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13 जनवरी 2015
सुबह आठ बजे विधान के यहां से निकल पडा। उदयपुर यहां से चार साढे चार सौ किलोमीटर दूर है। आज का लक्ष्य उदयपुर पहुंचने का ही रखा। असल में मुझे अहमदाबाद के रास्ते कच्छ जाना था। इसका एक कारण था कि मौका मिलते ही कहीं छोटा रन भी देख लेना चाहता था। मलिया में उमेश जोशी मिलने वाले थे। और अहमदाबाद के रहने वाले अमित गौडा से भी मिलने का वादा कर रखा था।
जयपुर से अहमदाबाद जाने के मुख्य तीन रास्ते हैं। पहला, जयपुर से किशनगढ बाईपास, चित्तौडगढ, उदयपुर होते हुए; दूसरा, अजमेर, कांकरोली, उदयपुर होते हुए और तीसरा, अजमेर, ब्यावर, पाली, सिरोही, आबू रोड होते हुए। मैंने चलने से पहले मित्रों से पूछा भी था कि इनमें से कौन सा रास्ता सर्वोत्तम है। पता चला कि कांकरोली वाले रास्ते को चार लेन का बनाया जा रहा है। यानी वहां काम चल रहा है। पाली, आबू रोड वाले पर भी बताया गया कि काम चल रहा है। इसलिये चित्तौडगढ वाला रास्ता निर्विरोध चुन लिया गया। वैसे वापस मैं पाली के रास्ते आया हूं। वो रास्ता बर और ब्यावर के बीच में थोडा खराब है, बाकी एक नम्बर का है। पहले पता होता तो मैं उसी रास्ते जाता।
और जैसे ही जयपुर बाईपास से बाहर निकलकर अजमेर रोड पर चढा, घने कोहरे ने स्वागत किया। अच्छा खासा कोहरा था, इससे ठण्ड भी बढ गई। हेलमेट का शीशा ऊपर करना पडा जिससे ठण्डी हवा सीधे मुंह पर टकराने लगी। लेकिन इसके बावजूद भी स्पीड 70 तक बनी रही। अगर हम सुनसान सडक पर चल रहे हों तो सामने कोई वाहन आदि न दिखने के कारण धीरे धीरे चलना पडता है। लेकिन अगर सामने वाला वाहन 70-80 चल रहा हो और वो कोहरे में थोडा बहुत दिख भी रहा हो तो देखने की ताकत थोडी बढ जाती है।
दूदू में पेट्रोल भरवाया। दिल्ली से फुल करवाकर चला था। यहां 7.56 लीटर में टंकी फुल हो गई। अब तक कुल 357 किलोमीटर चल चुका हूं। इस तरह 47 किलोमीटर प्रति लीटर का औसत आया। बहुत कम है।
विधान के यहां से सिर्फ चाय पीकर चला था। दो घण्टे बाद किशनगढ पहुंचकर भूख लगने लगी। बाईपास से ही बायें मुड लिया नसीराबाद की तरफ। यहां सडक के किनारे ट्रक ही ट्रक खडे थे तो कोई ढंग का ढाबा नहीं दिखा। मैं आगे बढता गया और नसीराबाद में कुछ खाने का प्रण ले लिया।
आखिर ग्यारह बजे नसीराबाद पहुंच गया। यहां अजमेर से आने वाली सडक भी मिल जाती है। नसीराबाद में अजमेर-चित्तौडगढ रेलवे लाइन पर एक स्टेशन भी है। एक ढाबे पर रुक गया। अपने पसन्दीदा आलू के परांठे खाये। परांठे इतने स्वादिष्ट लगे कि दो खा डाले। स्वादिष्ट परांठे हर कोई नहीं बना सकता। बडी बडी महंगी जगहों पर भी ज्यादातर बेस्वाद परांठे ही मिलते हैं। यहीं थोडी देर धूप में खाट पर लोट मारा और एक घण्टे बाद आगे बढ चला। अब तक मौसम बिल्कुल साफ हो चुका था।
नसीराबाद से विजयनगर लगभग पचास किलोमीटर है। चार लेन की सडक और ट्रैफिक बहुत कम; स्पीड के बारे में बताने की जरुरत नहीं है। अपने आप ही, पता ही नहीं चलता था। पौन घण्टा लगा विजयनगर पहुंचने में। लेकिन अब एक समस्या और आ गई। नींद आने लगी। बडी खतरनाक बात होती है ऐसे में नींद आना। आज अभी तक मैं 200 किलोमीटर आ चुका था, उदयपुर के लिये अभी भी ढाई सौ किलोमीटर और चलना था। दोपहर का समय, सर्दियों के दिन, धूप निकली हो और खाना खाने के बाद नींद किसे नहीं आती? मुझे तो आती है।
एक ऐसे ढाबे पर रुक गया जहां कोई ग्राहक नहीं था और बाहर धूप में कई खाट बिछी थीं। एक कप चाय पी और वहीं खाट पर पीछे लुढक गया। जबरदस्त नींद आई। आंख खुली एक घण्टे बाद। पुनर्जन्म सा हो गया। ढाबेवाले को धन्यवाद देकर जब बाइक स्टार्ट की तो लगा जैसे अभी यात्रा शुरू की है।
दो बज रहे थे। सवा तीन बजे भीलवाडा पार हो गया और साढे चार बजे चित्तौडगढ। दोनों ही शहर बाईपास से पार किये। चित्तौडगढ में जब उदयपुर वाली रेलवे लाइन के ऊपर पुल पर खडा था तो दूर किला दिख रहा था। मैंने अभी तक चित्तौड का किला नहीं देखा है। यह मेरी कच्छ यात्रा थी, इसमें मेवाड को जोडकर मैं खिचडी नहीं बनाना चाहता था।
सवा पांच बजे सांवरियाजी पहुंच गया। अपने ही आप बाइक मन्दिर की तरफ मुड गई। एक घण्टे यहां रुका रहा। कुछ पेट खाली किया, कुछ पेट में डाला। कुछ सांवरियाजी के स्वयं दर्शन किये, कुछ बाइक जी को कराये। सवा छह बजे जब चला तो थोडी ही देर में हैड लाइट जल गई। अन्धेरा होने लगा था। उदयपुर अभी भी सौ किलोमीटर दूर था।
एक मित्र ने उदयपुर में रुकने को अपने किसी मित्र का फोन नम्बर दे दिया। लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि मैं उदयपुर बाईपास से अहमदाबाद रोड पर जा चढा। बाईपास है तो ग्यारह किलोमीटर का ही लेकिन पूरा टूटा पडा है। ऊपर से टू-लेन। अन्धेरे में ट्रकों के बीच बुरी हालत हो गई। बाद में जब मुख्य सडक पर आया तो जान में जान आई। अब तक रात के नौ बजने वाले थे। आज मुझे तय कार्यक्रम के अनुसार अहमदाबाद पहुंच जाना था। अमित गौडा के यहां रुकना था। जब विलम्ब हो गया तो अमित से दिन में ही मना कर दिया कि मैं आज नहीं आऊंगा। फिर भी चाहता था कि कल दोपहर तक उनके यहां पहुंच जाऊं ताकि शाम को आगे बढ सकूं। इसलिये सोचा कि ऋषभदेव रुकूंगा आज।
ऋषभदेव यहां से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। एक घण्टे से ज्यादा लगना ही था। अर्थात रात के दस बज जाने हैं। इतनी रात को पता नहीं कुछ रुकने का ठिकाना मिलेगा भी या नहीं। इसलिये ऋषभदेव रुकने का इरादा बदल दिया और यहीं कहीं कोई होटल ढूंढने लगा। जल्दी ही एक होटल मिल गया। बडा आलीशान होटल था। सबसे सस्ते कमरे की बात की तो पन्द्रह सौ बताये। मैं तुरन्त वापस भाग लिया। एकदम आठ सौ पर आ गये। मेरी अधिकतम सीमा पांच सौ थी, इसलिये यहां से निकल पडा। इससे कुछ ही आगे एक होटल और मिला। इसमें मेरे बजट का कमरा मिल गया यानी पांच सौ का।
आज कुल 459 किलोमीटर बाइक चलाई।
उदयपुर से अहमदाबाद
आज का इरादा था सुबह सात बजे तक प्रस्थान कर देने का लेकिन उठा ही नहीं गया। कल काफी बाइक चलाई थी, बहुत थकान हो गई थी। साढे आठ बजे आंख खुली। होटल वाले से मैंने कह ही कह दिया था कि छह बजे चला जाऊंगा, वो बेचारा साढे छह बजे उठाने भी आया था, दरवाजा भी खटखटाया था लेकिन मुझे पता नहीं चला। यह बात उसने अब बताई। अहमदाबाद यहां से लगभग ढाई सौ किलोमीटर है।
मुझे भ्रम हो गया था कि फ्यूल इंडीकेटर खराब हो गया है। इसलिये मैं पेट्रोल को लेकर अतिरिक्त सचेत था। बाइक की टंकी दस लीटर की है। 45 के आसपास का औसत चल रहा है। यानी बाइक एक बार भरने पर करीब साढे चार सौ किलोमीटर चलेगी। लेकिन मैं साढे तीन सौ के बाद ही पेट्रोल पम्प ढूंढने लगता था। कल दूदू में टंकी भरवाई थी और दूदू से अब तक 400 किलोमीटर चल चुकी है। इसलिये जैसे ही पहला पेट्रोल पम्प दिखा, तुरन्त यह काम भी निपटा लिया। इस बार साढे सात लीटर पेट्रोल आया। इसका अर्थ है कि लगभग 53 का औसत मिला। बढिया है। खाली और शानदार सडक को इसका सारा श्रेय जाता है।
ऋषभदेव तक भूख लगने लगी। अपने तो वही आलू के परांठे। एक ढाबे पर गया, उसने मना कर दिया कि एक परांठा नहीं बनाऊंगा। मैंने एक कप चाय पी और आगे बढ चला। खैरवाडा निकल गया और इसी तरह धीरे धीरे राजस्थान से गुजरात राज्य में प्रवेश कर गया। यह सडक राष्ट्रीय राजमार्ग है। राजस्थान में तो यह शानदार बनी ही है लेकिन गुजरात में अति शानदार है। यहां बाइक चलाने में इतना आनन्द आया कि स्पीड कब 70 से 80 पहुंच जाती थी, पता ही नहीं चलता था। शामलाजी पीछे छूट गया, हिम्मतनगर भी गया और प्रान्तिज भी। हां, प्रान्तिज से याद आया कि हिम्मतनगर और प्रान्तिज के बीच में कहीं से कर्क रेखा गुजरती है। मुझे लग रहा था कि इसकी सूचना दर्शाता हुआ कोई बोर्ड लगा मिलेगा लेकिन कहीं नहीं मिला। खैर, कोई बात नहीं। आगे मुझे कई बार कर्क रेखा पार करनी है, कहीं न कहीं तो सूचना-पट्ट मिलेगा ही।
कर्करेखा पार करने का अर्थ है कि अब आप समशीतोष्ण कटिबन्ध से उष्ण कटिबन्ध में प्रवेश कर गये हैं। कर्करेखा वो रेखा है जहां 21 जून को सूर्य बिल्कुल सिर के ऊपर चमकता है। 21 जून से पहले सूर्य कर्करेखा के दक्षिण में होता है और दिन-ब-दिन उत्तर की ओर बढता जाता है। लेकिन 21 जून इसकी आखिरी सीमा है। इसके बाद यह फिर से वापस दक्षिण की ओर जाने लगता है। इसीलिये इस तारीख को उत्तरी गोलार्ध में सबसे बडा दिन होता है।
चिलोडा सर्किल से सीधे निकल गया। पन्द्रह किलोमीटर आगे रानासन सर्किल से दाहिने मुड गया। 14 किलोमीटर पर वैष्णों देवी सैकिल है, सीधे चलता रहा। यहां से बोपल 15 किलोमीटर रह जाता है जहां अमित गौडा मेरा इंतजार कर रहे थे। आज मकर संक्रान्ति थी अर्थात गुजरात का सबसे बडा त्यौहार। सडकें खाली थीं। बिल्कुल ट्रैफिक नहीं था।
गूगल मैप से मैं पूरी तैयारी करके चला था। किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं पडी। वैष्णों देवी सर्किल पर पहुंचकर मैंने अमित भाई को बताया तो उन्होंने और ज्यादा कन्फर्म कर दिया कि सीधे चले आओ। बोपल में सर्किल से दाहिने मुडकर मैंने फिर से अमित को फोन किया। वे थोडी दूर मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। जब तक अमित मेरे पास आये, तब तक मेरा मनोरंजन एक भिखारिन ने किया। पहले तो वह बेचारी गुजराती में मांगती रही- देओ छो, ये छो और वो छो; लेकिन जब मैंने कहा- मैं ना दे रहा कुछ भी; तुरन्त हिन्दी बोलने लगी।
अब ये बताने की तो आवश्यकता ही नहीं कि अमित के घर मैंने क्या किया, क्या खाया, क्या पीया। हां, एक बात जरूर बताने की है कि गर्म पानी मिल गया था, नहा लिया। आज लगभग ढाई सौ किलोमीटर ही बाइक चलाई थी लेकिन फिर भी थकान इतनी हो रही थी कि आज यहीं रुकने का फैसला कर लिया। मन में था कि यहां का विश्वप्रसिद्ध पतंगोत्सव भी देखूंगा लेकिन थकान ने सब गडबड कर दिया।
शहर से बाहर होने के बावजूद भी बोपल का आसमान पतंगों से अटा पडा था। अमित ने बताया कि जब यहीं ऐसा हाल है तो सोचो अहमदाबाद में क्या हो रहा होगा। रात होने पर जब हम बाहर टहलने निकले तो आसमान में रोशनी वाली पतंगें देखकर आश्चर्यचकित रह गया। पतंगें तो बसन्त पंचमी पर दिल्ली में भी खूब उडती हैं लेकिन वहां पतंगबाजी को लफंगों का काम माना जाता है। लेकिन गुजरात में यह एक पर्व है। मैंने जानबूझकर इनके फोटो नहीं लिये ताकि अगले साल फिर इसी बहाने गुजरात आ सकूं। और बहाने भी क्या बनाने? मैं इतना थका था कि फोटो लेने की इच्छा भी नहीं थी।
अजमेर रोड पर कोहरा |
दूदू के पास |
विजयनगर में |
चित्तौडगढ-उदयपुर रेलवे लाइन |
बाईपास से दिखता चित्तौड का किला |
सांवरियाजी |
सांवरियाजी |
उदयपुर-अहमदाबाद रोड |
स्कूल से बंक मारकर भी पढाई की जा सकती है। |
गुजरात में प्रवेश |
अलविदा राजस्थान। शीघ्र ही फिर मिलेंगे। |
अमित गौडा के घर पर |
अमित रोशनी वाली पतंग-टुक्कल- दिखाते हुए। इसमें नीचे जो काला स्थान है, वहां मोमबत्ती रखते हैं। मोमबत्ती जलती है तो गर्म हवा इस गुब्बारेनुमा पतंग में भरने लगती है और यह ऊपर उडने लगती है। |
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अगला भाग: कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च
Welcome neeraj bhai ..
ReplyDeletesorry yar . Maf karna . But holy par aa jao dawarka ghumenge . Radhaji ko sath me le aao dawarka ki holy kuch khas hoti he . Baki phone par .
नहीं, उमेश भाई, होली पर तो नहीं आऊंगा। फिर कभी। धन्यवाद आपका।
Deleteअति सुंदर। एवरेज के चक्कर में ना रहो नीरज भाई, कार में एवरेज १० आती है। जब भी टैंक खाली हो भरवा लो
ReplyDeleteएवरेज के चक्कर में तो नहीं था लेकिन गणना करने में क्या जाता है? धन्यवाद आपका।
Deleteयह यात्रा और उसका फोटो फ्लिम हाइ वे जैसी लग रही है ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deletedawarka ki holy kuch khas hoti he
ReplyDeleteHO hi nahi sakti.................jo holi mere mathura main hoti hai wo kahin nahi ho sakti...........
सर जी/ मैडम जी, होली केवल आपके मथुरा में ही नहीं मनाई जाती। हर जगह मनाई जाती है और हर जगह की अलग खासियत होती है। मथुरा की खासियत कुछ और है, द्वारका की कुछ और होती होगी और... हमारे गांव की भी कुछ खासियत है होली मनाने की।
Deleteशानदार पोस्ट शानदार चित्रों के साथ। बाइक का एवरेज चेक करते रहना चाहिए।
ReplyDeleteधन्यवाद सलाहुद्दीन साहब...
Deletebike ji ko darsahn kara liya aur hame
ReplyDeletebhi thsnks bhai
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteअति उत्तम ..........सुन्दर चित्रावली
ReplyDeleteधन्यवाद हर्षिता जी...
Deleteनीरज जी, बाइक के साथ पंचर जैसी समस्या से निपटने के लिए क्या इंतजाम किया है। हमारे जैसे लोगों को भी कुछ सुझाएँ, क्योंकि मेरी बाइक में सामान्य टायर ट्यूब हैं ।
ReplyDeleteमेरी बाइक में ट्यूबलेस टायर हैं। फिर भी पंक्चर किट लेकर चला था। हवा भरने के लिये पम्प घर पर ही भूल गया था। कभी मैंने पंक्चर ठीक किया तो नहीं है लेकिन लम्बी यात्राओं के लिये यह आना चाहिये।
Deleteशानदार लेख के लिए बधाई नीरज भाई, लेख पढ़कर मज़ा आ गया और हाँ इस बार फोटो भी ग़ज़ब के आए है ! उदयपुर तक तो गया हूँ पर कभी गुजरात जाने का मौका नहीं मिला ! खैर, फिलहाल तो आपके लेखों के माध्यम से ही गुजरात दर्शन कर लेंगे ! अगले लेख का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा !
ReplyDeleteधन्यवाद चौहान साहब...
Deletesanwriya ji ka mukhya mandir highway se
ReplyDeleteki taraf he.. yah bhadsoda wala mandir lag raha he
पता नहीं कि यह कौन सा मन्दिर है। यहां हर जगह सांवरियाजी लिखा था और गूगल मैप पर भी इस स्थान का नाम सांवरियाजी है। हो सकता है मुख्य मन्दिर कहीं और हो।
DeleteJi bilkul yah sanwriya ji ka praktya sthal he.... mukhya mandir highway se 8-10 km andar ki taraf he..isi mandir k pas se uske liye sadak he..wo mandir bahot vishal he..aur famous bhi..
ReplyDeleteनीरज , ये जो साँवरिया जी की फोटो आपने लगाईं है वो वास्तव में हाईवे पर सावरिया जी का प्राकट्य स्थान है और मुख़्य मंदिर इसके बराबर से ही एक रास्ता जाता है और करीब 3-4 किलोमीटर अंदर है ! लेकिन वो रोड बड़ी खराब है ! चित्र हमेशा की तरह शानदार !
ReplyDeleteफिर से आलू के पराठे !.. नीरज़ आलू पराठा पर ek blog जरुर लिखिए .....बाकी हमेशा के तरह शानदार वर्णन !!....
ReplyDeleteबाईक के फोटो देते समय उसका नाम ब्लर कर दो... अन्यथा बाईक का प्रचार मुफ्त में खूब बढ़िया हो जायेगा... और कम्पनी वाले आपको कुछ भी न देंगे...
ReplyDeleteनसीराबाद की कचोरी खानी थी बहुत स्वादिष्ट होती है --- और सावरीयाँ जी भगवांन कृष्ण का बहुत फेमस मंदिर है
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