कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा- यह तुकबन्दी मुझे बडा परेशान कर रही थी कई दिनों से। पिछले साल एक बार साइकिल से जाने की भी योजना बनाई थी लेकिन वह ठण्डे बस्ते में चली गई। कच्छ में दो मुख्य रेल लाइनें हैं- अहमदाबाद-भुज और पालनपुर-समखियाली; दोनों पर कभी यात्रा नहीं की गई। बस फोटो देख-देखकर ही कच्छ दर्शन किया करता था।
लेकिन ऐसा कब तक होता? कभी न कभी तो कच्छ जाना ही था। मोटरसाइकिल ली, गढवाल की एक छोटी सी यात्रा भी कर ली; फिर सर्दी का मौसम; कच्छ के लिये सर्वोत्तम। इस बार चूक जाता तो फिर एक साल के लिये बात आई-गई हो जाती।
पिछले दिनों डिस्कवरी चैनल पर कच्छ से सम्बन्धित एक कार्यक्रम आया- यह कार्यक्रम कई दिनों तक आता रहा। मैंने कई बार इसे देखा। इसे देख-देखकर पक्का होता चला गया कि कच्छ तो जाना ही है। लेकिन समस्या थी दिल्ली से भुज ट्रेन से जाऊं या बाइक से। पहले तो तय किया कि जामनगर तक ट्रेन से जाऊंगा, बाइक या तो ट्रेन में ही रख लूंगा या फिर उमेश जोशी से ले लूंगा। जोशी जी ने भी साथ चलने की स्वीकृति दे दी।
लेकिन जब मैं जामनगर का आरक्षण कराने बैठा तो वेटिंग मिली। झट से ट्रेन से जाना रद्द कर दिया। अब तो बाइक से ही जाऊंगा। जोशी जी से तकरीबन रोज ही बात होती थी कि मलिया में हम मिलेंगे क्योंकि मैं अहमदाबाद के रास्ते जाऊंगा और जोशी जी जामनगर से सौ किलोमीटर बाइक चलाकर मलिया पहुंच जायेंगे। हालांकि इसी दौरान जोशी जी की खास रिश्तेदारी में एक शादी थी लेकिन भाई ने शादी में जाना रद्द करके कच्छ जाना चुना।
खैर, 12 जनवरी को निकलना था। इस बार सब तैयारियां पहले से ही करके रखी हुई थीं। दिल्ली में भीषण ठण्ड व कोहरा पड रहा था। तापमान ढाई डिग्री तक पहुंच गया था। दिल्ली लगातार शिमला से ठण्डी थी। वैसे दिल्ली में दो ही मौसम होते हैं- या तो 40-45 डिग्री की भीषण गर्मी या फिर 3-4 डिग्री की भीषण ठण्ड। बीच का कोई मौसम होता ही नहीं। होता भी होगा तो हमें याद नहीं रहता। गर्मी याद रहती है जब हम देखते हैं कि अगर एक कमरे में एसी का तापमान 25 डिग्री भी होता है तो ठण्ड सी लगती है। वही मुझे याद था कि 25 डिग्री में ठण्ड लगती है। उधर भुज का तापमान आजकल 20-25 डिग्री ही था। मैंने सोचा कि ठण्ड ही लगेगी। इसलिये उसी हिसाब से तैयारियां करके चला। तब क्या पता था कि 3-4 डिग्री से निकलकर 20 डिग्री में ठण्ड नहीं लगती?
काफी समय पहले जब पहले-पहल अमित गौडा की टिप्पणियां आनी शुरू हुई थीं, तो पता है मैं क्या सोचता था? चलिये, बताता हूं। मेरे रूम पार्टनर का नाम भी था अमित। हम साथ साथ ही पढे हैं। उसकी तन्दुरुस्ती और तेज चाल को देखकर उसका नाम घोडा निकाल दिया था। हमारी पूरी मित्र-मण्डली आज भी उसे घोडा ही बुलाती है (अब उसकी शादी हो गई है तो जाहिर है उसकी घरवाली घोडी हो गई है)। खैर, सबको यह भी पता था कि मैं और ‘घोडा’ साथ ही रहते हैं। तो जब अमित गौडा (Amit Goda) की टिप्पणियां आनी शुरू हुईं तो मैं यही सोचता था कि हमारा कोई मित्र ही होगा जो मुझे अमित घोडा के नाम से टिप्पणियां करता है। मैं अमित को दिखाया करता था कि देख, कौन हो सकता है यह? हम बैठकर खूब मंथन करते थे कि यह है तो कोई जान-पहचान वाला ही लेकिन महीनों बाद भी निष्कर्ष नहीं निकाल पाये कि कौन हो सकता है। बाद में धीरे धीरे समझ में आने लगा कि यह अमित घोडा नहीं बल्कि अमित गौडा है।
गौडा साहब अहमदाबाद के बोपल में रहते हैं। मैंने जब अपना रूट बनाया तो यह बोपल से होकर ही जा रहा था। गौडा साहब ने तुरन्त कह दिया कि मुझे उनके घर रुकना है। उस समय पक्की योजना थी कि 12 जनवरी की सुबह दिल्ली से निकलकर 13 जनवरी की शाम तक बोपल पहुंच ही जाऊंगा। यही उनसे बता दिया कि 13 तारीख की रात को आपके यहां रुकूंगा। बाद में ध्यान आया कि 14 तारीख को मकर संक्रान्ति व उत्तरायण होती है जो गुजरात में बडी धूमधाम से मनाई जाती है। पतंगोत्सव भी होता है। सोच लिया कि दोपहर तक अहमदाबाद में उत्तरायण का आनन्द लूंगा, फिर भुज के लिये निकलूंगा।
रास्ते में जयपुर पडता है। विधान को पता चला तो उसने कहा कि उसका स्लीपिंग बैग व मैट्रेस लेता आऊं। गौरतलब है कि मैंने जांस्कर जाने से पहले विधान के लिये ये दोनों चीजें खरीदी थीं लेकिन बढते खर्च को देखते हुए विधान ने इन्हें लेने से इंकार कर दिया था। तब से ये मेरे पास ही रखी हुई थीं। अब विधान की ड्यूटी कई दिनों के लिये चुनावों में लगने वाली है तो उसके लिये भारी-भरकम रजाई-गद्दे ढोने से बेहतर है कि स्लीपिंग बैग व मैट्रेस ही ढो लिया जाये। मैंने कहा कि भाई, दोनों चीजें 1900 रुपये की हैं लेकिन मैं पूरे 2000 लूंगा। विधान ने कहा कि ले लेना।
12 जनवरी को सुबह छह बजे निकलने की योजना थी। छह बजे नाइट ड्यूटी समाप्त करते ही मुझे निकल पडना था ताकि दिल्ली गुडगांव के ऑफिस टाइम वाले जाम से बच सकूं। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। घर से निकलते निकलते पौने आठ बज गये। आधे घण्टे में धौला कुआं पहुंच गया। फिर तो जाम मिलना ही था। ब्रेक तो चलो पैर से दब जाता लेकिन क्लच दबाते दबाते उंगलियां दुखने लगीं। फिर भी नौ बजे गुडगांव राजीव चौक, साढे नौ बजे मानेसर और दस बजे धारुहेडा।
सुबह बिना कुछ खाये चला था, अब भूख लगने लगी थी। याद आये नीमराना वाले अशोक भाई। फोन करके उन्हें बता दिया कि घण्टे भर में नीमराना पहुंच जाऊंगा। भाई खुश हो गये और इंतजार करने लगे। अब आगे ज्यादा ट्रैफिक नहीं था लेकिन ठण्ड और कोहरा काफी था। एक तो कोहरे के कारण पहले ही कम दिख रहा था, फिर सांस की नमी हेलमेट के शीशे पर जम जाती, और कम दिखने लगता। आखिरकार हिम्मत करके शीशा ऊपर उठाना पडा। ठण्डी हवा तो लगी लेकिन अब ज्यादा दूर तक दिखने लगा।
सवा ग्यारह बजे नीमराना पहुंच गया और अशोक भाई के बताये अनुसार उनके ऑफिस पहुंच गया। भूख पहले ही भयंकर लगी हुई थी, जाते ही उनके लंच बॉक्स पर टूट पडा। थोडी ही देर में पेट भरने की डकार आने लगी। थोडी गपशप हुई और एक घण्टे रुककर सवा बारह बजे भाई से विदा ली। दिल्ली में बैठकर मैंने जो कार्यक्रम बनाया था, मैं उससे सवा दो घण्टे पीछे चल रहा था। समय कवर करने के लिये बाइक की रफ्तार थोडी बढा दी। मौसम ने भी साथ दिया। धूप निकल आई।
आश्चर्यजनक रूप से ट्रैफिक बिल्कुल नहीं था। बाइक बिना कोई मेहनत किये 70 की रफ्तार से दौड रही थी। न कोई मुझे ओवरटेक कर रहा था, न मुझे ही किसी को ओवरटेक करना पड रहा था, न ही ब्रेक लगाने पड रहे थे। बस एक ही रफ्तार से आगे बढा जा रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि नींद आने लगी। यह बडी खतरनाक बात थी। एक जगह रुककर पानी पीया, मुंह धोया।
चन्दवाजी से एक रास्ता सीधे जयपुर शहर में चला जाता है और एक रास्ता दाहिने मुडकर बाईपास बन जाता है। विधान ने बता दिया था बाईपास पर पन्द्रह किलोमीटर आगे आमने-सामने दो पेट्रोल पम्प मिलेंगे, वहीं मिलते हैं। पौने तीन का टाइम हो रहा था जब मैं और विधान एक ढाबे पर मिले। हल्का-फुल्का कुछ खाना-पीना हुआ। विधान ने बताया कि आज विवेकानन्द जयन्ती है तो स्कूल में एक कार्यक्रम चल रहा है। सब बच्चे, सब अध्यापक बैठे हैं और तेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मैं समझ गया कि भाषण देना पडेगा। एक बार तो मन में आया कि बाइक स्टार्ट करूं और भाग जाऊं लेकिन स्कूल में जाना ही पडा।
यह एक इण्टर कॉलेज था। काफी बच्चे थे, कुछ अध्यापक थे। मेरे जाते ही हलचल शुरू हो गई। विधान ने पहले ही माहौल बना रखा था कि बहुत बडा कोई आने वाला है। एक कमरे में प्रदर्शनी थी जिसमें बच्चों और अध्यापकों ने अपना-अपना योगदान दे रखा था। पहले मुझे प्रदर्शनी दिखाने ले जाया गया। मौका मिलते ही मैंने विधान से पूछा कि भाई, भाषण देना पडेगा, यह सोच-सोचकर मुझे चक्कर आ रहे हैं। दो चार बातें बता दे ताकि मैं कुछ कह सकूं। अपना दिमाग बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा। विधान ने कहा कि तुझे चक्कर आ रहे हैं, वो मुझे पता है, तेरे पैर भी कांपेंगे, वो भी मुझे पता है; इसीलिये पहले ही ऐसा माइक स्टैंड लगाया है कि किसी को तेरे पैर न दिखाई पडे। दो-चार बातें भाई ने मुझे बताई कि ये बोल देना, वो बोल देना।
माइक पर बोलने में सबसे बडी समस्या है कि अपनी ही आवाज कई गुना बढकर सुनाई देती है। जैसे ही कहा- मैं नीरज..., बडे जोर की आवाज गूंजी- मैं नीरज...। सारा ध्यान अपनी ही आवाज सुनने में चला गया। सोचने लगा कि ऐसी भद्दी फटे बांस जैसी आवाज है मेरी? फिर तो पता नहीं क्या-क्या मुंह से निकला, क्या हुआ; लेकिन एक मिनट बाद ही मैं वहां से हट गया। भाषण पूरा हो गया। बच्चों और अध्यापकों ने तालियां बजाईं। फिर संयोजक महाराज माइक पर गये और बोले- प्यारे बच्चों! जैसा कि नीरज जी ने बताया कि ऐसा होता है, ये है, वो है; तब मुझे समझ में आया कि मैंने भाषण में क्या-क्या कहा था।
सवा चार बजे सबकी छुट्टी हो गई। विधान कार से आया था। उसने बताया कि वो टोल टैक्स बचाने के लिये ग्रामीण सडक से जायेगा। फलां जगह पहुंचकर हमारी प्रतीक्षा करना। अब मैंने सोचा कि जयपुर पार करने में ही पांच बज जाने हैं, फिर अन्धेरा हो जाना है। नींद भी आ रही है। इससे तो अच्छा है कि आज विधान के यहीं रुक लेते हैं। विधान का घर शहर में नहीं है बल्कि शहर से बाहर बाईपास के पास एक कालोनी में है। बिना कहीं रुके सीधे घर पहुंच गये।
कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च
bhut badiya neeraj bhai
ReplyDeleteधन्यवाद माथुर साहब...
Deleteक्या बात है नीरज भाई....वक्ता बन गए हो अब तो..... लेख अच्छा लगा पर चित्रों की कमी लगी ! लगे भी क्यों ना आपके पिछले लेखों में इतने सुंदर चित्र है कि इस लेख के चित्र कुछ फीके लगे ! खैर, अगले भाग का इंतज़ार रहेगा !
ReplyDeleteचौहान साहब, चित्रों की शिकायत मत किया करो। मेरा लक्ष्य कच्छ था और आपको पता है कि मैं रास्ते में फोटो नहीं खींचा करता। कच्छ पहुंच जाऊंगा, तो ढेर सारे चित्र मिलेंगे। धन्यवाद आपका।
Deleteक्या बात है नीरज भाई..
ReplyDeleteआपको भी बाद में पता चला की मेने बोला क्या है..
हां भाई, बाद में ही पता चला।
Deleteशरुआत अच्छी है। फोटो कुछ कम हैं।
ReplyDeleteफोटो की शिकायत नहीं करनी चाहिये अहमद साहब। आपको पता ही है कि आने वाली पोस्टों में बहुत फोटो मिलेंगे।
DeleteBhut badiya bhai
ReplyDeleteधन्यवाद अशोक भाई...
DeleteBANARS KI YATRA BHI KAR HI LO
ReplyDeleteकर रखी है। नीचे क्लिक करें:
Deletehttp://neerajjaatji.blogspot.in/2012/10/varanasi.html
नीरज़ , आपने बच्चों को जो भी बोला हो उनके के लिए फायदेम्मद रहेगा
ReplyDeleteधन्यवाद भवारी साहब...
Deleteआप ने क्या बोला वह महत्व पूर्ण नहीं है आप कार्यकरम मे शामिल हुये यह महत्व पूर्ण है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteनीरज भाई को सबसे पहले कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा की बधाई की आपके इतिहास में एक अध्याय और जुड़ गया बाकी आपसे मेरी एक शिकायत भी है की आप हमारे मन का संकोच भी मिटा दिया करो जो हम आपसे फेसबुक और व्हाट्स एप्प के माध्यम से पूछते है
ReplyDeleteउमेश जी, आपने पूछा,
Delete“श्रीमान जी मैं मसूरी जाना चाहता हूँ। हमारे लिए वहाँ 2 या 3 दिन क्या क्या देखने लायक है और शुरुआत कहाँ से करनी चाहिए?”
इसका मैं जवाब भी दे देता लेकिन इससे अगली लाइन ने मुझे जवाब न देने को बाध्य कर दिया- “Please tell me in fully details.”
मैं मसूरी की फुल्ली डिटेल नहीं बता सकता। इसके लिये क्षमा करें।
kya baat hai bhai lage raho
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
DeleteNeeraj ji bhut jaldi bike chalani sikh li aapne orr 70 80 ki speed m b chalane lag gye aap.
ReplyDeleteBut kaese ?
Kachh yatra ki shandar starting k lie shubhkamnaye
यह सब खाली सडक का कमाल है।
Deleteshabd kam pad jaate hain tumhare baare main comment karne par
ReplyDeleteधन्यवाद जी...
Deleteनए यात्रा लेख का सुभारम्भ.... बधाई हो,.....
ReplyDeleteपोस्ट अच्छी लगी... चलो अब आपके साथ कच्छ भी घूम लेंगे....
धन्यवाद गुप्ता जी...
Delete12 जनवरी को सुबह छह बजे निकलने की योजना थी। छह बजे नाइट ड्यूटी समाप्त करते ही मुझे निकल पडना था ताकि दिल्ली गुडगांव के ऑफिस टाइम वाले जाम से बच सकूं। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। घर से निकलते निकलते पौने आठ बज गये।
ReplyDeletenight duty ke bad bina soye bike chala di vo v jaipur tak, kitna risk lete ho.
yr apna toda to dhayan rakkha karo
अब तो जी नाइट ड्यूटी के बाद अपने रोजमर्रा के काम करने की इतनी आदत पड गई है कि कोई समस्या नहीं होती। वैसे, आपकी बात ठीक है। ध्यान रखूंगा।
Deleteबहुत ही उम्दा post नीरज भाई।
ReplyDeleteबड़ी इच्छा है आपसे, विधान और विपिन भाई से कभी मिलने कि.
मुझे भी अच्छा लगेगा आपसे मिलकर। वैसे नाम क्या है आपका? कान में ही बता दो।
Delete:-) हाहाहा , online display name के पीछे एक हास्यप्रद कहानी है , खैर, नाम संदीप है.
Deleteशुभकामनाये !!
बहुत ही उम्दा बधाई हो,.....
ReplyDeleteठंडी ठंडी वादियों से निकल कर अब कच्छ का रेगिस्तान देखेगे --लगे रहो मुन्ना भाई
ReplyDeleteMja aa gya padh kar.... Ab to jana hi hai PAKKA
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