जब हम गूगल मैप में जैसलमेर से सम की सड़क देखते हैं, तो इस पर लिखा आता है - जैसलमेर-सम-धनाना रोड़। ज़ाहिर है कि इसी सड़क पर सम से भी आगे कहीं धनाना है। गौर से देखें तो यह सड़क आगे भारत-पाक सीमा तक जाती है। मतलब कहीं न कहीं बी.एस.एफ. वाले बैठे होंगे ताकि आम नागरिक सीमा तक न जा सकें। मेरी इच्छा उस बैरियर तक जाने की थी। पता नहीं वो बैरियर कहाँ होगा। इंटरनेट पर भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। इसके बाद ज्यादा ध्यान देकर सैटेलाइट इमेज देखीं तो पता चला कि हरनाऊ तक और उससे भी आगे तक पक्की सड़क बनी हुई है। यह सड़क पश्चिम में होती हुई उत्तर में मुड़ जाती है और आगे लोंगेवाला जा पहुँचती है और 150 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी है। लेकिन बीच में 14 किलोमीटर का छोटा-सा टुकड़ा कच्चा दिख गया। शायद यह सैटेलाइट इमेज दो साल पुरानी हो, शायद अब उस 14 किलोमीटर में पक्की सड़क बन गयी हो, लेकिन यह तय कर लिया कि भले ही सम से आगे 100 किलोमीटर निकलकर वापस सम लौटना पड़े, लेकिन किसी भी हालत में उस कच्चे रास्ते पर बाइक नहीं चलायेंगे।
अब प्रश्न था कि बी.एस.एफ. का बैरियर कहाँ है? हो सकता है कि बी.एस.एफ. हमें हरनाऊ तक भी न जाने दे, उससे पहले ही कहीं बैरियर हो। इसी क्रम में इंटरनेट पर धनाना की पड़ताल करनी शुरू कर दी। गूगल मैप में इस सड़क पर कहीं भी धनाना गाँव का संकेत नहीं है। एक फोटो मिला, जिससे पता चल गया कि धनाना जैसलमेर से 83 किलोमीटर दूर है, यानी सम से 38 किलोमीटर। इतनी दूरी पर सैटेलाइट इमेज देखी तो एक छोटा-सा गाँव मिल गया, जो निश्चित ही धनाना होगा। इस गाँव के आसपास रेत के बहुत टीले भी दिखे। इसी दौरान फ़ैज़ाबाद की रहने वाली अपर्णा जी ने भी सुझाव दिया कि सम से थोड़ा आगे धनाना अवश्य जाना। अपनी थार यात्रा में वे धनाना तक गयी थीं। इससे एक बात तो साफ़ हो गयी कि धनाना से पहले बी.एस.एफ. का बैरियर नहीं है।तो जहाँ भी बैरियर होगा, हम वहाँ तक जायेंगे।
सम में हम शांति से बैठे चाय पी रहे थे, तभी एक जीप सफ़ारी वाला आया - “सर, आप हमारे यहाँ रुकना। यह मेरा कार्ड़ है। आपको 800 रुपये में जीप सफ़ारी करा देंगे। इसमें आपको सम के तीनों डेजर्ट दिखायेंगे। यहाँ सम में जो आप देखते हैं, वो पहला डेजर्ट है। उससे इतना किलोमीटर दूर दूसरा डेजर्ट है और फ़िर आख़िर में तीसरा और असली डेजर्ट है यानी थार डेजर्ट। थार डेजर्ट के पास राजस्थान का आख़िरी गाँव है, वो भी दिखायेंगे। ‘बजरंगी भाईजान’ फिल्म में जहाँ बॉर्ड़र पार करने की शूटिंग हुई थी, वो जगह भी दिखायेंगे।”
मैंने पूछा - “जहाँ तक आप जाओगे - थार डेजर्ट तक - उस स्थान को क्या कहते हैं?”
बोला - “लखनऊ। उस स्थान का नाम वैसे तो लखमणा है, लेकिन अब वह लखनऊ के नाम से फेमस हो गया है।”
मैंने तुरंत गूगल मैप पर लखमना ढूँढा और यह मिल भी गया। सम से इसकी सीधी दूरी 5-6 किलोमीटर थी - पश्चिम में। इस स्थान की सैटेलाइट इमेज देखीं। सम और लखमना के बीच में रेत के कई टीले हैं, लेकिन लखमना के बाद रेत के टीले नहीं दिखे। इसका अर्थ है कि ये लोग जीप सफ़ारी कराते हुए पर्यटकों को यहीं तक लाते होंगे। और यह पूरा ही इलाका थार मरुस्थल यानी थार डेजर्ट है। लेकिन ये लोग गुमराह करते हैं कि सम के बाद तीसरा ‘डेजर्ट’ थार डेजर्ट है, ताकि घर से थार के लिये निकले पर्यटक इनकी बातों में आ जायें और इनका कथित थार देखने के लिये जीप सफ़ारी के लिये तैयार हो जायें।
और यहीं राजस्थान का आख़िरी गाँव है, इसमें भी कोई सच्चाई नहीं। सम से पश्चिम में एक सड़क सियाम्बर जाती है, जो कि सम से 26 किलोमीटर दूर है, यानी लखमना से भी 20 किलोमीटर पश्चिम में। उससे भी पश्चिम में और भी कई गाँव हैं।
“ओके, हम अभी धनाना जा रहे हैं। वापस लौटेंगे तो आपके यहाँ ही आयेंगे।”
“सर, धनाना में कुछ नहीं है। असली चीज तो लखमणा में है।”
तो हम बारह बजे धनाना के लिये निकल गये। सम से निकलते ही रास्ता वीरान हो जाता है, लेकिन सड़क अच्छी बनी है। बीच में कुछ गाँव हैं और पूरे रास्ते भर भेड-बकरी-गाय वाले मिलते रहते हैं। रास्ते में इंदिरा गाँधी नहर भी मिलती है। इसके आसपास हरियाली है और अच्छा-खासा चरागाह विकसित हो गया है।
इस सड़क में से कुछ सड़कें पूर्व दिशा में भी जाती हैं जो 20-25 किलोमीटर आगे म्याजलार वाली सड़क में मिल जाती हैं। इनमें से किसी भी सड़क पर बैरियर नहीं है। इसका अर्थ है कि इन सड़कों पर भी जाया जा सकता है। और हाँ, ये सड़कें पक्की बनी हैं।
इससे यह न समझा जाये कि मैं कोई बहुत ही गुप्त सूचना लीक कर रहा हूँ। असल में थार में केवल एक ही सर्किट पर्यटन के लिये विकसित हुआ है और वो है - जैसलमेर, सम, तनोट, लोंगेवाला। इसमें खुड़ी का नाम भी जुड़ने लगा है। चाहे कोई आरामतलब पर्यटक हो या साहसी जंतु - कोई भी इस सर्किट से बाहर नहीं निकलता। सीजन में हज़ारों की संख्या में बाइक वाले इधर आते हैं, लेकिन वे भी इसी सर्किट में फँसे रह जाते हैं। मेरी कोशिश है कि आप इस सर्किट से बाहर निकलें। जो निहायत ही सीमावर्ती इलाके हैं, वहाँ हमारी बी.एस.एफ. बहुत अच्छी तरह सक्रिय है और कोई परिंदा तक वहाँ पर नहीं मार सकता। लेकिन इसके अलावा जो इलाके हैं, सीमा से दूर वाले जो इलाके हैं, वहाँ जाया जा सकता है। म्याजलार में भले ही पुलिस वाले ने हमें जल्द से जल्द निकल जाने को कहा हो, लेकिन उसने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिये ऐसा कहा था। म्याजलार जाने पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है। जैसलमेर से म्याजलार के लिये नियमित बसें भी चलती हैं।
आप पूरे थार में बिंदास घूमिये। इस सर्किट के अलावा कहीं भी पर्यटक नहीं जाते, इसलिये स्थानीय निवासियों के लिये आप विचित्र प्राणी हो सकते हैं।
तो धनाना गाँव से एक किलोमीटर आगे जहाँ लिखा था - जैसलमेर 83 किलोमीटर, ठीक उसी स्थान पर बी.एस.एफ. का बैरियर है। इस स्थान के को-ऑर्डिनेट हैं - 26.705652, 70.196571. यहाँ से सीमा 15 किलोमीटर दूर है और किसी भी सिविलियन को इस बैरियर से आगे जाने की अनुमति नहीं है। यहाँ से हरनाऊ 55 और रामलाऊ 75 किलोमीटर दूर हैं। हमें वहाँ तक न जाकर बिलकुल भी निराशा नहीं हुई, लेकिन उम्मीद है कि किसी दिन हम वहाँ तक भी जायेंगे।
अगर लद्दाख में चीन सीमा के बहुत नज़दीक मेरक तक या पी.ओ.के. सीमा के बहुत नज़दीक बटालिक और तुरतुक तक कोई भी भारतीय नागरिक बिना किसी परमिट के जा सकता है तो कभी ऐसा दिन भी आयेगा, जब हम रामलाऊ तक भी जायेंगे।
यहाँ मेरठ के एक फ़ौजी मिले - मवाना के। इनके साहब बिहार के थे। बड़ी खातिरदारी की इन्होंने हमारी। जाते ही बैठने को कहा और ठंड़ा पानी दिया। हमारे हाल-चाल पूछे, अपने हाल-चाल बताये। इन्होंने बताया कि यहाँ इनकी जो बैरक है, जहाँ हम बैठे हैं, वो असल में धनाना की सामुदायिक इमारत है। ये लोग इनमें अपनी बकरियाँ रखते थे, इसलिये पूरी इमारत की ऐसी-तैसी हुई पड़ी है। साथ ही यह भी बताया कि पास में ही देवी माँ का एक मंदिर है। मध्य प्रदेश के कुछ यात्री वहाँ गये हैं।
थोड़ी देर में मध्य प्रदेश के यात्री लौटे तो सुमित की बाइक को पहचान गये - “यहाँ इंदौर का कौन है?” वे भी इंदौर के ही थे। बड़ी देर तक उनकी और सुमित की आत्मीय बातें होती रहीं।
भगवती का यह मंदिर इस चौकी से करीब आधा किलोमीटर पश्चिम में है - सड़क से हटकर। हम वहाँ के लिये चलने लगे तो बोले - “मंदिर की यह चाबी ले जाओ। हम रोज सुबह वहाँ साफ-सफाई करते हैं और पूजा करते हैं। अगर किसी दिन ऐसा न करें तो उसी दिन यहाँ साँप बहुत निकलते हैं।” सुरक्षा-बलों की यह बात मुझे बड़ी अच्छी लगती है। इनके अधिकार-क्षेत्र में कोई मंदिर हो, फिर वहाँ की सारी व्यवस्था ये अपने ऊपर ले लेते हैं। अगर कोई मंदिर न भी हो, तब भी सर्वधर्म मंदिर बना डालते हैं, जहाँ शिवजी भगवान मक्का की मस्जिद के बगल में बैठे होंगे और बराबर में गुरू नानक, ईसा मसीह, भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी भी विराजमान होते हैं।
मंदिर तक जाने के लिये पक्की सड़क बनी है, लेकिन अब यह रेत के टीलों के नीचे दब गयी है। मंदिर के पास पहुँचे तो देखा कि इसके आसपास और भी इमारतें बनी थीं, जो लगभग पूरी तरह रेत में दब गयी हैं। बाद में पता चला कि कभी किसी जमाने में यह स्थान ही बी.एस.एफ. की चौकी हुआ करता था, लेकिन रेत में दब जाने के बाद उन्हें धनाना के सामुदायिक भवन में आना पड़ा।
यहाँ दूर-दूर तक रेत ही रेत दिखायी देती है - विशुद्ध रेत। सैंड़ ड्यून्स। हम यहाँ करीब डेढ़ घंटे तक रहे। मंदिर खोलकर माथा टेका, फिर बंद करके चाबी जेब में रख ली। फिर समय था रेत में मस्ती करने का। यहाँ केवल हम ही थे। एक टीले से दूसरे टीले पर - कभी चढ़ते, कभी उतरते।
हिमालय में जो सौंदर्य बर्फ़ का है, थार में रेत का सौंदर्य उससे कम नहीं है। वास्तव में हम मंत्रमुग्ध थे। सम में भी रेत के टीले हैं, लेकिन एक तो वे क्षितिज तक नहीं फैले हैं, फिर वहाँ भीड़ भी बहुत रहती है।
कुछ दूर धनाना का कब्रिस्तान दिख रहा था। धनाना समेत इधर के ज्यादातर गाँवों में मुसलमान रहते हैं। सीमा के उस तरफ़ भी पाकिस्तान में हिंदू रहते होंगे। बी.एस.एफ. की अत्यधिक सख़्ती के बावज़ूद भी ये लोग सीमा पार करने की कोशिश करते रहते हैं। कभी सफल हो जाते हैं, कभी सफल नहीं हो पाते। मकसद है तस्करी।
एक जगह तारबंदी जैसा कुछ था। अपनी बैरक को इन्होंने तारों से घेर रखा होगा। तार भी रेत में दब गये। कहीं-कहीं पर दिख भी रहे थे। सीमा पर भी जहाँ सैंड़ ड्यून्स होते होंगे, वहाँ भी यह तारबंदी रेत में दब जाती होगी। ऐसे इलाकों में सैन्य-बलों को ज्यादा चौकस रहना पड़ता होगा और तस्कर भी ऐसे ही इलाकों में ज्यादा सक्रिय रहते होंगे।
अगर डिस्कवरी वालों को सीमा पर जाकर शूटिंग करने की इज़ाज़त मिल सकती है, तो हम आम भारतीय भी कभी इसे अपनी आँखों से देखेंगे और फोटो भी खीचेंगे।
वापस लौटे तो साहब ने कहा - “हम कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं! चाय भी ठंड़ी हो गयी।” चाय के साथ बिस्कुट और नमकीन भी आये।
ये लोग धनाना वालों से बीस रुपये लीटर के हिसाब से गाय का दूध ले लेते हैं। बीस रुपये लीटर दूध बहुत सस्ता पड़ता है, इसलिये ये ख़ूब दूध लेते हैं और इसी का ज्यादा सेवन करते हैं। जहाँ पानी भी नसीब नहीं होता, वहाँ हमारे जवान दूध पीते हैं। बदले में धनाना वालों को पीने का मीठा पानी मिलता है - बिना कहीं दूर जाये।
यही जिंदगी है और ऐसे ही एक-दूसरे के सहयोग से चलती है। मेरी इच्छा थी एक-दो दिन यहीं बैठकर सेना और आम नागरिकों के इस सामंजस्य को देखूँ और बस देखता ही रहूँ।
एक इच्छा और भी है। सुदूर थार में सीमा पर जाऊँ और अपने सैनिकों की जिंदगी देखूँ। उनकी दिनचर्या देखूँ। ये सैनिक कोई और नहीं होते, उसी गाँव के निवासी होते हैं, जिस गाँव का निवासी मैं हूँ। उसी माँ के बेटे होते हैं, जिस माँ का बेटा मैं हूँ। उसी स्कूल में पढ़े होते हैं, उसी मास्टर से पिटे होते हैं, जिस मास्टर से मैं पिटा करता था। फ़र्क बस इतना रह गया कि मैं पढ़ने में थोड़ा-सा होशियार था, ये भागने-दौड़ने में होशियार थे। मेरे ये सहोदर, सहपाठी सीमा पर पहुँच गये मेरी रखवाली करने और मैं सीमाओं से दूर रह गया।
बड़ी इच्छा होती है इनकी जिंदगी में झाँकने की। पता नहीं ये अपना दिन कैसे व्यतीत करते हैं?
और पता नहीं कोई बड़ा सैन्य-अधिकारी भी मेरा ब्लॉग पढ़ता है या नहीं।
सम में |
धनाना की ओर |
धनाना के पास रेत के टीले |
धनाना से भी 55 किलोमीटर आगे हरनाऊ है और 75 किलोमीटर आगे रामलाऊ |
धनाना के पास भगवती मंदिर |
रेत में दबी पड़ी बी.एस.एफ. की पुरानी बैरक |
मंदिर में प्रसाद |
धनाना का दृश्य |
सेल्फी का एक स्टाइल यह भी... |
(आपको कौन-सा फोटो सबसे अच्छा लगा? अवश्य बताएँ।)
अगला भाग: धनाना में ऊँट-सवारी
थार बाइक यात्रा के सभी लेख:
1. थार बाइक यात्रा - भागमभाग
2. थार बाइक यात्रा - एकलिंगजी, हल्दीघाटी और जोधपुर
3. थार बाइक यात्रा: जोधपुर से बाड़मेर और नाकोड़ा जी
4. किराडू मंदिर - थार की शान
5. थार के सुदूर इलाकों में : किराडू - मुनाबाव - म्याजलार
6. खुड़ी - जैसलमेर का उभरता पर्यटक स्थल
7. राष्ट्रीय मरु उद्यान - डेजर्ट नेशनल पार्क
8. धनाना: सम से आगे की दुनिया
9. धनाना में ऊँट-सवारी
10. कुलधरा: एक वीरान भुतहा गाँव
11. लोद्रवा - थार में एक जैन तीर्थ
12. जैसलमेर से तनोट - एक नये रास्ते से
13. वुड़ फॉसिल पार्क, आकल, जैसलमेर
14. बाइक यात्रा: रामदेवरा - बीकानेर - राजगढ़ - दिल्ली
नीरज भाई धन्यवाद थार की इस अदभुद दुनिया की यात्रा करवाने के लिए। फोटो तो सभी बहुत अच्छे है लेकिन फोटो नंबर 16 ,23 24,25 ,29 ने मंत्रमुग्ध कर दिया।
ReplyDeleteधन्यवाद विनय जी...
Deletevaha neeraj bahi adbhud hai hmara rajasthan.
ReplyDeleteठीक कहा सर जी...
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुनदर
ReplyDeleteधन्यवाद गिरी जी...
Deleteमैं एक बार सम गया था, और उसे ही देखकर चकित था. धनाना के चित्र और विवरण देखकर तो लगा कि सम तो कुछ भी नहीं है उसके सामने. कोशिश रहेगी एकाध बार धनाना जाने की.
ReplyDeleteसही कहा सर जी... सम कुछ भी नहीं है धनाना के सामने... अगली बार जाओगे तो धनाना अवश्य जाना...
DeleteVery Nice. I appreciate this post and amazing pics. India is Great!!!
ReplyDeleteधन्यवाद जी...
Deleteजब में थार यात्रा की तैयारी कर रहा था तो धनाना का नाम भी नहीं सुना था,इस जगह पर ले जाने का श्रेय में तुम्हे ही दुंगा...
ReplyDeleteअगर में अकेला जाता तो खुड़ी और सम तक ही जाता...
धनाना जैसी दूरस्थ जगह पर अपने ही शहरवासी से मिलना एक सुखद आश्चर्य होता है... वहाँ पर एक सिपाही भी इंदौर के निकट के शहर रतलाम का था,और एक यात्रियों का समूह भी इंदौर शहर से था,सभी से मिलकर मजा आ रहा था,लेकिन जब मोटरसाइकिल यात्रा को सब आश्चर्य से देखते है तो अच्छा नहीं लगता,अजीब सवाल करते है,बहुत दूर आ गये..बहुत रिस्की है, तो अच्छा नहीं लगता,लोगो को अपनी सोच बदलना चाहिए,अपने ही देश मे क्या दूर और क्या पास...
धनाना में अनन्त क्षितज तक फेले रेट के टीले बहुत लुभावने थे,मंत्रमुग्ध था में, बस चुपचाप सब देखने का और आँखों में बसा लेने का मन कर रहा था...
आँखो में बसा की नहीं बसा पता नहीं,लेकिन कैमरे की आँखों में तो बसा ही लिया सब कुछ...।
चित्र 29।
ReplyDeleteक्योकि में इसे सफाई से नहीं ले पाया था।
आपके 3 घण्टे और 50 मिनट हम सभी पाठकों के ऊपर आपका क़र्ज़ है। पता नहीँ कि कब चुका पाएंगे।
ReplyDeleteजैसलमेर से सम जाते हुए पत्थरों पर लिखा देखा था घनाना ! मन था लेकिन बच्चों के साथ हिम्मत नही कर पाया ! घनाना के सैंड ड्यून्स सम से बेहतर लग रहे हैं "अनटच्ड " !
ReplyDeleteआनंद आ गया, अंत तक रोचकता बनाये रखी, और अंत मे कुछ पता भी चला ��
ReplyDeleteतस्वीरें जो मुझे अच्छी लगीं वो हैं:
18, 19, 23, 25, 27