9 जनवरी 2016
कल जब हम दोरजे साहब के यहां बैठकर देर रात तक बातें कर रहे थे तो हिम तेंदुए के बारे में भी बातचीत होना लाजिमी था। किब्बर हिम तेंदुए के कारण प्रसिद्ध है। किब्बर के आसपास खूब हिम तेंदुए पाये जाते हैं। यहां तक कि ये गांव में भी घुस आते हैं। हालांकि हिम तेंदुआ बेहद शर्मीला होता है और आदमी से दूर ही दूर रहता है लेकिन गांव में आने का उसका मकसद भोजन होता है। यहां कुत्ते और भेडें आसानी से मिल जाते हैं।
दोरजे साहब जिन्हें हम अंकल जी कहने लगे थे, का घर नाले के बगल में है। किब्बर इसी नाले के इर्द-गिर्द बसा है। घर में नाले की तरफ कोई भी रोक नहीं है, जिससे कोई भी जानवर किसी भी समय घर में घुस सकता है। कमरों में तो अन्दर से कुण्डी लग जाती है, लेकिन बाहर बरामदा और आंगन खुले हैं। अंकल जी ने बताया कि रात में तेंदुआ और रेड फॉक्स खूब इधर आते हैं। आजकल तो बर्फ भी पडी है। उन्होंने दावे से यह भी कहा कि सुबह आपको इन दोनों जानवरों के पदचिह्न यहीं बर्फ में दिखाऊंगा। यह बात हमें रोमांचित कर गई।
रात ग्यारह बजे तक हम अंकल जी से बातें करते रहे। फिर आंगन से होते हुए अपने कमरे में आ गये। बिजली की रोशनी से पूरा आंगन प्रकाशित था, फिर भी हमने चौकस होकर इधर-उधर भी देखा कि कहीं कोई जानवर तो नहीं आ गया। फिर कमरे में आकर कुछ देर तक हम भी बातें करते रहे, खासकर कैमरे के मैन्युअल मोड के बारे में। और पौने बारह बजते-बजते कमरे की बत्ती बुझा दी।
आंख लगी ही थी कि मुझे दरवाजा खुलने की आवाज आई। जरूर यह सुमित ही होगा। रजाई से मुंह बाहर निकाला तो देखा कि सुमित दरवाजा खोलकर इधर-उधर देख रहा था। जरूर उसे मूतने शौचालय तक जाना है। शौचालय नाले के बिल्कुल पास था और आप जानते ही हैं कि कमरे के दरवाजे से लेकर नाले तक सबकुछ किसी भी जानवर के आने के लिये खुला था। कोई जानवर अगर आयेगा, तो नाले के रास्ते ही आयेगा। सुमित धीरे धीरे बरामदा पार करता हुआ आंगन में पहुंचा। अब मुझे खुराफात सूझी। सुमित पहले से ही डरा हुआ भी था और बेहद चौकस भी। मैंने जोर से कहा- सुमित भाई, देखकर जाना। रात में यहां स्नो लेपर्ड भी आ जाता है। इसके बाद पता नहीं सुमित ने अपना काम हल्का किया या आधे-अधूरे में ही लौटकर आ गया लेकिन आते ही मुझ पर टूट पडा- अबे साले, मेरी तो पहले से ही फटी पडी थी, तुझे चिल्लाकर कहना जरूरी था क्या? मैं इसीलिये तेरे सोने के बाद गया था कि तू मुझे जरूर डरायेगा लेकिन वही बात हो गई।
खैर जी, सुबह उठे। सबसे पहले बाहर रखा तापमापी यन्त्र देखा। अब नौ बजे का तापमान माइनस 14 डिग्री था और रात का न्यूनतम तापमान था माइनस 15 डिग्री। सुमित ने नहाने की इच्छा जाहिर की तो अंकल जी ने यानी दोरजे साहब ने तुरन्त पानी गर्म होने को रख दिया। मैं शौचालय में गया तो उसके मग्गे में रखा थोडा सा पानी पूरी तरह जमा हुआ था। अंकल जी ने तुरन्त गर्म पानी लाकर दिया। ऐसे माहौल में नहाना मिले या न मिले, लेकिन गर्म पानी से धोना मिल जाये तो समझना कि वाकई जन्नत है।
आज मौसम बिल्कुल साफ था और तेज धूप निकली थी। तेज धूप अर्थात गर्मी। यहां छांव में बैठ जाओगे तो माइनस की ठण्ड महसूस होती है और अगर इस तेज धूप में बैठ जाओगे तो चालीस डिग्री की गर्मी भी महसूस होती है। अंकल जी ने सुमित के नहाने की सुविधा के लिये यह भी कह दिया कि आप उनके कमरे में ही नहा लो। बर्तन धोने वाली चौकी काफी बडी थी और उस पर बैठकर आसानी से नहाया जा सकता था। फिर उस कमरे में चूल्हा भी जला हुआ था, जिससे कमरा काफी गर्म हो गया था। ठण्डे पडे बाथरूम में नहाने से अच्छा था कि कमरे में ही नहा लिया जाये। मुझे नहाना होता तो मैं कमरे में नहा आता लेकिन सुमित संकोच करता रहा और बाथरूम में ही नहाया।
सुमित की देखा-देखी मैंने भी अपना मुंह धोया और सिर भी धोया। बडी देर तक सिर में से भाप उठती रही।
अब बारी थी किब्बर की दूसरी दिशा में हिम तेंदुए को देखने जाने की। हां, एक बात तो रह ही गई। रात रेड फॉक्स आई थी और वह एक चप्पल उठाकर ले गई थी। रेड फॉक्स यानी हिमालयन लोमडी चप्पलों को खा जाती है।
तो हम हिम तेंदुए की खोज में चल दिये। इसी नाले के साथ साथ ऊपर जाने का सुझाव मिला। दोरजे साहब ने दावे से कहा कि उधर तो हिम तेंदुआ मिल ही जायेगा।
नाला जमा हुआ था। हम इसके किनारे बने रास्ते पर चलते रहे। शीघ्र ही किब्बर गांव पीछे छूट गया। जमे हुए नाले पर सुमित चलने लगा। यह ज्यादा चौडा नाला नहीं था। ऊपर बर्फ थी और नीचे बहुत थोडा थोडा पानी बह भी रहा था। फिर भी यह बर्फ काफी मजबूत थी और कितना भी वजन सहन कर सकती थी। इसके ऊपर कल स्नो पड गई जिससे इसकी फिसलन कम हो गई। सुमित इसी का फायदा उठाने लगा और इस पर चलने लगा। शुरू में डरा भी लेकिन जल्दी ही उसका फिसलने का सारा डर निकल गया।
कुछ आगे इस नाले में एक दूसरा नाला आकर मिल रहा था। वो नाला कुछ ऐसा था कि सर्दी में जब वो जमने लगा तो बर्फ की वजह से उसके पानी ने रास्ता बदल लिया। फिर वहां से भी जम गया तो फिर से रास्ता बदल लिया और वहां भी जम गया। यह काफी चौडाई में जमा हुआ था और पीछे ढाल भी काफी था। सुमित मजे-मजे में इसी पर चढ गया। सुमित के फिसलने का डर तो था, लेकिन बर्फ टूटकर उसमें समा जाने का कोई डर नहीं था। और फिसलकर भी कहां जाता? अगर फिसलता भी तो वहीं गिरा रह जाता।
मैं वीडियो बनाता रहा और सुमित इस नाले पर आगे बढता रहा। एक जगह जब ढाल काफी ज्यादा हो गया तो सुमित फिसला भी। हालांकि किसी भी घटना या दुर्घटना का कोई डर नहीं था, इसलिये हमने इस पल को अपने-अपने तरीके से खूब एंजोय किया। थोडी देर में सुमित बाहर आया तो पता चला कि एक नई मुसीबत हो गई है, जिसका हमने अन्दाजा नहीं लगाया था। हुआ यूं कि जब सुमित उस चौडे नाले पर जा रहा था तो कई बार फिसला था। इसी दौरान उसे कई बार हाथों का सहारा लेकर उठना पडा। एक तो पहले ही मौसम अत्यधिक ठण्डा था, फिर बिना दस्ताने के उसे कई बार बर्फ का सहारा लेकर उठना और चलना पडा। इससे उंगलियां सर्द हो गईं और इनमें रक्त संचार बन्द हो गया। रक्त संचार बन्द होने से उंगलियां सुन्न पड गईं। सुमित एक डॉक्टर है, इसलिये वह इन सबके बारे में ज्यादा बेहतर जानता है। वह रक्त संचार बढाने को हाथ को हवा में गोल गोल घुमाने लगा, ताकि उंगलियों तक रक्त पहुंच जाये। फिर मैंने सलाह दी कि दोनों हाथों की उंगलियों को घुटने के पीछे दबाकर आराम से बैठ जाओ। इन्हें गर्मी मिलेगी और सबकुछ सामान्य होने लगेगा।
इससे फायदा मिला। बन्द पडी नसों में रक्त दौडने लगा। इस प्रक्रिया में एकबारगी बहुत ज्यादा दर्द भी होता है जो धीरे धीरे कम होने लगता है। यह दर्द इतना ज्यादा हुआ कि सुमित चीखने भी लगा।
असल में हाथों और पैरों की उंगलियां, नाक और कान ऐसे हिस्से हैं जो शरीर की गर्मी को बडी तेजी से बाहर छोडते हैं। इसीलिये ये अंग सर्दियों में सबसे पहले ठण्डे होते हैं और सुन्न भी सबसे पहले ही होते हैं। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि इन्हें ढककर रखा जाये। आप यकीन नहीं करेंगे, क्योंकि सर्दियां जा चुकी हैं, अगली सर्दियों में इसे आजमाकर देखना कि केवल उंगलियों को ही सर्दी से बचाकर हम काफी हद तक सर्दी से बचे रह सकते हैं। उंगलियों में भी जो नाखून के आसपास का हिस्सा है, उसे गर्म रखिये और आपको ठण्ड बहुत कम लगेगी।
आगे बढे तो बर्फ पर हिम तेंदुए के पदचिन्ह मिले। मैंने कभी हिम तेंदुए के पदचिन्ह नहीं देखे थे और मुझे इनकी पहचान भी नहीं थी, लेकिन बाद में जब दोरजे साहब से पूछा तो उन्होंने इसकी पुष्टि की। पदचिन्हों की दो कतारें थीं। एक गांव की तरफ जाने वाली और दूसरी लौटने वाली। तीसरी कोई कतार नहीं थी। एकाध जगह लोमडी के पदचिन्ह भी मिले। कल दोपहर तक बर्फ पडनी बन्द हो गई थी। इसका अर्थ था कि तेंदुआ पिछले 20 घण्टे में नीचे गांव की तरफ गया था और वापस भी लौट आया था। दिन में तो उसके लिये ऐसा करना ठीक नहीं था, अवश्य वह रात को ही गया होगा। सवेरे वापस आ गया। सवेरे अर्थात तीन-चार घण्टे पहले।
जिधर से तेंदुआ आया था और जिधर गया है, उधर घाटी काफी संकरी थी और बडे बडे पत्थर भी पडे थे। ज्यादातर भूदृश्य सफेद और मटमैला था, इसलिये हमारे लिये दूर से तेंदुए को देखना मुश्किल था। थोडा ही आगे बढे कि एक बडे पत्थर के पीछे एक छोटी सी गुफा मिली। जानकार लोग जानते हैं कि ज्यादातर गुफाएं कैसी होती हैं। कोई चट्टान आगे को निकली होती है और उसके नीचे जो थोडा सा खाली स्थान बन जाता है, उसे गुफा कह दिया जाता है। हम आवाज करते हुए सावधानी से उस गुफा के सामने पहुंचे तो वह खाली मिली। इसमें कुछ राख भी पडी थी जो सर्दियों से पहले की थी। दीवारों पर धुएं के निशान भी थे, गर्मियों में भेडपालक इसमें आग जलाते होंगे।
आगे बढना खतरनाक था। यह तो निश्चित ही है कि इसी घाटी में हिम तेंदुआ है। तेंदुआ सामने ही कहीं आराम कर रहा होगा। हम अचानक उसके पास पहुंचेंगे, तो वह चौंककर हम पर हमला भी कर सकता है। जानबूझकर उसके पास जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था। वापस मुडने का फैसला किया।
इस घाटी में तो नहीं गये, लेकिन फिर दूसरी दिशा में थोडा ऊपर चढ गये। एक स्थान (32.34149, 78.01645, ऊंचाई 4377 मीटर) पर बडा समतल मैदान था। मानसून में यहां अवश्य हरी-हरी घास उग आती होगी। ज्यादा तो नहीं उगती होगी, लेकिन फिर भी उगती अवश्य होगी। यहां से एक पगडण्डी भी आगे जाती हुई दिख रही थी। यही पगडण्डी आगे परांग ला पार करके शो मोरीरी चली जाती है। नीचे एक तरफ किब्बर गांव दिख रहा था और दूसरी तरफ चीचम गांव। दोनों ही गांवों की पृष्ठभूमि में स्पीति नदी के उस तरफ के चिर-हिमाच्छादित पर्वत भी दिख रहे थे। गजब का नजारा था। सांय-सांय हवा चल रही थी। धूप होने के बावजूद भी ठण्ड से उंगलियां कटी जा रही थीं।
यहां किसी आदमी या पशु की कोई आवाजाही नहीं थी। इसलिये हो सकता है कि कोई हिम तेंदुआ इधर ही कहीं एकान्त में धूप में पसरा पडा हो। हमने खूब गौर से देखा, लेकिन कोई नहीं दिखा।
किब्बर गांव |
चीचम गांव |
किब्बर गांव का शानदार दृश्य |
वापस किब्बर पहुंचे। दोरजे साहब ने बताया कि उन्होंने हमारे लिये किब्बर जाती एक गाडी रुकवा रखी थी, जो कुछ ही देर पहले यहां से गई है। अब हमें शायद पैदल ही 18 किमी दूर किब्बर जाना पडे।
हिम तेंदुए के पदचिन्हों के फोटो देखते ही दोरजे साहब ने पुष्टि कर दी कि ये हिम तेंदुए के ही हैं। उन्होंने बताया कि नवम्बर में यहां कुछ विदेशी हिम तेंदुआ देखने आये थे। वे दो सप्ताह तक यहां डटे रहे और रोज तेंदुआ ढूंढने जाते थे, लेकिन उन्हें कोई हिम तेंदुआ नहीं मिला। हालांकि उस समय बर्फ नहीं थी, इसलिये उन्हें उसके पदचिन्ह भी नहीं मिल सके।
सर्दियों में स्पीति के ज्यादातर लोग नीचे रिवालसर या धर्मशाला चले जाते हैं। दोरजे परिवार भी रिवालसर जाने के लिये घर से निकल चुका था और इनका सारा सामान रिवालसर पहुंच चुका था। अभी ये नाको ही पहुंचे थे कि इन्हें पता चला कि किब्बर के स्कूल के लिये अध्यापकों की भर्ती निकली है। उसके लिये ये उस दिन नाको ही रुक गये। नाको में इनकी ससुराल है। बाद में सामान भी वापस मंगवाया। उस भर्ती के बारे में विस्तार से पिछली पोस्ट में बता दिया था। अगर ये रिवालसर चले जाते तो हमें शायद किब्बर में रहना न मिलता।
गौरतलब है कि रिवालसर बौद्ध धर्म का एक बडा केन्द्र है और धर्मशाला के पास मैक्लोडगंज में तो दलाई लामा रहते ही हैं। स्पीति की तकरीबन पूरी आबादी बौद्ध है, इसलिये इन दोनों स्थानों से जुडाव होना स्वाभाविक है।
कमरे का किराया 500 रुपये था और हम दोनों के डिनर, ब्रेकफास्ट, लंच और ढेर सारी चाय और गर्म पानी का सब मिलाकर 300 रुपये बने। कुल 800 रुपये दोरजे साहब को देकर हम वापस काजा के लिये चल दिये। एक दिन का किब्बर प्रवास हमारी इस यात्रा का सबसे शानदार पहलू था। यात्रा में आपको दोरजे जैसे लोग मिल जायें, तो यात्रा अपने ही आप शानदार हो जाती है।
दोरजे साहब की लडकी। इसे भोटी के साथ साथ हिन्दी और अंग्रेजी भी आती थी। सबसे यह भोटी में बतियाती थी और हमसे हिन्दी में। कहती- मैं अपनी दोस्ती के घर जा रही हूं। इससे बातें करना बडा अच्छा अनुभव था। |
सुमित का चश्मा टूट गया था। मैं उसे जोडने की सफल-असफल कोशिश करता हुआ। |
किब्बर से चलते ही एक कार मिल गई। वे दो लडके थे और की जा रहे थे। की से किब्बर 10 किमी के आसपास रह जाता है। हम इसमें बैठ लिये लेकिन जब पता चला कि ड्राइवर गाडी चलाना सीख रहा है और दूसरा लडका उसे सिखा रहा है तो रूह फ़ना हो गई। सडक पर थोडी थोडी बर्फ थी और पूरा रास्ता हेयरपिन बैण्ड वाला था। कई बार तो ऐसे बैण्डों पर उससे गाडी मुडती भी नहीं थी और पीछे ले जाकर दोबारा मोडता था। की पहुंचने तक हमारी तो हालत पतली हुई रही। खासकर मेरी, सुमित का पता नहीं। की पहुंचकर सिखदड ड्राइवर ने कहा कि 300 रुपये दे देना, आपको काजा छोड दूंगा तो हमें मना करते देर नहीं लगी।
की से पैदल ही काजा की ओर चल दिये। रास्ता मुख्यतः ढलान वाला है। आराम से चलते हुए ढाई-तीन घण्टे में पहुंच जायेंगे। बराबर में स्पीति नदी बह रही थी। सुमित की इच्छा थी कि सडक छोडकर स्पीति के पथरीले पाट पर चलें लेकिन मैंने मना कर दिया। सडक पर चलना अलग बात है और बालू-पत्थर मिश्रित स्थान पर चलना अलग बात।
तीन किलोमीटर के आसपास ही चले थे कि पीछे से एक कार आकर रुकी। इसमें दो लामा बैठे थे और एक लामा ही उसे चला रहा था। उन्होंने हमें काजा छोड देने का प्रस्ताव दिया जिसे हमने तुरन्त मान लिया। काजा पहुंचकर जब हम पैसे देने लगे, तो उन्होंने मना कर दिया।
की गांव |
हिमाचल में स्थित होने के कारण स्पीति में हिन्दी खूब पढी-समझी जाती है। ग्राम पंचायत चुनाव के पोस्टर हिन्दी में। |
पीओ-काजा बस काजा बस अड्डे में प्रवेश करती हुई। |
सीधे ल्हामो होमस्टे में पहुंचे। अपने उसी कमरे में जाकर सामान पटक दिया और बस अड्डे पर बनी चाय की दुकान पर चाय पीने लगे। साढे चार बज गये थे और रीकांग पीओ से आने वाली एकमात्र बस कभी भी आ सकती थी। हम इसी बस से कल सुबह वापस चल देंगे।
ठीक पौने पांच बजे बस आ गई। बस पूरी रात यहीं खडी रहती है और सुबह साढे सात बजे रीकांग पीओ के लिये चल देती है।
सुमित की शक्ल नहीं, बल्कि चश्मा देखिये। |
अगला भाग: जनवरी में स्पीति: काजा से दिल्ली वापस
1. जनवरी में स्पीति- दिल्ली से रीकांग पीओ
2. जनवरी में स्पीति - रीकांग पीओ से काजा
3. जनवरी में स्पीति - बर्फीला लोसर
4. जनवरी मे स्पीति: की गोम्पा
5. जनवरी में स्पीति: किब्बर भ्रमण
6. जनवरी में स्पीति: किब्बर में हिम-तेंदुए की खोज
7. जनवरी में स्पीति: काजा से दिल्ली वापस
विस्तृत जानकारी,बहुत खूब। डॉ साब ने दस्ताने क्यों खोले थे बर्फ मे। रिस्क लिया। उँगलियाँ कटनी भी पड़ती हैं। अभी एक डॉ से मिला सियाचिन में आर्मी में ड्यूटी के दौरान उसकी उंगलिया सुन्न हुई और आगे से काटनी पड़ी। मैने उस के हाथ को देखा। तो भविष्य में सावधानी बरतें।
ReplyDeleteसर जी,मुझे दस्ताने पहनने की आदत नहीं है,तो नहीं पहने थे।
Deleteफिर ये सब इतना क्षणिक हुवा की तैयारी का मोका ही नहीं मिला।
बाकि एक बार पीड़ा का अनुभव हो गया है,तो भविष्य में निश्चित रूप से सावधानी बरती जायेगी।
हां रमेश जी, आपने ठीक कहा। बाकी सब तो ठीक था, बस यही एक गडबड हुई थी आज की यात्रा में। खैर, आखिरकार सब सकुशल निपट गया।
Deleteओह अहाहा. . . . . कितना अद्भुत!!!!!!!!
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
Deleteकाश हिम तेंदुआ मिल जाता...
ReplyDeleteहमें भी फोटो से दर्शन हो जाते।
हिम तेंदुए इतनी आसानी से नहीं मिला करते सर जी...
Deleteहिम तेंदुआ आदमी को खा जाता है क्या ? किब्बर को आपकी नजर से देखना अच्छा लगा नीरज जी !!
ReplyDeleteनहीं योगी जी, हिम तेंदुआ आदमी को नहीं खाता, बल्कि दूर भागता है।
Deleteबहुत डरा दिया था,उस वक्त तुमने।
ReplyDeleteनींद भी नहीं आई ठीक से,खेर क्या करता पूरी रात स्पीति के फोटो देखता रहा,वैसे नींद न आने का कारण इतनी ऊँचाई वाली जगह पर पहली बार सोना भी हो सकता है।
नींद न आने के बावज़ूद अगली सुबह कोई भारीपन नहीं था।
दिल्ली के बाद नहाया नहीं था,तो नहाने की तीव्र इच्छा होने लगी,इंतजाम भी बढ़िया था,लेकिन उनके किचन में नहाने का मन नहीं हो पाया।
नहाने का मज़ा अदभुत था,अंकल जी कह रहे थे,कि आप ने यहाँ नहा लिया अब आप सदैव स्वस्थ रहेंगे,आप के मरीजो को भी यहाँ पंहुचा दिया करे।
हिमतेंदुवे की खोज में निकले तो बहुत कुछ घटित हुवा,उम्मीद के विपरीत बहुत ही कम समय में पद चिन्ह मिल गये,तो उम्मीद बंध गई थी कि हिमतेंदुवा दिख सकता है, लेकिन यह हो न सका।
पिछले दो दिनों से नीरज भाई मेरे वीडियो बना रहे थे,जहाँ में कही छोटी मोटी ट्रेकिंग में फसता इनका कैमरा चालू हो जाता,आज भी यही होने वाला था,में भी मस्ती के मूड में था,जमे हुवे नाले के पास से निकल रहे थे,मेरा मन किया ऊपर चड़ने को,पीछे से इन्होंने भी प्रोत्साहित कर दिया,फिर क्या बाकि रह जाता है, में भी शुरू हो गया,मेरे चड़ना शुरू करते ही इनकी वीडियोग्राफी शुरू हो गई,आधा रास्ता पार करते ही में समझ गया था,कि आज तो में जरूर गिरूँगा,पर इतना भी यक़ीन था कि नीरज ने गिराने के लिए पहुचाया है, डूबने के लिए नहीं,और हुवा भी यही खूब गिरा, खूब फिसला लेकिन मजा भी बहुत आया।
खेर में कब गिरूँगा, कब फिसलूँगा,उसका पूर्वानुमान नीरज,आपको काफी बेहतरीन था,इस विडीयो में आपकी कॉमेंट्री मनोरंजक रही।
बर्फ में गिरने के बाद सम्हाला भी इन्ही ने,नहीं तो में तो दर्द में अपनी डॉक्टरी भूल ही गया था,दर्द के दौरान गुस्सा भी बहुत आ रहा था,लेकिन दर्द जाते ही सब सामान्य हो गया।
लौटने के अंकल से बिल माँगा तो पहले उन्होंने कहा की 1000 हुवे है, मेने पूछ लिया किस हिसाब से,तो कहने लगे ठीक हे 800 देदो,शायद उन्हें भी लगा होगा 1000 ज्यादा है।
उस कार में मुझे भी डर तो लग रहा था।
पैदल ही काजा पहुचने की इच्छा थी,लेकिन लिफ्ट के बाद लिफ्ट मिलती रही,लेकिन कोई मलाल नहीं था,हम काफी कुछ देख चुके थे।
आपके इन अनुभवों की कमी थी सुमित भाई पोस्ट में... अब पूरी हो गई...
Deleteचश्मा तो नयी स्टाइल का है हिम तेंदुआ दिख जाता तो मजा आ जाता
ReplyDeleteसही कहा विनोद भाई...
Deleteरोमांचक यात्रा ......
ReplyDeleteधन्यवाद रीतेश जी...
Deleteचुनाव चिन्ह मेज का पंखा. क्या वहां लोग पंखा इस्तेमाल करते हैं? क्या वहां लोग इसे पहचानते ? अगर नहीं तो ऐसा चुनाव चिन्ह किस काम का.
ReplyDeleteपंखा अक्सर इस्तेमाल नहीं होता लेकिन गर्मियों में इसकी जरुरत पड जाया करती है।
Deleteजाटाराम नाल मौजा ही मौजा ...
ReplyDeleteधन्यवाद राकेश जी...
Deleteबहुत सुंदर तस्वीरें और वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद सुमन जी...
Deleteरोचक यात्रा प्रसंग आपके साथ हमने भी दर्शन कर लिए किब्बर के ...photos सुपर्ब :)
ReplyDeleteधन्यवाद सुनीता जी...
Deletesumit ka Chasma such me kamaal ka hai.....
ReplyDeleteहां जी, आपने ठीक कहा...
Deleteइस बार के सभी चित्र लाजवाब आये हैं।
ReplyDeleteमजाक : डॉ साहब शुक्र मनाइए हिम तेंदुआ नहीं मिला। सिर्फ नाम सुनकर डर से सारी रात जगे रहे अगर सामने पड़ जाता तो क्या होता। बर्फीले क्षेत्र में धोने को पानी भी नहीं मिलता :P:P
सुमित जी को डरा ही दिया आपने रात मे, हिम तेंदुआ नही सही उसके पैरो के निशान ही देख लिए यह भी बहुत है नही तो वो अंग्रेज जो यही पर कई दिन रहे,हिम तेंदुऐ को देखने के लिए, उन्हे तो पैरो के निशान भी नही दिखे थे।
ReplyDeleteमजेदार पोस्ट, ये सही बात है नीरज भाई कि जानवर हमेशा अपने बचाव के लिए आक्रमण करता है। आपका वापिस लौटने का निर्णय उचित था। सुमित जी का स्टायलिश चश्मा अच्छा लगा।
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई...
Deleteइस बार आपकी वर्णन शैली तो लाजवाब है ही उस पर से तसवीरों ने तो मजा ही दोगुना किया हुआ है |
ReplyDeleteबाहर HOME पेज पर इस वृतांत के header के साथ जो panorama व्यू की तस्वीर लगाई हुई है वो प्रयोग शानदार असर दे रहा है !
होम पेज पर मतलब की इस पोस्ट के top पर
Deleteधन्यवाद राहुल जी...
Deleteधन्यवाद अमित जी...
ReplyDeleteVideo mast hey
ReplyDeleteBahut sunder.., khaskar video.Dikhane wale aur dekhne wale ke thahake sath hi gunjte hain.
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