मनु ऋषि मंदिर से लौटकर हम रोपा में एक ढाबे पर चाय पी रहे थे। रसोई के दरवाजे पर लिखा था - "नो एंट्री विदाउट परमिशन"... और अजीत जी ने रसोई में घुसकर मालिक के हाथ में ढेर सारी प्याज और मालकिन के हाथ में ढेर सारे टमाटर देकर बारीक काटने को कह दिया। वे दोनों बाहर बैठकर प्याज-टमाटर काटने में लगे थे और अजीत जी रसोई में अपनी पसंद का कोई बर्तन ढूँढ़ने में लगे थे।
इस तरह एक बेहद स्वादिष्ट डिश हमारे सामने आई - साकशुका। मैं और कमल रामवाणी जी इस नाम को बार-बार भूल जाते थे और आखिरकार कमल जी ने इसका भारतीय नामकरण किया - सुरक्षा। अब हम यह नाम कभी नहीं भूलेंगे। जमकर ‘सुरक्षा’ खाई और बनाने की विधि मालिक-मालकिन दोनों को समझा दी।
अब बारी थी शांघड़ जाने की। आप गूगल पर शांघड़ (Shangarh) टाइप कीजिए, आपको ऐसे-ऐसे फोटो देखने को मिलेंगे कि आप इस स्थान को अपनी लिस्ट में जरूर नोट कर लेंगे। पक्का कह रहा हूँ। भरोसा न हो, तो करके देख लेना। तो हमने भी इसे नोट कर रखा था और आज आखिरकार उधर जा रहे थे।
रोपा से एक किलोमीटर आगे से शांघड़ की सड़क अलग होती है। दूरी 7 किलोमीटर है। नई बनी सड़क है और अभी कच्ची ही है। मोटरेबल है, बसें चलती हैं, कारें भी चलती हैं और मोटरसाइकिलें भी। रास्ते-भर इसे पक्का करने का काम लगा हुआ है। ठेकेदार काम छोड़कर न भागा, तो बारिश के इसी सीजन में सड़क पक्की बन जाएगी। वैसे भी बारिश में ग्रामीण सड़कें नहीं बना करतीं। गिट्टी के ऊपर डाली गई मिट्टी बह जाती है, बहती रहती है और आखिरकार ठेकेदार काम छोड़ देता है। ऐसा मैंने सुना है।
तो जिस समय शांघड़ पहुँचे, बूंदाबांदी होने लगी थी और अजीत जी ने तय कर लिया था कि कहाँ रुकना है। यह स्नोलाइन होम-स्टे था और इसके बोर्ड रोपा से ही देखने में आ रहे थे। बोर्ड से फोन नंबर लेकर जिस आदमी से कमरे की बात की, वह कहीं बाहर था और उसने 1000 रुपये का कमरा बोल दिया। जब कमरे में पहुँचे, तो लड़का उदास था, क्योंकि वह 1500 का देना चाहता था। 1000 बोलने वाला उसका पापा था, इसलिए बात माननी पड़ी अन्यथा हमें कहीं और ट्राई करना पड़ता। शांघड़ में कमरों की कोई कमी नहीं है और आज जून का आखिरी शनिवार होने के बावजूद भी कोई चहल-पहल नहीं थी। इसका मतलब था कि सब कमरे खाली पड़े थे।
शाम का समय था और उन दोनों की इच्छा कमरे से बाहर निकलने की नहीं थी। दोनों ने वादा किया कि कल सुबह-सवेरे शांघड़ का मैदान और मंदिर देखने चलेंगे, लेकिन मुझे पता था कि कोई भी सुबह-सवेरे नहीं उठेगा और दोपहर को तेज धूप होने के कारण अच्छे फोटो नहीं आएँगे। इसलिए मैं अकेला निकल पड़ा और कुछ ही देर में ऐसे शानदार फोटो ले आया, जैसे मैंने खुद भी कभी नहीं देखे थे। इन फोटुओं की थोड़ी-सी एडिटिंग की, तो मुझे खुद पर ही भरोसा नहीं हुआ। अबे, शांघड़ इतना खूबसूरत है!
वो सब छोड़िए... शांघड़ वाकई खूबसूरत है। शांगचुल महादेव का शानदार मंदिर है। आपको बता दूँ कि हिमाचली लोग बहुत मेहनती होते हैं और पैसेवाले भी। इनके घर तो खूबसूरत होते ही हैं, असली खूबसूरती मंदिरों में होती है। किसी भी देवता का कोई भी मंदिर देख लो, आप खुश हो जाओगे। और मंदिर अगर शांगचुल महादेव का हो, तो खुशी से पागल हो जाओगे।
लेकिन, बट, किंतु, परंतु...
यहाँ की असली खूबसूरती इस मंदिर में नहीं है, बल्कि विशाल मैदान में है। यह मैदान देवता का है, इसलिए किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं है। चारों तरफ देवदार के पेड़ हैं, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। और अगर मौसम साफ हो, तो दूर महाहिमालय के बर्फीले पर्वत दिखाई देते हैं, जिनमें रक्तिसर की तरफ की चोटियाँ प्रमुख हैं और खंडेधार की तरफ की चोटियाँ प्रमुखतम हैं।
अगले दिन दोपहर को हम तीनों इस मैदान में आए। आज रविवार था और मैदान पर्यटकों से भरा था। ये पर्यटक हिमाचल के ही थे, जो यहाँ पिकनिक मनाने आए थे। कोई टोली भजन-कीर्तन कर रही थी तो कोई मैदान में लोट मार रही थी।
फिलहाल और ज्यादा न लिखते हुए काम की बात करते हैं... फोटो देखते हैं... असली खूबसूरती देखने में होती है...
रोपा से शांघड़ जाने वाली सड़क |
शांघड़ में हमारा ठिकाना |
खंडेधार की तरफ की चोटियाँ... |
शांघड़ का मैदान |
शांगचुल महादेव का मंदिर |
शाम का समय फोटोग्राफी के लिए सर्वोत्तम होता है |
इसका मतलब ये नहीं है कि फोटो ज्यादा अच्छा है और जगह अच्छी नहीं है... बल्कि इसका मतलब ये है कि कैमरे ने ऑटोफोकस से मोबाइल पर अच्छा फोकस किया है और पीछे की सारी बैकग्राउंड ब्लर कर दी है... |
शांगचुल महादेव का मंदिर |
मंदिर का द्वार लकड़ी का है और शानदार कलाकारी की गई है... |
ततैयों का छत्ता असली है, बाकी सब लकड़ी का है... |
can you pls increase the text font as it it bit small..
ReplyDeleteThanks and Regards,
Gunjan
आपका बहुत बहुत धन्यवाद... फोंट साइज थोड़ा बढ़ा दिया है... उम्मीद है कि अब आपको और ज्यादा अच्छा लगेगा...
DeleteThank you.. much better now :)
ReplyDeleteRegards,
Gunjan
Beautiful place indeed. Your photography skill is no more a secret. Splendid...
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