जब से हम
Travel King India Private Limited कंपनी बनाकर आधिकारिक रूप से व्यावसायिक क्षेत्र में आए हैं, तब से हमारे ऊपर जिम्मेदारी भी बढ़ गई है और लोगों की निगाहें भी। कंपनी आगे कहाँ तक जाएगी, यह तो हमारी मेहनत पर निर्भर करता है, लेकिन एक बात समझ में आ गई है कि यात्राओं का क्षेत्र असीमित है और इसके बावजूद भी प्रत्येक यात्री हमारा ग्राहक नहीं है। अपनी सरकारी नौकरी को किनारे रखकर एक साल पहले जब मैं इस क्षेत्र में उतरा था, तो यही सोचकर उतरा था कि प्रत्येक यात्री हमारा ग्राहक हो सकता है, लेकिन अब समझ में आ चुका है कि ऐसा नहीं है। मैं अपनी रुचि का काम करने जा रहा हूँ, तो यात्राओं में भी मेरी एक विशेष रुचि है, खासकर साहसिक और दूरस्थ यात्राएँ; तो मुझे ग्राहक भी उसी तरह के बनाने होंगे। जो ग्राहक मीनमेख निकालने के लिए ही यात्राएँ करते हैं, वे हमारे किसी काम के नहीं।
खैर, मैं बहुत दिनों से चाहता था कि दस साल से ऊपर के छात्रों को अपनी पसंद की किसी जगह की यात्रा कराऊँ। छात्रों को इसलिए क्योंकि इनमें सीखने और दुनिया को देखने-समझने की प्रबल उत्सुकता होती है। इनके माँ-बाप अत्यधिक डरे हुए लोग होंगे और अपने बच्चों को मेरी पसंद की जगह पर भेजना पसंद नहीं करेंगे, इसलिए अगर कोई स्कूली ट्रिप कराने का मौका लग जाए, तो मजा आ जाए। ज्यादातर माँ-बाप को खुद भी नहीं पता होता कि सेफ्टी क्या होती है और वे बच्चों को ‘ये मत करो, वो मत करो’ कह-कहकर सेफ रहना सिखाते हैं।
और जैसे ही एक स्कूल ने अपने 100 बच्चों की यात्रा के लिए संपर्क किया, तो मैंने सबसे पहले तीर्थन वैली का चुनाव किया। यात्रा जीभी-घियागी क्षेत्र में होनी थी, जो तीर्थन वैली नहीं है, लेकिन तीर्थन वैली से सटा होने के कारण पर्यटन की दृष्टि से इस वैली को भी तीर्थन वैली कह दिया जाता है। इसी कारण से मैं आगे भी जीभी वैली को तीर्थन वैली ही कहूँगा।
मैं बहुत दिनों से ऐसी कोई यात्रा कराना चाह रहा था और नवंबर में मुझे यह मौका मिला... 100 बच्चे... 9वीं और 11वीं कक्षा के...
सबसे पहले बेसिक बात... ठहरेंगे कहाँ? नवंबर में इस क्षेत्र में कड़ाके की ठंड पड़ती है, इसलिए ठहरने के बारे में कोई लापरवाही नहीं की जा सकती। गर्मियों में चार महीने इस क्षेत्र में रहने के कारण मुझे पता था कि यहाँ ऐसा कोई होटल नहीं है, जहाँ 100 यात्री ठहर सकें। इसलिए 50-50 करके दो जगहों पर ठहरना तय हुआ। इनमें एक रात होटल में ठहरेंगे और एक रात नदी के किनारे कैंपों में।
फिर यहाँ ज्यादा करने-धरने को कुछ नहीं है, इसलिए अगर बच्चों को व्यस्त न रखा, तो वे बोर हो जाएँगे और उनकी यात्रा खराब हो जाएगी। बड़ों और बच्चों में यह अंतर तो होता ही है। बच्चों को आप नदी किनारे बैठाकर पानी की कलकल सुनने को नहीं कह सकते। उन्हें हमेशा व्यस्त रहना है। और व्यस्तता के लिए सेरोलसर लेक का ट्रैक करना सर्वोत्तम उपाय था। अगर जीभी-घियागी से सभी लोग ब्रेकफास्ट करके चलेंगे, तो भी सेरोलसर लेक तक पहुँचने में भूख लगने ही लगेगी। इसलिए झील के पास लंच की व्यवस्था करना जरूरी था। उसकी भी गुणा-भाग करके बेसिक व्यवस्था की।
यह सारी व्यवस्था केवल मुझे और दीप्ति को ही देखनी थी। सेरोलसर लेक का ट्रैक वैसे तो शानदार बना है, लेकिन जब इतने सारे बच्चे हों, तो कुछ स्थानीय लोगों को भी साथ ले लेना चाहिए। यानी ट्रैक के लिए हम कुछ स्थानीय लोगों को साथ रखेंगे, जो किसी संभावित आपातकाल में काम आएँगे। यूँ तो कुछ अध्यापक भी साथ होंगे, लेकिन अध्यापक खुद टूर मनाने आएँगे और यहाँ के माहौल और मौसम के जानकार नहीं होंगे, इसलिए उन पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।
आखिरी समय पर दीप्ति का जाना रद्द हो गया और मुझे अकेले हिमाचल जाना पड़ा। लेकिन व्यवस्थाएँ इतनी फुल-प्रूफ थीं कि किसी भी दिक्कत की कोई संभावना नहीं थी। मौसम का पूर्वानुमान बता रहा था कि जिस दिन हमारी यह ट्रिप समाप्त होगी, उसी दिन क्षेत्र में बर्फबारी होगी। आपको भले ही बर्फबारी कितनी भी रोमांटिक लगती हो, लेकिन यह बारिश का ही रूप होती है और खराब मौसम में ही होती है, इसलिए जो नुकसान मानसून में बारिश करती है, उससे ज्यादा नुकसान बर्फबारी कर देती है। बर्फबारी में घूमना तभी ठीक है, जब आप अपने होटल में बैठे हों। ट्रैकिंग में बर्फबारी जानलेवा हो सकती है। सेरोलसर झील का ट्रैक 3200 मीटर से ज्यादा की ऊँचाई पर होता है, इसलिए वहाँ बर्फबारी घातक हो सकती है। अच्छी बात ये थी कि मौसम के पूर्वानुमान में हमारी ट्रैकिंग के अगले दिन बर्फबारी होनी थी।
लेकिन अगर ट्रैकिंग वाले दिन बारिश होने लगी तो??
इसके लिए हमने प्लान-B भी तैयार कर रखा था, लेकिन स्कूल को यह लिखित रूप में बता दिया था कि बारिश में कोई ट्रैकिंग नहीं होगी, भले ही सभी को पूरे दिन कमरे में बंद होना पड़े।
मैं एक दिन पहले ही हिमाचल पहुँच गया और जीभी व घियागी दोनों ही स्थानों पर तैयारियों का जायजा लिया। कौन बच्चा कब किस कमरे में रुकेगा, यह सब पहले से ही निर्धारित था। तय समय पर सभी लोग आए और तीन दिनों की यह यात्रा अत्यधिक शानदार रही। आप नीचे फोटो और वीडियो में देख सकते हैं।
हाँ, बच्चों के पास अनगिनत सवाल होते हैं और उनका जवाब देने के लिए धैर्य व सही जानकारी की आवश्यकता होती है। और फिलहाल बच्चों के सभी सवालों के जवाब देने का धैर्य तो मुझमें है। अच्छी बात ये थी कि बच्चे अपने अध्यापकों और सहपाठियों के साथ थे। अगर माँ-बाप के साथ होते, तो पूरी यात्रा में एक ही नारा सुनाई देता... ये मत करो... वो मत करो... ये मत खाओ... वो मत पिओ... ऐसे मत चलो... वैसे मत बैठो.....
काश कि इन माँ-बाप ने भी अपने स्कूली दिनों में कोई ऐसी ही ट्रिप की होती...
बहुत खूबसूरत यात्रा प्रस्तुति
ReplyDeleteग्रुप में बड़ा मजा है सैर पर निकलने पर लेकिन जिम्मेदारी बहुत होती हैं बड़ों की
नववर्ष मंगलमय हो सबका!