बुलेट निःसन्देह शानदार बाइक है। जहां दूसरी बाइक के पूरे जोर हो जाते हैं, वहां बुलेट भड-भड-भड-भड करती हुई निकल जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि लद्दाख जाने के लिये या लम्बी दूरी की यात्राओं के लिये बुलेट ही उत्तम है। बुलेट न हो तो हम यात्राएं ही नहीं करेंगे।
बाइक अच्छी हालत में होनी चाहिये। बुलेट की भी अच्छी हालत नहीं होगी तो वह आपको ऐसी जगह ले जाकर धोखा देगी, जहां आपके पास सिर पकडकर बैठने के अलावा कोई और चारा नहीं रहेगा। अच्छी हालत वाली कोई भी बाइक आपको रोहतांग भी पार करायेगी, जोजी-ला भी पार करायेगी और खारदुंग-ला, चांग-ला भी।
वास्तव में यह मशीन ही है जिसके भरोसे आप लद्दाख जाते हो। तो कम से कम अपनी मशीन की, इसके पुर्जों की थोडी सी जानकारी तो होनी ही चाहिये। सबसे पहले बात करते हैं टायर की। टायर बाइक का वो हिस्सा है जिस पर सबसे ज्यादा दबाव पडता है और जो सबसे ज्यादा नाजुक भी होता है। इसका कोई विकल्प भी नहीं है और आपको इसे हर हाल में पूरी तरह फिट रखना पडेगा।
दो तरह के टायर होते हैं- ट्यूब वाले और बिना ट्यूब वाले यानी ट्यूबलेस। बहुत सारे मित्र ट्यूबलेस टायर के बारे में नहीं जानते, मैं भी नहीं जानता था कुछ समय पहले तक। अक्सर एक टायर होता है, उसके अन्दर ट्यूब होती है। ट्यूब में हवा भरी जाती है, टायर उसे मजबूती से पहिये के साथ जकडे रहता है। सडक के सारे अवरोध; गड्ढे, कंकड, पत्थर, कांटे सब टायर सहन करता है, नाजुक ट्यूब इन सब परेशानियों से बची रहती है। लेकिन कब तक? जब भी कोई अवरोध टायर की मजबूती को छेदता हुआ ट्यूब तक पहुंच जाता है, तो ट्यूब उसके हल्के से प्रहार से भी नहीं बच पाती और पंक्चर हो जाती है। एक सेकण्ड भी नहीं लगता ट्यूब की हवा निकलने में और आपकी मशीन नाकाम हो जाती है। ट्यूब चूंकि टायर के अन्दर होती है इसलिये पंक्चर ठीक करने के लिये आपको पहले ट्यूब बाहर निकालनी पडेगी। इसके लिये पहिया खोलना पडेगा, टायर बाहर निकालना पडेगा, तब जाकर ट्यूब बाहर निकलेगी। ट्यूब में छेद यानी पंक्चर ढूंढना पडेगा, ठीक करना पडेगा और पुनः उल्टी प्रक्रिया अपनानी पडेगी यानी टायर के अन्दर ट्यूब डालनी पडेगी और फिर पहिया सेट करना पडेगा। तब जाकर आपनी मशीन आगे बढेगी।
लेकिन ट्यूबलेस में ऐसा नहीं होता। इसमें नाजुक ट्यूब ही नहीं होती। मजबूत टायर पहिये के रिम पर एयरटाइट चिपका दिया जाता है यानी जहां रिम और टायर चिपके हैं, वहां से हवा नहीं निकल सकती। ट्यूब जहां गुब्बारे की तरह होती है, वहीं ट्यूबलेस टायर एयर कंटेनर की तरह होता है। ट्यूब में जरा सा कुछ लगा, वह फट जाती है और सारी हवा पल भर में विस्फोट की आवाज करती हुई निकल जाती है। ट्यूबलेस टायर में अगर पंचर होता है तो वह गुब्बारे की तरह फटता नहीं है और हवा एकदम से नहीं निकलती। इसे ऐसे समझ लें कि पानी की कोई टंकी है। टंकी में कहीं कोई छेद हो जाये तो एकदम सारा पानी नहीं निकलता। धीरे धीरे निकलता रहता है। ट्यूबलेस में पंचर होने पर हवा भी धीरे धीरे निकलती है। आपके कान अगर चौकस हों तो आप इसकी सर्र-सर्र की आवाज को सुन भी सकते हैं।
मेरी बाइक में ट्यूबलेस टायर हैं। रास्ते में एक जगह कांटा चुभ गया और पंचर हो गया। एक जगह रुके तो सर्र-सर्र की आवाज सुनाई दी। गौर किया तो टायर में गडा कांटा दिख गया, वहीं से हवा के निकलने की आवाज भी सुनाई दे रही थी। हमने कांटा नहीं निकाला और बाइक को तकरीबन दस किलोमीटर और ले गये। जब हवा काफी कम रह गई तो दस मिनट भी नहीं लगे पंचर लगाने और पुनः हवा भरने में। ट्यूबलेस में पंचर लगाना बेहद आसान है। एक पंचर किट आती है, बाजार में आसानी से मिल जाती है। मैंने पहले ही ऑनलाइन मंगा ली थी। पहिया खोलने की तो जरुरत ही नहीं पडती। कांटा रास्ते में कहीं अपने आप ही निकल गया था। हवा निकलने की आवाज अभी भी आ रही थी। हम चाहते तो इसमें और हवा भरकर और आगे जा सकते थे। पंचर लगाया। जो भी मेहनत लगी, वो पम्प से हवा भरने में ही लगी। जिस पम्प को मैं साइकिल के लिये प्रयोग करता था, वो ही यहां प्रयोग होता है। बाद में जब आगे शहर में एक दुकान मिली तो हवा पूरी भरवा ली।
ट्यूबलेस टायर सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। ट्यूब वालों में जब पंचर होता है तो विस्फोट की आवाज के साथ एकदम सारी हवा निकल जाती है। बाइक अगर तेज चल रही हो तो असन्तुलित भी हो जाती है। पहाडों पर गोल-गोल घूम रही हो तो नीचे खाई में गिरने का डर भी रहता है। ट्यूबलेस में ऐसा कुछ नहीं होता। हवा बडी धीरे धीरे निकलती है। पंचर होने के बडी देर बाद जब हवा कम हो जाती है तो बाइक सवार को अपने आप ही अन्दाजा होने लगता है कि टायर में हवा कम हो रही है। जांच करता है तब पता चलता है। इसके बावजूद भी साधारण पम्प से और हवा भरकर बहुत दूर तक ले जाई जा सकती है।
पहियों से चलकर अब आगे बढते हैं और पहुंचते हैं इंजन पर। इंजन के साथ ही गियर असेंबली और क्लच भी जुडे होते हैं। मशीन है, खराब कम होती है अटकती ज्यादा है। कभी गियर में कुछ हो जाता है, कभी क्लच में। हम जब मेरक के पास थे... मेरक बडा ही सुदूरवर्ती लद्दाखी गांव है। पेंगोंग झील के किनारे है, जहां पेंगोंग भारत छोडकर चीन में प्रवेश करती है, उससे बस जरा सा पहले है। आपने ज्यादातर ने पेंगोंग झील देख रखी होगी। लेह की तरफ से जाते हैं तो झील जहां से शुरू होती है, काफी सम्भव है कि आप वहीं से वापस लौट गये होंगे। फिर भी मैं उम्मीद करता हूं कि आप यहां से आठ किलोमीटर आगे स्पांगमिक गांव तक तो गये ही होंगे। स्पांगमिक तक सडक भी अच्छी बनी है। इससे आगे सडक नहीं है। बस, रेतीले भूभाग में जबरदस्ती गाडियां चला-चलाकर ‘पगडण्डियां’ बना दी गई हैं। इससे आगे मान गांव है और मान से भी खूब आगे मेरक।
तो जी, इसी रेतीले भूभाग में दो बुलेट सवारों ने हमें सहायता के लिये रुकवाया। उनकी बुलेट रेत में फंसी थी। स्टार्ट भी हो रही थी, गियर भी लग रहे थे लेकिन बाइक आगे नहीं बढ रही थी। जाहिर था कि क्लच में परेशानी है। अब ऐसे वीराने में कुछ न कुछ तो करना ही था। शहर होता या कोई मिस्त्री होता तो हम कुछ नहीं करते और बाइक को तुरन्त मिस्त्री के पास ले जाते लेकिन यहां ऐसा होना सम्भव नहीं था। हममें से किसी को भी इंजन विभाग की जानकारी नहीं थी लेकिन फिर भी हमने इसे खोलने का फैसला किया। बुलेट वालों ने टूल निकाले लेकिन इनमें से कोई भी टूल इंजन के नटों को खोलने के लायक नहीं था। यह बाइक इन्होंने लेह से किराये पर ली थी। टूल पर्याप्त न होने के कारण हम इंजन को नहीं खोल सके और खोलने के बाद जिस परेशानी को शायद हम ठीक भी कर सकते थे, वह ठीक नहीं हो सकी। क्या पता वो बहुत ही मामूली सी समस्या हो?
तो आपके पास आपकी मशीन के प्रत्येक नट, प्रत्येक स्क्रू को खोलने के लिये टूल होने चाहिये। आप मशीन की आन्तरिक मशीनरी को नहीं जानते लेकिन क्या पता आपका साथी जानता हो, क्या पता रास्ता चलता कोई आदमी जानता हो, क्या पता कोई ट्रक वाला या बस वाला जानता हो? टूल न होने के कारण आप कुछ खोल भी नहीं सकेंगे और एक बेहद मामूली वजह से आपकी यात्रा चौपट हो सकती है।
तीसरी समस्या हमारे सामने आई बाइक पर सामान बांधने की। हमारे पास काफी सामान था; खूब कपडे थे, स्लीपिंग बैग थे, टैंट था और मैट्रेस थीं। एक काम अच्छा किया कि हमने पहले एक मैग्नेटिक टैंक बैग खरीद लिया था। मैग्नेटिक टैंक बैग आपकी बाइक की टंकी पर चिपका रहता है। इसमें रोजमर्रा का खूब सारा सामान आ जाता है और यह गिरता भी नहीं है। अमूमन टंकी पर निशान भी नहीं पडते। फिर भी पीछे सामान बांधना हमेशा ही टेढी खीर रहा। दूसरी बाइकों खासकर बुलेटों पर एक विशेष इंतजाम कर लिया जाता है। दोनों तरफ एक विशेष जाली लगवा ली जाती है जिसमें ढेर सारा सामान बिना बांधे भी आ सकता है। हमने ऐसा कुछ नहीं कराया था, जिससे हमें बहुत परेशानी हुई। हमने अपने कंधे बिल्कुल खाली रखे। लिहाजा प्रत्येक सामान बांधना पडा।
लद्दाख में मौसम बडा ही अजीब होता है तो कपडों का ध्यान रखना होता है। लद्दाख में बहुत कम वर्षा होती है लेकिन अक्सर दोपहर बाद मौसम खराब हो ही जाता है और तूफानी हवाएं तो चलती ही हैं। ऊंचाई पर होने के कारण अल्ट्रा-वायलेट किरणें ज्यादा होती हैं। ये किरणें त्वचा को जला देती हैं और आंखों को भी नुकसान पहुंचाती हैं। इसलिये ध्यान रखना होता है कि धूप में निकलने से पहले पूरे शरीर को ढक लिया जाये। अगर ढका न जा सके जैसे चेहरा और हथेलियां; तो क्रीम लगा लेनी चाहिये। काला चश्मा तो पहने ही रखना होता है।
एक चीज और आती है, वो है ऊंचाई। लद्दाख दर्रों की भूमि है। कहीं भी जाओ, आपको दर्रे हमेशा लांघने पडेंगे। ज्यादातर दर्रे 5000 मीटर से ऊंचे हैं। कम नहीं होती इतनी ऊंचाई। ऑक्सीजन इतनी कम होती है कि बाइक के इंजन की आवाज भी बदल जाती है। अगर बाइक नहीं चल पा रही तो एक बडा ही खतरनाक काम करने की सलाह दी जाती है। इसका एयर फिल्टर निकाल लिया जाता है। ऐसा करने से इंजन में ज्यादा हवा जायेगी। लेकिन एयर फिल्टर निकालना इसलिये खतरनाक है कि दर्रों पर तूफानी और धूलयुक्त हवा चलती है, सडकें भी खराब होती हैं। एयर फिल्टर नहीं होगा तो हवा के साथ धूल भी इंजन में चली जायेगी और इसे नुकसान पहुंचा सकती है। एयर फिल्टर केवल तभी निकालना चाहिये जब आपको लगे कि वातावरण में धूल नहीं है और इंजन में धूल नहीं जायेगी।
खैर, दर्रों पर सांस लेने में भी परेशानी आती है। यह प्रत्येक इंसान की अपनी-अपनी क्षमता है कि कम हवा में वह किस तरह गुजारा करता है। किसी किसी को तो ऑक्सीजन सिलेण्डर की आवश्यकता भी पड जाती है। ज्यादातर लोग बिना ऑक्सीजन सिलेण्डर के काम चला लेते हैं। कोशिश करनी चाहिये कि दर्रों के आसपास रात न गुजारें। हमें चांग-ला पार करते-करते अन्धेरा हो गया था। फिर हम उस तरफ दर्रे के नीचे लगभग 5000 मीटर की ऊंचाई पर रुक गये। पूरी रात हमें नींद नहीं आई। मुझे ठण्ड लगती रही और निशा को ठण्ड भी लगी और सांस लेने में परेशानी भी हुई।
लद्दाख में हर जगह बिजली है इसलिये मोबाइल कैमरा चार्ज करने की कोई परेशानी नहीं होती। फिर भी हमने बाइक में मोबाइल चार्जर लगवा लिया था जिसे बाद में खालसी में किसी ने चोरी कर लिया। इसके बावजूद भी हमें मोबाइल कैमरा चार्ज करने में दिक्कत नहीं हुई।
आखिरी बात, पूरे जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल काम नहीं करता। केवल पोस्टपेड नेटवर्क ही काम करता है। उधर लद्दाख में बीएसएनएल को छोडकर अन्य नेटवर्क केवल कारगिल शहर और लेह शहर में ही चलते हैं। बीएसएनएल हर जगह है। अगर आप बीएसएनएल के पोस्टपेड सिम का इंतजाम कर सके तो उत्तम है अन्यथा बिना दुनिया की खबर लिये और दुनिया को अपनी खबर दिये बिना घूमते रहिये। इसका आनन्द सिर्फ लद्दाख में ही मिल सकता है। हां, दुनिया को पहले बता देना पडेगा कि अगले इतने दिनों तक नेटवर्क के बाहर रहोगे। नहीं तो बाढ कश्मीर में आयेगी और दुनिया परेशान हो जायेगी कि आप बह गये।
नोट: कृपया फोटो की शिकायत मत करना। आने वाले दिनों में आपको जी भरकर फोटो देखने को मिलेंगे। लद्दाख से सम्बन्धित आपकी जो भी जिज्ञासा है, उसे अवश्य लिखें। समाधान करूंगा।
अगला भाग: लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
11. लद्दाख बाइक यात्रा-11 (खालसी-लेह)
12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च
पहले तो मेरी तरफ से यात्रा के लिए बधाई नीरज जी. पहली प्रविष्टी से ही रोमांच जगा दिया है. दुपहिये पर सवारी करने वालों के लिए उपयोगी जानकारी देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद निशान्त जी...
DeleteAb aaye gaa asli maja agle bhaag ka intjaar rahega
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deletebahot badiya jankaari
ReplyDeleteagle post ka intjaar
धन्यवाद अहमद साहब...
Deleteअति उत्तम नीरज जी
ReplyDeleteउस बुलेट वाले का क्या होवा फिर बेचारा कैसे आया होगा
यात्रा वृत्तान्त छपेगा... तो उसका भी पता चलेगा...
DeleteNeeraj bhai ram ram,lagata h yatra romanchak h.agle post ka intjaar .
ReplyDeleteलद्दाख की यात्राएं तो शर्मा जी... हमेशा ही रोमांचक होती हैं...
Deleteइस यात्रा का पहला भाग पढ़ कर ही लग रहा है कि यात्रा काफ़ी रोमांचक रही, दुपहिया वाहन के लिए काफ़ी उपयोगी जानकारी दी आपने ! अगले भाग का इंतजार रहेगा !
ReplyDeleteधन्यवाद चौहान साहब...
Deleteआपके द्वारा दी जा रही जानकारी बाइक यात्रा में मददगार होगी ,पोस्ट हमेशा की तरह शानदार ...................अगले पोस्ट के इन्तजार में
ReplyDeleteधन्यवाद पाण्डेय साहब...
Deleteपहाड़ों पर बाइक से यात्रा के बारे में उपयोगी जानकारियाँ देने के लिये आपको साधुवाद नीरज।
ReplyDeleteधन्यवाद कोठारी साहब...
DeleteHats off to your TRIP .
ReplyDeleteThoda bike drive ke waqt pahne jane wali dress aur luggage packing ki bhi jankari den.
बाइक चलाते समय तो हमने वही साधारण कपडे पहने थे, जो अमूमन पहनते हैं। और लगेज पैकिंग सबका अपना-अपना मामला होता है। बस मैंने यह ध्यान दिलाने के लिये पैकिंग के बारे में लिखा है कि अगर सामान ज्यादा हो तो पैकिंग मुश्किल हो जाती है। तब तो और भी मुश्किल हो जाती है जब एक ही बाइक पर दो लोग यात्रा करें।
DeleteWaiting to watch fantastic photos in your upcoming posts.
ReplyDeletePosts will be published very soon...
Deleteआरंभ है प्रचंड !!
ReplyDeleteनीरज भाई !! इंतजार रहेगा अगली कड़ी का !!!!
धन्यवाद हरेन्द्र भाई...
Deleteदिलचस्प जानकारी।
ReplyDeleteधन्यवाद अहमद साहब...
Deleteअब आपका ब्लॉग पढ़ के अपने पैसे वसूल करेंगे वो भी दस गुना.
ReplyDeleteआगाज इतना मस्त है तो अंजाम तो बहुत ही शानदार होगा
बहुत ही अच्छा लगा आपका ये ब्लॉग।
बिल्कुल पैसे वसूल करो गुप्ता जी... अगली पोस्ट जल्दी ही छपेगी...
Deleteअति सुन्दर.....
ReplyDeleteअति सुन्दर...
DeleteLooking forward for your posts on Leh .
ReplyDeleteजल्द ही प्रकाशित होंगी...
Deletenice .... neeraj bhai 100cc ki passion pro bike chal sakti he kya ladhak me.... ya bullet leni hongi leh me...
ReplyDeleteलद्दाख के लिये बुलेट लेने की कोई मजबूरी नहीं है। कोई भी बाइक वहां चल सकती है... 100 सीसी की पैशन प्रो भी...
Deleteयात्रा ट्रेन रेल्वे कैमरा इतिहास और अब बाइक की शानदार जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद चन्द्रा सर...
Deleteफोटो के बिना .... मानो नीरज.... नो तडका !... लेकिन तुम ने पहले ही कह दिया फोटो बाद मै ....
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. बहुत अच्छी जानकारी !!...
आज आपने बिन तडके का आनन्द लिया... अब लो तडका ही तडका...
Deleteमुझे ठण्ड लगती रही और निशा को ठण्ड भी लगी और सांस लेने में परेशानी भी हुई।
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पिछ्ले साल जुलै २०१४ में लदाख गया था ... चांग-ला पर मेरी और मेरे साथीयों की जो हालत हुयी .... मे आज तक नही भुला हू... आगे का विवरण जानने के लिये बडे बेसब्री इंतजार करता हू...
धन्यवाद भवारी साहब...
DeleteBahut achcha likhte ho Neeraj ..................Anurag
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराग जी...
Deleteनीरज भाई लगता है आने वाले दिनों में बहुत ही रोमाँचक यात्रा के बारे में पढने को मिलेगा..
ReplyDeleteइसमें तो कोई शक ही नहीं है अरुण भाई...
Deleteबाइक से यात्रा करने में काफी कठिनाईयां तो आती होंगी लेकिन अपनी मनमर्जी जहाँ चाहो रुको और प्रकृति का खूबसूरत नज़ारा देखों उसके आस पास देखो .. यह सब बस या किसी किराये की गाडी लेकर बहुत सारे लोगों के साथ शायद नहीं मिलता ...अपनी मर्जी अपना संसार ...
ReplyDeleteबहुत रोमांचकारी यात्रा वृतांत विस्तृत जानकारी के साथ पढ़कर, सोचकर, अनुभव कर बहुत अच्छा लगता है ..
हां जी, ऐसा ही होता है बाइक यात्रा में...
DeleteBehad achhhi jaankari neeraj bhai..utni hi achhi ye post bhi...! Photos ka agle post mein intzar rahega! :)
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteकठिनाइयों को बताने के साथ साथ समाधान भी कर दिया,बहुत ही बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी...
Deleteबहुत खूब, बहुत अच्छी जानकारी....
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
DeleteAb aayega yatra ka asli maza..neeraj bhai 20 july se byke se laddakh jana thik hoga??
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक रहेगा। लद्दाख में ज्यादा बारिश नहीं होती।
Deleteऐसी जानकारी ओर कहीं नही मिलती....
ReplyDeleteधन्यवाद नीरज
नीरज जी बधाई!
ReplyDeleteबहुत उम्दा जानकारी नीरज जी।
ReplyDeleteMukesh....
रोचक कति जानकारी
ReplyDeleteबाईक के बारे में इतनी जानकारी पहले कहीं नही पढी। आपकी यात्रा का जम्मू भाग पहले पढ लिया अब पहला पढा और दूसरे की बारी। आपकी यात्रा शुभ हो रोचक हो और आनन्ददायक हो।
ReplyDeleteबाईक के बारे में इतनी जानकारी पहले कहीं नही पढी। आपकी यात्रा का जम्मू भाग पहले पढ लिया अब पहला पढा और दूसरे की बारी। आपकी यात्रा शुभ हो रोचक हो और आनन्ददायक हो।
ReplyDeleteबढ़िया शुरुआत
ReplyDeleteyour post is very nice! i like it.....
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नीरजजी आपकी यात्रा का वर्णन पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ।जैसे जीवन को एक नयी राह मिल गई हो। मेरे जीवन का भी यही एक सपना है। की ऐसी ही एक यात्रा करू क्या आप मेरी कुछ मदद कर सकते हो?मैं भी दिल्ली का जाट ही हु।
ReplyDeleteIt's a great pleasure reading your post.It's full of information I am looking for and I love to post a comment that "The content of your post is awesome" Great work!.
ReplyDeleteRegards
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नमस्कार नीरज जी मेंं आगरा में रहता हूं ओर 15जून2017 के आसपास बाईक से लद्दाख जाने का कार्यक्रम है
ReplyDeleteअगर आपके ग्रुप में से किसी भी सज्जन का इस तारीख में लद्दाख जाने का कार्यक्रम हे तो क्रपया उन्हें मेरा w/a न. दे दीजिये मेरा न. 9058199365 है
हम पति पत्नी दोनो जायेंगे धन्यवाद