![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9gwzEF5ENduJ8xUpmyDeNv2hJGC5wK0GPyp4zWkzMnUrA8l8IBgQ7Np4Fy-rrAi4bRQWKmqgrqRxb2binfhja1_aFAuHDYOSlVi2_wtAd3suG2TUrR8_hNPYpmqhett7ICm0miDWtmjg/s640/IMG_8495-01-01.jpeg)
शांघड़ में थे, तो बड़ी देर तक राज ठाकुर को फोन करता रहा, लेकिन उसने उठाया नहीं। उसने आज हमें अपने घर पर बुलाया था - लंच के लिए और हमने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया था। निमंत्रण इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि लंच करके हमें वहाँ से चले जाना था। अगर चले जाने की बात न होती, तो आमंत्रण लिखता। उसके घर में कुछ काम चल रहा है, इसलिए वह अतिथियों का अच्छा सत्कार नहीं कर पाएगा, इसका उसे डर था और इसीलिए वह हमें ठहराने से मना कर रहा था।
आधे घंटे बाद जब उसका फोन आया, तो मेरा उत्तर था - “भाई जी, आपने फोन नहीं उठाया और हम बंजार पहुँच गए हैं। अब फिर कभी आएँगे।”
“ओहो... मुझे पता नहीं चला... मोबाइल खराब हो गया है... देख लो अगर आ सको तो...”
“नहीं आ सकते...”
“ये क्या हो गया मुझसे! ये तो बड़ी भारी गलती हो गई...”
“अच्छा, अच्छा ठीक है... आ रहे हैं आधे घंटे में... अभी शांघड़ से चले हैं... और अबकी बार फोन उठा लेना।”
रोपा में कमल जी को अलविदा कहा, क्योंकि उन्हें आज शिमला जाना था। लेकिन शाम को पता चला कि वे कसोल चले गए। मैं नशे से मीलों, कोसों, प्रकाश वर्षों दूर रहता हूँ, इसलिए मुझे कसोल और मलाणा कतई पसंद नहीं हैं और जो लोग कसोल जाते हैं, वे छँटे हुए नशेड़ी दिखाई पड़ते हैं। वैसे कमल जी ऐसे तो नहीं थे।
रोपा से बीजल की सड़क इतनी ऊबड़-खाबड़ है कि इस पर मोटरसाइकिलें कैसे चढ़ गईं, न हम जानते हैं और न ही खुद मोटरसाइकिलें। अजीत जी कल से मनु ऋषि के रास्ते को ‘ऑफ रोड़’ कहकर अपने बुलेट ग्रुप में प्रचारित कर रहे हैं और लोगों को उकसा रहे हैं, लेकिन बीजल के बारे में मैंने यह कहते सुना है कि खबरदार अगर बीजल की ऑफ रोड की तो... ऑफ रोड की बाप है यह सड़क।
3 किलोमीटर के इस रास्ते में आप 300 मीटर ऊपर चढ़ जाते हैं और ठेठ पत्थरों से होते हुए। लेकिन अजीत जी की 500 सी.सी. की बुलेट एक ताकतवर और मजबूत बाइक है, इसलिए चढ़ गई... और मेरी 150 सी.सी. की डिस्कवर खुद को कम नहीं मानती, इसलिए चढ़ गई।
खैर, राज के घर पर पहुँचे। वाकई काम चल रहा था और वह यात्रियों के ठहरने के लिए इसे एक होम-स्टे में तब्दील कर रहा था। इस निर्माणाधीन होम-स्टे का जायजा लिया और...
“नीरज...”
“हाँ जी...”
“एक काम करते हैं...”
“डन...”
और निमंत्रण को आमंत्रण में बदल दिया।
“राज भाई, आज हम यहीं रुकेंगे...”
“लेकिन...”
“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं... वो कमरा बेस्ट है... नीचे दरी बिछाकर एक-एक कंबल दे दो... हमारा काम चल जाएगा...”
फिर बादल घिर आए और बारिश होने लगी, जिसने पक्का कर दिया कि हम आज यहाँ से वापस नहीं जाएँगे।
और हमारा यहाँ रुकना तब सफल हो गया, जब बारिश रुकी और सामने घाटी में शानदार इंद्रधनुष बन गया। यह लगातार और चमकीला होता गया और आखिरकार दो इंद्रधनुष बन गए। दो इंद्रधनुष पहले कभी नहीं देखे थे और कुदरत के इस चमत्कार के सामने मैं नतमस्तक था। लगभग एक घंटे तक इंद्रधनुष बना रहा और मैं कभी फोटो खींचने लगता, कभी वीडियो बनाने लगता, तो कभी गुमसुम होकर इसे बस देखता रहता। दीप्ति होती, तो पागल हो जाती...
सेब के पेड़ों पर अभी सेब पकने शुरू नहीं हुए थे, लेकिन खुबानियाँ पकने भी लगी थीं और झड़ने भी लगी थीं। ये लोग खुबानियों को बेचते नहीं हैं। जितनी खा सकते हैं, खाते हैं और बाकी के बीजों का तेल निकालकर भोजन पकाने के काम में लाते हैं।
खैर, यहाँ हमारा बहुत अच्छा समय कटा। राज का होम-स्टे तैयार हो जाएगा, तो उसके बारे में आपको भी बताऊँगा और वहाँ जाने को प्रेरित भी करूँगा।
बहुत अच्छा। वैसे राज भाई का गाँव कहां पर है जी।
ReplyDeleteअतिसुन्दर। इन्द्रधनुष को कैमरे में कैद करना वाकयी लाजवाब है।
ReplyDeletenice pics
ReplyDelete