Skip to main content

धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
पहले धोलावीरा का थोडा सा परिचय दे देता हूं, फिर वहां घूमने चलेंगे। इतिहास की किताब में आपने पढा होगा- मैंने भी पढा है- कि कोई सिन्धु घाटी सभ्यता थी। इसका प्रमुख नगर हडप्पा था, इसलिये हडप्पा सभ्यता भी कहते हैं। मुझे याद है कि जब सातवीं-आठवीं में मास्टरजी इतिहास की किताब पढवाया करते थे तो कई सहपाठी हडप्पा शब्द को हडम्पा पढते थे। गौरतलब है कि हमारे यहां किसी महिला को नालायक कहने की बजाय हडम्पा कह देते हैं।
खैर, हडप्पा के साथ एक और स्थान के बारे में हम पढते थे- वो है मोहनजोदडो। ये दोनों स्थान अब पाकिस्तान में हैं इसलिये हमारे लिये उतने सुलभ नहीं हैं। लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जो उसी काल के हैं, उसी तरह के लोग वहां बसते थे, उसी तरह का आचरण था, वही नगर व्यवस्था थी और आज वे भारत में हैं। इनमें कुछ नाम हैं- धोलावीरा, कालीबंगा, लोथल और रोपड। रोपड तो आज का रूपनगर है जो पंजाब में है। स्थानीय लोग इसे अभी भी रोपड ही कहते हैं- रोप्पड। कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ जिले में है जो पीलीबंगा रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूर स्थित है। लोथल और धोलावीरा दोनों गुजरात में हैं। इनके अलावा और भी कई नाम हैं जो कम प्रसिद्ध हैं। इनमें कुछ हरियाणा में हैं, कुछ उत्तर प्रदेश में हैं।

ये सब सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर थे जो आज से लगभग पांच हजार साल पहले खूब आबाद थी। उसी दौर में उधर पश्चिम में मैसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताएं भी आबाद हुआ करती थीं लेकिन सिन्धु घाटी सभ्यता का दायरा उन सबसे बडा था। एक खास बात और, प्राचीन काल में नगर नदियों के किनारे बसा करते थे। इससे सबसे बडा लाभ तो यही था कि पीने को पानी मिलता रहता था और नदियां आवागमन का साधन भी हुआ करती थीं। सिन्धु नदी इन सब उद्देश्यों की खूब पूर्ति किया करती थी। लेकिन रोपड और कालीबंगा तो सिन्धु से बहुत दूर हैं, तब भी दूर ही होंगे। इनके लिये थी सरस्वती नदी। सरस्वती के बारे में बहुत खोजबीन हुई है। वर्तमान घग्घर नदी को प्राचीन सरस्वती नदी माना जाता है। अगर घग्घर के मार्ग को देखें तो कालीबंगा इसके किनारे स्थित है। रोपड वर्तमान सतलुज किनारे माना जा सकता है। इस तरह पता चलता है कि अकेली सिन्धु नदी के किनारे ही सिन्धु घाटी सभ्यता विकसित नहीं थी, बल्कि सरस्वती के किनारे भी उसी काल में कुछ नगर थे। उधर दक्षिण-पश्चिम राजस्थान की लूनी नदी को भी सरस्वती का ही अवशेष माना जाता है और लूनी वर्तमान में कच्छ के रन में समाप्त होती है। आज से सौ सवा सौ साल पहले तक सिन्धु नदी धोलावीरा के बहुत पास समुद्र में गिरती थी। समय के साथ पश्चिम में चली गई है। अगर उपरोक्त सभी तथ्यों को मिलाकर देखें तो अन्दाजा लग रहा है कि धोलावीरा के पास सिन्धु और सरस्वती दोनों समुद्र में मिलती होंगी। अर्थात धोलावीरा बडे काम का नगर था।
फिर यह उजडा क्यों? उजड गया होगा किसी वजह से। बहुत से गांव नगर आज भी उजडते हैं। लखपत का उदाहरण हमारे सामने है। सवा सौ साल पहले यह खूब बडा और मौके का नगर था। बस सिन्धु ने क्या रास्ता बदला, लखपत की किस्मत फूट गई। जैसे कि हिमालय में खूब बडे बडे गांव थे। चीन ने तिब्बत पर क्या आक्रमण किया, सब उजड गये। यह उजडना-बसना तो प्राचीन काल से चला आ रहा है। धोलावीरा भी उजड गया होगा। सिन्धु पश्चिम में खिसकती चली गई, सरस्वती विलुप्त होती चली गई। आधार समाप्त होता गया और नगर उजडते गये। समय के साथ मकानों की छतें ढह गईं, दीवारें गिरने लगीं, नींव मिट्टी में दबी रह गई। बाढ आई और यह नींव और ज्यादा जमीन में दब गई। बाद में- वर्तमान काल में- अभी बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में- अंग्रेजों को पता चला। पता भी कैसे चला? बताता हूं।
कराची से लाहौर की रेलवे लाइन का काम चल रहा था। खुदाई हो रही थी। तब जाकर मिट्टी के अन्दर से ईंटें निकलने लगीं। खोजबीन हुई। हडप्पा नगर प्रकाश में आया। यहां जो सभ्यता बसती थी, उसे हडप्पा सभ्यता कह दिया गया। बाद में दूसरी जगहों पर वैसी ही ईंटें, वैसी ही मोहरें, वैसे ही बर्तन मिले तो हडप्पा सभ्यता का दायरा बढता गया। धोलावीरा भी उसी काल का नगर बन गया।
कहते हैं धोलावीरा कई बार उजडा और बसा। ऐसा कई तरह की ईंटों के मिलने से पता चलता है। अभी भी धोलावीरा आबाद है। उस प्राचीन नगर के बिल्कुल सटकर कुछ घर हैं, खेत हैं, रहन-सहन है। भगवान न करे, यह भी उजड जाये। इनके घरों के अवशेष बच जायेंगे। बस, इसी तरह की कहानी प्राचीन नगर की है। अभी भी यहां बहुत खुदाई होनी बाकी है। उस पुराने नगर के ऊपर वर्तमान नगर खेती करता है। वर्तमान खेतों की खुदाई करेंगे तो प्राचीन धोलावीरा और बडा होता चला जायेगा।
गाइड आपको एक बात बहुत जोर देकर समझायेगा कि इस उजाड कच्छ में जहां बारिश नहीं होती, पानी नहीं है, वे पुराने लोग बेहतर तरीके से पानी का उपयोग करते थे। पानी को संग्रहीत करते थे और तरीके से नालियों के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाया करते थे। वे तालाब और नालियां आज भी हैं। लेकिन मेरा मानना है कि पांच हजार साल पहले धोलावीरा में पानी की कोई कमी नहीं थी। पानी की कमी होने लगी तो नगर उजडता चला गया।
यहां एक संग्रहालय भी है। इसमें प्रवेश करने और फोटो खींचने का कोई शुल्क नहीं है। एक सलाह है मेरी कि अगर आप यहां जा रहे हैं तो पहले संग्रहालय देखें, इस स्थान का मानचित्र देखें। एक छोटी सी पुस्तिका फ्री में मिलेगी, उसे अपने साथ लें और निकल पडें वास्तविक साइट को देखने। गाइड की कोई जरुरत नहीं है। अगर आपकी पुरातत्व में कोई दिलचस्पी नहीं है तो गाइड आपको इतनी बातें बतायेगा, इतनी बातें बतायेगा कि थोडी ही देर में सब बातें आपके सिर से उतरने लगेंगीं। अगर पुरातत्व में दिलचस्पी है तो आप जान जायेंगे कि गाइड सिर्फ टाइम पास कर रहा है। अता-पता उसे भी कुछ नहीं है।
एक गौर करने वाली बात और भी है- महाभारत भी आज से लगभग पांच हजार साल पहले हुआ था। वो थी गंगा घाटी सभ्यता। हस्तिनापुर और हडप्पा दोनों ही बडे नगर थे। समकालीन भी थे। विकसित थे। निश्चित ही दोनों के मध्य खूब आवागमन होता होगा, खूब व्यापार होता होगा। बल्कि हां, वो थी एक गांधार (वर्तमान कंधार, अफगानिस्तान) की राजकुमारी- गांधारी- कौरवों की मां- हस्तिनापुर से गांधार का रास्ता हडप्पा से होकर ही जाता था। महाभारत में निश्चित ही हडप्पा का जिक्र होगा लेकिन किसी दूसरे नाम से। हडप्पा तो वर्तमान में हमने रखा है जहां सबसे पहले खुदाई हुई थी, वहां के एक गांव के नाम पर। बाकी प्राचीन हडप्पा की जो लिपि थी, वो तो आज भी नहीं पढी जा सकी है। उधर हस्तिनापुर में खूब संस्कृत का प्रयोग होता था।













जल निकासी के लिये बनी एक भूमिगत नाली















यही बैठे एक आदमी से खाना मांगा तो उसने लाकर दे दिया।







अगला भाग: धोलावीरा-2


कच्छ मोटरसाइकिल यात्रा
1. कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
2. कच्छ यात्रा- जयपुर से अहमदाबाद
3. कच्छ की ओर- अहमदाबाद से भुज
4. भुज शहर के दर्शनीय स्थल
5. सफेद रन
6. काला डोंगर
7. इण्डिया ब्रिज, कच्छ
8. फॉसिल पार्क, कच्छ
9. थान मठ, कच्छ
10. लखपत में सूर्यास्त और गुरुद्वारा
11. लखपत-2
12. कोटेश्वर महादेव और नारायण सरोवर
13. पिंगलेश्वर महादेव और समुद्र तट
14. माण्डवी बीच पर सूर्यास्त
15. धोलावीरा- सिन्धु घाटी सभ्यता का एक नगर
16. धोलावीरा-2
17. कच्छ से दिल्ली वापस
18. कच्छ यात्रा का कुल खर्च




Comments

  1. puratava ki sundar jaankari mili
    aur hamari amarnath ki jaankari
    baaki hai bhai

    ReplyDelete
    Replies
    1. अमरनाथ के लिये सर जी मैंने बताया था कि रजिस्ट्रेशन करा लीजिये, रजिस्ट्रेशन आरम्भ हो गये हैं। फिर बाकी बात करते रहेंगे, काफी दिन हैं अभी।

      Delete
  2. बढिया....
    भाई आज की पोस्ट बडी ज्ञानवर्धक रही.

    ReplyDelete
  3. इतिहास की जानकारी देखकर 'दिल गार्ड्न -गार्ड्न हो गया ....

    ReplyDelete
  4. सिंधु घाटी सभ्यता महाभारत से बहुत पहले की है नीरज जी। दोनों समकालीन नहीं है। दोनों में कोई समानता भी नहीं है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कितने पहले की है जी? मैंने पढा है कि सिन्धु घाटी सभ्यता लगभग पांच हजार साल पहले थी और महाभारत का दौर भी पांच हजार साल पहले ही था; दोनों बातें प्रामाणिक हैं। पता नहीं गलत पढा है कि सही। आप बता दीजिये कि सिन्धु घाटी सभ्यता लगभग कितनी पुरानी है और महाभारत कितना पुराना।

      Delete
  5. नीरज, होस्पेट रेल्वे स्टेशन के पास ( कर्नाटक राज्य में) एक प्राचीन नगरी है ---------- " हंपी " --- धोलवीरा जैसी है ... योजना बनाओ ह्म साथ चलेंगे ... तुमने उपर गाईड के बारे लिखा है ... बिल्कुल सही है " --------- गाइड आपको इतनी बातें बतायेगा, इतनी बातें बतायेगा कि थोडी ही देर में सब बातें आपके सिर से उतरने लगेंगीं। अगर पुरातत्व में दिलचस्पी है तो आप जान जायेंगे कि गाइड सिर्फ टाइम पास कर रहा है। अता-पता उसे भी कुछ नहीं है। ह्म साथ चलेंगे . तो गाईड तो फ्री में ...... मुझे अच्छा लगता है इतिहास की जानकारी देना ... ये पोस्ट लिख रहा था तो उपर parmeshwari choudhary जी की टिप्पण्णी पढी .... उनकी जानकारी सही है .... लेकीन नीरज तुम्हारी जानकारी भी सही है .... कुछ इतिहासकारों के मान्यता के अनुसार हडप्पा सभ्यता का प्रसिध्द स्थल ' मोहेजोंदाडो ' जरासंध की राजधानी थी ... इसका प्रमाण वो सिक्को, सिल है ... जिस पर जरासंध की प्रतिमा छपी है ... जरासंध तो महाभारतकालीन व्यक्तित्व है ... तो ' नीरज' आप बिल्कुल सही है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये तो जी मुझे नहीं पता कि जरासन्ध की राजधानी क्या थी, उसके सिक्के भी मिले या नहीं लेकिन इतना पक्का पता है कि महाभारत पांच हजार साल पहले हुआ था और सिन्धु घाटी सभ्यता भी उसी दौर की है। हो सकता है कि सौ साल, दो सौ, पांच सौ साल ऊपर नीचे हों लेकिन हैं सब उसी काल के। सिन्धु घाटी सभ्यता करोडों साल पुरानी आदिमानवों की सभ्यता नहीं थी- गुफामानवों की सभ्यता नहीं थी। बस, फर्क यही है कि एक की जानकारी हमें खुदाई से मिली है तो महाभारत की जानकारी ग्रन्थों से।

      Delete
  6. डिस्कवरी पे भी देखा था , ये एक किले के रूप में बसा नगर था !

    ReplyDelete
  7. बड़े आराम और मजे से महाभारत के काल्पनिक मिथक को हडप्पा के वस्तुगत यथार्थ को जोड़ दिया है। पर सवाल ये है कि हडप्पा के नगरों के अवशेष मिलते हैं लेकिन महाभारत के क्यों नहीं?

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर जी, मिथक और वास्तविकता को जोडने में क्या बुराई है? दोनों ही पांच हजार साल पुराने माने जाते हैं। अब जब माने ही जाते हैं तो हमारी भी कुछ कल्पना है।

      Delete
  8. पुरा जानकारी के लिये धन्यवाद नीरज जी।

    ReplyDelete
  9. जब तक सिंधु सभ्यता की लिखावट पढी नही जायेगी ... ये वाद होता रहेगा ... दिनेशराय द्विवेदी और parmeshwari choudhary नही मानेगे, नीरज ... क्यों की उन्होने जो पढा है ... वो बिल्कुल सही है ... लेकीन अधुरा है ... वो तब पुरा हो जायेगा जब सिंधु सभ्यता की लिखावट पढी जायेगी
    *** अब उनका प्रश्न .... हडप्पा के नगरों के अवशेष मिलते हैं लेकिन महाभारत के क्यों नहीं?---- महाभारत के अवशेष लकडी , घॉस, मिट्टी से बनते थे ... जो बाद मै नष्ट हो गये ... और हडप्पा सभ्यता के अवशेष पक्के विटो से बने है जो आज तक है ... हडप्पा सभ्यता के बारे मै हम सिर्फ अंदाजा लगा सकते है ...

    म हा भा र त कालीन

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर, महाभारत के अवशेष भी मिलते हैं। हस्तिनापुर आज भी है और वहां एक टीले के नीचे दबा हुआ राजमहल भी है। टीले की थोडी बहुत खुदाई हुई है जिससे पता चलता है कि यहां कोई महल था। यह स्थान चूंकि मिथक से जुडा है, इसलिये पुरातत्वविदों ने इसकी ‘खोज’ करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई।
      दूसरी बात, हम आधुनिक काल में जी रहे हैं। हमारे मन में एक धारणा सी है कि हडप्पा सभ्यता आदिमानवों की सभ्यता थी जब मानव को ढंग से रहना भी नहीं आता था जोकि बिल्कुल गलत धारणा है।

      Delete
  10. यह काफी रोचक और एटिहासिक जानकारी है। लोगो का सहमत होना या ना होना बहुत मायने नहीं रखता है।

    ReplyDelete
  11. कच्छ का पूरा यात्रा वृतांत एक बार में पढ लिया। बहुत ही रोचक और दिलचस्प है ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब