Skip to main content

रघुपुर किले की फटाफट यात्रा

Raghupur Fort, Jalori Pass, Kullu

19 जुलाई 2019, शुक्रवार...
दोपहर बाद दिल्ली से करण चौधरी का फोन आया - "नीरज, मैं तीर्थन वैली आ रहा हूँ।”
"आ जाओ।”
फिर दोपहर बाद के बाद फोन आया - "नीरज, मैं नहीं आ रहा हूँ।”
"ठीक है। मत आओ।”
शाम को फोन आया - " हाँ नीरज, कैसे हो?... क्या कर रहे हो?... मैं आ रहा हूँ।”
"आ जाओ।”
रात नौ बजे फोन आया - "अरे नीरज, खाना खा लिया क्या?... सोने की तैयारी कर रहे होंगे?... बस, ये बताने को फोन किया था कि मैं नहीं आ रहा हूँ।”
"ठीक है। मत आओ।”
रात दस बजे फोन आया - "अरे बड़ी जल्दी सो जाते हो तुम।... इतनी जल्दी कौन सोता है भाई!... मैं आ रहा हूँ... बस में बैठ गया हूँ... ये देखो फोटो... सबसे पीछे की सीट मिली है।”
"खर्र.र्र.र्र..."
रात ग्यारह बजे फोन आया - "अरे सुनो, एक पंगा हो गया। बस वाले ने मुझे बाइपास पर उतार दिया है। उस बस में पहले से ही किसी और की बुकिंग थी और बस वाले ने मुझे भी बैठा लिया था। अब उतार दिया है। तो अब मैं नहीं आ रहा हूँ।"
"खर्र.र्र.र्र... खर्र.र्र.र्र..."
रात साढ़े ग्यारह बजे फोन आया - "होये उठ... हमेशा सोता रहता है... मैं आ रहा हूँ... दूसरी बस में सीट मिल गई है।”
"खार्र.र्र.र्र... खूर्र.र्र.र्र... खिर्र.र्र.र्र..."


यह कहानी थी 19 जुलाई की। अब 20 जुलाई की कहानी सुनिए...

करण इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में असिस्टैंट कमिश्नर है... मतलब श्री करण जी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में असिस्टैंट कमिश्नर हैं... मतलब चार साल पहले थे... अब तो कमिश्नर बन गए होंगे... और मैं ठैरा दसवीं पास और मैकेनिकल का सेकंड डिवीजन डिप्लोमा धारी... राजा भोज और गंगू तेली की दोस्ती कब हुई, यह मुझे अभी तक याद है...

बात हजारों साल पुरानी है, जब करण जी न कमिश्नर थे और न ही कमिश्नरी की पढ़ाई कर रहे थे। मेरी नाइट ड्यूटी थी और मैं मोबाइल में indiamike.com खोले बैठा था। इसमें किसी का एक सवाल फ्लैश हुआ - "कोई मुझे दिल्ली के आसपास ऐसी जगह बताओ, जहाँ साइकिल से जाया जा सके और शाम तक लौटा भी जा सके।”
मैंने टाइप कर दिया - "भाई, सुल्तानपुर नेशनल पार्क चले जाओ।”
बस, सुबह चार बजे करण अपनी साइकिल पर शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पर थे और हम चाय पी रहे थे। मुझे उनकी साइकिल पसंद आ गई। इसके गियर देखे, डिस्क ब्रेक देखे, चेन देखी, पहिये देखे और तय कर लिया कि मुझे भी साइकिल लेनी है। मेरे सभी समकक्षों को कार लेने की धुन सवार थी और मैं साइकिल की धुन पाल रहा था।

बाद में साइकिल ली... पंद्रह हजार की... इस साइकिल से पुष्कर गया, थार में सुदूर तनोट और लोंगेवाला गया, मिजोरम भी गया... और लद्दाख भी। "पैडल पैडल" किताब इसी लद्दाख यात्रा पर आधारित है।

तो आज 20 जुलाई को दोपहर बाद 2 बजे करण घियागी आया। घियागी हिमाचल के कुल्लू जिले में एक छोटा-सा गाँव है, जहाँ मैं पिछले साढ़े तीन महीने से जमा हूँ। आते ही कहने लगा - "जलोड़ी पास चलते हैं और रघुपुर का ट्रैक करेंगे।”

आप अगर अभी-अभी मैदानों से 2000 मीटर की ऊँचाई पर आए हैं और आते ही 3300 मीटर ऊपर ट्रैक करने को कहेंगे, तो मैं मना कर दूँगा। लेकिन करण की और मेरी ’हजारों’ सालों से ऐसी बनती है कि मैं साथ हो लिया। वह न केवल एक अच्छा ट्रैकर है, बल्कि आज भी साइकिल चलाता है। तो ऐसे इंसान को अचानक 3300 मीटर पर मामूली साँस चढ़ेगी, लेकिन कोई गंभीर बात नहीं होगी। आप अगर अच्छे ट्रैकर नहीं हैं और साइकिल भी नहीं चलाते हैं, तो आप ऐसा कभी मत करना। कम से कम एक दिन 2000-2500 मीटर पर अवश्य रुकना। शरीर को एक्लीमेटाइज होना जरूरी होता है।

तो हम मोटरसाइकिल से जलोड़ी पास पहुँचे, मोटरसाइकिल किनारे खड़ी की और वहीं ढाबे में राजमा-चावल खाने लगे। लोगों के पास कुछ हजार रुपये आ जाते हैं, तो वे ढाबों को देखकर वोमिटिंग करने लगते हैं, लेकिन लाखों रुपये सैलरी पाने वाला और रोजाना करोड़ों के कागजों पर साइन करने वाला करण मुझसे पहले भर-प्लेट राजमा-चावल खा गया।

रघुपुर फोर्ट का रास्ता जलोड़ी पास से ही अलग होता है। जलोड़ी पास के एक तरफ पाँच किलोमीटर दूर सेरोलसर झील है, तो दूसरी तरफ तीन किलोमीटर दूर रघुपुर फोर्ट है। रास्ता घने जंगल से होकर जाता है। बारिश का मौसम और झींगुरों ने हमें डराने को अपनी सबसे खतरनाक धुन छेड़ रखी थी। अकेला इंसान हो, तो डर जाए।
शुरू में एक किलोमीटर तक लगभग समतल रास्ता है। फिर एक किलोमीटर तक तेज चढ़ाई है और आखिर में एक किलोमीटर तक घास के मैदान से होकर जाना होता है। एक जगह एक गुज्जर अपनी भैंसों को लिए बैठा था। एक भैंस का दूसरी से झगड़ा हो गया - धे सींग, धे सींग। गुज्जर कोहनी का तकिया बनाकर और तहमद ओढ़कर सो गया। भैंसें कुछ ही देर में शांत हो गईं - एक का सिर दुखने लगा होगा और दूसरी ने अएँ-अएँ करके माफी माँग ली होगी।

रघुपुर फोर्ट अपने किले के अवशेषों के लिए कम और घास के विशाल मैदान के लिए ज्यादा प्रसिद्ध है। हम किले के अवशेषों तक नहीं गए, क्योंकि सतलुज घाटी से घने बादल उठने लगे थे और बरसने की तैयारी करके आए थे। हमारे पास केवल आधे घंटे की ही मोहलत थी।

इस आधे घंटे का इस्तेमाल हमने वापस लौटने में किया। जलोड़ी पास पर ढाबे में चाय पी और वापस घियागी आ गए।

Raghupur Fort, Jalori Pass, Kullu

Raghupur Fort, Jalori Pass, Kullu

















Comments

  1. सफ़ेद मुंह वाली भैस का फोटो तो बड़ा यूनिक है और fog वाले जंगल तो एकदम मस्त

    ReplyDelete
  2. रोचक यात्रा रही ये भी। सफेद मुख वाली भैंस गजब लग रही है।

    ReplyDelete
  3. Neeraj ji. Aap ka Mobile number mil sakta hai kya....

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब