12 जून 2015, शुक्रवार
सुबह आराम से सोकर उठे। कल जोजी-ला ने थका दिया था। बिजली नहीं थी, इसलिये गर्म पानी नहीं मिला और ठण्डा पानी बेहद ठण्डा था, इसलिये नहाने से बच गये।
आज इस यात्रा का दूसरा ‘ऑफरोड’ करना था। पहला ऑफरोड बटोट में किया था जब मुख्य रास्ते को छोडकर किश्तवाड की तरफ मुड गये थे। द्रास से एक रास्ता सीधे सांकू जाता है। कारगिल से जब पदुम की तरफ चलते हैं तो रास्ते में सांकू आता है। लेकिन एक रास्ता द्रास से भी है। इस रास्ते में अम्बा-ला दर्रा पडता है। योजना थी कि अम्बा-ला पार करके सांकू और फिर कारगिल जायेंगे, उसके बाद जैसा होगा देखा जायेगा।
लेकिन बाइक में पेट्रोल कम था। द्रास में कोई पेट्रोल पम्प नहीं है। अब पेट्रोल पम्प कारगिल में ही मिलेगा यानी साठ किलोमीटर दूर। ये साठ किलोमीटर ढलान है, इसलिये आसानी से बाइक कारगिल पहुंच जायेगी। अगर बाइक में पेट्रोल होता तो हम सांकू ही जाते। यहां से अम्बा-ला की ओर जाती सडक दिख रही थी। ऊपर काफी बर्फ भी थी। पूछताछ की तो पता चला कि अम्बा-ला अभी खुला नहीं है, बर्फ के कारण बन्द है। कम पेट्रोल का जितना दुख हुआ था, सब खत्म हो गया। अब मुख्य रास्ते से ही कारगिल जायेंगे।
वार मेमोरियल पहुंचे। यहां कुछ खाने-पीने का इरादा था। इस बार कैंटीन का स्थान बदला हुआ था। पहले मुख्य दरवाजे के दाहिनी तरफ थी, अब बायीं ओर थी। राजमा-चावल का ऑर्डर दिया लेकिन मिली चाऊमीन। असल में आज यहां कोई बडा अफसर आने वाला था, सभी जवान उसकी खातिरदारी में लगे थे। कैंटीन इंचार्ज को भी नहीं पता था कि कैंटीन में अभी क्या-क्या है और क्या क्या नहीं है। हमारे सामने ही एक हेलीकॉप्टर उतरा और सभी जवान सबकुछ भूलकर उसकी खातिरदारी में दौडने लगे।
मैं जब भी इधर आता हूं, वार मेमोरियल अवश्य आता हूं। यहां सेना और सिविलियन का जो तालमेल है, वो मुझे अच्छा लगता है। अन्यथा दूसरे स्थानों पर तो सेना और सिविलियनों में स्पष्ट विभाजन है। यहां कोई विभाजन नहीं। सिविलियन जहां चाहे वहां जाते हैं और जिसके चाहे उसके फोटो खींचते हैं। सैनिक खुशी खुशी पोज भी देते हैं और मदद भी करते हैं।
साढे दस बजे यहां से चले और बारह बजे कारगिल पहुंच गये। सडक बेहद शानदार बनी है। कारगिल से दो किलोमीटर पहले एक पेट्रोल पम्प है। टंकी फुल करा ली। भीड भरे बाजार में पहुंचे। आज जुम्मा था और नमाज का समय भी धीरे-धीरे नजदीक आता जा रहा था। बाजार में खूब चहल-पहल थी। मेरे गर्म दस्ताने कल जोजी-ला के रास्ते में कहीं गिर गये थे, बिना दस्तानों के बडी समस्या हुई थी। कारगिल में 120 रुपये के दस्ताने ले लिये। एक जगह दस मीटर के लिये सडक पर डिवाइडर लगा था। एक पुलिस वाला भी खडा था। मैं लोगों के एक समूह से बचते हुए रॉंग साइड से निकलने लगा तो पुलिस वाले ने रोक लिया और बडी ही तहजीब से बोला- बीया, आप गल्त सैड में चल रहे हो। मैं मुस्कुरा दिया और पुलिस वाला भी। दस मीटर के लिये ही वो डिवाइडर था, उससे पहले बिना डिवाइडर की सडक थी और उसके बाद भी बिना डिवाइडर के ही थी। हुआ कुछ नहीं। बस, दोनों मुस्कुरा दिये। दिल्ली वालों को अच्छा लगता है जब कोई ट्रैफिक पुलिस वाला इस तरह मुस्कुरा देता है।
कुछ समय पहले लेह जिला प्रशासन ने लेह जिले के बडे हिस्से से परमिट हटा दिया था। पहले खारदुंग-ला और नुब्रा घाटी का परमिट लगता था, जबकि अब खारदुंग-ला बिना परमिट के जा सकते हैं और नुब्रा घाटी में पनामिक और तुरतुक तक कोई परमिट नहीं लगता। पेंगोंग इलाके में चीन सीमा के पास मेरक गांव तक परमिट नहीं लगता, ऊपरी सिन्धु घाटी में लोमा पुल तक का परमिट हट गया है और शो-मोरीरी झील भी बिना परमिट के देखी जा सकती है। इसी तरह निचली सिन्धु घाटी में हनुथांग और धा तक का परमिट हटा लिया है। अब जब लोग लेह से हनुथांग और धा तक बिना परमिट के पहुंचने लगे तो कोई चेकपोस्ट न होने के कारण वे बटालिक भी जाने लगे। बटालिक कारगिल जिले में है और उस समय वहां का परमिट लगता था। तब सुरक्षाबलों के आगे बडी समस्या आई। बटालिक आये हुए लोगों को वापस भेजना भी अमानवीय था। यहां से कारगिल पचास किलोमीटर है जबकि अगर वापस जायें तो कम से कम सौ किलोमीटर का चक्कर लगाना पडता। कई बार पर्यटक कहते कि पेट्रोल-डीजल कम है। मैंने यहां तक सुना है कि उन्हें वापस भेजने के लिये सुरक्षाबलों को पेट्रोल-डीजल भी देना पडता कि भाई, ये लो पेट्रोल और वापस जाओ।
इस समस्या से बचने का एक ही तरीका था कि कारगिल प्रशासन बटालिक का परमिट हटा ले। मैंने कहीं तो पढा था कि ऐसा हो गया है यानी अब बटालिक का परमिट नहीं लगता और कई जगह पढा कि ऐसा नहीं हुआ है। इसलिये हमने पहले ही तय कर रखा था कि अगर बटालिक का परमिट लगता होगा तो मुख्य रास्ते से जायेंगे। लेकिन अगर परमिट नहीं लगता होगा तो बटालिक के रास्ते जायेंगे। कारगिल डीसी ऑफिस से परमिट लेने में समय नष्ट नहीं करेंगे।
बटालिक मोड पर पहुंचे। पुलिस वाले खडे थे। पूछा तो उन्होंने बता दिया कि बेधडक बटालिक जाओ। वहां का परमिट नहीं लगता। साढे बारह बजे थे और हमने बाइक बटालिक की तरफ मोड दी।
कारगिल सूरू नदी के किनारे बसा है। सूरू नदी आगे जाकर सिन्धु में मिलती है। लेकिन जहां दोनों का संगम है, वो स्थान पाकिस्तान के कब्जे में है। उधर बटालिक सिन्धु किनारे है। इस तरह हमें सूरू घाटी से सिन्धु घाटी में जाना होगा। दो तरीके हैं- या तो सूरू के साथ-साथ संगम तक जाओ और फिर सिन्धु घाटी में चल पडो। लेकिन संगम पाकिस्तान के अधीन है इसलिये वहां नहीं जा सकते। दूसरा तरीका है कि सूरू और सिन्धु के बीच में जो पर्वतमाला है, उसे लांघ जाओ। जिस स्थान से उसे लांघेंगे, वो स्थान एक दर्रा होगा। यानी पहले कारगिल से ऊपर चढना पडेगा, फिर दर्रा पार करके नीचे उतरना पडेगा। इस दर्रे का नाम है- हम्बोटिंग-ला।
कई मित्र घाटी और दर्रे के बारे में और ज्यादा विस्तार से जानना चाहते हैं। उम्मीद है कि वो इनका अर्थ समझ गये होंगे।
यह रास्ता बहुत पतला है लेकिन है बिल्कुल सुनसान। यदा-कदा कोई सैन्य वाहन आ जाता। सडक अच्छी बनी है। जैसे जैसे ऊपर चढते हैं, सूरू घाटी के शानदार नजारे दिखने लगते हैं। कारगिल की हवाई पट्टी भी दिखती है। सुना है कि कारगिल में पहले कभी असैन्य हवाई अड्डा था लेकिन हवाई जहाजों को कई बार पाकिस्तान के कब्जे वाले वायुक्षेत्र से भी गुजरना पड जाता था। बाद में यह हवाई अड्डा असैन्य उडानों के लिये बन्द कर देना पडा और अब यहां से केवल सैन्य उडानें ही संचालित होती हैं।
मार्ग और माहौल इतना खूबसूरत है कि कारगिल से हम्बोटिंग-ला की 33 किलोमीटर की दूरी को तय करने में हमें दो घण्टे लग गये। एक जगह ‘वाटर क्रॉसिंग’ थी। केवल छोटे-छोटे गोल-गोल पत्थरों से ही रास्ता था और मोड भी था। पानी का बहाव ज्यादा नहीं था लेकिन मोड होने के कारण एक जगह रुकना पड गया और हम दोनों के जूतों में पानी भर गया। कमाल की बात ये थी कि यहां एक दुकान भी थी। बिल्कुल सन्नाटे में।
ढाई बजे हम्बोटिंग-ला पहुंचे। यहां दो सैनिक बैठे थे। उन्हें कारगिल जाना था और किसी गाडी की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस स्थान की ऊंचाई यहां लगे बोर्ड के अनुसार 13202 फीट यानी 4024 मीटर थी जबकि गूगल मैप के अनुसार इसकी ऊंचाई लगभग 4050 मीटर है। मेरे मोबाइल वाले जीपीएस के अनुसार यह स्थान 4014 मीटर ऊंचा है। वैसे मैं गूगल मैप को ज्यादा प्रामाणिक मानता हूं।
यहां हम आधे घण्टे रुके। बडी तेज हवा चल रही थी लेकिन बूंदाबांदी नहीं हुई। दोनों तरफ का शानदार नजारा दिख रहा था। यहां से बटालिक 23 किलोमीटर है लेकिन सडक ज्यादा अच्छी नहीं है। यहां से आगे ढलान है और खराब सडक की वजह से बडी सावधानी से चलना पडता है। दस बारह किलोमीटर आगे एक गांव के पास एक बूढा बैठा था। उसने हमें रोका और कहा कि आगे दो जगह पानी से होकर निकलना पडेगा, सावधानी से निकलना। हमने उसे धन्यवाद दिया और आगे चल पडे। वैसे भी पानी से होकर जब भी निकलना होता है, सावधानी से ही निकला हूं लेकिन अगर बूढे ने कहा है तो कुछ विशेष जरूर होगा। इसने मुझे डरा भी दिया।
पहला वाटर क्रॉसिंग तो ज्यादा विशेष नहीं था। यहां पक्की सडक बनी है और उसी के ऊपर से पानी बह रहा है। आराम से हम दोनों पार हो गये। लेकिन इसके एक किलोमीटर बाद जो क्रॉसिंग मिली, उसने वाकई होश उडा दिये। पहले निशा ने उसे पैदल पार किया और फिर मैंने। बाइक पानी में आधे पहिये से भी ज्यादा चली गई थी। एक जगह पानी में बाइक बन्द हो गई। गनीमत थी कि तुरन्त स्टार्ट हो गई अन्यथा एक बार अगर साइलेंसर में पानी चला जाता तो दिक्कत हो जाती।
सवा चार बजे बटालिक पहुंचे। यहां से एक सडक सिन्धु के साथ साथ लेह की तरफ चली गई है और एक सडक सिन्धु के ही साथ पाकिस्तान की तरफ गई है। सीमा यहां से ज्यादा दूर नहीं है। हमें लेह की तरफ ही जाने की छूट है, सीमा की तरफ जाने वाली सडक पर नहीं जा सकते। फोटो भी नहीं खींच सकते। यहीं खडे एक सैनिक से दस मिनट बात की और लेह की तरफ चल दिये।
बटालिक से मेरा पहला परिचय हुआ था 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान। उस समय मैं 11 साल का था और चारों तरफ बस दो ही इलाकों से खबरें आती थीं- द्रास सेक्टर से और बटालिक सेक्टर से। द्रास सेक्टर में ये हुआ, बटालिक सेक्टर में ये हुआ। बस तभी से मुझ समेत बहुत से लोगों की जुबान पर द्रास सेक्टर और बटालिक सेक्टर रट गया। आज भी बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके सामने अगर द्रास का नाम लो तो वे तुरन्त कहेंगे- द्रास सेक्टर? द्रास और बटालिक यानी युद्ध का मैदान।
एक बात और कहना चाहता हूं नये यात्रा-लेखकों से। वे अक्सर जब कश्मीर जाते हैं या द्रास जाते हैं तो बडी आसानी से लिख देते हैं कि उधर पाकिस्तान है या पाकिस्तानी सीमा नजदीक है। न उधर पाकिस्तान है और न ही पाकिस्तानी सीमा। गौर से देखिये जम्मू कश्मीर के नक्शे को। इसमें कारगिल कहां है? बिल्कुल बीच में। फिर कारगिल के पास पाकिस्तान कैसे हो सकता है?
असल में वो पाक अधिकृत कश्मीर है। पाक अधिकृत कश्मीर और भारत की जो सीमा है, उसे लाइन ऑफ कण्ट्रोल कहते हैं। जबकि भारत और पाकिस्तान की सीमा को रेडक्लिफ लाइन या अन्तर्राष्ट्रीय सीमा कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सीमा जम्मू कश्मीर राज्य में केवल अखनूर से आगे चेनाब पार तक है। उसके बाद लाइन ऑफ कण्ट्रोल शुरू हो जाती है। 1948 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण किया तो शीघ्र ही उसके बहुत बडे हिस्से पर कब्जा कर लिया। कश्मीर ने भारत में विलय किया, भारतीय सेना कश्मीर पहुंचीं। लेकिन नेहरू ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में पहुंचा दिया। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि इस समय जो देश जहां है, वो वहीं रहे। बस, पाकिस्तान ने जितना कश्मीर कब्जाया था, वो उसके अधीन हो गया बाकी भारत का हिस्सा रहा। वो चूंकि वास्तविक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा नहीं थी, इसलिये इसे नाम दिया गया लाइन ऑफ कण्ट्रोल- नियन्त्रण रेखा। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के जिस हिस्से पर कब्जा कर रखा है, वो भारत का अभिन्न अंग है और उसे भारत के प्रत्येक नक्शे में दिखाया भी जाता है। उसे हम पाकिस्तान कैसे कह सकते हैं? वो पाकिस्तान अधिकृत इलाका है, पाकिस्तान नहीं।
वापस बटालिक पहुंचते हैं। यह लद्दाख का वो इलाका है जहां सडक होने के बावजूद भी बहुत कम लोग जाते हैं। आप में से भी बहुत कम ही इधर गये होंगे। हो सकता है कि आप दस बार लद्दाख चले गये हों लेकिन इधर कभी न गये हों। यह सडक मुख्य श्रीनगर-लेह सडक में खालसी के पास मिलेगी। खालसी बटालिक से 80 किलोमीटर दूर है।
द्रास में एक मस्जिद और पीछे के पहाड पर गौर करने से दिखती अम्बा-ला जाती सडक। |
द्रास बाजार |
वार मेमोरियल |
यहां पाकिस्तान का झण्डा भी है लेकिन उल्टा। |
द्रास-कारगिल सडक |
कारगिल से दूरियां |
कारगिल शहर |
कारगिल में बटालिक मोड- सीधी सडक मुलबेक जाती है और बायें बटालिक। आगे खालसी में ये दोनों सडकें फिर से मिल जाती हैं। |
एक गांव और उसके पार दिखता हम्बोटिंग-ला |
हम्बोटिंग-ला का जीपीएस डाटा |
हम्बोटिंग-ला पर लगा एक बोर्ड। उर्दू जानकार बतायें कि इस पर क्या लिखा है? |
निशा को नींद आने लगी तो यहीं पसर गई। |
पहली वाटर-क्रॉसिंग |
दूसरी वाटर क्रॉसिंग ज्यादा मुश्किल थी। |
पार करने के बाद जूतों से पानी निकालते हुए |
ऊपर दाहिने सडक दिख रही है? |
नीचे मानचित्र में डॉटेड लाइन नियन्त्रण रेखा को दिखा रही है। आप इसे जूम-आउट करके पूरी नियन्त्रण रेखा की वास्तविक स्थिति भी देख सकते हैं।
अगला भाग: लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
1. लद्दाख बाइक यात्रा-1 (तैयारी)
2. लद्दाख बाइक यात्रा-2 (दिल्ली से जम्मू)
3. लद्दाख बाइक यात्रा-3 (जम्मू से बटोट)
4. लद्दाख बाइक यात्रा-4 (बटोट-डोडा-किश्तवाड-पारना)
5. लद्दाख बाइक यात्रा-5 (पारना-सिंथन टॉप-श्रीनगर)
6. लद्दाख बाइक यात्रा-6 (श्रीनगर-सोनमर्ग-जोजीला-द्रास)
7. लद्दाख बाइक यात्रा-7 (द्रास-कारगिल-बटालिक)
8. लद्दाख बाइक यात्रा-8 (बटालिक-खालसी)
9. लद्दाख बाइक यात्रा-9 (खालसी-हनुपट्टा-शिरशिरला)
10. लद्दाख बाइक यात्रा-10 (शिरशिरला-खालसी)
11. लद्दाख बाइक यात्रा-11 (खालसी-लेह)
12. लद्दाख बाइक यात्रा-12 (लेह-खारदुंगला)
13. लद्दाख बाइक यात्रा-13 (लेह-चांगला)
14. लद्दाख बाइक यात्रा-14 (चांगला-पेंगोंग)
15. लद्दाख बाइक यात्रा-15 (पेंगोंग झील- लुकुंग से मेरक)
16. लद्दाख बाइक यात्रा-16 (मेरक-चुशुल-सागा ला-लोमा)
17. लद्दाख बाइक यात्रा-17 (लोमा-हनले-लोमा-माहे)
18. लद्दाख बाइक यात्रा-18 (माहे-शो मोरीरी-शो कार)
19. लद्दाख बाइक यात्रा-19 (शो कार-डेबरिंग-पांग-सरचू-भरतपुर)
20. लद्दाख बाइक यात्रा-20 (भरतपुर-केलांग)
21. लद्दाख बाइक यात्रा-21 (केलांग-मनाली-ऊना-दिल्ली)
22. लद्दाख बाइक यात्रा का कुल खर्च
Incredible and adventure bike trip with super knowledge neeraj bhai
ReplyDeleteथैंक्यू जांगिड साहब...
Deleteपाक अधिकृत कश्मीर के बारे में अच्छी जानकारी आपके माध्यम से मिली। सभी चित्र प्रकृति के अनुछए रूप को बयान कर रहे है। नीरज जी, आप वाकई में बधाई के पात्र है। वैसे जानना चाहूंगी कि क्या आपको एक पल के लिए भी डर नहीं लगता इतनी दूर , सुनसान इलाके में इस तरह से जाना ।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद स्वाति जी... मुझे सडकों पर कभी भी डर नहीं लगता, भले ही सडक कितनी भी सुनसान हो। फिर मेरे साथ निशा थी... यानी हम दो थे।
Deleteबटालिक के बारे में सुना ही था.... आँखो से देखने की तम्मना तो साथ छूटने की वजह से पुरी नहीं हो पायी लेकिन इस सजीव यात्रा वृतांत व छायांकन से बहूत हद तक आत्मिक संतुष्टि मिली।
ReplyDeleteनिस्सन्देह नीरज आपकी इस पोस्ट से बटालिक व पाक अधिकृत कश्मीर के बारे में पाठकों की जानकारी बढ़ी हैं।
धन्यवाद कोठारी साहब... काश! आप भी साथ होते।
Deletehame to pta hi nahi tha,,, yah aaj pta chala ki line of control sirf temperary line hai.. actual me to pakistan ne hamari jameen me kabja kia hua hai....aur hamse khta hai kashmir do.... jee karta hai abhi bomb fenk doo sallo ko udda du.
ReplyDeleteहा हा हा... बम से ऐसे मामले हल नहीं होते। बहुत बम इधर से उधर फेंके जा चुके हैं।
Deleteइतनी अच्छी जानकारी देने के आपका बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteआपने जितना लिया था उसका कई गुना सभी को लौटाया है
आप को और भाभीजी को बहुत शुभकामनाएं विशेषकर भाभीजी को भी इतनी great journey का credit मिलना चाहिए क्योंकि उनके बिना आपकी ये यात्रा अधूरी रहती ।
All the best for next.
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteनीरज जी, आपने अच्छी जानकारी दी है| हो सके तो अधिक स्पष्टता हेतु जम्मू- कश्मीर- लदाख़ की पीओके- सीओके स्थिति दर्शानेवाला यह मॅप दे सकते है- (http://4.bp.blogspot.com/-8NGvJVeTpoo/Td6hxlkCG7I/AAAAAAAAAq0/6wBjMfNanj4/s320/Map_Kashmir_Standoff_2003%255B1%255D.png) आपने कुछ जगहों पर पाकिस्तान लिखा है (जैसे करगिल के असैन्य अड्डे से विमान को पाकिस्तान के उपर उडना होता था); उसको पीओके कर सकते है| वाकई अपने देश के बीचोबीच नियंत्रण रेखा होना कष्टदायी है| १९९९ में जब मुझे भी इसका पहली बार पता चला; तो जो दुख हुआ था, उसे भूल नही सकता हुँ| हमारे देश के हिस्से हमारे देश में रहने के लिए वहाँ आना- जाना बेहद ज़रूरी है और आप यही कर रहे हैं वरन् उसके लिए हमें प्रेरणा दे रहे है...
ReplyDeleteनिरंजन जी... गूगल मैप का अन्तर्राष्ट्रीय संस्करण लगा दिया है। इसमें नियन्त्रण रेखा की स्पष्ट स्थिति दिखाई गई है। पाठकों को अब आसानी से अन्दाजा हो जायेगा कि द्रास नियन्त्रण रेखा से कितनी दूर है और बटालिक कितनी दूर।
Deleteवो हवाई अड्डे वाला परिवर्तन मैंने कर दिया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Great travelogue. The information about LOC and International Border was worth appreciation. I am too eager to know the translation of that Urdu signboard.
ReplyDeleteThanks,
धन्यवाद सर जी...
Deleteबहुत खूब भाइ. इन अनछुए स्थानों की जीवंत जानकारियां और कहीं नहीं मिलती है.
ReplyDeleteकुछ जिग्यासाएं थी :-
1. आप जहां पर भी इस यात्रा में गए हो क्या तापमान हर जगह शून्य के आसपास ही मिला होगा ?
2. जीपीएस द्वारा ऊंचाइयां कैसे नापते हो… क्या हर जगह इन्टरनेट मिल जाता है… क्या मोबाइल में कोइ एप डालना पड़ता है…
नारायण जी, पहली बात तो यह है कि लद्दाख में गर्मियों में शून्य के आसपास तापमान कभी-कभार ही होता है। दिन में अगर धूप निकली हो तो तापमान 40 डिग्री तक भी पहुंच जाता है। हमें तापमान की कोई समस्या नहीं हुई एकाध विशेष मौकों को छोडकर। हां, वहां तूफानी हवाएं खूब चलती हैं।
Deleteअब बात जीपीएस की... जीपीएस एक ऐसी चीज होती है जिसमें न मोबाइल नेटवर्क की जरुरत पडती है और न ही इंटरनेट की। जीपीएस एक हार्डवेयर होता है जो आजकल के मोबाइलों में इन-बिल्ट आता है। यह आसमान में घूम रहे सैटेलाइटों से डाटा लेता है और हमें अक्षांश, देशान्तर और ऊंचाई बता देता है। कुछ एप भी आते हैं जो जीपीएस के इस डाटा को नक्शे पर दिखा देते हैं। नक्शा या तो हमें साथ के साथ इंटरनेट से डाउनलोड करना पडता है या फिर पहले से मोबाइल में लोड करके रखते हैं। इस पोस्ट में मैंने हम्बोटिंग-ला का जीपीएस डाटा दिया है। हम्बोटिंग-ला पर नेटवर्क नहीं था। जीपीएस ने सिम्पल अक्षांश, देशान्तर और ऊंचाई ही बताये हैं। अगर नेट होता तो मैं इसे नक्शे में लाइव भी देख लेता।
Amba La ke baare me malum nahin tha. EK kahani aur hai, police waale, district admin waale permit ko mana kar dete hain, ki nahin lagega, joki sach bhi hai. lekin kaha jaa raha hai ki aage army waale inkar kar dete hain.
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक भाई... यह सारा इलाका आर्मी के ही नियन्त्रण में है। उनका केवल हां या ना कहना ही परमिट है। कारगिल से बटालिक तक आर्मी की कोई चेकपोस्ट नहीं है। बेधडक बटालिक जाओ। बटालिक जाकर आर्मी हां कहे या ना कहे... क्या फर्क पडता है? अगर हमें बटालिक जाकर नियन्त्रण रेखा देखनी हो तब उनकी हां या ना मायने रखती है।
Deleteआपके ब्लाग से प्रेरित होकर गत माह हिमाचल यात्रा की कार्यक्रम तो एक माह का बनाया था लेकिन दस दिन में ही समापन करना पङा शिमला में रिज जाखू तारादेवी संकटमोचन काली मंदिर व आर्ट गैलरी देखा फिर कुफरी में केवल जू भ्रमण किया क्यों कि खच्चरों की बदबू ने रूकने नहीं दिया चायल में स्टेडियम के नाम पर मूर्ख बनना अच्छा लगा। कुल्लू में सबसे अच्छा बिजली महादेव पर लगा कसोल में अंग्रजों की काफी भीङभाङ थी।
ReplyDeleteमणिकर्ण में ठण्डी गुफा गर्म गुफा का आनंद लिया गर्म पानी के कुण्ड व लंगर का भी आनंद उठाया वापसी में टाय ट्रेन का सफर भी किया काफी रोचक यात्रा रही प्रथम बार ।ब्लाग पढने के बाद उस जगह जाना ऐसा लगता है यह तो पहले ही घूमा हुआ है।
और हाँ इस दस दिन की यात्रा का कुल खर्चा रहा 3000 मात्र
अरे वाह... 3000 रुपये में इतना घूम लिये?? बिजली महादेव वाकई शानदार जगह है। धन्यवाद आपका...
Deletepak ne jo hissa liya hua hai kya usme jaaya ja sakta h
ReplyDeleteनहीं जाया जा सकता। वह इलाका भारत के नियन्त्रण में नहीं है, पूरी तरह पाकिस्तान के नियन्त्रण में है। अगर वहां जाना है तो पहले पाकिस्तान का वीजा लेना होगा, लाहौर या इस्लामाबाद जाना होगा। तब अगर वहां से परमिशन मिलती है, तब जाया जा सकता है। वैसे पाकिस्तान किसी भारतीय को उस इलाके का वीजा क्यों देगा जिसकी वजह से उसका और भारत का झगडा होता रहता है? एक भारतीय के लिये बडा मुश्किल है उधर जाना।
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ReplyDeletedesh ki seema par tainat sainiko ki tarah aap bhi ek sainik ki trah desh ko jodne ka kam kar rahe hai.aap ka praytan ke prati samarpan aur desh bhakti ko salam.
Deleteधन्यवाद सर जी...
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ReplyDeleteNEERAJ JI AAP BAHUT LUCKY HO JO AISI NATURAL BEAUTY DEKHTE HO. AAPKI PHOTO AUR STORY PADHKAR AISA LAGTA HE JAISE HUM BHI AAPKE SAATH GHUM RAHE HE. AAPKE JAZBE KO SALLAM
ReplyDeleteधन्यवाद दिनेश जी, वैसे इसे ‘लक’ नहीं कहते। यह सब इच्छाशक्ति का परिणाम है। ऐसा आप भी कर सकते हैं।
DeleteIs ladaii me nuksaan Gumakdo ka hai
ReplyDeleteItni khoobsurat sayad hi kabhi
ham logo ke liye allow ho
बिल्कुल ठीक कहा ज़ीशान जी...
Deleteneerajjaat ji photo story ke end ki jagah story ke sath sath beech me hi laga diya karo.. jaise ki aap war memorial ke bare me likh rahe the sath hi ek paragraph ke bad pic bhi upload kar do.. pathko ko acha lagega try it once
ReplyDeleteमैंने पहले यह सब किया था। यह मुझे अच्छा नहीं लगता। फिर इसमें समय भी ज्यादा लगता है। अभी तो सभी फोटो एक साथ अपलोड कर देता हूं। फिर या तो अलग अलग अपलोड करने पडेंगे या फिर एक साथ अपलोड करके उन्हें अलग अलग स्थानों पर रखना पडेगा। ज्यादा फोटो हों तो समय लगता है इसमें। फिलहाल आपके सुझाव पर अमल नहीं हो रहा। सॉरी।
DeleteNeeraj bhai, I read this post 2-3 times, Dil khush ho gaya.
ReplyDeleteShukriya :-)
धन्यवाद सर जी...
Deleteद्रास-कारगिल सडक - wonderful photo.
ReplyDeleteधन्यवाद तुषार जी...
Deleteaap ke post mein hum kya comment karin, suraj ko roshni dikhane jesa ho jayega. :-)
ReplyDeleteAs usual enjoyed your post and regularly wait for your new travel logs.
Bhut accha laga .....or aapne kitni himmat se baike paar kar li paani meine se...:)
ReplyDeleteनीरज भाई परमिट व नियत्रण रेखा की बढिया जानकारी दी आपने..
ReplyDeleteNeeraj bhai नियत्रण रेखा ki jankari ke liye dhanywad......hame pahale pata nahi tha iske bareme...हम्बोटिंग-ला ka najara dekh kar mjja aaya .. :) ..
ReplyDeleteNisha madam ko bike chalane ka mouka diya kya nahi ???
आप वाकई अच्छा लिखते है, इसमें कोई शक नहीं है। हालाँकि इस लेखनी मे कुछ विरोधाभास भी कभी कभी प्रकट हो जाते है।
ReplyDeleteजैसे एक जगह आप कहते है कि आपकी अंग्रेजी अच्छी नहीं है पर उससे काफी पहले की एक पोस्ट मे आप अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान पर
अपनी पकङ बढ़िया बताते है। उस पोस्ट मे आपके सहोदर के किसी पर्चे का जिक्र आपने किया है।
और अब ये मशीन पर विश्वास वाली बात। एक पोस्ट मे आप ने लिखा है कि किसी स्थान की ऊँचाई के संदर्भ मे आप
अपने मोबाइल की मानते है, उस स्थान पर उपलब्ध किसी बोर्ड की नहीं। और इस पोस्ट मे आप कहते है कि मोबाइल वाले जीपीएस के बजाए मैं गूगल मैप को ज्यादा प्रामाणिक मानता
हां जी, विरोधाभास लग रहा होगा लेकिन कम्पटीशन की अंग्रेजी और आम बोलचाल वाली अंग्रेजी में फर्क होता है। मैं आमतौर पर अंग्रेजी नहीं बोल-समझ सकता लेकिन किसी सामान्य कम्पटीशन की अंग्रेजी की अच्छी जानकारी है।
Deleteइसी तरह जब मैंने तंगलंग-ला की ऊंचाई के मामले में अपने मोबाइल पर ज्यादा भरोसा जताया था। लेकिन गूगल मैप बहुत ज्यादा एडवांस है और इस पर आंख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है।
वीडियो ने जान डाल दी । पर नीरज तुम जैसा लिखते हो की आराम से नाला पार हो गया |तो हमको लगता था की आराम से ही पार हो गया होगा ।लेकिन वीडियो में देखकर अंदाज़ा लग गया की ये इतना भी आसान नहीं है।
ReplyDeleteऔर बाईक पर निशा कहाँ बैठती है आश्चर्य है जगह तो दिखाई दे नहीं रही है ? इतनी बार लद्धाख जाने का एक तो फायदा हुआ की कौन सी चीज़ कहाँ मिलेगी तुमको सब पता है।
NEERJ JI BHUT HI SANDAR HAI APPKI YHA YTRA.
ReplyDeleteनीरज भाई जीवन्त यात्रा वर्णनन के लिये आभार,परन्तु यात्रा की परशानीयां अवश्य शेयर करे बाइक की थकावट, प्यास,भूख, नीद, असुरक्षा,समय की पाबन्दी etc...
ReplyDeleteआपने ला और पास के बारे में जो विस्तृत रूप से समझाया उसके लिए धन्यवाद ।
ReplyDeleteकारगिल में या द्रास में कोई साइबर कैफे नहीं है क्या ।
द्रास का तो नहीं पता और कारगिल का भी नहीं पता। लेकिन चूंकि कारगिल बडा शहर है, इसलिये वहां साइबर कैफे होना चाहिये।
DeleteIs there any route/Road available between Batalik and Turtuk without going to Leh.So that a new circuit will be for traveller.
DeleteRegards
Niranjan.
बटालिक और तुरतुक के बीच केवल पैदल रास्ता है... सड़क नहीं है...
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