जब रोहतांग पहुचे तो कुछ ही देर बाद मौसम ख़राब हो गया अचानक बर्फ पड़ने लगी जुलाई में चारो तरफ अफरा तफरी का माहोल पेराग्लादिर वालो को ढूंडा तो सारे नदारद और इस तरहे दिल्ली के सपनो का कई हजार फूट की ऊंचाई पर दर्दनाक अंत हुआ लेकिन सपना आज भी कही
जिंदा है गीली लकड़ी बनकर जिसे तुम जैसे इर्धन की जरुरत है और अंत में अगली कहानी का लिंक पेज के अंत में दे कहानी के साथ साथ उस पर की गई पर्तिक्रिया भी पढ़ने लायक होती है