जोधपुर से साढ़े ग्यारह बजे चले। करा-धरा कुछ नहीं, बस पड़े सोते रहे। फिर थोड़े-से नहा लिये, थोड़ा-सा खा लिया और निकल पड़े। बाइक में इंजन ऑयल कम था। पेट्रोल पंप पर टंकी फुल करायी तो इंजन ऑयल की एक बोतल भी ले ली। आगे एक मिस्त्री के पास गये तो पता चला कि मालिक थोड़ी देर में आयेगा, तब तक हमें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि बाइक में बचा हुआ इंजन ऑयल निकालकर नया ऑयल डालना पड़ेगा। मैंने सोचा कि जितना कम है, उतना डाल देते हैं। वहीं एक आदमी ने इसे डाल दिया। डालने के बाद कहने लगा कि आपको ऑयल रिप्लेस कराना चाहिये था। मैंने कहा - अरे डाला भी तो तुमने ही है। पहले ही क्यों नहीं कहा कि रिप्लेस होता है? बाद में सुमित ने भी ऐसा कहा, लेकिन बाड़मेर पहुँचने पर - ‘नीरज, तुम तो मैकेनिकल इंजीनियर हो। क्या तुम्हें पता नहीं है कि इंजन ऑयल रिप्लेस होता है?’ मैं चिड़चिड़ा-सा हो गया - ‘ओये, तुम भी तो वहीं खड़े थे। उसी समय क्यों नहीं टोका? और अब क्यों टोक रहे हो?’
सुमित ने कहा - ‘मैंने सोचा कि तुम इंजीनियर हो। तुम्हें पता ही होगा।’
‘अरे तुम भी तो डॉक्टर हो। फिर दाँत का इलाज क्यों नहीं करते? क्यों मरीजों को डेंटिस्ट के पास भेजते हो?’
असल में इंजन ऑयल पूरा ही रिप्लेस होना चाहिये, लेकिन अगर रिप्लेस न करके आपने थोड़ा-सा और डालकर कमी पूरी कर दी, तब भी कोई नुकसान नहीं है। और यह ज्ञान मुझे बाद में मिला।तो साढ़े ग्यारह बजे जोधपुर से चल दिये। बेहद शानदार दो-लेन की सड़क है। हालाँकि एकाध जगह थोड़ा-बहुत काम चल रहा है और पचपदरा में बाईपास पर बालोतरा रोड़ पर फ्लाईओवर भी बनना है, बाकी एकदम शानदार है।
पचपदरा से हम बायें मुड़ गये - नाकोड़ा मंदिर देखने। नाकोड़ा एक जैन तीर्थ है और भगवान पार्श्वनाथ का मंदिर है। बालोतरा की भीड़भाड़ से निकले तो सूखी पड़ी लूनी नदी पार करके दाहिने मुड़ गये और सीधे नाकोड़ा जी जा पहुँचे।
मंदिर बेहद शानदार है। बराबर में एक मंदिर में नक्काशी का कार्य चल रहा है। दुर्भाग्य से यहाँ फोटो खींचना प्रतिबंधित है। नक्काशी करते कारीगरों को देखना अदभुत है। हम अपने प्राचीन कारीगरों की इतनी तारीफ़ करते हैं। यहाँ काम कर रहे कारीगरों की भी तारीफ़ बनती है। आने वाले समय में हम इनकी मूर्तिकला पर आश्चर्य व्यक्त किया करेंगे।
नाकोड़ा एक पहाड़ी के नीचे बसा है। ठेठ थार में ऐसी पहाड़ियाँ अक्सर नहीं मिलतीं। लगता है अरावली का कोई शैतान बच्चा भटककर थार में आ गया हो।
वापस चलते-चलते साढ़े चार बज गये। बालोतरा से पचपदरा जाने की आवश्यकता नहीं थी। सीधे बाड़मेर वाली सड़क पकड़ ली, जो 10-12 किलोमीटर आगे उसी मुख्य सड़क में मिल गयी।
बराबर में रेलवे लाइन है - जोधपुर-बाड़मेर लाइन। जोधपुर से एक डी.एम.यू. आयी और हमसे आगे निकल गयी। उस समय हम अस्सी की स्पीड़ से चल रहे थे। मतलब डी.एम.यू. सौ से ऊपर ही दौड़ रही होगी।
इरादा था कि बाड़मेर में होटल में कमरा नहीं लेंगे, बल्कि कहीं टैंट लगायेंगे। इसके लिये महाबार को चुना। महाबार में रेत के टीले हैं और यह बाड़मेर का एक उभरता पर्यटक स्थल है। सैटेलाइट से देखकर एक उपयुक्त स्थान का भी चुनाव कर लिया।
उतरलाई में 10 उबले अंड़े ले लिये। कुछ ही देर पहले बालोतरा के पास खाना खाया था, भूख नहीं थी। लेकिन टैंट में बैठकर अंड़े खा लेंगे। थोड़ी-सी कोल्ड़ ड्रिंक भी बची थी।
साढ़े सात बजे महाबार पहुँचे। यह बाड़मेर बाईपास से तीन किलोमीटर ही दूर है। पहले से निर्धारित स्थान पर बाइक रोक दी। सामने रेत का बड़ा ऊँचा धोरा था। अंधेरा था। बाइक की रोशनी में आसपास का मुआयना किया और टैंट लगाने की तैयारी करने लगे। तभी महाबार से एक बाइक आयी। बाइक सवार ने पूछताछ की। यहाँ टूरिस्ट कल्चर नहीं है, इसलिये रात में टैंट में रुकना उसके लिये अनोखी बात थी। फिर हमारे साथ एक महिला का होना भी उसे अज़ीब लग रहा होगा। हमने टैंट लगा लिया, अंड़े भी खा लिये, लेकिन वह नहीं गया। मुझे उसका यहाँ उपस्थित होना और लगातार पूछताछ करते रहना बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। मैं पछता रहा था कि क्यों यहाँ टैंट लगाया? अकेले हों या दो पुरुष हों, तो अलग बात है। लेकिन एक महिला भी साथ है - यह बात स्थानीय ग्रामीनों में कौतूहल का विषय हो सकती है।
सोच लिया कि जल्द से जल्द सुबह हो और हम फिर कहीं भी टैंट नहीं लगायेंगे। आगे सम में भी नहीं।
सुमित का टैंट हमारे टैंट के बिलकुल बराबर में था। लेटते ही उसने जो खर्राटे मारने शुरू किये, उससे हमारी नींद उड़ गयी। उसे आवाज लगायी, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। मन किया कि बाहर निकलकर उसे जगाकर उसका टैंट दूर कहीं रख आऊँ। सुमित अक्सर खर्राटे नहीं लेता, लेकिन आज पता नहीं उसे क्या हो गया।
इसके बाद कुत्ते आ गये। 8-10 कुत्ते रहे होंगे और हमें घेरकर भयंकर तरीके से भौंकने लगे। कमाल की बात यह रही कि सुमित के खर्राटे अभी भी बंद नहीं हुए थे। मुझे यकीन था कि कुत्तों की भयानक भौंक के बाद सुमित जग जायेगा और अंदर बैठे-बैठे ही उन्हें भगाने को आवाज करेगा। लेकिन न वह उठा और न ही खर्राटे बंद हुए।
एक कुत्ते ने टैंट में पंजे मारने शुरू कर दिये। इसी बात का मुझे डर था। अगर उन्होंने टैंट फाड़ दिया, तो वे और भी ज्यादा आक्रामक हो जायेंगे। हो सकता है कि और भी कुत्ते आ जायें। हम दोनों बैठ गये। क्या करें? हवा भरने का पंप हमारे पास ज़रूर था, लेकिन उससे इतने कुत्तों का सामना नहीं किया जा सकता। अच्छी बात यह थी कि टैंट फाड़ने की कोशिश केवल एक ही कुत्ता कर रहा था और बाकी कुत्ते हमारी तरफ़ से कोई भी प्रतिक्रिया न आने के कारण शांत होने लगे थे। उनका शांत होना हमारे लिये राहत की बात थी। मौका देखकर मैंने टैंट फाड़ रहे कुत्ते पर जोरदार घूँसा मारा। कुछ दूर तक उसके भाग जाने की आवाज आयी और करीब बीस मीटर दूर जाकर भौंकने की आवाज भी। लेकिन यह आवाज एकदम अलग थी। इसमें वो आक्रामकता नहीं थी, बल्कि डर का भी मिश्रण था। टैंट उनके लिये एकदम अज़ीब बात थे। उन्हें नहीं पता था कि इसके अंदर कौन है। वे भौंक ज़रूर रहे थे, लेकिन डरे भी हुए थे। अब जब एक कुत्ते पर घूँसे का प्रहार हुआ, तो उसका डर यकीन में बदल गया। इसके बाद रात भर वे रह-रहकर भौंकते ज़रूर रहे, लेकिन केवल औपचारिकतावश।
लेकिन मैंने प्रतिज्ञा कर ली कि अब कहीं भी टैंट नहीं लगाऊँगा। टैंट वहीं लगाना चाहिये, जहाँ इसकी ज़रुरत भी हो और स्थानीय लोग समझते भी हों। अन्यथा टैंट लगाना असुविधाजनक ही होता है।
जोधपुर-बाड़मेर सड़क |
पचपदरा बाईपास पर बालोतरा रोड़ पर बनता फ्लाईओवर |
श्री नाकोड़ा द्वार |
नाकोड़ा |
नाकोड़ा |
नाकोड़ा |
प्रसिद्ध पक्षी फोटोग्राफर तरुण सुहाग के अनुसार “ये पक्षी ‘Common Crane (सामान्य क्रोंच) हैं - वयस्क तथा अवयस्क। लेकिन काफी दुर्लभ पक्षी है। बहुत कम दिखाई देता है।” |
बाड़मेर रोड़ |
सड़क के बीच में पीली लाइन... अक्सर सफ़ेद लाइन ही मिलती हैं... पता नहीं पीली का क्या अर्थ है? |
(प्रत्येक फोटो पर नंबर लिखे हैं। आपको कौन-सा फोटो सबसे अच्छा लगा? अवश्य बतायें।)
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9 और 20
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल भाई...
Deleteचित्र क्रमांक 14 बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteखर्राटों के वाईरस तुमने ही पहुचाये थे..��
बाद मे फिर हम दोनों खर्राटे मारते रहे और जाटनी जी जागती रही।
वैसे इसका कारण गर्दन के नीचे तकिये का नहीं होना था,और बाकि फिर थकान के कारन नींद भी नहीं खुली...
नाकोड़ा तीर्थ वाकई सुंदर और शांत जगह है..
महाबार तक यात्रा मे मज़ा आ रहा था,लेकिन अब बहुत मज़ा आयेगा,यही से थार यात्रा की शुरुआत होगी...
सही कहा ... थार यात्रा अब शुरू होती है...
Deleteगनीमत है कुत्ते टेंट फाड़कर अंदर नहीं घुसे, वर्ना मुश्किल हो जाती ..
ReplyDeleteबहुत मुश्किल होती... रात का समय था और अनजान इलाका...
Deleteगुरुदेव को राम राम
ReplyDeleteकुत्तों वाली बात पढ़ते हुए सच में ऐसा लगा जैसे टेंट में मैं ही हूँ, और बाहर कुत्ते।
सच में रोमांचक, किन्तु ख़तरनाक भी। सड़क इतनी मस्त लग रही है कि बस यात्रा पर निकल पड़ने का मन है
सीख मिली कि टैंट लगाने के लिये हिमालय की ऊँचाईयाँ ही ठीक हैं...
DeleteYellow Line for two way traffic.
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteसारे ही फोटो अच्छे, कुछ विशेष 9,10 व 14,15 हैं। अच्छा वृतांत, गाँव के पास आवारा कुत्ते जब समूह बन जाते हैं तो पीछे पङ जते हैं। डरपोक भी होते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
DeleteNeeraj bhai peeli line ka matlab hai ki lane change karna sakht taur pe manaa hai. Tukdo me safed line ka matlab lane change ki ja sakti hai, aur sedhhe safed matlab bhi lane change na karne ka sujhav hota hai.
ReplyDeleteकूत्ते भी समझ गए होंगे की किस शेर से पाला पड़ा है। शेर के इस एक घूंसा को वह डरपोक कुत्ता जिंदगी भर याद रखेगा। वे शायद इसलिए भी भौंक रहे होंगे की उनके एरिया मे यह टैंट जैसी उड़न तस्तरी कहाँ से आ गयी।
ReplyDeleteसर पहाड़ो की तरफ अगर दुबारा से जाना हो तो जरूर बताये
ReplyDelete4, 7, 18, 21
ReplyDeleteएक पिली लाइन का मतलब है- आप लेन बदल सकते है, परन्तु विशेष सावधानी बरतें
बाकि मुझे पता ही है आपने सब कुछ समझ लिया होगा इन सब लाइन्स के बारे में, शायद एक ब्लॉग भी बन जाये। वैसे ओर भी सड़क से सम्बंधित बहुत सारी जानकारी दे सकते हो। रोजाना वाले ब्लॉग से अलग होगा, लोगो को ब्लॉग पसंद आ सकता है, मेरे जैसो को तो आना ही है।
इस यात्रा के आने वाले ब्लॉग के इंतज़ार में......
फोटो नं 18 व 13 अच्छे लगे 😊
ReplyDeleteHahaha Kutte ko ghunsa mara yaar kya mazaa aaya hoga us waqt wo bechara dum daba k bhaga hoga.
ReplyDeleteGood maja aa gaya padhker
कुत्ते भी कमीने होते हैं ! हाहाहा ........ 15 और 16 नंबर के फोटो जबरदस्त !!
ReplyDeleteBahut hi badiya pics Neeraj ji. Dhanyawad :)
ReplyDeletetukdo me line ka matalab hai aap line change kar sakate ho , ek pili line ka matlab hai ki aap road cross nahi kar sakte, aur do pili line ka matlab hai no cross and no overtake.
ReplyDeletemaine kuchh time pehale aapse kaha tha ki job jodhpur aao to mujshe jarur milana dono bhai saath khana khayenge
lekin kya hua bye pass hi nikal gaye
Doosari baat marwar me tent lagane ki jagah agar aap kisi villager se accommodation ke liye kehate to vo saharsh accommodation and food availlable karva deta
aap marwar ke aathitya se chook gaye koi baat nahi
bade blogger badi baaten
Or haan sand dunes me jameen per sona khatarnak hai kyunki saanp aur bichhoo ka dar rehta hai bahut jyada
#10 bahut achhi hai.. 12 ka frame tedha hai ... bahut jabardast vivaran hai.. pura pada Dilli se yahan tak
ReplyDelete#18 bhi jabardast hai
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