
मैं जब अप्रैल 2019 के दूसरे सप्ताह में दिल्ली से हिमाचल के लिए निकला था, तो यही सोचकर निकला था कि तीर्थन वैली में रहूँगा और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में ट्रैकिंग किया करूँगा। लेकिन समय का चक्र ऐसा चला कि न मैं तीर्थन वैली में रह पाया और न ही ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में जा पाया। तीर्थन वैली के बगल में एक छोटी-सी वैली है - जीभी वैली। इस वैली के घियागी गाँव में अपना ठिकाना बना और मेरा सारा समय घियागी में ही कटने लगा।
अभी पिछले दिनों अजीत सिंह जी आए और जीभी वैली से बाहर कहीं घूमकर आने को उकसाने लगे। मैं उनके उकसाए में नहीं आता और कल चलेंगे, परसों चलेंगे कहकर बच जाता। फिर कल-परसों आते-आते शनिवार आ जाता और मैं “वीकएंड पर बहुत भीड़ रहेगी और हम जाम में फँसे रहेंगे" कहकर फिर से अपना बचाव कर लेता। हालाँकि यहाँ न भीड़ होती है और न ही जाम। और कमाल की बात ये है कि घियागी की खाली सड़क पर मैं अजीत सिंह जी को भरोसा दिला देता कि भीड़ बहुत है और जाम भी लगा है।
लेकिन शुक्रवार 28 जून को मेरी नहीं चली और हम अपनी-अपनी मोटरसाइकिलों से सैंज वैली की ओर बढ़े जा रहे थे। आज मेरी न चलने का भी एक कारण था। मेरे सिर के बाल बहुत बढ़ गए थे और इतनी बेचैनी होने लगी थी कि रोज नहाना पड़ता था। यहाँ नाई न घियागी में था और न ही जीभी में। नजदीकी नाई 10 किलोमीटर दूर बंजार में था और नहाने से बचने के लिए बंजार जरूर जाना पड़ता। बस, इसी वजह से मुझे निकलना पड़ा और जब एक बार निकल गया तो सीधे सैंज वैली के प्रवेश द्वार लारजी पहुँचकर ही दम लिया। लारजी से चार किलोमीटर दूर ही औट है, जहाँ से दिल्ली-मनाली सड़क गुजरती है।
दोनों की मोटरसाइकिलों में पेट्रोल बहुत कम बचा था और लारजी के बाद पूरी तीर्थन वैली, जीभी वैली और सैंज वैली में कोई पेट्रोल पंप नहीं है। यह छोटा-सा पेट्रोल-पंप इसलिए प्रसिद्ध है कि यहाँ पेट्रोल-डीजल नहीं मिलता और तीनों वैली इसलिए प्रसिद्ध हैं कि वहाँ हर गाँव में दुकानों पर पेट्रोल-डीजल मिलता है - बीस रुपये ऊपर के रेट पर।
लारजी में ही तीर्थन नदी में सैंज नदी आकर मिलती है। सैंज भी महाहिमालय के उन्हीं पहाड़ों से निकलती है, जहाँ से तीर्थन निकलती है। दोनों के उदगम स्थानों के बीच में केवल एक धार ही है, जिसकी वजह से दोनों नदियाँ बड़ी दूर तक समांतर बहती हैं और आखिरकार लारजी में मिल जाती हैं। इस तरह देखा जाए तो तीर्थन और सैंज नदियाँ सगी बहनें हैं।
लेकिन तीर्थन ज्यादा प्रसिद्ध हो गई और सैंज बेचारी अनजानी रह गई।
सैंज नदी पर कुछ बांध भी बने हैं, जिनके कारण चौड़ी शानदार सड़क है। वैसे तो तीर्थन पर भी बांध बनने थे, लेकिन स्थानीय निवासियों ने बड़े संघर्ष किए और फिलहाल तीर्थन पर एक भी बांध नहीं है।
सबसे मुख्य कस्बा और बाजार सैंज है। कुल्लू से खूब बसें आती हैं। हम अपने मित्र राज ठाकुर की सलाह पर आगे चलते गए और रोपा पहुँच गए। रोपा में फोरेस्ट रेस्ट हाउस भी है और आगे ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में ट्रैकिंग की अनुमति रोपा से मिलती है। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क चार घाटियों में है - तीर्थन घाटी, सैंज घाटी, जीवा नाला की घाटी और पार्वती की ऊपरी घाटी। अगर आपको तीर्थन घाटी में ट्रैकिंग करनी है, तो साईरोपा से अनुमति मिलती है और अगर सैंज या जीवा नाला की घाटी में ट्रैकिंग करनी है, तो रोपा से अनुमति लेनी होती है। हमें चूँकि ट्रैकिंग नहीं करनी थी, इसलिए अनुमति की कोई अवाश्यकता नहीं थी। राज ठाकुर ने यहीं फोरेस्ट रेस्ट हाउस में रुकने का सुझाव दिया, लेकिन अजीत जी और कमल जी को यहाँ के कमरों में भूत नाचते नजर आए।
वैसे तो राज ठाकुर का गाँव रोपा से थोड़ा हटकर बीजल है, हम उनके यहाँ भी ठहर सकते थे, लेकिन आजकल उनके घर पर कुछ काम चल रहा है, इसलिए उनके यहाँ नहीं गए। थोड़ी देर बाद जब राज रोपा ही आ गया, तो वह हमें अपने मामा के यहाँ ले गया - निहारनी गाँव में।
रोपा से निहारनी की सड़क हिमाचल की सबसे शानदार सड़कों में से एक है। दूरी 6-7 किलोमीटर है। घने जंगलों से होती हुई और सैंज नदी के साथ-साथ आगे बढ़ती हुई इस सड़क पर मोटरसाइकिल चलाने का आनंद जिसने ले लिया, उसका जीवन मानों सफल हो गया। अगर चार किलोमीटर तक जीवन सफल न हुआ, तो उसके बाद पड़ने वाली दो सुरंगों से गुजरने के बाद तो सफल हो ही जाएगा। इनमें से एक सुरंग तो लगभग आधा किलोमीटर लंबी है। यहाँ इस सुदूर और दुर्गम क्षेत्र में सड़क सुरंग होने का भरोसा नहीं होता, लेकिन निहारनी में भी एक बांध बना है, जिसकी मेहरबानी से न केवल ये सुरंगें बनी हैं, बल्कि निहारनी गाँव सड़क से भी जुड़ा है।
निहारनी में सड़क समाप्त हो जाती है, क्योंकि आगे कोई बांध नहीं है। मोटरसाइकिलें किनारे खड़ी करके राज के मामा के घर में दाखिल हुए, तो एक कमरे में जमीन पर गद्दे बिछे मिले। मोहर सिंह जी देवता के कारदार भी हैं और फिलहाल इस उधेड़बुन में थे कि अतिथियों को जमीन पर सोना पड़ेगा। लेकिन अतिथि इस माहौल के आदी थे और उन्हें यह भी पता था कि मोहर सिंह जी ने उत्तम व्यवस्था की है, इसलिए जल्दी ही वे उधेड़बुन से निकल गए और शाम को शानदार भोजन कराया।
सैंज नदी रक्तिसर से निकलती है और इसका ट्रैक यहीं से शुरू होता है। राज ठाकुर एक अच्छा गाइड है और रक्तिसर के साथ-साथ ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में दूसरे ट्रैकों का आयोजन करता रहता है। आज तो हम ट्रैकिंग करने नहीं आए थे, लेकिन जल्द ही आएँगे और राज हमारे आगे-आगे चल रहा होगा।
अगले दिन कुछ समय सैंज नदी के किनारे बिताकर वापस चलने की बारी थी। कुछ घरों का गाँव निहारनी तीन तरफ से जंगल से घिरा है और चौथी तरफ से घरघराती सैंज नदी से, जिसके दूसरी तरफ और भी घना जंगल है। यहाँ शायद कोई स्कूल हो या न हो, क्योंकि आठवीं के बच्चे कुछ किलोमीटर दूर शांसर में पढ़ने जाते हैं।
आज हमें मनु ऋषि मंदिर देखना था, जिसके बारे में मैंने कुछ ही समय पहले कहीं पढ़ा था और नक्शे में निशान लगा लिया था। निहारनी से डेढ़-दो किलोमीटर वापस चलने के बाद एक कच्चा रास्ता दाहिनी तरफ ऊपर जाता दिखा। यहाँ से मनु ऋषि मंदिर की दूरी 7 किलोमीटर है और इस दूरी को तय करने में हमें पौन घंटा लग गया।
लगभग 1700 मीटर की ऊँचाई से यह कच्चा रास्ता शुरू होता है और 2200 मीटर पर मंदिर है। एकदम ऊबड़-खाबड़ और पत्थरों के बीच से जाता हुआ रास्ता। पूरा रास्ता आबादी और खेतों, बगीचों के बीच से होकर जाता है। जब 5 किलोमीटर बाद हम रास्ते के बीच में ही मोटरसाइकिलें खड़ी करके खुद भी आराम कर रहे थे और मोटरसाइकिलों को भी ठंडा कर रहे थे, तो पीछे से एस.डी.एम. की गाड़ी आई। उन्होंने कुछ देर रुककर मोटरसाइकिलों के हटने की प्रतीक्षा की। इस दौरान अजीत जी ने उनसे कहा - “सर जी, इस रास्ते पर भी कुछ ध्यान दे लो। इतनी शानदार लोकेशन है, आबादी है और सड़क का ये हाल!"
“हाँ जी, हम इसी के सिलसिले में ऊपर जा रहे हैं। जल्दी ही यह अच्छी सड़क बनेगी।”
तो हिमाचल के बहुत सारे देवताओं की तरह एक देवता मनु ऋषि भी हैं। मुख्य मंदिर तो दूर किसी गाँव में है, लेकिन यहाँ एकदम वीरान सुनसान जगह पर शानदार मंदिर बना हुआ है - पूरी तरह लकड़ी का। पूर्व दिशा में रक्तिसर के बर्फीले पहाड़ दिखते हैं और दक्षिण दिशा में नदी के उस तरफ इतनी ही ऊँचाई पर शांघड़। शांघड़ भी हमारी लिस्ट में है, जहाँ हम कुछ देर बाद जाएँगे।
कारदार मोहर सिंह जी भी हमारे साथ आए थे। इसका कारण था कि उन्हें अपने देवता के साथ पार्वती वैली जाना था। देवता अगर कहीं जाते हैं, तो तमाम लोगों को उनके साथ जाना होता है। इनमें गुर और कारदार आदि को तो हमेशा ही साथ रहना होता है। ये लोग जंगलों और पहाड़ों को पैदल पार करके कई दिनों में पार्वती वैली जाएँगे और वहाँ से डेढ़ महीने बाद लौटेंगे।
हिमाचल के देवता खूब भ्रमण करते हैं और लोक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। न केवल बड़े बूढ़े, बल्कि बच्चे और युवा भी इस संस्कृति से आज भी अच्छी तरह जुड़े हुए हैं।
उधर दूर वाले पहाड़ से बाजों की आवाज आने लगी और इधर मोहर सिंह जी ने बता दिया कि वहाँ से देवता चल दिया है और कुछ ही देर बाद यहाँ आ जाएगा।
हमने देवता की प्रतीक्षा नहीं की और अपने अगले ठिकाने शांघड़ की ओर बढ़ चले।
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सैंज नदी... |
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निहारनी में सड़क समाप्त हो जाती है और आगे ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में पैदल रास्ता चला जाता है |
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निहारनी में सैंज नदी |
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निहारनी गाँव |
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खुबानी |
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निहारनी तक जाने के लिए सुरंगों से होकर जाना होता है |
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मनु ऋषि मंदिर की ओर |
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मनु ऋषि मंदिर |
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मनु ऋषि मंदिर से दिखता शांघड़ |
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मनु ऋषि मंदिर |
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लकड़ी पर की गई कलाकारी |
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रोपा से निहारनी की सड़क |
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