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आज की शुरूआत एक छोटी सी कहानी से करते हैं। यह एक तान्त्रिक और एक राजकुमारी की कहानी है। तान्त्रिक राजकुमारी पर मोहित था लेकिन वह उसे कोई भाव नहीं देती थी। चूंकि राजकुमारी भी तन्त्र विद्या में पारंगत थी, इसलिये उसे दुष्ट तान्त्रिक की नीयत का पता था। एक बार तान्त्रिक ने राजकुमारी की दासी के हाथों अभिमन्त्रित तेल भिजवाया। तेल की खासियत यह हो गई कि वह जिसके भी सिर पर लगेगा, वो तुरन्त तान्त्रिक के पास चला जायेगा। राजकुमारी पहचान गई कि इसमें तान्त्रिक की करामात है। उसने उस तेल को एक शिला पर फेंक दिया और जवाब में वह शिला तान्त्रिक के पास जाने लगी। बेचारे तान्त्रिक की जान पर बन गई। शिला क्रिकेट की गेंद तो थी नहीं कि तान्त्रिक रास्ते से हट जायेगा और वो सीधी निकल जायेगी। अभिमन्त्रित थी, तो तान्त्रिक कितना भी इधर उधर भागेगा, शिला भी उतना ही इधर उधर पीछा करेगी। जब तान्त्रिक के सारे उपाय निष्क्रिय हो गये, तो उसने श्राप दे दिया। श्राप के परिणामस्वरूप शिला फिर से बावली हो गई और अब वो नगर को ध्वस्त करने लगी। उसी ध्वस्त नगर का नाम है भानगढ।
प्रवेश द्वार पर लगे शिलालेख के अनुसार भानगढ को आमेर के राजा भगवन्त दास ने सोलहवीं सदी के आखिर में बसाया। आज यहां सबकुछ उजाड है मात्र तीन चार मन्दिरों को छोडकर। राजमहल तो पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है।
इसके बारे में भयंकर तरीके से प्रचलित है कि यह स्थान शापित और भुतहा है। बडी भयानक और डरावनी कहानियां भी सुनी-सुनाई जाती हैं। यह भी कहा जाता है कि यहां रात को जो भी कोई रुका है, सुबह जिन्दा नहीं मिला। रात में भूत-बाजार लगने की भी बातें सुनाई देती हैं।
मुझे इन सब बातों पर यकीन है। चूंकि मैं बिना शर्त भगवान को मानता हूं, तो मेरी मजबूरी बन जाती है कि शैतान को भी मानूं।
जयपुर में विधान चन्द्र के यहां साइकिल खडी की और हम दोनों मोटरसाइकिल पर निकल पडे भानगढ की ओर। दोपहर ग्यारह बजे जयपुर से चले क्योंकि इससे पहले मन में कोई योजना नहीं थी इधर आने की। अगले दिन विधान की शादी की सालगिरह थी, इसलिये आज ही वापस भी लौटना था। हालांकि उन्होंने ऐसा किया नहीं।
दौसा-अलवर रोड पर एक गांव है- गोला का बास। यहीं से भानगढ का रास्ता जाता है जो दो किलोमीटर से ज्यादा नहीं मालूम पडता।
अन्दर घुसते ही उजाड बाजार है जो पहले कभी आबाद हुआ करता था। उसके बाद गोपीनाथ मन्दिर है। यह मन्दिर दूसरे कई मन्दिरों की तरह बिल्कुल सुरक्षित है। इसके बाद सामने राजमहल है। बताते हैं कि यह सात मंजिला था, लेकिन अब चार मंजिलें ही बाकी हैं। इसके बायें केवडे का घना जंगल है जहां स्थानीय लोग मन्नतें लेकर आते हैं और केवडे की लम्बी लम्बी पत्तियों में गांठें लगाकर चले जाते हैं।
विधान ने भी जब एक गांठ लगाई तो मैंने पूछा कि क्या मन्नत मांग ली? बोले कि इनमें से किसी की भी मन्नत पूरी ना हो, यही मन्नत मांगी है।
पास की ऊंची ऊंची पहाडियों से एक जलधारा बहकर आ रही है जो भानगढ के बीच से निकलती है। इसके उस पार सोमेश्वर मन्दिर है। इसमें नन्दी की एक बडी प्रतिमा है और अन्दर बडा शिवलिंग भी है। यहां के किसी भी मन्दिर में कोई पुजारी नहीं है, इसलिये पूजा पाठ भी नहीं होता। हालांकि सोमेश्वर मन्दिर में एक लंगूर पुजारी की भूमिका निभा रहा था।
सोमेश्वर मन्दिर की छत पर बुद्ध की प्रतिमा दिखाई पडी। इस प्रतिमा ने मुझे दुविधा में डाल दिया।
इसी से कुछ दूर दो मन्दिर और भी हैं- मंगला देवी मन्दिर और केशव राय मन्दिर।
इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि उजाड और वीरान चारों तरफ से जंगल तथा पहाडियों से घिरे भानगढ का माहौल स्वयं की डरावना हो जाता है। ऊपर से अगर शापित वाली बात भी प्रचलित हो तो क्या कहने! विधान पूरे समय कहता रहा कि सब बकवास है, कोई भूत-वूत नहीं है। अफवाहें हैं। मैं इन चीजों में यकीन करने के कारण बार-बार कहता रहा कि भाई, खुद मोटरसाइकिल चलाकर वापस भी लौटना है। कहीं ऐसा ना हो कि यहीं से आलोचना सुनकर कोई भूत पीछे लग जाये और आपके साथ मेरा भी बढिया सत्कार हो।
एक महिला मिली दिल्ली की, उन्होंने बताया कि उनके किसी रिश्तेदार ने भी यहां आकर आलोचना कर दी थी, तो भूत पीछे पड गया और दिल्ली चला गया पीछे पीछे। बाद में वही कहानी कि सेहत खराब होने लगी, इलाज से फायदा नहीं हुआ, तान्त्रिकों को दिखाया तब इसका पटाक्षेप हुआ और तब भूत को वापस भानगढ भगाया गया।
यहां दिन छिपने के बाद रुकना वर्जित है। लोग खुद ही बाहर चले आते हैं। वैसे कई दुस्साहसी लोगों की कहानियां भी प्रचलित हैं जिनका सभी का सारांश यही है कि वे सुबह सही-सलामत नहीं मिले। अगर ऐसे मामलों में मौतें होती हैं, तो ज्यादातर का कारण खुद की कमजोरी यानी डर होता है। भले ही कोई कितना भी शूरवीर हो, मन के एक कोने में यह बात जरूर बैठेगी कि यह जगह शापित है। डराने के लिये इतना ही काफी है।
इस नगर को शाप ने नहीं उजाडा, इसके पक्ष में एक तथ्य दिया जाता है कि यहां के चारों मन्दिर सुरक्षित हैं। मात्र राजमहल ही उजडा हुआ है। उसे स्थानीय लोगों ने खिडकी दरवाजे प्राप्त करने के लिये और कुछ ने गडा खजाना ढूंढने के लिये तोड-फोड दिया। मन्दिरों को उन्होंने इसलिये नहीं छेडा कि वे पवित्र स्थान हैं। अगर यह शापित शिला से उजडा है तो मन्दिर क्यों बच गये उस शिला से? मेरा मानना है कि वे पवित्र स्थान हैं, इसलिये बच गये।।
सुना है कि कुछ दिन पहले एक टीवी चैनल ने ‘स्टिंग’ करके सिद्ध करने की कोशिश की कि यहां भूत नहीं हैं। वे कई लोग यहां आये, कैमरे लगाकर रातभर रहे, लेकिन कुछ भी संदिग्ध नहीं घटा। अगले दिन उन्होंने घोषित कर दिया कि भानगढ के भूत मात्र अफवाह हैं, उनका अस्तित्व नहीं है।
काश! ये लोग मन्दिरों में जाकर भगवान के अस्तित्व पर भी एक ‘स्टिंग’ करें।
जयपुर से भानगढ जाने के लिये दौसा बाईपास रोड |
स्थानीयों में भानगढ की बडी मान्यता है। |
गोला का बास से भानगढ मोड |
एक मकबरा |
जौहरी बाजार के खण्डहर |
गोपीनाथ मन्दिर |
राजमहल |
इसे क्या बुद्ध माना जाये? |
मंगला देवी मन्दिर |
दूर से गोपीनाथ मन्दिर |
राजमहल |
एक सुरंग |
राजमहल में ऊपर जाने के लिये सीढियां |
राजमहल के अन्दर |
राजमहल के ऊपर खण्डहर |
राजमहल की महिलाओं द्वारा दीवार पर बनाया गया चित्र |
यह फोटो विधान ने खींचा है। इसमें मैं जो फोटो खींच रहा हूं, वो नीचे दिखाया गया है। |
ऊपर दिखाये गये फोटो में मैं यही फोटो ले रहा था। |
विधान चन्द्र- इन्होंने केवडे की पत्तियों में गांठ बांधकर मन्नत मांगी कि बाकियों की मन्नत पूरी न हो। |
और अब इसके अन्दर मिलने वाले जीवों के कुछ फोटो:
यह जीव भी उस दिन भानगढ में विचर रहा था। |
धूप में मस्ती काटता लंगूर |
सोमेश्वर मन्दिर में पुजारी जी महाराज |
भानगढ का भूत |
एक नवजात अपने माता-पिता के साथ |
भानगढ का नक्शा |
अगला भाग: नीलकण्ठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो
जयपुर पुष्कर यात्रा
1. और ट्रेन छूट गई
2. पुष्कर
3. पुष्कर- ऊंट नृत्य और सावित्री मन्दिर
4. साम्भर झील और शाकुम्भरी माता
5. भानगढ- एक शापित स्थान
6. नीलकण्ठ महादेव मन्दिर- राजस्थान का खजुराहो
7. टहला बांध और अजबगढ
8. एक साइकिल यात्रा- जयपुर- किशनगढ- पुष्कर- साम्भर- जयपुर
सोमेश्वर महादेव मंदिर में वह बुद्ध की प्रतिमा नहीं है। वो महादेव के बीर है। भानगढ के उजड़ने के कई कारण हैं। इसके उजड़ने के विषय में कई किंवदंतियाँ हैं। जिनका जिक्र अपनी पोस्ट में करुंगा।
ReplyDeleteNeeraj bhai, bas isi ke aas paas abhaneri gaanv hai, jahan se paas me Chand Bawri hai. Main bhangarh to nahin jaa paaya par abhaneri bhi shayad isike aas paas hi hai.
ReplyDeleteMast mandir aur kila hai, maja aa gaya
दो जिन्दा भूत देखकर, मरे हुए भूत की हिम्मत इनसे पंगा लेने की कहाँ आनी थी।
ReplyDeleteआज तक कोई मिला ही नहीं , कैसे होते हैं , मैं भी तो देखूं जरा !! सब जगह जाकर देख लिया। भानगढ़ में रात को रुकने का प्रोग्राम था , लेकिन बिस्तर नहीं थे।
Deleteकेवडे को तो मजा आ गया, सैंकडों मन्नतें पूरी करने की बजाय केवल एक ही मन्नत पूरी करनी होगी (विधान वाली) :)
ReplyDeleteप्रणाम
जाने क्या क्या राज छिपे हैं, इन महलों में। सुन्दर चित्र।
ReplyDeleteसही कहा नीरज भाई, इंसान को डर सबसे ज्यादा अपने से लगता है ! हमारे यहाँ एक लोककथा प्रचलित है, एक तालाब पे भूत रहता था एक दिलेर बोला मैं आधी रात को अकेले जाऊँगा और तालाब के मेड पैर कांटी ठोक के आऊंगा, दुसरे दिन वो मरा हुआ मिला, क्योंकि काँटी वो बैठकर ठोंक रहा था और ध्यान दे रहा था की सच में कोई भुत तो नहीं आ रहा है! कांटी उसने गलती से अपनी धोती में ठोक ली थी!
ReplyDeleteवैसे भी संदीप भाई ने सही कहा है किसकी हिम्मत है जो दो के रहते आ जाए!
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Deletebahut achha varnan...
ReplyDeleteरात रुकते तब तो कुछ पता चलता न की वहां इन दो भूतो के अलावा भी कोई तीसरा भुत है---वेसे यदि कोई रहा भी होगा तो नीरज की बदबू सूंघकर भाग खड़ा होगा हा हा हा हा हा
ReplyDeleteशब्द नहीं बचते मेरे पास तुम्हारी तारीफ में कुछ कह सकूँ पर इतना तो कह सकता हूँ की ऊपर वाले की कुछ खास नजर है तुम्हारी नजर में जो कैमरे के माध्यम से इतने लाजवाब चित्र उतार लेते हो , भाई लगे रहो ......
ReplyDeleteजी हां बिलकुल सही सुना आपने, हिंदुस्तान को हमेशा से ही रहस्यों , आलौकिक शक्तियों, तंत्रविद्या का देश कहा गया है। जब बात तंत्र विद्या की हो और ऐसे में हम भूत प्रेतों का ज़िक्र न करें तो फिर कहे गए शब्द एक हद तक अधूरे लगते हैं। लेकिन आगे बढ़ने से पहले चंद सवाल। हम लोगों में से कितने ऐसे हैं जो ये मानते और विश्वास करते हैं कि आज भी इस दुनिया में बुरी आत्माओं और भूतों का अस्तित्त्व है? क्या हम किसी भी माध्यम से भूतों से मिल सकते हैं? क्या हम उन्हें देख सकते हैं, उन्हें महसूस कर सकते हैं? सूर्य देव का वो मंदिर जिसको आज भी है अपनी पूजा का इंतेजार
ReplyDeleteहम में से बहुत से ऐसे होंगे जो अवश्य ही इन बातों पर न कहेंगे वहीँ दूसरी तरफ बहुत से ऐसे भी होंगे जिनका ये मानना होगा कि धरती पर जहां एक तरफ जीवित लोग हैं तो वहीँ मृत्य आत्माओं का भी वास है। बहरहाल आज हम आपको हिन्दुस्तान के उस किले के बारे में बताएंगे जिस का सिर्फ नाम सुनकर ही बड़े बड़े दिलेरों के डर के मारे पसीने छूट जाते हैं।
ये किला है राजस्थान के अलवर जिले में स्थित भानगढ़ का किला । अगर यहां के स्थानीय लोगों की माने तो यहां आने के बाद पर्यटक आज भी एक अलग तरह के डर और बेचैनी का अनुभव करते हैं।
डर से बड़ा भूत कोई नहीं. डरा हुआ इंसान स्वंय ही भूत प्रेत प्रक्षेपित कर लेता है.. और डर हर किसी को जकड़ सकता है कोई कितना ही निडर होने का दावा करे .
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