19 फरवरी 2018
पूर्वोत्तर में इतने दिन घूमने के बाद अब बारी थी दिल्ली लौटने की और इस यात्रा के आखिरी रोमांच की भी। सिलीगुड़ी से दिल्ली लगभग 1500 किलोमीटर है और हमारे पास थे तीन दिन, यानी 500 किलोमीटर प्रतिदिन का औसत। यानी हमें पहले दिन मुजफ्फरपुर रुकना पड़ेगा और दूसरे दिन लखनऊ। गूगल मैप के सैटेलाइट व्यू में मैंने पहले ही देख लिया था कि इस्लामपुर शहर को छोड़कर पूरा रास्ता कम से कम चार लेन है। इसका साफ मतलब था कि हम एक दिन में 500 किलोमीटर तो आसानी से चला ही लेंगे।
लेकिन कुछ समस्याएँ भी थीं। यू.पी. और बिहार के बड़े पर्यटन स्थलों को छोड़कर किसी भी शहर में होटल लेकर ठहरना सुरक्षित और सुविधाजनक नहीं होता। अगर आप तीस की उम्र के हैं और आपकी पत्नी भी आपके साथ है, तब तो बहुत सारी अनावश्यक पूछताछ होनी तय है। हम इन सबसे बचना चाहते थे। हमारे रास्ते में बिहार में दरभंगा और मुजफ्फरपुर बड़े शहर थे, लेकिन वहाँ शून्य पर्यटन है; इसलिए निश्चित कर लिया कि बिहार में कहीं भी होटल लेकर नहीं रुकना। उससे आगे यू.पी. में गोरखपुर है, जहाँ ठहरा जा सकता है। तो हम आज कम से कम गोरखपुर तक पहुँचने की योजना बना रहे थे।
लेकिन गोरखपुर 700 किलोमीटर दूर है और मैंने कभी भी इतनी दूर तक एक दिन में मोटरसाइकिल नहीं चलाई थी। पता नहीं आज भी चला पाऊँगा या नहीं। इसलिए फेसबुक पर कल ही आज की यात्रा के बारे में लिख दिया था। इसका नतीजा यह हुआ कि बिहार के गोपालगंज से एक मित्र ने अपने घर पर आने का न्यौता दे दिया और यू.पी. के लगभग प्रत्येक शहर से आमंत्रण मिले। हमें अपने फेसबुक मित्रों के घर पर ठहरने में कोई समस्या नहीं आती और डर भी नहीं लगता, इसलिए ऐसे सभी मित्रों को नोट कर लिया, जहाँ आवश्यकता पड़ने पर हम रुक सकते थे।
गोपालगंज 600 किलोमीटर दूर है और अगर हम लेट भी हो जाएँगे, तब भी गोपालगंज में कोई दिक्कत नहीं आएगी। अब हमारी होटल लेकर रुकने की सारी समस्याएँ हल हो गईं।
तभी फैजाबाद से अपर्णा जी ने आग्रह किया - “नीरज, एक दिन फैजाबाद रुको।”
अपर्णा जी से हम डेढ़ साल पहले एवरेस्ट बेसकैंप जाते समय मिल चुके थे और वे उन गिने-चुने मित्रों में से एक हैं, जिनका कहा टालना लगभग असंभव होता है। अब हमने सोच लिया कि पहले दिन 600 किलोमीटर चलकर गोपालगंज रुकेंगे और दूसरे दिन 250 किलोमीटर चलकर फैजाबाद। अपर्णा जी से बता दिया कि 20 तारीख को हम आपके यहाँ आएँगे।
लेकिन रात जब सोने लगे तो पहली बार यह बात दिमाग में आई - “क्यों न पहले दिन फैजाबाद ही रुका जाए?”
‘कल हम फैजाबाद रुकेंगे’ यह निश्चय करके सुबह तीन बजे का अलार्म लगाकर सो गए।
लेकिन रात दो बजे मच्छरों ने आक्रमण कर दिया और नींद खराब हो गई। हम इतनी लंबी मोटरसाइकिल यात्रा अधूरी नींद से उठकर नहीं करने वाले थे। इसलिए ऑडोमॉस लगाई और पाँच बजे का अलार्म लगाकर फिर से सो गए।
हमने पहले भी कई बार एक दिन में 500 किलोमीटर से ऊपर बाइक चलाई थी, इसलिए इस तरह की लंबी यात्राओं के बारे में काफी अंदाजा था। और यह भी पता था कि अगर हमें 40 किलोमीटर प्रति घंटे का औसत चाहिए, तो 80 की स्पीड़ से बाइक चलानी पड़ेगी। लेकिन लगातार 80 की स्पीड़ से बाइक चलाना भी आसान नहीं होता। और अगर हमने 40 का औसत हासिल कर भी लिया, तब भी हम रात बारह बजे तक फैजाबाद नहीं पहुँच पाएँगे।
अगर फैजाबाद पहुँचना है, तो प्रति घंटे 50 का औसत चाहिए। यानी 100 की स्पीड़ से चलना पड़ेगा। 100 की स्पीड़ से आप कुछ दूर तो चल सकते हैं, लेकिन बहुत देर तक नहीं।
बड़ा हिसाब-किताब लगाना पड़ता है साहब, इस तरह की यात्राओं से पहले। और सारा हिसाब लगाने के बाद तय हुआ कि अगर हमने शुरू के 200 किलोमीटर तक 50 का औसत बनाए रखा, यानी अगर सुबह 4 घंटे में 200 किलोमीटर चल दिए; तो रात बारह बजे तक फैजाबाद पहुँच सकते हैं, अन्यथा नहीं।
“तो 200 किलोमीटर चलने के बाद ही अपर्णा जी को बताएँगे कि हम 20 तारीख को नहीं, बल्कि 19 तारीख को ही आ रहे हैं।”
उठने के बाद सबसे पहला काम - नहाना। ताजगी रहती है और अगले चार-पाँच घंटे तक आलस नहीं आता।
और पौने पाँच बजे चल दिए। 18 किलोमीटर दूर चलकर पेट्रोल डलवाया और बाइक का मीटर जीरो कर दिया। अब तक छह बज चुके थे। सोच लिया कि हर पचास किलोमीटर बाद रुकेंगे और दूरी व समय नोट करते चलेंगे। इससे आसानी से पता चलता रहेगा कि हम 50 के औसत से चल रहे हैं या नहीं।
अभी अंधेरा ही था और ट्रैफिक नहीं के बराबर था।
और उजाला होने के बाद जब पहली बार ‘लखनऊ - 936 किलोमीटर’ लिखा देखा तो हैरत भी हुई। लखनऊ से फैजाबाद 100 किलोमीटर से थोड़ा ही ज्यादा है, तो हमने इसे 836 किलोमीटर पढ़ा। यानी आज हमें अभी भी 836 किलोमीटर चलना है। यकीन नहीं हो रहा था खुद पर कि ऐसा निर्णय ले रखा है हमने।
इस्लामपुर शहर सुबह-सुबह ही पार हो गया। लगता था कि अभी कोई भी नहीं उठा। शहर के भीतर सड़क दो-लेन है, लेकिन पार करने के बाद जब फिर से चार-लेन मिल गई, तो बड़ी राहत मिली। अब हमें दिल्ली तक कहीं भी बिना डिवाइडर की सड़क नहीं मिलेगी।
दालकोला बॉर्डर पर बिहार में प्रवेश करने के बाद एक ढाबे पर नाश्ता करने रुक गए। चाय के साथ पूरी-सब्जी। सस्ती भी और अच्छी भी।
अगर आप नक्शा देखेंगे तो पाएँगे कि किशनगंज-दालकोला-पूर्णिया-अररिया मिलकर अंग्रेजी के ‘U’ जैसा मार्ग बनाते हैं। दूरी 100 किलोमीटर है। लेकिन एक रास्ता किशनगंज से बहादुरगंज होता हुआ भी अररिया जाता है। यह 70 किलोमीटर लंबा है। मेरी इच्छा शुरू में इसी रास्ते से जाने की थी, लेकिन कटिहार के रहने वाले एक मित्र ने सुझाव दिया कि पूर्णिया होते हुए जाना ही ठीक रहेगा, तो बहादुरगंज से जाना रद्द कर दिया। भले ही इस रास्ते 30 किलोमीटर ज्यादा चलना पड़ा हो, लेकिन यह चार-लेन का है और शानदार बना है।
इस सड़क को चार-लेन बने हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। इससे पहले यह दो-लेन ही थी और जाहिर है कि डिवाइडर नहीं था। तो स्थानीय लोगों की अभी भी वही दो-लेन वाली आदत पड़ी हुई है। स्थानीय गाड़ियाँ, मोटरसाइकिलें, बसें, ट्रक आदि रोंग साइड में डिवाइडर से लगकर खूब चलते हैं और ऐसे वाहन हमारे लिए मुसीबत बने हुए थे। हालाँकि रोंग साइड चलने का चलन पूरे देश में है, लेकिन बाकी जगहों पर डिवाइडर से दूर सबसे बाहर वाली लेन में चलते हैं, जबकि यहाँ सबसे भीतर वाली लेन में। ऐसा चलन पूरे बिहार में मिला और यू.पी. में कुशीनगर तक भी ऐसा ही रहा। फिर अगले दिन शाहजहाँपुर के पास भी यही प्रवृत्ति देखी गई, क्योंकि वहाँ भी हाल ही में चार-लेन बनी है।
जब तक तीन-चार सालों में तीन-चार हजार लोग मर नहीं जाएँगे, तब तक लोगों को ठीक लेन में चलने की महिमा समझ नहीं आएगी। अगर किसी को पाँच किलोमीटर पीछे जाना हो और पचास मीटर आगे ही ‘यू-टर्न’ हो, तो लोग पचास मीटर आगे जाकर ‘यू-टर्न’ नहीं लेते, बल्कि पाँच किलोमीटर रोंग साइड में चल पड़ते हैं।
...
रात पौने बारह बजे जब फैजाबाद पहुँचे तो बाइक का मीटर 870 किलोमीटर दिखा रहा था। यानी आज हमने 888 किलोमीटर की दूरी तय की। यह एक दिन में बाइक से तय करने के लिए बहुत ज्यादा, बहुत ही ज्यादा दूरी है। आप कभी भी इतना चलाने की कोशिश मत करना। भविष्य में हम भी नहीं चलाएँगे इतना।
अगले पूरे दिन फैजाबाद में ही रुके रहे। सोते-सोते दोपहर हो गई और फिर उठने के बाद चलने का मन नहीं किया।
अपर्णा जी के पुत्र की शिकायत थी कि मैंने अपनी किताब ‘हमसफर एवरेस्ट’ में उसका नाम नहीं लिखा, तो इस बार उसका भी नाम लिखने का वादा कर दिया।
उसका नाम है यश और उसकी छोटी बहन का नाम है आर्ना। आर्ना की दीप्ति से बड़ी जल्दी दोस्ती हो गई और पूरे दिन दोनों साथ ही खेलती रहीं।
21 फरवरी को सुबह सवेरे ही फैजाबाद से निकल पड़े। लखनऊ में अजय सिंह राठौड़ अपने घर से 15 किलोमीटर दूर मिलने आए। बड़ा अच्छा लगता है, जब कोई किसी ‘फेसबुक मित्र’ से मिलने अपने पचास काम छोड़कर आता है। हम दिल्ली वालों को यह आदत अभी तक नहीं पड़ी है। और शायद पड़ेगी भी नहीं। मुझे अगर पाँच किलोमीटर दूर भी जाना होता, तो शायद मैं भी कोई न कोई बहाना मार देता।
शाहजहाँपुर में हांडी-पनीर खाते और खिलाते हुए नीरज पांडेय जी ने पूछा - “क्या इस यात्रा पर भी किताब लिखोगे?”
“हाँ सर जी… और आखिरी पन्ने पर आपका भी नाम होगा।”
ये हाल ही में प्रकाशित हुई मेरी किताब ‘मेरा पूर्वोत्तर’ के ‘सिलीगुड़ी से दिल्ली मोटरसाइकिल यात्रा’ चैप्टर के कुछ अंश हैं। किताब खरीदने के लिए नीचे क्लिक करें:
सिलीगुड़ी से चलने के एक घंटे बाद जब यह दिखा तो होश आया... आज हमने बहुत दूर का टारगेट बना लिया है... फैजाबाद पहुँचकर जब आज की यात्रा समाप्त होगी, तो लखनऊ लगभग 100 किलोमीटर रह चुका होगा... |
दालकोला बॉर्डर पर बिहार में प्रवेश करते ही स्वादिष्ट नाश्ता... |
यह लोकल ट्रक नहीं है... इसका मतलब है कि बेचारा किसी को बचाने के चक्कर में खुद बलि हो गया... |
बिहार में बहार... |
कोसी महासेतु... बगल में रेल का नया ब्रॉडगेज पुल है... |
कोसी के तटबंध का मरम्मत कार्य... |
डॉलर वाले चायवाले... पाँच रुपये की चाय, पाँच का बिस्कुट का पैकेट... |
लक्ष्मीजी के ऊपर डॉलर विराजमान... |
मोतीहारी जिले में... मतलब पूर्वी चंपारण जिले में... |
गोपालगंज के पास धर्मेंद्र कुशवाहा जी से मुलाकात हुई... |
गोपालगंज में विनय सिन्हा जी से क्षणिक मुलाकात हुई... |
लखनऊ में अजय सिंह राठौड़ जी... |
मैगलगंज बाईपास पर जब भगे जा रहे थे, तभी ... “बाइक रोको, बाइक रोको” ... “क्या हुआ?” ... “यह तो गुलाब जामुन का शहर है।” |
देख नजारे यू.पी. के... |
शाहजहाँपुर में नीरज पांडेय जी और उनके मित्र के साथ... |
वैसे तो हम लंबी बाइक यात्राओं में भरपेट नहीं खाते... लेकिन सामने रखे हांडी पनीर को कैसे नकार देते?... |
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नीरज भाई हमेशा की तरह बेहतरीन यात्रा लेख, आपने शाहजहांपुर का जिक्र किया अच्छा लगा । मेरा भी घर शाहजहांपुर जिले में पलिया मार्ग पर पुवायां तहसील में पड़ता है। सभी फोटो अच्छे हैं खासतौर से डॉलर वाली
ReplyDeleteचाय की दुकान की फोटो ।
आप को बहुत बहुत धन्यवाद भईया क्यो की आप की इसी यात्रा से प्रेरित हो कर हम ने भी अकेले बाइक से सिक्किम की यात्रा 14 घंटे में पूरी की।इधर से जाते समय हम अररिया से बहादुरगंज हो कर निकले थे क्यो की वो रोड नक्सलवाड़ी हो कर निकलती है हमे देखना था कि ये नक्सलवाड़ी कैसा क्षेत्र है हालांकि रोड अभी बन रही है
ReplyDeleteवापसी में हम ने भी इस्लामपुर पूर्णिया वाला रोड़ लिया था
Bahut acha lekh
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