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फॉसिल पार्क से डेढ-दो किलोमीटर आगे थान मठ है। एक धर्मनाथ नाम के योगी थे जिन्होंने बारह वर्ष तक सिर के बल खडे होकर तपस्या की थी। कहते हैं कि उनकी तपस्या से भगवान प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा। उन्होंने वर तो मांगा नहीं, बल्कि अ-वर मांग लिया- मैं सीधा होकर जहां भी देखूं, वो स्थान बंजर हो जाये। भगवान ने कहा तथास्तु और कच्छ का एक बडा इलाका बंजर हो गया।
यह मठ एक पहाडी के नीचे बना हुआ है। इस पहाडी का नाम है धीणोधार पहाडी। यह एक ज्वालामुखी था जो अब सुप्त हो चुका है। सैटेलाइट से देखने पर इसकी चोटी पर ज्वालामुखी जैसा मुख भी दिखता है हालांकि लाखों साल बीत जाने के कारण काफी टूट-फूट हो चुकी है। ऊपर पहाडी पर भी एक मन्दिर बना है जहां केवल पैदल ही जाया जा सकता है। एक रास्ता तो यहां मठ से ही है जो लम्बा है। इसके अलावा दूसरा रास्ता पहाडी के दूसरी तरफ से है जो छोटा और सुविधाजनक है। समयाभाव के कारण हम वहां नहीं जा पाये। कच्छ आने का दूसरा बहाना मिल गया।
मठ के बाहर मोटरसाइकिलें खडी कीं, जूते उतारकर अन्दर प्रवेश कर गये। बाहर ही एक चेला बैठा था। वह हमारे साथ हो लिया और पूरा मठ इत्मिनान से दिखाया। काफी बडा मठ है, कई मन्दिर बने हैं, बहुत सी कहानियां हैं; सब उसने बताईं। न हम जल्दी में थे, न उसे कोई जल्दी थी। पर्यटकों से दूर- बहुत दूर- इस डरावने खण्डहर की तरह दिखने वाले मठ में लगता था कि हमारे अलावा बस वो चेला ही था।
योगियों का कोई सम्प्रदाय होता है- कनफटा सम्प्रदाय। उनकी यह तपोभूमि है। यह योग वो बाबा रामदेव वाला योग नहीं है, बल्कि किन्हीं पारलौकिक शक्तियों का कुछ होता है। विज्ञान इन्हें नहीं मानता लेकिन मैं इन्हें मानता हूं और थोडा बहुत जानता भी हूं। मानने और जानने का मतलब सिर झुकाना नहीं होता। यहां बहुत सारी बातें हैं, बहुत सारे संकेत हैं; मुझे इनमें से किसी की भी जानकारी नहीं थी। चेले ने बताया तो कुछ सिर में घुसीं, ज्यादातर ऊपर ही ऊपर उड गईं। मेरी ही तरह मेरे सहयात्री इन्दौरवासी भी थे।
यहां चार देग रखी थीं। चेले ने बताया कि मुसलमानी काल में ये सात देगें मक्का से आकाश मार्ग से अजमेर जा रही थीं। इनमें कुछ खाने का सामान था। कच्छ में अकाल पडा था। गुरूजी ने अपने योगबल से इन चार देगों को यहां रोक लिया और तीन देगें अजमेर चली गईं। बताते हैं कि अभी भी अजमेर दरगाह में वे तीन देगें रखी हैं। हालांकि यह बात पूरी तरह सच तो नहीं हो सकती खासकर वायुमार्ग वाली लेकिन इसमें कुछ न कुछ सच्चाई अवश्य हो सकती है। गौरतलब है कि गुरू नानक भी इसी रास्ते मक्का-मदीना गये थे। उधर लखपत में बडा बन्दरगाह हुआ करता था, विदेशों से काफी व्यापार होता था। अजमेर था ही मुसलमानों का बडा केन्द्र। अजमेर और मक्का के बीच आवागमन के लिये यही मार्ग सबसे सुविधाजनक होता था। तो कोई व्यापारी या श्रद्धालु लाया होगा मक्का से इस तरह की सात देगें जिनमें से चार को थान मठ वालों ने अपने यहां रखवा लिया। राजी खुशी तो उन्होंने दिये नहीं होंगे, तो थोडा बहुत खून-खराबा भी हुआ होगा। बाद में कहानियां तो बन ही जाती हैं।
एक मन्दिर ऐसा था जिसकी परिक्रमा भी होती थी। परिक्रमा पथ में घुप्प अन्धेरा था। घुप्प अन्धेरे में सुरंगनुमा रास्ते पर चलना बहुत अच्छा लगा। हमने मजे-मजे में दो बार परिक्रमा की- मजा नहीं आया, एक बार और करते हैं। पहली बार तो संभल-संभलकर चलते रहे, दूसरा चक्कर तो दौडते हुए काटा। घुप्प अन्धेरे में दौडना भी अच्छा लग रहा था। चेले से पूछा कि इसमें उजाला क्यों नहीं कर रखा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा- फिर परिक्रमा में आनन्द थोडे ही आयेगा। सही बात थी।
गुरूजी यहां नहीं थे लेकिन चेले ने हमें उनका कक्ष भी दिखाया। शान्त वातावरण तो था ही, हम यहीं बिछी एक चटाई पर बैठ गये। आनन्द आ गया चार मिनट आंख बन्द करके बैठने में। चेले ने चाय लाकर दी। हम अगर यहां दो घण्टे भी देर से आते तो यहीं रुक जाते। रुकने और खाने की कोई समस्या यहां नहीं है और वो भी फ्री में।
हमारे यहां रहते एक और बाबाजी आये। बडी कडक आवाज थी, ऊंचा डील-डौल था और साथ में दो चेले भी थे। वह बाबा शायद यहां पहले भी आ चुका था और अपने चेलों को ‘तीर्थयात्रा’ करा रहा था। भाषा हरियाणवी-राजस्थानी का मिश्रण थी जिससे पता चल रहा था कि वो रेवाडी भिवानी के आसपास कहीं का था। बातचीत हुई तो पता चला कि जाखल में उनका कोई आश्रम है। मुझे भी अपने आश्रम आने का आमन्त्रण दिया, फोन नम्बर भी दिया और कह दिया कि एक बार याद दिला देना कि थान मठ में मिले थे। मैं हां-हां तो करता रहा लेकिन भला क्यों किसी आश्रम में जाने लगा?
अगला भाग: लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च
bhai nayi nayi jaankari to aap se hi mil
ReplyDeletesakti hi sahndaar gumakdi aur photo to
neeraj ke mast aa te hi hai
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteलगता है मैं खुद ही आपके साथ ही घूम रहा हूँ आपको साधुवाद है और शादी की शुभकामनाये भी
ReplyDeleteधन्यवाद सना ज़ेवरात जी...
Deleteभाई हंडियां उडने के किस्से तो बहुत सूने है पर यह देग तो बडे विशाल है जरूर कोई जिन्न लेकर आ रहा होगा मक्का से.....
ReplyDeleteहा हा हा...
Deleteशानदार जानकारी और मजेदार किस्से।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
DeleteMajedar lekh aur shadi ki lakh lakh badhai.
ReplyDeleteधन्यवाद जी...
Deleteसुन्दर लेख चित्र और ढेर सारी जानकारी के लिए आपको धन्यवाद।
ReplyDeleteऔर शादी की फिर से ढेरो बधाईया।
धन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteकच्छ आने का दूसरा बहाना मिल गया।
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अब तो 'भाभी' जी के साथ ही आना पडेगा ! ...
ऑफ कोर्स.... बिल्कुल...
DeleteStory of ‘flying deghs’ is really interesting and thought worthy.
ReplyDeleteVery nice and informative post.
धन्यवाद सन्दीप भाई...
Deletephoto bahut achhe hai. 2 balk wala photo ghana achha hai.
ReplyDeleteधन्यवाद माथुर साहब...
Deleteबाबा जी की जय हो, जाटलैंड मोडे भी जाटों जैसे ही मिलेगें।
ReplyDeleteअस्सलाम अलैकुम भाई। मेरा नाम मुहम्मद नादिर है मैं लखनऊ में प्राइमरी टीचर हूँ घूमने का बेहद शौक़ीन हूँ। उसी के बारे में पढ़ने का शौक भी रखता हूँ तभी आपको पढ़ने का मौका मिला। आप बहुत ही अच्छा लिखते हैं नीरज जी। आपको शादी की बहुत बधाई और उम्मीद करता हूँ कि शादी के बाद भी आपका ये सफ़र किसी न किसी रूप में जारी रहेगा।।।
ReplyDeleteAjmer ke Beawar ke pas bhi ek siddh yog peeth h .kabhi hoke aana .
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