11 जून 2015
सुबह साढे सात बजे उठे। मेरा मोबाइल तो बन्द ही था और कोठारी साहब का पोस्ट-पेड नम्बर हमारे पास नहीं था। पता नहीं वे कहां होंगे? मैं होटल के रिसेप्शन पर गया। उसे अपनी सारी बात बताई। उससे मोबाइल मांगा ताकि अपना सिम उसमें डाल लूं। मुझे उम्मीद थी की कोठारी साहब लगातार फोन कर रहे होंगे। पन्द्रह मिनट भी सिम चालू रहेगा तो फोन आने की बहुत प्रबल सम्भावना थी। लेकिन उसने मना कर दिया। मैंने फिर उसका फोन ही मांगा ताकि नेट चला सकूं और कोठारी साहब को सन्देश भेज सकूं। काफी ना-नुकुर के बाद उसने दो मिनट के लिये अपना मोबाइल मुझे दे दिया।
बस, यही एक गडबड हो गई। होटल वाले का व्यवहार उतना अच्छा नहीं था और मुझे उससे प्रार्थना करनी पड रही थी। यह मेरे स्वभाव के विपरीत था। अब जब उसने अपना मोबाइल मुझे दे दिया तो मैं चाहता था कि जल्द से जल्द अपना काम करके उसे मोबाइल लौटा दूं। इसी जल्दबाजी में मैंने फेसबुक खोला और कोठारी साहब को सन्देश भेजा- ‘सर, नौ साढे नौ बजे डलगेट पर मिलो। आज द्रास रुकेंगे।’ जैसे ही मैसेज गया, मैंने लॉग आउट करके मोबाइल वापस कर दिया। इसी जल्दबाजी में मैं यह देखना भूल गया कि कोठारी साहब मुझे एक मैसेज पहले ही भेज चुके थे- ‘नीरज, कहां हो तुम? तुम्हारा मोबाइल नहीं लग रहा है। मैं घण्टाघर के पास सनातन यात्री निवास में कमरा नम्बर 307 में रुका हुआ हूं।’ अपना सन्देश भेजने के चक्कर में उनका यह सन्देश मैं नहीं देख सका। अन्यथा सीधा सनातन यात्री निवास में ही चला जाता।
मैंने समय तो नौ-साढे नौ बजे का दे दिया था लेकिन हम स्वयं ही निकलने में लेट हो गये। खूब जल्दी की, फिर भी जब होटल से निकले तो दस बज चुके थे। इतनी जल्दबाजी की कि हमारा छोटा कैमरा यहीं कमरे में छूट गया। डलगेट पहुंचे। इधर-उधर निगाह दौडाई, कोठारी साहब नहीं दिखे। दिखते भी क्यों? मैंने खुद ही उन्हें साढे नौ तक का समय दिया था। वे समय पर आ गये होंगे, दस मिनट-पन्द्रह मिनट प्रतीक्षा भी की होगी; फिर वे चले गये होंगे। हम आगे बढ गये।
बाद में मनाली पहुंचकर जब नेट मिला तब देखा कि उन्होंने आज मेरा सन्देश पढकर अपना सन्देश भेजा था- ‘मेरा नम्बर ये है। दस बजे के आसपास ही डलगेट पर मिल सकूंगा।’ जाहिर है कि वे दस बजे के आसपास डलगेट पर आये होंगे, हम भी दस बजे के आसपास डलगेट पर ही थे। इन्हीं दो-चार मिनटों के अन्तर से हम पुनः मिलने से चूक गये।
निशा पहली बार कश्मीर आई थी, इसलिये डलझील तो देखनी बनती ही थी। वैसे तो छोटा रास्ता हजरतबल होते हुए चले जाने का था, लेकिन हम डलझील का चक्कर लगाकर गये। कई जगह रुके, खूब फोटो खींचे।
पौने बारह बजे सिंध नदी पार की। जब श्रीनगर से सोनमर्ग की तरफ जाते हैं तो श्रीनगर से निकलने के बाद कंगन से दस किलोमीटर पहले हमें सिंध नदी पार करनी होती है। हम सुबह खाली पेट ही चले थे, इसलिये यहां रुककर अपने पसन्दीदा आलू के परांठे खाये। यहीं मसाला डोसा भी बन रहा था लेकिन बनाने वाला अभी पूरी तरह नहीं सीख पाया था। फिर भी चटोरी जीभ की बात माननी पडी- जला हुआ मसाला डोसा भी ले लिया।
बहुत से बुलेट वाले लद्दाख की तरफ से वापस लौटते हुए मिल रहे थे। ये इसी रास्ते लद्दाख गये होंगे क्योंकि मनाली-लेह रास्ता अभी तक नहीं खुला था। एक बाइक वाले के लिये यह बडी निराशा की बात होती है कि एक रास्ते से लद्दाख जाये और उसी से वापस लौटे। मनाली-लेह सडक का तो वैसे भी बहुत ज्यादा आकर्षण है, इतना आकर्षण श्रीनगर-लेह सडक का नहीं है। उन्हें नहीं पता होगा या फिर पता भी होगा तो कुछ मजबूरी रही होगी कि इसी रास्ते वापस लौट रहे हैं।
गुण्ड तक तो खूब आवागमन था। काफी चौडी घाटी है, खूब बसावट है, स्थानीयों का खूब आना-जाना होता है। इसके बाद यह सब कम हो जाता है। सोनमर्ग से पांच किलोमीटर पहले हम रुके। यहां नदी के दूसरी तरफ खूब बर्फ जमा थी और अच्छी लग रही थी। आधे घण्टे हम यहां रुके रहे। खुद भी फोटो खींचते रहे और दूसरों को भी फोटो खींचते देखते रहे।
ढाई बजे सोनमर्ग पहुंचे। यहां से एक पांच किलोमीटर का रास्ता थाजीवास ग्लेशियर की तरफ भी जाता है। बहुत समय पहले जब अमरनाथ से लौट रहे थे तो उधर हम खच्चरों पर बैठकर गये थे। आज हमारे पास बाइक थी, तो मुड गये उधर। 70 रुपये की पर्ची कटी।
पार्किंग पर पहुंचे तो वहां भीड और मारामारी के हालत देखकर होश उड गये। स्थानीयों ने हमें घेर लिया कि ग्लेशियर पर स्लेजिंग करो। लेकिन मैं पिछले साल को भूला रहीं था। बात अगर 200 रुपये में होगी तो ये लोग 2000 का बिल बना देंगे। मासूम सी सूरत बनाकर कहने लगे कि भईया, अभी हमारा नम्बर आया है। आप नहीं चलोगे तो हमारा नम्बर कट जायेगा। मैं इस मासूम सूरत के अन्दर छिपे शैतान को अच्छी तरह जानता हूं। दो टूक मना कर दिया। बाइक पर बंधे सामान की तो उतनी दिक्कत नहीं थी लेकिन मैग्नेटिक बैग चोरी हो जाने की सम्भावना थी यहां। नहीं तो यहां से थोडा ही पैदल चलना पडता और हम बर्फ के मुहाने पर पहुंच जाते। मैग्नेटिक बैग में काफी सामान था और यह काफी वजनदार हो रहा था इसलिये इसे लादना भी अच्छा नहीं लगा। दो मिनट में ही यहां से वापस मुड लिये।
शैतानों की बहुतायत होने के बावजूद भी सोनमर्ग का जबरदस्त आकर्षण है। हम उस पार्किंग से एक डेढ किलोमीटर पीछे आये। यहां बडे-बडे मैदान थे और कुछ भेडों को छोडकर कोई नहीं था। बाइक सडक से नीचे उतार ली और मैदान में रोक ली। सामने ऊपर थाजीवास ग्लेशियर लटका हुआ दिख रहा था। यह जगह हमें इतनी अच्छी लगी कि हम यहां घण्टे भर तक रुके रहे।
साढे तीन बजे वापस चल दिये। सामने ऊपर जोजी-ला की तरफ घने बादल थे और यहां भी बूंदें गिर जाती। शाम को दर्रों पर मौसम खराब होना आम बात है। हमने अभी इसे पार करने का निर्णय लिया।
कमाल की बात ये थी कि कोठारी साहब भी लगभग इसी समय सोनमर्ग में थे। उन्होंने चार बजे मुझे एक सन्देश भेजा था। इसका मतलब साफ था कि साढे तीन बजे के आसपास वे सोनमर्ग आये होंगे और कहीं आराम से बैठने के बाद ही सन्देश भेजा होगा। उन्होंने कहा था कि वे आज सोनमर्ग में ही रुकेंगे। बाकी सन्देशों की तरह यह सन्देश भी मुझे मनाली जाकर ही मिला। डलगेट की तरह यहां भी कोठारी साहब और हम मिलने से बाल-बाल रह गये।
सोनमर्ग के बाद से ही जोजी-ला की चढाई शुरू हो जाती है। अच्छी सडक होने के कारण इसका ज्यादा पता नहीं चलता लेकिन बाइक का घटता हुआ गियर अनुपात बता देता है कि बाइक लोड पर है अर्थात चढाई पर है।
जोजी-ला अर्थात लद्दाख का प्रवेश द्वार। लद्दाख पहुंचना इतना आसान नहीं है कि सोनमर्ग से निकले, जोजी-ला पार किया और पहुंच गये लद्दाख। केवल एक जोजी-ला ही लद्दाख का आभास कराने को काफी है। जोजी-ला पर ट्रैफिक वन-वे होता है और यह संयोग ही था कि जब हम पहुंचे तब लद्दाख जाने वाला ट्रैफिक ही चल रहा था।
बहुत खराब सडक है जोजी-ला पर। ऊपर से फिर चढाई। फिर ट्रैफिक। ये तीनों चीजें मिलकर हालात को गम्भीर बना देती हैं। मौसम खराब हो तो बल्ले-बल्ले। भले ही ट्रैफिक नीचे से ऊपर की तरफ जा रहा हो लेकिन फिर भी लम्बी लाइन लगी पडी गाडियों की। अगर ट्रैफिक न होता तो बाइक दूसरे गियर में चलती चली जाती लेकिन बार-बार रुकना पडता और तब कई बार बाइक चलने से मना कर देती। निशा को नीचे उतरना पडता। लोगों के मन में एक धारणा बनी पडी है कि लद्दाख केवल बुलेट ही जा सकती है। फिर जोजी-ला इन दिनों रोहतांग के समकक्ष हो जाता है। सोनमर्ग जाने वाले पर्यटक जोजी-ला भी जाते हैं। यह ज्यादातर ट्रैफिक इन्हीं पर्यटकों का था। जम्मू में अर्णव ने कहा था कि क्या यह बाइक जोजी-ला चढ जायेगी?
याद रखिये- प्रत्येक बाइक जोजी-ला चढ सकती है। प्रत्येक बाइक लद्दाख जा सकती है।
जोजी-ला का जो जीरो पॉइण्ट है, वहां जाम लगा हुआ था। जब वहां से निकले तो छह बज चुके थे। यहां चारों तरफ खूब बर्फ थी और शैतानों की खूब चांदी हो रही थी। धीरे धीरे यह बर्फ पिघलती जायेगी और इन शैतान लुटेरों की कमाई कम होने लगेगी। हम जीरो पॉइण्ट से आगे वहां रुके जहां चहल-पहल कम हो गई थी। कुछ देर यहां बर्फ का आनन्द लिया, फिर द्रास की ओर चल पडे।
द्रास तक का रास्ता भी अच्छा नहीं था। सूरज ढलने लगा था और ठण्ड बढने लगी थी। जोजी-ला की चढाई पर कहीं जब हम विश्राम कर रहे थे तो मेरे दस्ताने कहीं गिर गये थे। इनकी वजह से बहुत परेशानी हुई।
द्रास में प्रवेश करते समय एक रास्ता बायें हाथ मश्कोह घाटी में जाता है। मश्कोह घाटी के आखिर में एक दर्रा है। उसके पार किशनगंगा घाटी है जो पाकिस्तान में नीलम घाटी कहलाती है। यह बिल्कुल सीमान्त इलाका है। किशनगंगा घाटी में सडक बनी हुई है, इधर मश्कोह घाटी में भी कुछ दूर तक सडक है। यहां जहां से यह सडक शुरू हो रही थी, वहां लिखा था- काओबल गली 52 किलोमीटर। गली यानी दर्रा। अर्थात मश्कोह-किशनगंगा के बीच में जो दर्रा है, वो काओबल गली है और यहां से 52 किलोमीटर है और वहां तक सडक बन गई है। यह मेरे लिये बिल्कुल नई जानकारी थी। लेकिन यहां काओबल गली से आगे की दूरियां नहीं लिखी थीं, इसलिये उससे आगे के सम्बन्ध में सन्देह था। बाद में गूगल मैप में सैटेलाइट से देखा तो पाया कि वहां भी सडक है। श्रीनगर से किशनगंगा घाटी में जाने के लिये पहले बांदीपोरा जाना होता है। वहां से परमिट लेना होता है। फिर राजदान पास पार करके हम झेलम घाटी से किशनगंगा घाटी में चले जाते हैं। फिर किशनगंगा घाटी से काओबल गली पार करके मश्कोह घाटी में पहुंचा जा सकता है और मश्कोह घाटी के आखिर में द्रास स्थित है। अगर आप दुर्गम इलाकों में बाइक या गाडी चलाने की हिम्मत रखते हैं तो इस रूट पर जाइये और इसकी और ज्यादा जानकारी दुनिया को दीजिये। अभी तक काओबल गली का कोई यात्रा-वृत्तान्त मुझे नहीं मिला है।
आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में गिलगित-बाल्टिस्तान का जो इलाका है, उसे आजादी से पहले अंग्रेजों ने भी आम लोगों से दूर ही रखा था। उनकी सोवियत संघ से दुश्मनी थी और उस समय सोवियत संघ यहां से ज्यादा दूर नहीं था। गिलगित-बाल्टिस्तान के उत्तर में अफगानिस्तान की एक पतली सी पट्टी है और फिर ताजिकिस्तान है। ताजिकिस्तान उस समय सोवियत संघ का ही हिस्सा हुआ करता था। इसलिये अफगानिस्तान की वो पट्टी और गिलगित-बाल्टिस्तान का इलाका अंग्रेज राज और सोवियत संघ के बीच में एक बफर जोन था। अंग्रेज वहां किसी को भी नहीं जाने देते थे। यहां तक कि महान घुमक्कड राहुल सांकृत्यायन जब गिलगित-स्कार्दू जाना चाहते थे, तो उन्हें भी नहीं जाने दिया गया था। फिर आजादी के बाद पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया और उस पूरे बफर जोन कर कब्जा कर लिया। आज किशनगंगा और मश्कोह घाटियां भारत व पाकिस्तान की सीमाओं की तरह काम करती हैं। 1999 में तो पाकिस्तान ने पूरी मश्कोह घाटी अपने हाथ में ले ली थी और भारत को पता भी नहीं चला था। पता चला तो कारगिल युद्ध हुआ। हालांकि आज ये दोनों घाटियां भारत के अधिकार में हैं, लेकिन फिर भी सीमान्त और अति संवेदनशील इलाका होने के कारण आज भी उधर किसी को आसानी से नहीं जाने दिया जाता। हालांकि द्रास की ओर से मश्कोह घाटी में सीमित इलाके में जा सकते हैं। यही कारण है कि काओबल गली का कोई यात्रा-वृत्तान्त नहीं है।
अब काओबल गली पर सडक बन चुकी है। जाना बहुत आसान हो गया है। आप जाइये और इसके बारे में दुनिया को बताईये।
सवा आठ बजे द्रास पहुंचे। पांच सौ रुपये का एक कमरा मिल गया। हमें उम्मीद थी कि कोठारी साहब भी द्रास में ही कहीं होंगे क्योंकि मैंने सुबह उन्हें द्रास पहुंचने का सन्देश दिया था।
डल झील |
सिंध नदी |
सोनमर्ग में |
जोजी-ला की ओर |
सामने नीचे बालटाल है जहां से अमरनाथ के लिये रास्ता जाता है। |
जोजी-ला सडक पर जाम |
जाम बहुत लम्बा था |
जोजी-ला यानी सिंध नदी का उद्गम। अपने उद्गम पर सिंध पूरी जमी है। |
द्रास में रोटी-राजमा |
नीचे वाले मानचित्र में गूगल मैप के सैटेलाइट मोड में काओबल गली और किशनगंगा घाटी में सडक दिख रही है यानी किशनगंगा और मश्कोह दोनों घाटियां सडक मार्ग से जुडी हैं। नक्शे को जूम-इन, जूम-आउट भी किया जा सकता है।
अगला भाग: लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
11. लद्दाख बाइक यात्रा-11 (खालसी-लेह)
12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च
पहाड़ी इलाकों की खराब सड़कें घुमने का मजा तो खराब करती हैं पर यही इन जगहों को अछूता रखने में सहायता भी करती है.
ReplyDeleteशानदार दृश्यावली
बिल्कुल सही कहा निशान्त जी...
Deleteअद्भुत नीरज जी!!!!!!!!! वाकई आप नयी दुनिया का द्वार खोलनेवाले हो!!!!
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
DeleteShandar yatra . Bravo , Neeraj kumar . Great yatra with great couple ..
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी...
Deleteshandar yatra :-)
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी...
Deleteभाई जिगर वाला काम है आपका
ReplyDeleteधन्यवाद ज़ेवरात जी...
Deleteरोचक यात्रा..
ReplyDeleteकेमरा वही रह गया,बाद मे होटल फोन तो कर लिया या नही?
ना किया भाई... हम होटल वालों के फोन नम्बर नहीं रखा करते।
Deleteशानदार सोनमर्ग
ReplyDeleteधन्यवाद ज़ीशान जी...
Deleteशानदार यात्रा प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद उमेश जी...
Deleteयात्रा का विवरण व छाया -चित्र मन मोहक है | आपके साथी आपके साथ च रहे है उनका कोई चित्र नही है |
ReplyDeleteइसका मतलब आपने यात्रा-वृत्तान्त नहीं पढा।
Deleteयात्रा का विवरण व छाया -चित्र मन मोहक है | आपके साथी आपके साथ च रहे है उनका कोई चित्र नही है |
ReplyDelete
ReplyDeleteकिशनगंगा घाटी और मश्कोह घाटी के बीच काओबल गली दर्रा के बारे ज्ञानवर्धक नवीन जानकारियाँ पढ़ने को मिली। यात्रा वृतांत बहूत ही रोचक लगा व पढ़ते पढ़ते लगता है कहीं खो से गये हैं।
दोनों तरफ़ से पुरज़ोर कोशिशों के बावजूद अपना मिलन न हो पाया, शायद वक्त को यही मंज़ूर था। लद्दाख यात्रा आपके साथ पूर्ण नहीं कर सका इसका मलाल तो रहेगा लेकिन आपकी प्रेरणा के कारण ही उम्र के इस पड़ाव पर बाइक से लद्दाख यात्रा कर पाया, यह अपने आप में जीवन का एक विशेष लम्हा निःसन्देह बना हैं।
फ़ोटोज व वीडियोग्राफ़ी बहूत ही शानदार हैं नीरज।
धन्यवाद कोठारी साहब... हमने आपको बहुत मिस किया था।
Deleteनीरज जी,
ReplyDeleteजितने उत्साह, उर्जा व साहस से ये कठिन यात्राएं करते हो, उतने ही अपने संस्मरणो की रोचकतापूर्ण प्रस्तुति भी देते हो..
पढते-पढते एसा लगता है कि हम भी उन्ही रास्तों, घाटियों, पहाड़ों पर हैं……
सुन्दर छवियां, ग्यानवर्द्घक जानकारी… ..धन्यवाद
धन्यवाद नारायण जी...
Deleteनीरज भाई........बहुत ही खतरनाक रास्ता है .......आपके ब्लॉग मे वीडियो ने चार चाँद लगा दिए है........आप घूमते रहिए लिखते रहिए.........
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा साहब...
Deleteनीरज भाई
ReplyDeleteBhut hi zakaas blog aur shandar photo
''Shaitaan'' zyada khush nhi honge apka blog padh k.
Hahahaha
रिंकू भाई... जिनके लिये मैंने शैतान शब्द का प्रयोग किया है, वे किसी का ब्लॉग नहीं पढते। मैंने केवल उन कश्मीरियों के लिये शैतान शब्द का प्रयोग किया है, जो सोनमर्ग जोजीला जैसी जगहों पर पर्यटकों को लूटने का काम करते हैं। इसे कृपया अन्यथा न लें।
Deleteइसलिये यहां रुककर अपने पसन्दीदा आलू के परांठे खाये।
ReplyDelete---------------------------------------------------------------------------------------
क्या, नीशा भाभी को भी आलू के पराठे पसंद है ...
***
मैने बार बार लिखा है .... आलू के पराठे पर एक डायरी का पन्ना बनता है नीरज ....
जिस दिन पुणे के परांठे मिलेंगे, उसी दिन परांठा-डायरी छप जायेगी।
Deleteहां जी .............. बिल्कुल ... अभी से न्योता है .....
DeleteBahut maja aa rha hai aapke saath ghoom k........... chlte rho bhai
ReplyDeleteधन्यवाद सन्धु साहब...
Deletekaobal gali ka rochak gyan bhut pasand aaya ase hi gyan bate raho. khush raho aabad raho
ReplyDeleteधन्यवाद माथुर साहब...
Deleteaur janamdin ki advance mubarkbad
ReplyDeleteBahut rochak va jankariprad post photo bhi sarahniy hai vakai aanand aa raha hai
ReplyDeleteधन्यवाद कुशवाहा साहब...
DeleteAlmost a movie. Thanks for sharing. Beautiful photos and you are stylish too.
ReplyDeleteथैंक्यू तुषार जी...
Deleteरोमांचक यात्रा ,आपकी यह यात्रा मेरे लिए मार्गदर्शन का काम करेगी ,अद्वितीय यात्रा की बधाई मेरे दोस्त |
ReplyDeleteNice story Neeraj ji. Enjoying every post and every word of this series.
ReplyDeleteThanks,
07/07/2015 raat 10.00pm ko jojila pass ko paar karne ke liye bikese ham dras ki taraf jo chouki hai vaha par the. bahot koshish karane par hame jane ki ejajat mili or ham 11.00pm ke aas pas baltal pahoch gaye,
ReplyDeleteplz ... kabhi bhi raat me jojila paar karane ki koshish mat karana . hamari kismat achhi thi ki barish ya barf baari nhi ho gayi... nhi to ....
rochak aur saspence ki tarah agla matter kya hoga ek sas me padhana aur phir der tak photo dekhana bahut kuchh kah jata hai.videos attache karna aur comments ki reply dena yah ek bahut badhiya suruaat hai.esase sabhi pathako ko khushi milti hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन एवं उत्कृष्ट जानकारी ......... मश्कोह घाटी की जानकारी पढ़कर अच्छा लगा .. एक सुधार करना चाहूँगा ... जोजी ला सिंद नदी का उद्गम नहीं है .. सिंद नदी तो पंजतरनी में आने वाली कई सारी धाराओं से मिलकर बनती है ... रास्ते में कई सारे ग्लेशियर इसे फीड करते हैं जिनमे से जोजी ला भी एक है .. सिंद का मूल उद्गम machoi ग्लेशियर है क्यूंकि भूगोल से सबसे लम्बी stream को नदी का मूल स्रोत माना जाता है .. वैसे भी सिंद नदी की धार और तेजी बालटाल से भी पहले डोमैल में ही दिखाई पड़ जाती है तो जोजी ला तो उसके तीन किलोमीटर बाद पड़ता है .... धन्यवाद ........
ReplyDeleteसपनो का शहर । वीडियो से तेरे लेख में जान आ गई नीरज़ ।बहुत सुन्दर फोटु ।और निशा से एक फायदा ये भी हुआ की तेरे फोटु मस्त आने लगे ।
ReplyDelete