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18 जनवरी 2015
लखपत से नारायण सरोवर की दूरी करीब 35 किलोमीटर है। किले से निकलते ही एक सडक तो बायें हाथ भुज चली जाती है और एक दाहिने वाली जाती है नारायण सरोवर। नारायण सरोवर से दो किलोमीटर आगे कोटेश्वर है।
जैसा कि कई अन्य स्थानों पर भी कथा प्रचलित है कि रावण ने तपस्या करी, शिवजी प्रसन्न हुए और शिवलिंग के रूप में रावण के साथ लंका जाने लगे। लेकिन शर्त लगा दी कि अगर शिवलिंग को जमीन पर रख दिया तो फिर उठाये नहीं उठूंगा। ऐसा ही कोटेश्वर में हुआ। रावण को लघुशंका लगी और शिवजी यहीं पर विराजमान हो गये। अब वर्तमान में मानचित्र देखें तो सन्देह होता है कि रावण शिवजी को कैलाश से ला रहा था या पुरुषपुर से। कैलाश-लंका के बीच में कोटेश्वर दूर-दूर तक भी नहीं आता।
खैर, हम साढे ग्यारह बजे कोटेश्वर पहुंच गये। यह भारत का सबसे पश्चिमी मन्दिर है। वैसे तो यहां से सीधे बीस-पच्चीस किलोमीटर और पश्चिम में भारत का सीमान्त है लेकिन आगे कोई आबादी नहीं है, सिर्फ समुद्र और दलदल ही है। फिर मानचित्र को गौर से देखें तो पता चलता है कि भारत की तटरेखा कोटेश्वर से भी और आगे दक्षिण-पश्चिम में हल्का सा चक्कर लगाते हुई दक्षिण और फिर पूर्व में मुड जाती है, इसलिये सम्भावना है कि कोटेश्वर से भी पश्चिम में कोई स्थानीय मन्दिर हो। लेकिन कोटेश्वर को सबसे पश्चिमी भारतीय मन्दिर माना जा सकता है।
कोटेश्वर महादेव मन्दिर बिल्कुल समुद्र किनारे काफी ऊंचाई पर बना हुआ है। यहां से जो समुद्र दिखता है, उसे अक्सर अरब सागर मान लिया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है। यह वही खाडी है जहां कभी सिन्धु नदी अरब सागर में गिरा करती थी। अब सिन्धु का यहां से प्रवाह नहीं है, इसलिये यह स्थान खाडी बन गया है। इससे थोडा ही आगे अरब सागर है।
मन्दिर से भी थोडा सा और पश्चिम में सेना की एक चौकी है जहां काफी सैनिक चहल-पहल थी। एक बैरियर लगा है कि यहां से आगे जाना सख्त मना है और फोटो खींचने की भी मनाही है। हमने एक सैनिक से पूछा तो उसने बताया कि इस बैरियर से आगे मत जाना लेकिन फोटो कहीं भी कितने भी खींच सकते हो। इसके बाद हमने इस ‘प्रबन्धित’ क्षेत्र के फोटो खींचे। यहां नेवी की या तटरक्षक बल की नौकाएं भी थीं। कुछ ही दिन पहले पाकिस्तान से कुछ आतंकवादी नौकाओं पर सवार होकर इधर गुजरात की तरफ आ रहे थे, लेकिन उनकी पहचान हो जाने के कारण उनके इरादों को ध्वस्त कर दिया गया। इसलिये तटरक्षक बल की जिम्मेदारी भी काफी बढ जाती है।
कोटेश्वर मन्दिर में काफी चहल-पहल थी। हमने भी दर्शन किये, फोटो भी खींचे और समुद्र दर्शन भी किये।
इससे दो किलोमीटर दूर नारायण सरोवर है। नारायण सरोवर की गिनती भारत के पांच पवित्र सरोवरों- पंच सरोवरों- में की जाती है। बाकी चार सरोवर हैं- मानसरोवर, पुष्कर, बिन्दु सरोवर और पम्पा सरोवर। हालांकि जब हम गये थे, तो सरोवर सूखा पडा था। सूखे सरोवर के बीच में एक कुएं से पवित्र जल निकाला जा रहा था और श्रद्धालु अपने साथ ले जा रहे थे।
डेढ घण्टे बाद यानी एक बजे हम तीनों यहां से निकल पडे। अब हमें माण्डवी जाना था इसलिये नारायण सरोवर से निकलते ही बायें लखपत व नखत्राणा की ओर जाने वाली सडक को छोडकर दाहिने नलिया की सडक पर बढ चले।
अगला भाग: पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च
शानदार जगह व यात्रा,ये रावण ने भी काफी शिवलिंग स्थापित कराए है इसी तरह से...
ReplyDeleteधन्यवाद त्यागी जी,..
Deletebhai lagta hai ravan ki har jagh pahoch thi
ReplyDeleteहां जी, मुझे भी लगता है।
Deletebhai lagta hai ravan ki har jagah pahoch thi
ReplyDeleteAshapuri mata k photo nahi dekh paye
ReplyDeleteउपयुक्त जगह पर ही मिलेंगे आशापुरी माता के फोटो। लखपत वाली पहली पोस्ट पढिये।
Deleteआपको बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि हिन्दी चिट्ठाजगत में चिट्ठा फीड्स एग्रीगेटर की शुरुआत आज से हुई है। जिसमें आपके ब्लॉग और चिट्ठे को भी फीड किया गया है। सादर … धन्यवाद।।
ReplyDeleteमुझे भी...
Deleteगुजरात के वादियाँ ............. बिल्कुल सामने दिखायाँ है ..... आप के ब्लोग ने ...
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
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