8 फरवरी 2018
जोवाई से डौकी जाने के लिए जिलाधिकारी कार्यालय के सामने से दाहिने मुड़ना था, लेकिन यहाँ बड़ी भीड़ थी। मेघालय में चुनावों की घोषणा हो चुकी थी और नामांकन आदि चल रहे थे। उसी के मद्देनजर शायद यहाँ भीड़ हो। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि हमें दाहिने डौकी की ओर जाता रास्ता नहीं दिखा और हम सीधे ही चलते रहे। हालाँकि भीड़ एकदम शांत थी और शोर-शराबा भी नहीं था।
आगे निकलकर एक महिला से रास्ते की दिशा में इशारा करके पूछा - “डौकी?”
उन्होंने अच्छी तरह नहीं सुना, लेकिन रुक गईं। मैंने फिर पूछा - “यह रास्ता डौकी जाता है?”
“इधर डौकी नाम की कोई जगह नहीं है।” उन्होंने टूटी-फूटी हिंदी-अंग्रेजी में कहा।
हमें नहीं पता था, ये लोग ‘डौकी’ को क्या कहते हैं। मैंने तो अंग्रेजी वर्तनी पढ़कर अपनी सुविधानुसार ‘डौकी’ उच्चारण करना शुरू कर दिया था।
“डावकी?”
“नहीं मालूम।”
“डाकी?”, “डकी?”, “डेकी?”, “डूकी?”, “डबकी?” हर संभावित उच्चारण बोल डाला, लेकिन उन्हें समझ नहीं आया। आखिरकार गूगल मैप का सहारा लेना पड़ा। तब पता चला कि हम दूसरे रास्ते पर आ गए हैं।
जोवाई से डौकी का रास्ता बेहद शानदार बना है। ट्रैफिक तो था ही नहीं। दूरी लगभग 70 किलोमीटर है। हवा बड़ी तेज चल रही थी और सीधे मुँह पर लग रही थी। यानी बांग्लादेश की तरफ से हवा आ रही है। इससे मुझे आशंका हुई कि जब हम पठार छोड़कर नीचे उतरेंगे, तब घने बादल मिलेंगे।
और घोषणा भी कर दी - “आखिरी 15 किलोमीटर हमें घने बादल मिलेंगे।”
दीप्ति ने पूछा - “तुझे कैसे पता?”
“देख लेना। बाद में बताऊँगा।”
और यह अलग बात है कि पूरे रास्ते न बादल मिले, न बादल का बच्चा।
जोवाई से निकलकर थोड़ा ही आगे सड़क के एकदम किनारे कुछ गुफाएँ दिखीं। रुकना पड़ा। यहाँ कोई भी नहीं था। यह शायद कोई खदान रही होगी। कुछ ही समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय में हर तरह के खनन पर रोक लगाई थी, इसलिए अब यहाँ कुछ भी नहीं हो रहा था। हम इनके अंदर गए तो हैरान रह गए। जमीन के अंदर ही अंदर पूरा साम्राज्य था। सैकड़ों आदमी अंदर आ सकते थे। जब दिखना ही बंद हो गया, तो हम वापस मुड़कर बाहर निकले। फिलहाल तो यह सुरक्षित नहीं थी, बारिश आदि में धँस भी सकती है; लेकिन इसकी सुरक्षा जाँच करके इसे ‘पर्यटन स्थल’ बनाया जा सकता है।
एक पुल मिला और मोटरसाइकिल रोक दी। दाहिनी तरफ एक छोटा-सा जलप्रपात था और बाईं ओर इसी नदी पर पत्थरों का एक पैदल-पुल था। इस बात में कोई संदेह नहीं था कि पैदल-पुल बहुत पुराना है। इसके बारे में इंटरनेट पर कहीं पढ़ने को मिला कि इसे जयंतिया राजाओं ने बनवाया था और यह नरतियंग से जयंतियापुर जाने के पैदल रास्ते पर स्थित था। फिलहाल हम इसी के समांतर जिस सड़क पर चल रहे थे, वह जोवाई से डौकी की सड़क थी अर्थात् नरतियंग से जयंतियापुर की सड़क। डौकी में सीमा पार करते ही बांग्लादेश के भीतर जयंतियापुर है।
अमलारेम से कुछ पहले एक सूचना-पट्ट लगा था - क्रांगशुरी वाटरफाल। एक किलोमीटर कच्चे रास्ते पर चलना पड़ा और रास्ता समाप्त हो गया। चाय की दो दुकानें थीं और दो गाड़ियाँ भी खड़ी थीं। आगे पैदल जाने का रास्ता था।
तकरीबन एक किलोमीटर पैदल चलने और सौ मीटर नीचे उतरने के बाद चालीस-चालीस रुपये की पर्ची कटी। इस स्थान ने हमारा जी खुश कर दिया। बहुत सारे और भी यात्री थे, जो स्थानीय ही थे। बाहरी केवल हम ही थे।
इस जलप्रपात का वर्णन करने में मैं असमर्थ हूँ। चाहे कुछ भी लिख दूँ, इसकी खूबसूरती तक नहीं पहुँच सकते। पानी कम था, लेकिन एकदम नीला पारदर्शी था। प्रपात के पीछे एक बड़ी गुफा थी, जिसमें बैठकर सामने पानी गिरते हुए देखना और आवाज सुनना अलौकिक होता है।
मेघालय जलप्रपातों और गुफाओं का प्रदेश है। और अगर कहीं ये दोनों चीजें एक साथ मिल जाएँ, तो समझ जाना कि जन्नत वहीं है।
ये हाल ही में प्रकाशित हुई मेरी किताब ‘मेरा पूर्वोत्तर’ के ‘डौकी में भारत और बांग्लादेश’ चैप्टर के कुछ अंश हैं। किताब खरीदने के लिए नीचे क्लिक करें:
अगला भाग: मेघालय यात्रा - डौकी में पारदर्शी पानी वाली नदी में नौकाविहार
1. मेघालय यात्रा - गुवाहाटी से जोवाई
2. मेघालय यात्रा - नरतियंग दुर्गा मंदिर और मोनोलिथ
3. मेघालय यात्रा - जोवाई से डौकी की सड़क और क्रांग शुरी जलप्रपात
4. मेघालय यात्रा - डौकी में पारदर्शी पानी वाली नदी में नौकाविहार
5. मेघालय यात्रा - डौकी में भारत-बांग्लादेश सीमा पर रोचक अनुभव
6. मेघालय यात्रा - डौकी-चेरापूंजी सड़क और सुदूर मेघालय के गाँव
7. मेघालय यात्रा - चेरापूंजी में नोह-का-लिकाई प्रपात और डबल रूट ब्रिज
8. मेघालय यात्रा - मॉसमाई गुफा, चेरापूंजी
9. मेघालय यात्रा - चेरापूंजी के अनजाने स्थल
10. मेघालय यात्रा - गार्डन ऑफ केव, चेरापूंजी का एक अनोखा स्थान
11. अनजाने मेघालय में - चेरापूंजी-नोंगस्टोइन-रोंगजेंग-दुधनोई यात्रा
12. उत्तर बंगाल यात्रा - बक्सा टाइगर रिजर्व में
13. उत्तर बंगाल यात्रा - तीन बीघा कोरीडोर
14. उत्तर बंगाल - लावा और रिशप की यात्रा
15. उत्तर बंगाल यात्रा - नेवरा वैली नेशनल पार्क
16. उत्तर बंगाल यात्रा - लावा से लोलेगाँव, कलिम्पोंग और दार्जिलिंग
17. दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के साथ-साथ
18. सिलीगुड़ी से दिल्ली मोटरसाइकिल यात्रा
Beautiful pics and nice travelogue
ReplyDeleteयह जलप्रपात बहुत खूबसूरत लगा...बहुत बढ़िया सोच आपकी की बंद पड़ी खदान भी बहुत अच्छी लग रही है...हम तो ऐसा सोच भी नही सकते है....बादलो की घोषणा के बाद बादल तो न मिले लेकिन बादलो की घोषणा का लॉजिक तो बता देते....
ReplyDeleteझरने के साथ साथ बांस की सीढियां, मचान, कुर्सियां अद्भुत।
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