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मुझे पिंगलेश्वर की कोई जानकारी नहीं थी। सुमित और गिरधर के पास एक नक्शा था जिसमें नलिया और कोठारा के बीच में कहीं से पिंगलेश्वर के लिये रास्ता जाता दिख रहा था। मोबाइल में गूगल मैप में दूरी देखी, मुख्य सडक से 16 किलोमीटर निकली। तय कर लिया कि पिंगलेश्वर भी जायेंगे। बाइक का फायदा।
एक बजे नारायण सरोवर से चल पडे और सवा दो बजे तक 70 किलोमीटर दूर नलिया पहुंच गये। सडक की तो जितनी तारीफ की जाये, उतनी ही कम है। नलिया में कुछ समय पहले तक रेलवे स्टेशन हुआ करता था। उस जमाने में भुज से मीटर गेज की लाइन नलिया आती थी। गेज परिवर्तन के बाद भुज-नलिया लाइन को परिवर्तित नहीं किया गया और इसे बन्द कर दिया गया। अब यह लाइन पूरी तरह खण्डहर हो चुकी है और इस पर पडने वाले स्टेशन भी। उस समय तक नलिया भारत का सबसे पश्चिमी स्टेशन हुआ करता था। इसे देखने की मेरी बडी इच्छा थी लेकिन शानदार सडक और इस पर बाइक चलाने के आनन्द के आगे यह इच्छा दब गई। नलिया ‘फिर कभी’ पर चला गया।
नलिया से 18 किलोमीटर दूर कोठारा है। इससे दो किलोमीटर पहले एक रास्ता पिंगलेश्वर के लिये जाता है। हम इसकी ताक में थे, इसलिये आसानी से मिल गया अन्यथा गुजराती में ‘पिंगलेश्वर मन्दिर’ का छोटा सा बोर्ड समझ में नहीं आता और हम कोठारा जा पहुंचते। यहां से मन्दिर की दूरी 16 किलोमीटर है। आठ किलोमीटर आगे वांकू गांव तक तो अच्छी सडक है, उसके बाद आठ किलोमीटर बेहद खराब। गुजरात की पहली खराब सडक मिली। वांकू के बाद पूरा रास्ता बडी बडी पवनचक्कियों के बीच से गुजरता है। चक्कियों के ब्लेडों के घूमने की आवाज भी सुनी जा सकती है।
पता चला कि पिंगलेश्वर का कोई पौराणिक महत्व नहीं है, लेकिन यह स्वयंभू शिवलिंग है। इसके अलावा यहां का वातावरण मुझे बडा पसन्द आया। बिल्कुल ग्रामीण और कोई चूं-चां नहीं। यूं समझिये कि यहां बस हमीं थे, कुछ स्थानीय थे। एमपी और दिल्ली की बाइकों को लोग बडे चाव से देख रहे थे। मन्दिर के सामने ही एक छोटी सी दुकान है जहां प्रसाद और टॉफी वगैरह मिल जाती हैं। भूखे हैं तो भूखे ही रहेंगे जब तक मन्दिर में ‘लंगर’ का समय न हो जाये। हमारे जाने तक यह समय निकल चुका था, इसलिये हम खाली पेट ही रहे।
मन्दिर से दो किलोमीटर दूर समुद्र तट है। सडक ज्यादा अच्छी नहीं है लेकिन एक कोने में दुबका पडा यह तट एकदम शान्त और साफ-सुथरा है। सडक यहां आकर एकदम समाप्त हो जाती है। गाडी खडी करो, सामने दिख रहे छोटे से टीले पर चढ जाओ और आपके सामने होगा अथाह समुद्र- अरब सागर। पीछे मुडकर देखोगे तो दूर-दूर तक पवनचक्कियां ही पवनचक्कियां दिखाई देंगी।
यहां कोई दुकान नहीं है। बस आप होते हैं और लहरों की आवाज होती है। रेत पर घण्टों बैठे रहो, ऐसा माहौल है।
गूगल मैप के अनुसार यहां से कोठारा जाने का एक दूसरा मार्ग भी है। मैं आठ किलोमीटर उस खराब सडक पर नहीं चलना चाहता था, इसलिये स्थानीय लोगों से उस दूसरे रास्ते की जानकारी ले ली। और उसी पर चल दिये। इससे भी मुख्य सडक 16 किलोमीटर ही है लेकिन यह बहुत अच्छी बनी है और कहीं भी खराब नहीं है। हां, एक बार समस्या तब आई जब एक टी-पॉइंट पर हमें कोठारा जाने के लिये बायें मुडना था और हमने इसकी चौडाई देखकर सोचा कि यही माण्डवी वाली सडक है और दाहिने मुड गये। जल्दी ही हमें सन्देह हो गया और एक स्थानीय से पूछकर ठीक रास्ते पर आये।
कोठारा से एक किलोमीटर ही चले होंगे कि दूर एक रेलवे फाटक जैसा कुछ दिखाई दिया। पास गये तो यह रेलवे फाटक ही था। भुज से आने वाली रेलवे लाइन चूंकि अब अनुपयोगी हो गई है इसलिये प्रशासन ने रेलवे लाइन के ऊपर सडक बना दी है लेकिन सडक के दोनों ओर रेलवे लाइन अभी भी कंटीली झाडियों के बीच मौजूद है। नलिया भले ही न जा पाये हों लेकिन उस रेलवे लाइन के अवशेष यहां देखकर हम खुश हो गये।
कोटेश्वर-नलिया सडक |
कोठारा से दो किलोमीटर पहले वो तिराहा जहां से पिंगलेश्वर के लिये सडक जाती है। |
पिंगलेश्वर महादेव मन्दिर |
गिरधर माली रेत पर नाम लिख रहा है। |
पिंगलेश्वर बीच की पार्किंग |
भुज-नलिया रेलवे लाइन जो अब हमेशा के लिये बन्द हो चुकी है। |
अगला भाग: माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च
bhai gujraat ka sundar vivran
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteसुबह सुबह आपकी पोस्ट पढ़कर दिन अच्छा जाता है।
ReplyDeleteफोटो नंबर 9 में आपने कुत्ते को ऑस्ट्रेलियाई कंगारू बना दिया।
हा हा हा... आपकी टिप्पणी पढ कर मुझे भी लगा कि वाकई वो कंगारू जैसा दिख रहा है।
DeleteGood going with bike...
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई...
Deleteकोटेश्वर-नलिया सडक ................
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...क्या गजब की फोटो है ... दिल खुश हुआ ... नीरज
धन्यवाद सर जी...
DeleteBhai Neeraj Maja aa gya .....
ReplyDeleteउत्तम रचना
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