Skip to main content

तीर्थन डायरी - 1 (7 मई 2019)

आज की इस पोस्ट का नाम “होटल ढूँढो टूर” होना चाहिए था। असल में जब से हमारे दोस्तों को यह पता चला है कि हम कुछ महीने यहाँ तीर्थन वैली में बिताएँगे, तो बहुत सारों ने आगामी छुट्टियों में शिमला-मनाली जाना रद्द करके तीर्थन आने का इरादा बना लिया है। अब मेरे पास तमाम तरह की इंक्‍वायरी आती हैं। बहुत सारे दोस्त तो ऐसी बातें पूछ लेते हैं, जिनका एक महीना बिताने के बाद मुझे भी नहीं पता। फिर मैं पता करता हूँ, तो खुद पर हँसता हूँ।

एक दोस्त ने 5-6 दिन यहाँ बिताने और अपने लिए एक यात्रा डिजाइन करने का ठेका मुझे दिया। अब मैं तो खाली बैठा हूँ। लग गया डिजाइन करने में। पहले दिन ये, दूसरे दिन वो... फिर ये, फिर वो। सबसे महँगे होटलों में उनके ठहरने का खर्चा भी जोड़ दिया और टैक्सी आदि का भी। फिर जब सारा टोटल किया, तो मेरे होश उड़ गए। करोड़ों रुपये का बिल बन गया। अबे इतना खर्चा थोड़े ही होता है... कम कर, कम कर... फिर सस्ते होटल की कैलकुलेशन करी। खर्चा कुछ कम तो हुआ, लेकिन था फिर भी करोड़ों में ही। और मैंने उन्हें कह दिया - “सर जी, आपकी फैमिली के लिए इतने करोड़ रुपये का बिल बना है।”

जैसी उम्मीद थी, वैसा ही जवाब आया - “फिर रहने दो... यह तो बहुत ज्यादा है।”
फिर मैंने सस्ता खर्चा बता दिया - “सर जी, इतने करोड़ रुपये का बिल बनेगा।”
“हाँ, ये ठीक लग रहा है... फोटो भेजो उन होटलों के।”


फिर उसी दिन मैंने दीप्ति को फोन किया - “यार, इधर के सबसे महँगे होटलों का बिल बनाया, तो करोड़ों रुपये का बन गया। और दोस्त लोग तो खर्च करने को तैयार हैं। अब कह रहे हैं कि होटल के फोटो भेजो।”
“तुझे कैसे पता कि वे सबसे महँगे होटल हैं?”
“मैंने गूगल मैप पर देखा।”
“तो उनकी बात भी ठीक है। जा और उनके फोटो खींचकर ले आ।”
“अरे, कैसे जाऊँ? मैं तो कभी गया ही नहीं इतने महँगे होटलों में। मेरी अंतरात्मा जाने ही नहीं दे रही।”
“चला जा, चला जा। अन्यथा वे शिमला चले जाएँगे और तू तब तक उन्हें गरियाता रहेगा, जब तक वे अगले साल तीर्थन न आ जाएँगे।”

कुछ तो दीप्ति का डर और कुछ उन दोस्तों की शिमला जाने की धमकी... आज निकल ही पड़ा। चूँकि मैं घियागी में रहता हूँ, तो जीभी जाना तो घर जैसी बात लगती है... चला जाऊँगा कभी भी। तो आज गुशैनी की तरफ आ गया। सबसे पहले अपने दोस्त बिंटू के यहाँ पहुँचा, वह नहीं मिला। यहाँ नदी किनारे उसके कैंप हैं। लेकिन ये उतने महँगे नहीं हैं। इसलिए जल्द ही महँगी जगहों की ओर बढ़ गया।

फिर याद आया कि यहीं कहीं पनकी सूद भी रहते हैं। पिछले दिनों फेसबुक पर उनसे बड़ा वाद-विवाद हुआ था। पोस्ट तो किसी और थी, लेकिन जैसी कि हमारी आदत होती है... लड़ हम रहे थे। पनकी कह रहे थे कि मनाली से आगे किसी भी बाइक वाले को नहीं जाने दिया जाना चाहिए... जबकि मैं जाने देने की वकालत कर रहा था। दो दिन के बाद वह डिस्कशन बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गया था, लेकिन मैंने मान लिया कि पनकी अच्छा दोस्त हो सकता है। इसलिए एक मैसेज कर दिया, फोन नंबर मिल गया और कुछ ही देर बाद मैं तीर्थन के एकदम किनारे उनके घर में बैठकर गप्पें मार रहा था। मैं फेसबुक की उस चर्चा को पुनर्जीवित भी करना चाहता था, लेकिन उनके यहाँ खतरनाक नस्ल के दो कुत्ते खुले घूम रहे थे।

बातों-बातों में पता चला कि उनका घर एक होम-स्टे भी है और उनके यहाँ दारू पीने की तो मनाही है ही, साथ ही ऊँची आवाज में बात करना और म्यूजिक बजाना भी मना है। यह सुनते ही मैं तो फैन हो गया उनका। टूरिज्म से संबंधित बिजनेस करने वाला एक इंसान आज ढंग का मिला, अन्यथा टूरिस्ट आते ही दारू पीने और शोर मचाने के लिए हैं और होटल वाले भी कुछ पैसे कमाने के लिए उनकी हर बात मानने लगते हैं।






यहाँ से निकला तो एक मित्र आ गए, सरदारशहर राजस्थान से पवन साब। वे अपनी कार से हिमाचल घूम रहे हैं और मणिकर्ण के बाद उनका इरादा शिकारी देवी जाने का था, लेकिन मुझसे मिलने तीर्थन वैली आए। मैं इनका भी फैन हो गया। इनकी जगह मैं होता, तो कहता - “अबे जाटराम, कुल्लू आ जाओ... तुमसे मिलना है।”



एक घंटे में मिल-मिलाकर ये सब शिमला की तरफ चले गए और मैं अब अपने काम में लग गया, जिस काम के लिए आज यहाँ आया था। चूँकि नदी किनारे के होटल देखने थे, तो सबसे पहले पहुँचा उषा गेस्ट हाउस में।

“भाई जी, हमारे कुछ दोस्त इधर आने वाले हैं, तो वे आपके गेस्ट हाउस के फोटो मंगा रहे हैं।”
“ले लो जी... ले लो जी... सब कमरे खुले हैं, जिस कमरे का फोटो लेना हो, ले लो।”

और फोटो लेते समय कैमरा भी कह रहा था - “भाई जाटराम, यह तो इन लोगों ने बहुत मेनटेन कर रखा है। अच्छी फर्निशिंग कर रखी है। पार्किंग भी है। साज-सज्जा भी अच्छी है। रिवर फेसिंग है। नीचे नदी में उतरने का रास्ता भी है।”
“चुपचाप अपना काम कर।”
“नहीं, मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि यह बहुत महँगा होना चाहिए।”
“अबे, हमें कौन-सा रुकना है!”

गेस्ट हाउस के मालिक से पूछा - “भाई जी, एक रूम कितने का है?”
“सर जी, 1500 रुपये प्रति व्यक्ति... ब्रेकफास्ट, डिनर इनक्लूड।”
“एक रूम का बताओ ना।”
“3000 रुपये... ब्रेकफास्ट, डिनर इनक्लूड...”
“यहाँ से खिसक ले नीरज भाई...” कैमरे की आवाज आई।
“चुप बे, हमें कौन-सा यहाँ रुकना है!”





यहाँ से आगे त्रिशला रिसोर्ट है। खुली जगह और नदी के किनारे। दूर से देखने पर भी मनमोहक लगता है, पास से तो और भी अच्छा लगता होगा। जैसे ही मोटरसाइकिल का हैंडल उधर घुमाया, एकदम मोटरसाइकिल ने मना कर दिया - “नहीं जाना। बहुत महँगा है। कोई 500 वाला देख।”
“अरी, तेरी वही आदत पड़ी हुई है... लेकिन आज की कहानी कुछ और है।”
“नहीं, जाना ही नहीं है। लोकेशन अच्छी है, सबको पसंद आएगी। दूर से फोटो ले ले। रेट और फोन नंबर गूगल मैप पर मिल जाएँगे।”
“अच्छा-अच्छा, ठीक है।”

फिर इसके बाद कोई अन्य होटल नहीं देखा। वापस गुशैनी बिंटू की कैंपिंग में आ गया। वह वैसे तो ऊपर तिंदर का रहने वाला है, लेकिन यहाँ भी उनकी जमीन है और उसने अपनी जमीन पर नदी के एकदम किनारे कैंप लगा रखे हैं। 1000 से 1500 रुपये प्रति व्यक्ति चार्ज करता है, भोजन जोड़कर... कम लोग हैं, तो कुछ ज्यादा और अगर ज्यादा लोग हैं, तो कुछ कम... लेकिन मुझसे वह कोई चार्ज नहीं करता। पता नहीं उसने मुझमें क्या खूबी देख ली... वह मुझे इतना दे देता है, लेकिन मेरे पास तो कुछ है ही नहीं देने को। तो मैं उसके कैंप के अच्छे-अच्छे फोटो खींच देता हूँ और उसके मोबाइल में ट्रांसफर कर देता हूँ। उससे भी उसके करोड़पति दोस्त फोटो माँगते हैं, लेकिन उसके पास अपने की कैंपों के अच्छे फोटो नहीं हैं। मेरे खींचे फोटो मिल जाने से अब उसे लगने लगा है कि उसके पास दुनिया के सबसे अच्छे फोटो हो गए हैं।

लेकिन मुझे यह भी पर्याप्त नहीं लगता। मैं तो बस इतना ही कर सकता हूँ कि उसका फोन नंबर आपको बता दूँ। वह कैंपिंग के साथ-साथ ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में ट्रैकिंग भी कराता है। उसके पिताजी भी गाइड थे और ये लोग इस नेशनल पार्क के सबसे पुराने गाइडों में से हैं। आपको कैंपिंग करनी है या नेशनल पार्क में ट्रैकिंग... बिंटू से ही संपर्क करें... फोन नंबर यह रहा... 8219243009.

और हाँ, उससे मेरा नाम जरूर लेना, ताकि मेरा टैम-बेटैम उनके यहाँ ठहरना होता रहे...








Comments

  1. रोचक और जानकारी से भरपूर धन्यवाद

    ReplyDelete
  2. भविष्य में नीरज को मैं पर्यटन व्यवसाय में देख रहा हूं.....

    ReplyDelete
  3. Hahahaha very interesting....Maja aa gaya 😄😄😄

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।

रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा से अनुसुईया

27 सितम्बर 2015    सवा ग्यारह बजे पंचगंगा से चल दिये। यहीं से मण्डल का रास्ता अलग हो जाता है। पहले नेवला पास (30.494732°, 79.325688°) तक की थोडी सी चढाई है। यह पास बिल्कुल सामने दिखाई दे रहा था। हमें आधा घण्टा लगा यहां तक पहुंचने में। पंचगंगा 3660 मीटर की ऊंचाई पर है और नेवला पास 3780 मीटर पर। कल हमने पितरधार पार किया था। इसी धार के कुछ आगे नेवला पास है। यानी पितरधार और नेवला पास एक ही रिज पर स्थित हैं। यह एक पतली सी रिज है। पंचगंगा की तरफ ढाल कम है जबकि दूसरी तरफ भयानक ढाल है। रोंगटे खडे हो जाते हैं। बादल आने लगे थे इसलिये अनुसुईया की तरफ कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। धीरे-धीरे सभी बंगाली भी यहीं आ गये।    बडा ही तेज ढलान है, कई बार तो डर भी लगता है। हालांकि पगडण्डी अच्छी बनी है लेकिन आसपास अगर नजर दौडाएं तो पाताललोक नजर आता है। फिर अगर बादल आ जायें तो ऐसा लगता है जैसे हम शून्य में टंगे हुए हैं। वास्तव में बडा ही रोमांचक अनुभव था।

लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज़

दृश्य एक: ‘‘हेलो, यू आर फ्रॉम?” “दिल्ली।” “व्हेयर आर यू गोइंग?” “लद्दाख।” “ओ माई गॉड़! बाइ साइकिल?” “मैं बहुत अच्छी हिंदी बोल सकता हूँ। अगर आप भी हिंदी में बोल सकते हैं तो मुझसे हिन्दी में बात कीजिये। अगर आप हिंदी नहीं बोल सकते तो क्षमा कीजिये, मैं आपकी भाषा नहीं समझ सकता।” यह रोहतांग घूमने जा रहे कुछ आश्चर्यचकित पर्यटकों से बातचीत का अंश है। दृश्य दो: “भाई, रुकना जरा। हमें बड़े जोर की प्यास लगी है। यहाँ बर्फ़ तो बहुत है, लेकिन पानी नहीं है। अपनी परेशानी तो देखी जाये लेकिन बच्चों की परेशानी नहीं देखी जाती। तुम्हारे पास अगर पानी हो तो प्लीज़ दे दो। बस, एक-एक घूँट ही पीयेंगे।” “हाँ, मेरे पास एक बोतल पानी है। आप पूरी बोतल खाली कर दो। एक घूँट का कोई चक्कर नहीं है। आगे मुझे नीचे ही उतरना है, बहुत पानी मिलेगा रास्ते में। दस मिनट बाद ही दोबारा भर लूँगा।” यह रोहतांग पर बर्फ़ में मस्ती कर रहे एक बड़े-से परिवार से बातचीत के अंश हैं।