17 जून 2015
शोल्टाक से हम सवा दस बजे चले। तीन किलोमीटर ही चले थे कि दाहिनी तरफ एक झील दिखाई दी। इसका नाम नहीं पता। हम रुक गये। यह एक काफी चौडी घाटी है और वेटलैण्ड है यानी नमभूमि है। चांगला और अन्य बर्फीली जगहों से लगातार पानी आता रहता है और नमी बनी रहती है। साथ ही हरियाली भी। ऐसी जगहें लद्दाख में कई हैं। मनाली रोड पर डेबरिंग तो विश्व प्रसिद्ध है। डेबरिंग की पश्मीना भेडों का बडा नाम है। कहीं भेडपालन होता है, कहीं याकपालन। यहां जहां रात हम रुके थे, वहां याकपालन हो रहा था। पानी के रास्ते में थोडा सा अवरोध आते ही वो झील का रूप ले लेता है। यहां भी इसी तरह की झील बनी है। अच्छी लगती है। हो सकता है कि पेंगोंग के चक्कर में आपने यह झील न देखी हो। अगली बार पेंगोंग जाना हो तो इसे अवश्य देखना। पेंगोंग अपनी जगह है लेकिन यह भी खूबसूरती में कम नहीं है।
इससे आगे रास्ता भी बेहद खूबसूरत है। हरी घास कालीन की तरह बिछी है और लद्दाख के बंजर में आंखों को अच्छी लगती है। थोडा ही आगे यह नदी दुरबुक की तरफ से आती एक नदी में मिल जाती है और दोनों सम्मिलित होकर श्योक में मिलने चल देती हैं। जहां इसका और श्योक का संगम होता है, वहां श्योक नामक गांव भी है। श्योक भी बडी दूर से आती है और दिस्कित के पास नुब्रा नदी इसमें मिल जाती है। श्योक आगे बढती है और पाक अधिकृत कश्मीर में स्कार्दू के पास सिन्धु में मिल जाती है।
तो जिसे हम नुब्रा घाटी कहते हैं, वो असल में श्योक घाटी है। नुब्रा घाटी तो श्योक-नुब्रा संगम से ऊपर पनामिक और सियाचिन की तरफ ही है। खारदुंगला से उतरकर खालसर पहुंचते हैं, दिस्कित पहुंचते हैं, फिर हुण्डर और आगे तुरतुक तक श्योक घाटी ही है, नुब्रा घाटी नहीं। पता नहीं छोटी सी नुब्रा घाटी विशाल श्योक घाटी के आगे कैसे ज्यादा प्रसिद्ध हो गई?
खैर, पौने बारह बजे हम दुरबुक पहुंचे। यहां श्योक की तरफ से आने वाली सडक भी मिल जाती है। कोठारी साहब इसी सडक से नुब्रा घाटी से पेंगोंग आये थे। श्योक से एक रास्ता दौलत बेग ओल्डी यानी डीबीओ भी जाता है। डीबीओ यहां से 255 किलोमीटर है। डीबीओ किसी भी पर्यटक सर्किट में नहीं आता। वहां अक्सर भारत और चीन की सेनाओं के टकराव हमें आये दिन पढने को मिलते रहते हैं। मेरी इच्छा है कि कभी डीबीओ जाऊं। परमिट मिलने का तो सवाल ही नहीं। उसकी सम्भावना केवल तभी है जब सेना स्वयं बुलाये। जिस तरह आजकल सियाचिन पर सेना के बुलावे पर कुछ ट्रैकर और पत्रकार जाने लगे हैं, उसी तरह डीबीओ भी जाया जा सकता है। इसके अलावा कोई तरीका नहीं है।
हमें भूख लगी थी। यहां खाने के ज्यादा विकल्प नहीं थे, केवल चाऊमीन ही खानी पडी। आधे घण्टे में यहां से चल दिये।
दुरबुक से आठ किलोमीटर आगे तांगसे है। यहां नदी पार करके रुकने-खाने का इंतजाम है। तांगसे से एक रास्ता सीधे चुशुल भी जाता है। हमें भी चुशुल जाना था लेकिन इस रास्ते से नहीं। तांगसे में हमें इस नदी को छोडकर इसकी एक सहायिका के साथ साथ ऊपर चलना होता है। गांव पार कर लेने के बाद तांगसे गोम्पा है, जिसे हमने नहीं देखा।
यह नदी पहले तो एक तंग रास्ते से बहती है, फिर खुलती जाती है। खुले में भी यह एक नमभूमि का निर्माण करती है जहां भेडपालन होता है। हमारे पास रुकने के लिये खूब समय था, हम खूब रुकते रुकते चले। इसी रास्ते में आगे एक झील और है जिसका भी नाम मुझे नहीं पता। पक्षी प्रेमियों के लिये यह झील शानदार है।
हमारी निगाहें एक दर्रे को ढूंढ रही थीं। जी हां, यहां भी एक दर्रा है। दर्रा यानी जल विभाजक। हम पेंगोंग की तरफ बढ रहे थे तो पानी का प्रवाह हमारे विपरीत दिशा में था। यानी हम ऊपर की तरफ चल रहे हैं। तांगसे लगभग 4000 मीटर पर है और यह छोटी सी झील 4200 मीटर पर। एक ऐसा स्थान अवश्य आयेगा जहां से पानी का प्रवाह पेंगोंग की तरफ मिलेगा। जहां से पानी का प्रवाह बदल जायेगा, वही स्थान भौगोलिक रूप से दर्रा होगा। लेकिन यह स्थान बिल्कुल समतल ही दिखता है। दर्रे जैसी पहचान करना बेहद मुश्किल था।
और आगे चले तो पानी मिलना बन्द हो गया। उसकी जगह रेत मिलने लगी। रेत भी इतनी कि कई बार निशा को नीचे उतारना पडा। सडक पर खूब रेत थी। मुझे दर्रे की पहचान पानी के प्रवाह से होती है। लेकिन यहां पानी नहीं था तो वो स्थान नहीं मिला जहां से प्रवाह की दिशा बदल जानी थी। बाद में घर आकर गूगल मैप पर देखा तो वो स्थान है जहां से पेंगोंग के प्रथम दर्शन होते हैं। इस स्थान पर सडक तो कुछ ऊपर है लेकिन सूखी नदी का तल लगभग 4270 मीटर पर है। फिर हम पेंगोंग किनारे लुकुंग पहुंचते हैं तो वो स्थान 4220 मीटर पर है। यानी जहां पेंगोंग के प्रथम दर्शन होते हैं, वो स्थान एक दर्रा है। हालांकि यह जगह बिल्कुल सूखी है, रेतीली है लेकिन प्रकृति ने पानी निकलने का इंतजाम कर रखा है। अगर इस स्थान से इधर पानी डाला जाये तो वो इधर बहेगा और अगर उधर डाला जाये तो वो पेंगोंग में जायेगा।
हां तो, हम बात कर रहे थे पेंगोंग से पहले नमभूमि की। ऐसे स्थान फ्यांग के लिये भी आदर्श होते हैं। सडक किनारे एक जगह तो खूब फ्यांग थे, कई गाडियां रुकी हुई थीं और फ्यांग निर्भीक घूम रहे थे। अक्सर फ्यांग डरपोक होते हैं और नजदीक जाने से पहले ही वे अपने बिलों में दुबक जाते हैं लेकिन यहां ऐसा नहीं था। उनके बेहद पास जाया जा सकता था, एक फुट पास तक भी। यहां पर्यटक फ्यांग देखने रुकते हैं तो इस छोटे से जानवर को भी उनकी आदत हो गई है। पिछले पैरों पर खडे होकर एक पोज देना होता है या अपने दो दांत दिखाने होते हैं या किसी चट्टान पर बैठकर गाना गाना होता है; बदले में उसे पर्यटकों से भोजन भी मिल जाता है। किसी फ्यांग को भोजन मिलता है तो पास बैठी एक काली-सफेद चिडिया उसे ले उडती है। मुटल्ला फ्यांग उसका पीछा भी करता है लेकिन नभचरों के आगे भूमिचरों की क्या बिसात?
साढे तीन बजे लुकुंग पहुंच गये जहां से पेंगोंग झील शुरू होती है। यहीं से एक रास्ता फोबरांग की तरफ चला जाता है जो आगे मारसिमिक ला जाता है। हमारे पास मारसिमिक ला का परमिट था जो फोबरांग में चेक होगा। फोबरांग जाकर ही पता चलेगा कि हमें मारसिमिक ला जाने दिया जायेगा या नहीं। लेकिन पिछले कई दिनों से मौसम खराब होने और खारदुंगला और चांग ला का हाल देखने के बाद हमने मारसिमिक-ला जाने का इरादा त्याग दिया।
पेंगोंग की तरफ |
एक झील, इसका नाम मुझे नहीं पता चला। |
सामने नीचे दिखता दुरबुक जहां से एक रास्ता श्योक जाता है। |
दुरबुक- दाहिने पेंगोंग, बायें श्योक |
दुरबुक में जलपान |
दुरबुक |
तांगसे से एक रास्ता चुशुल भी जाता है। |
फ्यांग |
फ्यांग और इस काली-सफेद चिडिया की पता नहीं दोस्ती है या दुश्मनी है; यह इसके आगे से भोजन लेकर उड जाती है और यह दांत दिखाता रह जाता है। |
पेंगोंग के प्रथम दर्शन |
पेंगोंग झील दो देशों में बंटी हुई है। |
अगला भाग: लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
11. लद्दाख बाइक यात्रा-11 (खालसी-लेह)
12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च
अहा हा. . . . . नीरज जी; यह सब नजारा देखते हुए आपके मन में कुछ 'साक्षीभाव' का अनुभव भी हुआ? जैसे स्वयं को नजारे में खोना; स्वयं का अहंकार गिर जाना (जब इतना कुछ विराट होता है; करने जैसा कुछ बचता ही नही; बस देखने जैसा बच जाता है)? आपको धन्यवाद दिए हुए अरसा हो गया| आज फिर एक बार पांच हजार बार धन्यवाद देता हुँ. . . . :) निशाजी को भी प्रणाम|
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी... साक्षीभाव तो हमेशा ही रहता है।
Deleteनीरज भाई जी पंगोंग मैं जो आपने रात को टेंट लगा कर रुके थे तो आपको वह कैसा अनुभव हुआ
ReplyDeleteसर जी, धैर्य रखिये। जब टैंट लगायेंगे, तभी बतायेंगे।
DeletePangong Lake ka pani pine ke liye use karte he ..... Ladhaki..... kya apne piya .....
Deleteसुनील जी, पेंगोंग का पानी खारा है और इसे पीने के लिये प्रयोग नहीं किया जाता और न ही खेती के लिये। नालों और झरनों का पानी वे प्रयोग करते हैं।
DeleteThnks Bhai
Deleteआप इस लेख को बहुत सटीक ढंग से लिखे हैमन की हर जिज्ञासो जवाब यहा है । पर एक बात मन मे है कि पहाड जो तस्वीर मे दिख रहा है भूरे रगो का । वो चट्टान है या नरम बालूवाई पहाड।
ReplyDeleteज्यादातर तो चट्टानी हैं लेकिन कहीं-कहीं बलुई भी है।
Deleteधन्यवाद
DeleteNothing to say
ReplyDeleteथैंक्स...
DeleteNeeraj bhai पेंगोंग झील ka 1st view dekhkar sab थकान nikal gayi hongi ... :)
ReplyDeleteShyok ke raste Nubra vally ja sakte the to aap kyo nahi gaye ....
हम दो दिन लेह में रुके रहे थे इसलिये अपने कार्यक्रम से लेट हो गये थे। हमें केवल नुब्रा घाटी स्पर्श करके नहीं आना था। जब भी हम वहां जायेंगे, कम से कम तीन दिन वहां रहेंगे और पनामिक, तुरतुक तक का इलाका देखकर आयेंगे। नुब्रा जाते तो आगे आने वाली जगहें छूट जातीं।
DeleteShyok ka jo Rasta he river ke sath wo ....acha he ya risky he.....
DeleteKothari sahab to wo raste se gaye the to unone aapko bataya hoga..................
दुरबुक से श्योक तक तो अच्छा है लेकिन उसके बाद खराब और रिस्की है। रास्ता नदी से होकर जाता है। अगर नदी में पानी ज्यादा आ जाये तो रास्ता बन्द भी हो जाता है।
DeleteNeeraj ji agar aap Khardungla se Nubra vally gaye hote ... to return aate samay Agham- Sakti (ye rasta thik he )
Deleteke raste se aate ya.......Risk le kar Shyok rivar ke raste .......
सुनील जी, हमारा इरादा अगम-सक्ती (वारी-ला) के रास्ते आने का ही था लेकिन वारी-ला के बन्द होने की दशा में हम रिस्क लेकर श्योक होकर ही आते।
Deleteशानदार ......पेगोंग का पानी खारा क्योंहै?
ReplyDeleteसर जी, अगली पोस्ट में इस बारे में विस्तार से लिखा है।
Deleteचांगला से पेगांग जाते वक्त रास्ते में .. " शैतान नाला " लगता है .... एसे मैने कही पढा है ... शैतान नाला उस शैतान सिंह के याद मै hai उसका नाम शैतान नाला पडा है . जिन्होने १९६२ भारत Vs चीन युध्द में बडा पराक्रम किया था ... उन्होने अकेले ही चीनी सैनिको मारा था ... उसी नाले के नजदिक ...
ReplyDelete------------------- यह कहानी नीरज, बराबर है क्या ... में लडाख गया था .. पेगांग जाते वक्त रास्ते में बहुत से नाले दिखे पुछताज कियी कोई बता नही सका ... तुम्हे कुछ मालुम है क्या ??????????????
सर जी, शैतान नाले की मुझे कोई जानकारी नहीं है। लेकिन मेजर शैतान सिंह की टुकडी और चीन की लडाई पेंगोंग और चांग-ला के बीच में नहीं हुई थी। वो तो चुशुल से भी आगे रेजांगला नामक दर्रे पर हुई थी। 1962 में केवल रेजांगला का मोर्चा ही ऐसा था जहां चीन ने मात खाई थी और उसने सीजफायर को कहा था। मेजर की टुकडी में कुल 120 सैनिक थे जिनमें से 114 मारे गये थे और 6 घायल हुए थे। मरणोपरान्त शैतान सिंह को सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र प्रदान किया गया था।
Deleteआपके बातो से मुझे तो ये जान पडता है आपके पास इस उछ्चे क्षेत्र के के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी रखे है ।
Deleteचूकि शायद आप इंजीईरिगं की पढाई किए है । और इतिहास और भूगोल की प्रतिष्ठा के छात्रो से अधिक जानकारी है । ये तरिफ के काबिल है । माफ कीजिए।
आपके बातो से मुझे तो ये जान पडता है आपके पास इस उछ्चे क्षेत्र के के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी रखे है ।
Deleteचूकि शायद आप इंजीईरिगं की पढाई किए है । और इतिहास और भूगोल की प्रतिष्ठा के छात्रो से अधिक जानकारी है । ये तरिफ के काबिल है । माफ कीजिए।
धन्यवाद ! ...
Deleteमुटल्ला फ्यांग उसका पीछा भी करता है लेकिन नभचरों के आगे भूमिचरों की क्या बिसात?
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वाह, क्या बात है !
धन्यवाद सर जी...
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