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कल यहां हमें डरा दिया गया था कि ये मत करना, वो मत करना, सीमावर्ती इलाका है, बीएसएफ का बहुत दबाव है; तो हम लखपत किले के अन्दर ज्यादा घूमते हुए डर रहे थे कि कहीं बेवजह की पूछताछ न होने लगे। लेकिन जब सेना के जवान गुरुद्वारे में आये, साथ बैठकर आलू काटे तो उन्होंने बडी काम की बातें बताईं। उन्होंने बताया कि आप पूरे किले में कहीं भी घूम सकते हो। उधर बीएसएफ की चौकी है, वहां भी जा सकते हो; कोई दिक्कत नहीं है। हमारा हौंसला बढा और हमने गुरुद्वारे से निकलकर सबसे पहले उस चौकी पर ही जाना उचित समझा।
मोटरसाइकिलें स्टार्ट कीं और लखपत के खण्डहरों से होते हुए सीधे बीएसएफ की चौकी के नीचे जा रुके। किलों की दीवारों पर जगह जगह काफी बडी जगह होती है जहां से चारों तरफ की रखवाली की जा सके। पता नहीं इसे क्या कहते हैं, शायद परकोटा कहते हैं। ऐसी ही एक जगह पर बीएसएफ की चौकी है। सीढियों से ऊपर चढे तो वहां दो जवान थे। एक जाट जींद का और दूसरा मराठा बुलढाणा का- जाट-मराठा संगम। हमसे पहले वहां एक घुमक्कड परिवार भी था। उनके जाने के बाद हमने जवानों से जी भरकर बातें कीं। जवानों ने कह दिया कि हमारा फोटो छोडकर चारों तरफ के जितने भी जैसे भी फोटो ले सको, ले लो।
यह स्थान बिल्कुल रन के पास ही था। यहां से रन का अनन्त तक फैलाव दिख रहा था। किसी जमाने में यहां सिन्धु नदी बहती थी लेकिन 1816 के भूकम्प ने सिन्धु को और पश्चिम में धकेल दिया और लखपत वीरान होता चला गया। यह इलाका दलदली है। हालांकि सर्दियों में सूखना शुरू होता है और गर्मियों में सूख जाता है। जवानों ने बताया कि रन में एक टापू पर आगे सीमा के पास हमारी एक चौकी और है। वहां सिर्फ पैदल ही जाया जाता है। कभी-कभी गलती हो जाती है और हम दलदल में फंस जाते हैं। दलदल में फंसने का अर्थ है मौत। इसलिये हम हमेशा दो की गिनती में जाते हैं, रस्सी बांधे रखते हैं और एक दूसरे से कुछ दूरी बनाये रखते हैं। अगर एक दलदल में फंसेगा तो दूसरा उसे खींच लेगा। कई बार ऐसा भी हुआ है कि दोनों ही दलदल में फंस गये। एक बार आप दलदल में फंसने लगो तो इससे निकलने को जितना ज्यादा जोर लगाओगे, उतना ही और ज्यादा फंसते चले जाओगे। लेकिन अब कुछ विदेशी गाडियां हैं जो आसानी से दलदल को पार कर जाती हैं।
देश में नई सरकार बनी है, उसके बारे में बातचीत हुई। बताया कि देश में अन्दर वालों को ज्यादा कुछ नहीं पता कि भाजपा सरकार आने से क्या बदलाव हुआ है, लेकिन हमें पता है। हमें जिन हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण मिला है, उन्हें कांग्रेस के राज में हम नहीं चला सकते थे। अब सीधा आदेश है कि दुश्मन एक को मारे, तुम दस को मारो। पहले आदेश थे कि दुश्मन दस को मारे, तब तुम कुछ सोचना।
अब लखपत ज्यादातर खण्डहर है, थोडी सी आबादी भी है। भुज से हर दो घण्टे में यहां बस आती है। पहले यह सिन्ध में था, सारा व्यापार सिन्ध और अरब से था तो जाहिर है कि मुसलमान भी होंगे और मस्जिद भी। गौस मस्जिद बडी प्रसिद्ध मस्जिद है। एक मन्दिर भी है। हम आबादी क्षेत्र में नहीं गये, इसलिये न मन्दिर देखा, न मस्जिद। यहां दीवार से दोनों दिख रहे थे।
रिफ्यूजी फिल्म की कुछ शूटिंग यहां हुई है। उसमें लखपत के किले को पाकिस्तान का कोई गांव बनाकर दिखाया गया था। मैंने यह फिल्म नहीं देखी है, लगता है अब देखनी पडेगी।
लखपत फोटोग्राफी के लिये बडी शानदार जगह है। एक तरफ जहां दलदली विस्तार है तो दूसरी तरफ किले के अन्दर खण्डहर और आबादी का अनूठा संगम। भानगढ जैसे दहशती किस्से तो यहां नहीं हैं लेकिन इसे भुतहा स्थानों में रखा जा सकता है। आप किले के किसी भी परकोटे पर चढ जाइये, वहां बैठिये, शान्ति को अनुभव कीजिये और खूब फोटो खींचिये। भूख लगे, नींद आये तो गुरुद्वारा तो है ही।
कभी कभी हमें सीमाओं की तरफ भी जाते रहना चाहिये। देशभक्ति जगती है।
अगला भाग: कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च
bhai kcuth ne mann moh liya
ReplyDeletephoto to best ho te hi hai aap ke
Mujeh amarnath yatra ki jabkari leni hai
batane ka kast kare
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteअमरनाथ की जानकारी बाद में दे दूंगा, आप अभी बस रजिस्ट्रेशन करा लीजिये। अमरनाथ के लिये रजिस्ट्रेशन चालू हो गये हैं।
Bahut badiya.
ReplyDeleteबहुत बढिया...
Deleteशानदार पोस्ट और अदभुद फोटो। वास्तव मे कभी -कभी सीमाओ पर भी जाना चाहिए -इससे देश भक्ति की भावना जागृत होती है और देश से प्यार बढ़ता है। आपकी कच्छ यात्रा पाठको को लम्बे समय तक याद रहेगी।
ReplyDeleteआपकी शादी मे केवल मुबारकबाद ही दे पाया -उस समय मे काम के दबाव मे था, इच्छा तो दावत मे शामिल होने की थी। खैर जीवन का ये खास काम आपने जितनी समझदारी और सादगी से किया आप और भाभी जी दोनों प्रशसा के पात्र है। आपका गृहस्थ जीवन खुशियो भरा हो यही ईश्वर से कामना है।
और हा आपकी विवाह दिवस मे हमेशा याद रखूँगा -क्योकि लगभग 9 साल पहले 16 फरवरी के दिन ही मे भी आपकी तरह इस बंधन मे बंधा था।
धन्यवाद विनय जी...
Deleteजाट-मराठा संगम .............................. हम और आप का जाट-मराठा संगम ही तो है
ReplyDeleteजी भवारी साहब, बिल्कुल।
Deleteबढ़िया वर्णन नीरज भाई
ReplyDeleteदेश में मजबूत सरकार हो तो सुरक्षा बलों की हिम्मत भी दोगुनी हो जाती है..
बिल्कुल अरुण भाई...
Deleteकभी कभी हमें सीमाओं की तरफ भी जाते रहना चाहिये। देशभक्ति जगती है।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी ।
धन्यवाद सर जी...
Deleteआपकी ये पोस्ट पढ़ चुका था कि इसी साल जनवरी में कच्छ जाने का सपत्नीक सुयोग मिला और हम भी आशापुरा माँ, लखपत , नारायण सरोवर व कोटेश्वर हो आये . लखपत में मुहम्मद साहिब के एक वंशज की दरगाह भी है जो काफी सुंदर है .
ReplyDeleteआपकी ये पोस्ट पढ़ चुका था कि इसी साल जनवरी में कच्छ जाने का सपत्नीक सुयोग मिला और हम भी आशापुरा माँ, लखपत , नारायण सरोवर व कोटेश्वर हो आये . लखपत में मुहम्मद साहिब के एक वंशज की दरगाह भी है जो काफी सुंदर है .
ReplyDeleteआपकी ये पोस्ट पढ़ चुका था कि इसी साल जनवरी में कच्छ जाने का सपत्नीक सुयोग मिला और हम भी आशापुरा माँ, लखपत , नारायण सरोवर व कोटेश्वर हो आये . लखपत में मुहम्मद साहिब के एक वंशज की दरगाह भी है जो काफी सुंदर है .
ReplyDeleteआपकी ये पोस्ट पढ़ चुका था कि इसी साल जनवरी में कच्छ जाने का सपत्नीक सुयोग मिला और हम भी आशापुरा माँ, लखपत , नारायण सरोवर व कोटेश्वर हो आये . लखपत में मुहम्मद साहिब के एक वंशज की दरगाह भी है जो काफी सुंदर है .
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