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भुज के दर्शनीय स्थल

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16 जनवरी 2015
कल जब सोया था तो योजना थी कि आज पहले माण्डवी जाऊंगा और वहां से फिर लखपत के लिये निकल जाऊंगा। लेकिन इसके लिये सुबह जल्दी उठना पडता और यही अपनी कमी है। साढे आठ बजे उठा। सूरज सिर पर चढ आया था। माण्डवी के लिये काफी विलम्ब हो चुका था। फिर आज ही लखपत जाना सम्भव नहीं था। जाता भी तो भागमभाग करनी पडती और अन्धेरे में भी बाइक चलानी पडती। रास्ता भी पता नहीं कैसा हो। इसलिये अब माण्डवी जाने का विचार छोड दिया। इसके बजाय अब काला डूंगर जाऊंगा।
काला डूंगर जाऊंगा तो वापसी में भुज नहीं आऊंगा। पहले मुझे क्लोकवाइज कच्छ देखना था, अब एण्टी-क्लोकवाइज देखूंगा। रूट वही रहेगा। वापस भुज नहीं आऊंगा। इसलिये भुज शहर में जो दर्शनीय स्थल हैं, उन्हें अभी ही देख लेता हूं। कमरे का ताला लगाया, बाइक यहीं छोडकर पैदल ही निकल पडा।
शहर में ही हमीरसर झील है। भुज में जो भी कुछ दर्शनीय हैं, सभी इसके किनारे ही हैं। यह एक मानव निर्मित झील है जिसे राव खेंगरजी ने 1548 से 1584 के बीच में कभी बनवाया था। भुज चूंकि उनकी राजधानी थी, यहां पीने के पानी की कमी थी इसलिये यह झील बनवाई गई। आसपास की कई नदियों से इसमें पानी भरा जाता था। नदियां यहां की सदानीरा नहीं हैं, इसलिये पानी का सारा दारोमदार मानसून पर ही था।
झील के बीच में एक टापू भी है जिसे राजेन्द्र पार्क कहते हैं। जब मैं यहां गया, कोई पर्यटक नहीं था। बहुत सारे स्कूली बच्चे थे जो निश्चित ही स्कूल से बंक मारकर यहां आये थे। कुछ बच्चे अपने प्रेमियों और प्रेमिकाओं के साथ भी एकान्त में बैठे थे। अगर भुज का कोई निवासी इन पंक्तियों को पढ रहा है तो किसी दिन समय निकालकर अचानक इस टापू पर धावा मारें। क्या पता आपके बच्चे भी स्कूल की बजाय यहीं मिलें। बच्चों में बिगाड-सुधार जो भी होता है, स्कूली उम्र में ही होता है। बाद में समझ विकसित हो जाती है, अपनी करनी के वे खुद जिम्मेदार होने लगते हैं। लेकिन स्कूली उम्र के बच्चों पर अभिभावकों को निगाह रखनी चाहिये।
जाडों में भारत आने वाले विदेशी पक्षी भी यहां खूब थे। झील के उस तरफ प्रागमहल अपनी पूरी वैभवता के साथ खडा था।
यहां से निकलकर मैं प्रागमहल ही गया। इसके बगल में ही आईना महल है। पहले आईना महल में चलते हैं। इसे 1761 में राव लखपतजी द्वितीय ने बनवाया था। 2001 के भूकम्प में यह पूरी तरह तबाह हो गया और इसके अपेक्षाकृत कम तबाह हिस्से की मरम्मत करके एक संग्रहालय का रूप दे दिया। तबाही के निशान अब भी यहां खूब देखे जा सकते हैं। बडा भयंकर भूकम्प था वह। हजारों किलोमीटर दूर मेरठ में जब हम बच्चे गणतन्त्र दिवस पर राष्ट्रगान गा रहे थे तो कई तो चक्कर खाकर गिर भी गये थे। इसी से इसकी भयंकरता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। भुज उसका केन्द्र था।
इसमें प्रवेश शुल्क 30 रुपये है और कैमरे का शुल्क 50 रुपये। लेकिन वीडियोग्राफी नहीं कर सकते और फ्लैश नहीं मार सकते। जानबूझकर रोशनी इतनी कम की हुई है कि जिसके पास सस्ता कैमरा हो, उसे फ्लैश मारना ही पडेगा। मैं तो बच गया फ्लैश मारने से। हर कमरे में पहरेदार खडे रहते हैं जिनका काम सिर्फ यही है कि कोई फ्लैश मारे और उस पर जुर्माना लगा दें।
इस संग्रहालय में क्या क्या है, यह तो नहीं बताऊंगा। नीचे कुछ फोटो हैं, उन्हें देखकर अन्दाजा लग जायेगा। बाकी राजों-महाराजों ने जी खोलकर पैसा खर्च कर रखा है। पता नहीं वीरान कच्छ में इतनी आमदानी कहां से होती होगी?
यहां से निकलते हैं तो सामने ही प्रागमहल है। इसका निर्माण 1865 में राव प्रागमलजी द्वितीय ने शुरू करवाया था। तब तक यहां अंग्रेजी राज स्थापित हो चुका था या फिर होने वाला था। इसलिये आईना महल के विपरीत इसे विदेशी यानी इटैलियन कारीगरों ने इटैलियन शैली में ही बनाया। मुझे नहीं पता कि इटैलियन शैली कैसी होती है, विकीपीडिया से पढकर पता चलता है। लगान फिल्म की शूटिंग का कुछ हिस्सा यहां भी शूट हुआ था। हम दिल दे चुके सनम की भी यहीं शूटिंग हुई थी। इसमें भी प्रवेश के लिये तीस रुपये और कैमरे के लिये पचास रुपये की पर्ची कटती है।
इसका मुख्य आकर्षण है मुख्य हॉल। क्या भव्य हॉल है यह! कुछ फोटो लगे हैं जिसमें इसमें कच्छ के महाराजा और अंग्रेजों की मीटिंग होती हुई दिखाई गई है। एक फोटो में अमिताभ बच्चन साहब भी खडे हैं। गौरतलब है कि गुजरात पर्यटन को ऊंचाईयों पर पहुंचाने की जिम्मेदार बच्चन साहब ने ही ले रखी है। कुछ जंगली जानवरों के सिर भी रखे हैं जो पता नहीं असली हैं या नकली लेकिन असली ही लगते हैं। पहले शिकार करना बडे गर्व की बात होती थी। लेकिन अब यह अपराध होता है। हमें वर्तमान में चलना चाहिये। शिकार की इस तरह की नुमाइश पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिये। यह तब भी अमानुषिक था, आज भी अमानुषिक है। खैर।
प्रागमहल में एक घण्टाघर भी है। इसकी भी मरम्मत हो गई है और अब दर्शक इसकी सीढियां चढकर ऊपर जा सकते हैं। मैं भी ऊपर गया। यहां से भुज शहर और इसके चारों ओर का शानदार नजारा दिखता है।
इनके अलावा सूक्ष्म कलाकारी जो हर राजमहल में होती है, वो भी यहां है। जबरदस्त खर्च कर रखा है महाराजों ने। यहां आकर लगता है कि आईना महल तो आईना ही था, असली तो यह है। मैं फिर से सोचने लगा कि बंजर, सूखे कच्छ में क्या इतनी आमदनी हो जाती थी? देश के जो हरे-भरे इलाके हैं, वहां ऐसा कुछ नहीं बना। और बना भी तो कहां? या तो थार में या फिर कच्छ में।


भुज की धुन्ध भरी सुबह। सामने भुजिया पहाडी दिख रही है।

हमीरसर झील के टापू पर जाने का रास्ता

टापू से दिखता प्रागमहल






प्रागमहल के सामने स्वामीनारायण मन्दिर

प्रागमहल

आईना महल की वर्तमान हालत

भूकम्प ने बहुत नुकसान पहुंचाया था।

आईना महल के अन्दर संग्रहालय है।














टावर के ऊपर से दिखता भुज शहर




अगला भाग: सफेद रन


कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च




Comments

  1. काफी दिनों बाद इतने शानदार फोटो देखने को मिले.!
    बहुत बढ़िया नीरज भाई..

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  2. धाराप्रवाह लिखते हो भाई, पोस्ट समाप्त करने के बाद ही ध्यान हटता है।
    "इसका मुख्य आकर्षण है मुख्य हॉल। क्या भव्य हॉल है यह!" सही में बहुत ही खूबसूरत है।

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. sahandaar yatra photo ka kya kahna

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  5. " अगर भुज का कोई निवासी इन पंक्तियों को पढ रहा है तो किसी दिन समय निकालकर अचानक इस टापू पर धावा मारें। क्या पता आपके बच्चे भी स्कूल की बजाय यहीं मिलें। "

    बहुत बढ़िया pankti....

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  6. भैया बाइक का रिव्यु कब दे रहे हो मुझे बाइक खरीदनी है

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    1. सर जी, यह यात्रा-वृत्तान्त ही बाइक का रिव्यू है। बाकी बाइक बहुत अच्छा काम कर रही है। अभी तक कोई समस्या नहीं आई है।

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  7. यह एक शानदार फोटो और रोचक जानकारी वाला पोस्ट है । जहा तक " अगर भुज का कोई निवासी इन पंक्तियों को पढ रहा है तो किसी दिन समय निकालकर अचानक इस टापू पर धावा मारें। क्या पता आपके बच्चे भी स्कूल की बजाय यहीं मिलें। "वाली बात है । यह जानकारी आम तौर पर अभिभावकों को रहती है।

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  8. Nature and grandeur . wah neerajji

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  9. Nature and grandeur . wah neerajji

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  10. awesome,really very good,

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  11. for your kind information mr. neeraj jat ji you did not go to dalhousie, badrinath, valley of flowers,and so many places in h.p.and uk.

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  12. तस्वीरें लाजवाब है नीरज भाई

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  13. बिना फ़्लैश के भी फ़ोटो बढिया हैं।

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