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इन छुट्टियों में हिमाचल में तीर्थन वैली जाइए

हम आपको भारत के अल्पप्रसिद्ध स्थानों के बारे में बताते रहते हैं। लेकिन अब हमने बीड़ा उठाया है आपको इन स्थानों की यात्रा कराने का... वो भी एकदम सुरक्षित और सुविधाजनक तरीके से। तो चलिए, इसकी शुरूआत करते हैं तीर्थन वैली से।

दिल्ली-मनाली हाइवे पर मंडी से 40 किलोमीटर आगे और कुल्लू से 30 किलोमीटर पीछे एक स्थान है औट। यहाँ 3 किलोमीटर लंबी एक सुरंग भी बनी हुई है, जो किसी जमाने में भारत की सबसे लंबी सड़क सुरंग हुआ करती थी। इस सुरंग का एक छोटा-सा दृश्य ‘थ्री ईडियट्स” फिल्म में भी दिखाया गया है।
औट के पास ब्यास नदी पर एक बाँध बना हुआ है। और ठीक इसी स्थान पर ब्यास में तीर्थन नदी भी आकर मिलती है और यहीं से तीर्थन वैली की शुरूआत हो जाती है। अब अगर हम तीर्थन नदी के साथ-साथ चलें, तो सबसे पहले जो नदी इसमें मिलती है, उस नदी की घाटी को सैंज वैली कहते हैं। उसके बारे में हम फिर कभी बात करेंगे। फिलहाल तीर्थन वैली की ही बात करते हैं।
तो औट से चलने के 20 किलोमीटर बाद एक कस्बा आता है, जिसका नाम है बंजार। यह यहाँ का तहसील मुख्यालय भी है और तीर्थन वैली का सबसे बड़ा और सबसे मुख्य स्थान भी है। बंजार समुद्र तल से लगभग 1400 मीटर ऊपर है। यहाँ से सड़क तो तीर्थन वैली को छोड़कर सीधे जलोडी जोत और रामपुर की ओर चली जाती है, लेकिन एक अन्य सड़क तीर्थन वैली में भी जाती है, जो साईरोपा, गुशैनी होते हुए बठाहड़ तक जाती है। चलिए, हम भी इसी सड़क पर चलते हैं।
साईरोपा में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के अंदर जाने का परमिट कार्यालय है। हालाँकि नेशनल पार्क बहुत आगे से शुरू होता है। अगर आपको नेशनल पार्क में ट्रैकिंग करनी है, तो यहीं से परमिट बनवाना आवश्यक है। और अगर नेशनल पार्क में ट्रैकिंग नहीं करनी है, तो आपको परमिट बनवाने की कोई आवश्यकता नहीं है। फिलहाल हम ट्रैकिंग करने नहीं जा रहे हैं, तो सीधे चलते जाते हैं। 
बंजार से 10 किलोमीटर चलकर हम गुशैनी पहुँच जाते हैं। यहाँ बहुत सारे कैंप हैं, होमस्टे हैं और होटल हैं, जहाँ आपको अपने बजट में रुकने-खाने को मिल जाएगा। गुशैनी समुद्र तल से लगभग 1600 मीटर ऊपर है और यहाँ आप तीर्थन नदी के एकदम किनारे किसी कैंप में रुक सकते हैं। इन सभी कैंपों में आपको 1000 रुपये से 1500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की दर से रुकने की सुविधा मिल जाएगी, जिसमें पूरे दिन का भोजन, नाश्ता भी शामिल होता है। यहाँ आप कुछ अन्य एक्टिविटी भी कर सकते हैं, जैसे रिवर क्रॉसिंग, रॉक क्लाइंबिंग, जिप लाइनिंग और ट्राउट फिशिंग। रिवर क्रॉसिंग के लिए तीर्थन नदी के आर-पार एक मजबूत रस्सी बाँध दी जाती है, जिसे पकड़कर आप तेज बहती नदी को पार करने का आनंद उठा सकते हैं। हाँ, नदी का पानी अत्यधिक ठंडा है, जिसे गर्म करने का कोई उपाय नहीं है।
अगर आपको मछली पकड़ने का शौक है या केवल एंजोय के लिए मछली पकड़ना चाहते हैं, तो इसकी भी सुविधा यहाँ है। इस नदी में ट्राउट नामक मछली होती है। इसके लिए यहाँ सरकारी मत्स्य विभाग भी है, जहाँ से आप निर्धारित शुल्क देकर मछली पकड़ने की रॉड ले सकते हैं और मछली पकड़ सकते हैं। बाद में चाहें तो उसे अपने साथ ले भी जा सकते हैं और वापस नदी में छोड़ भी सकते हैं। 


तो हम गुशैनी आ गए। अब चलते हैं गुशैनी से आगे। यहाँ पर श्रीखंड महादेव की तरफ से एक और नदी आती है, जिसका नाम अभी हमें नहीं पता। यहाँ से भी श्रीखंड महादेव की सालाना यात्रा होती है, लेकिन इधर से बहुत कम लोग जाते हैं और यात्रा अत्यधिक कठिन है। 
वैसे रामपुर, जाँव की तरफ से होने वाली यात्रा भी कौन-सा कम कठिन है। श्रीखंड महादेव चाहे जिस रास्ते से जाओ, जाना अत्यधिक कठिन ही होता है। लेकिन अगर आप श्रीखंड महादेव की कठिन यात्रा नहीं करना चाहते हैं, तो आपके लिए इधर एक आसान ट्रैक है, जिसका नाम है बशलेव पास ट्रैक। यह ट्रैक बठाहड (2000 मीटर) से शुरू होता है और बशलेव पास (3300 मीटर) तक चढ़कर दूसरी तरफ बागा सराहन (2400 मीटर) पर समाप्त होता है। और बागा सराहन की तारीफ में मैंने आज तक एक ही शब्द सुना है - भयंकर खूबसूरत।


तो चलिए, वापस अपनी तीर्थन नदी पर आते हैं। गुशैनी से अगर तीर्थन नदी के साथ-साथ ही चलते जाएँ, तो कच्चे रास्ते पर पैदल चलना होगा। क्योंकि यह रास्ता अभी बहुत आगे तक बना नहीं है, काम चल रहा है। पहले जब यहाँ पगडंडी हुआ करती थी, तो ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में जाने के कारण इसे हिमालयन जंगल ट्रेल भी कहते थे। तो कहीं ‘जंगल ट्रेल’ पढ़कर अगर आप यहाँ आओगे, तो दो किलोमीटर तक आपको पत्थरों और मलबे के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। इस मलबे को नजरअंदाज करके अगर आप आगे बढ़ते रहे, तो आप तिंदर पहुँच जाएँगे। हालाँकि गूगल मैप में तिंदर को तीर्थन नदी के दाहिने किनारे पर दिखाया गया है, जबकि यह बाएँ किनारे पर है। तिंदर 1850 मीटर की ऊँचाई पर है और अगर आपकी फिटनेस ठीकठाक है, तो आप गुशैनी से एक घंटे में पैदल यहाँ पहुँच सकते हैं। यहाँ आपको रुकने को होमस्टे भी मिल जाएँगे और अच्छा भोजन भी मिल जाएगा।
तिंदर से भी आगे चलेंगे तो आपको ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का गेट मिलेगा। यहाँ आपके परमिट चेक किए जाएँगे। यानी आप बिना परमिट यहीं तक आ सकते हैं। इससे आगे जाने के लिए आपको परमिट और गाइड अवश्य लेना होगा। अगर आपके पास परमिट है, तो कुछ ही देर में आप होंगे रोला नामक जगह पर। यहाँ कैंपिंग ग्राउंड है और आप नदी किनारे कैंपिंग का आनंद उठा सकते हैं। इस जगह की ऊँचाई है 2100 मीटर। 
अगर आप नियमित ट्रैकर नहीं हैं और आपने कभी भी ट्रैकिंग नहीं की है, तो भी आप रोला तक आराम से आ सकते हैं। गुशैनी से रोला लगभग 10 किलोमीटर दूर है और आपको केवल 500 मीटर ही ऊपर चढ़ना होता है। यहाँ आप नदी किनारे बैठ सकते हैं, बर्डवाचिंग कर सकते हैं और नसीब अच्छा हुआ तो भालू-भूलू भी देख सकते हैं। 
और अगर आप अच्छे ट्रैकर हैं, तो आपके सामने पूरा नेशनल पार्क है। आप खूब ट्रैकिंग कीजिए। यह नेशनल पार्क ज्यादातर अनछुआ और अनजाना है। इन ट्रैक्स के बारे में हम बाद में कभी बात करेंगे। 
और हाँ, यह तीर्थन नदी आती है हंस कुंड से, जिसे तीर्थ भी कहते हैं। उधर लगभग 4000 मीटर की ऊँचाई पर कुछ ग्लेशियर हैं, जिनसे यह नदी निकलती है। वहाँ केवल ट्रैकिंग से ही पहुँचा जा सकता है।


तो यह थी तीर्थन वैली की कथा। लेकिन अभी भी एक छोटी-सी वैली छूट गई है, जो है तो तीर्थन से अलग, लेकिन पर्यटन की दृष्टि से वह भी तीर्थन वैली में ही गिनी जाती है। इसके लिए आपको पहुँचना होगा वापस बंजार।
अभी कुछ ही देर पहले हमने आपको बताया था कि बंजार से कुल्लू-रामपुर सड़क सीधी चली जाती है। हम अब इसी सड़क पर चलेंगे। यह भी एक नदी के साथ-साथ आगे बढ़ती है। इस नदी का नाम भी हमें नहीं पता, लेकिन इसे जीभी वैली भी कह देते हैं, क्योंकि बंजार से 7-8 किलोमीटर चलकर जीभी गाँव स्थित है। जीभी समुद्र तल से लगभग 1900 मीटर ऊपर है। यहीं से एक रास्ता चैहणी कोठी की तरफ जाता है। चैहणी में एक बहुत पुराना और कई मंजिला किला है, जो वाकई दर्शनीय है।
जीभी में नदी पार करके एक जलप्रपात भी है। काफी ऊँचा है और आजकल प्रसिद्धि भी पा रहा है। जीभी से आगे चलेंगे, तो समुद्र तल से 1950 मीटर ऊपर घियागी गाँव है, जहाँ आजकल हम रहते हैं। 
घियागी में हम इस नदी को पुल से पार करेंगे और अब एक नाले के साथ-साथ ऊपर बढ़ते हैं। इसे जलोडी नाला भी कहते हैं। रास्ते में शोजा गाँव है, जो लगभग 2600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। और शोजा से चलकर आप पहुँच जाते हैं जलोडी जोत। इसकी ऊँचाई है लगभग 3150 मीटर। जलोडी जोत पार करके रास्ता तब तक ढलानदार है, जब तक आप सतलुज नदी के किनारे नहीं पहुँच जाते।
कुल्लू से जलोडी और आगे आनी, रामपुर तक खूब बसें चलती हैं। आप आराम से जलोडी जोत पर उतरिए, किसी ढाबे पर चाय-नाश्ता कीजिए और निकल पड़िए 5 किलोमीटर के सेरोलसर लेक के आसान ट्रैक पर। यह छोटी-सी झील लगभग 3200 मीटर पर स्थित है और मुझे पूरा यकीन है कि आपको यहाँ आने का रास्ता और यह झील बहुत पसंद आएँगे। 
जलोडी जोत से पश्चिम दिशा में 3 किलोमीटर की पैदल दूरी पर घास का एक विशाल मैदान स्थित है। इसे रघुपुर गढ़ या रघुपुर किला कहा जाता है। किसी जमाने में यहाँ एक सैनिक चौकी हुआ करती थी, जिसके अवशेष आज भी यहाँ आपको आसानी से मिल जाएँगे।





...
तो देर किस बात की? आगामी छुट्टियों में कार्यक्रम बनाइए तीर्थन वैली का और एक नया अनुभव लेकर जाइए। यह जगह भले ही आपके लिए अनजानी हो, लेकिन हर गाँव में हर जगह आपको रुकने-खाने की अच्छी सुविधा मिल जाएगी। और हाँ, बी.एस.एन.एल., एयरटेल और जिओ भी।


Comments

  1. Bahut shandar yatra vritant hai. aapki lekhan shailee bahut badia hai

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  2. Bahut shandar yatra vivran hai.aapki lekhan shailee bahut prabhavshali hai.Yatra ka sajeev vivran mil jata hai.

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