इस नेशनल पार्क से हमारा सामना अचानक अपने आप ही हो गया। असल में हमारी योजना थी - मुनाबाव से तनोट जाना। सीधा रास्ता है जैसलमेर के रास्ते जाओ। लेकिन मैं चाहता था कि सीमा के नज़दीक-नज़दीक ही रहें। एक सड़क म्याजलार से पश्चिम में जाती है और आगे सम के पास कहीं जाकर निकलती है। इसका और अन्य कई सड़कों का मैंने सैटेलाइट से अच्छी तरह अध्ययन किया। चूँकि इंटरनेट पर इस इलाके के बारे में, इसकी सड़कों के बारे में कुछ भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी, सैटेलाइट इमेज पर भरोसा करके तय कर लिया था कि इस सड़क से पश्चिम में जायेंगे। यह कच्ची सड़क नहीं थी और सैटेलाइट से देखने पर काली लकीर स्पष्ट दिख रही थी, जिससे इतना तो पक्का हो गया कि एक साल पहले तक या दो साल पहले तक यहाँ पक्की सड़क थी। गूगल में सैटेलाइट इमेज एक-दो साल पुरानी होती हैं। ट्रैफिक नहीं होता और बारिश नहीं होती, इसलिये सड़क ख़राब होने की कोई संभावना नहीं।
लेकिन कल जब हम मुनाबाव से आ रहे थे तो दो कारणों से इस सड़क पर जाना रद्द कर दिया। पहला कारण कि हमें म्याजलार पहुँचते-पहुँचते शाम हो गयी थी और हम रात में न तो इस सड़क पर चलना चाहते थे और न ही बीच रास्ते में कहीं रुकना चाहते थे। दूसरा कारण था म्याजलार में ग्रामीणों का अज़ीब व्यवहार और पुलिसवाले का यह कहकर जल्द से जल्द चले जाने को कहना कि सीमावर्ती इलाका है। लेकिन म्याजलार में इस सड़क पर बी.एस.एफ. का कोई बैरियर नहीं है, आगे कहीं हो तो पता नहीं। इसलिये सुबह या दोपहर तक का समय हो तो म्याजलार रुके बिना इस सड़क पर मुड़ा जा सकता है। आगे इस सड़क पर इंदिरा गाँधी नहर समाप्त होती भी मिल सकती है और धनाना, सम या खुड़ी भी पहुँचा जा सकता है। हाँ, यह रास्ता सामान्य रास्ते से लंबा पड़ेगा और केवल साहसी यात्रियों के लिये है।म्याजलार से हम पश्चिम में नहीं जा सके, इसलिये खुड़ी से पश्चिम में जाती सड़क पर जाना निश्चित था। यह सड़क आगे सम जाती है। इरादा था कि सम से दक्षिण-पश्चिम में चलकर धनाना जायेंगे और उसके बाद जो होगा, देखेंगे।
जैसे ही इस खुड़ी-सम रोड़ पर मुड़े, एक बैरियर लगा मिला। यह वन विभाग का बैरियर था और लिखा था - राष्ट्रीय मरु उद्यान। 190 रुपये की पर्ची कटी - 50-50 रुपये की हम तीनों की और 20-20 रुपये की बाइकों की। यहाँ से सम 28 किलोमीटर दूर है। बीच में यानी 13 किलोमीटर दूर सुदासरी है, जहाँ सम की तरफ़ से आने वालों के लिये बैरियर है।
सुदासरी तक यानी नेशनल पार्क के भीतर अच्छी सड़क नहीं है। फिर भी बाइक आराम से चल लेती है। अगर अच्छी सड़क होती, तब भी हम ज्यादा तेज नहीं चलते। वैसे तो हम कल से ही ठेठ थार में थे, अभी भी कोई परिवर्तन नहीं आया था, लेकिन अब कम से कम नेशनल पार्क में चलने जैसी फ़ीलिंग तो आ रही थी। चिंकारा खूब दिखे, लेकिन सड़क से दूर-दूर ही। थोड़े-बहुत रेत के टीले भी हैं, लेकिन ये उतना प्रभावित नहीं करते। सुमित की बुलेट बड़ा शोर करती है ... सुमित की क्या, सभी बुलेट शोर करती हैं। इसलिये हम उससे बहुत पीछे रहे, ताकि किसी जानवर का, पक्षी का फोटो ले सकें। बुलेट की आवाज सुनकर ही सब एक किलोमीटर दूर से ही भाग जाते होंगे। एक जगह कुछ चितकबरे पक्षी - मुझे पक्षियों के नाम नहीं पता होते - हमें देखकर अचानक सड़क किनारे झाड़ियों में जा घुसे। दीप्ति निराश हो गयी, क्योंकि वह उनका फोटो लेना चाहती थी और वे काफ़ी नज़दीक थे। मैंने बाइक रोक दी और इंजन बंद कर दिया। पाँच मिनट तक चुपचाप ज्यों के त्यों खड़े रहे - विश्वास था कि ये पक्षी झाड़ियों से निकलेंगे अवश्य। और उन्होंने हमें निराश नहीं किया। बड़ी तेजी से वे निकले और सड़क पार करके अपने और ज्यादा सुरक्षित ठिकाने पर पहुँच गये। हमने इनका फोटो तो लिया, लेकिन अच्छा फोटो नहीं आया।
एक जगह ईंटों के चबूतरे पर बड़े-से पत्थर पर लिखा था - डेजर्ट नेशनल पार्क। इसके बराबर में एक बोर्ड और लगा था - वाइल्ड़ लाइफ ट्रेक, गजई माता सैंड़ ड्यून्स, दूरी 2 किमी। एक कच्चा रास्ता उस तरफ़ जा रहा था। बाइक भी चली जाती। करीब दो किलोमीटर दूर रेत के धोरे दिख रहे थे, वे ही गजई माता सैंड़ ड्यून्स होंगे। वहाँ जाने का मन था, फिर बदल गया, फिर करने लगा और आख़िरकार नहीं गये। यहीं ‘डेजर्ट नेशनल पार्क’ के सामने खड़े होकर ही ‘सेल्फी’ लेते रहे।
इसके बाद सुदासरी है। यहाँ वन विभाग का बैरियर है, जो सम की तरफ़ से आने वालों के लिये है। कुछ ‘हट्स’ भी बनी हैं। ऊँटगाड़ी वाले भी रहते हैं, आपको नेशनल पार्क के अंदरुनी इलाकों में घुमाने के लिये।
जब हम कुछ देर पहले खुड़ी की तरफ़ से इसमें प्रवेश कर चुके थे, तो एक कार हमारे पास आकर रुकी। काला चश्मा लगाये और कैमरा गले में लटकाये एक यात्री ने पूछा - ‘नेशनल पार्क अभी कितनी दूर है?’ सुमित ने उत्तर दिया - ‘आप नेशनल पार्क में ही हो।’ वे निराश-से होकर आगे बढ़ गये।
असल में इस नेशनल पार्क के बाहर कोई बाउंड्री नहीं है। मरुभूमि के एक टुकड़े को नेशनल पार्क घोषित कर दिया, बस। इसके बीच से निकलती सड़क - जो कि मुख्य जिला सड़क भी है - पर बैरियर लगा दिये, कर्मचारी बैठा दिये। सुदासरी में ऊँटगाड़ी का प्रबंध कर दिया। बाकी यहाँ और बाहर कोई फ़र्क नहीं है। जो जानवर, जो पक्षी नेशनल पार्क के अंदर हैं, वे पूरे थार में आपको दिखेंगे। वही गोडावण, वही चील, वही चिंकारा और वही लोमड़ी। तो आप कभी भी बहुत बड़ी उम्मीद न बनायें। कोई जादू जैसा घटित होने की संभावना न तलाशें।
आगे एक तिराहा मिला। बायें सड़क गुंजनगढ़, फलेड़ी होते हुए म्याजलार जा रही थी। यह वही सड़क थी, जिसका जिक्र मैंने अभी थोड़ी देर पहले किया था कि हम म्याजलार से इस सड़क पर जाना चाहते थे। यहाँ भी कोई बैरियर नहीं था। अच्छी सड़क बनी हुई थी। सम की तरफ़ से रह-रहकर जीपें भी आ-जा रही थीं। जीपों की संख्या ज्यादा तो नहीं थी, लेकिन जितनी भी थी, उससे अंदाज़ा लग रहा था कि इस सड़क पर बी.एस.एफ. का बैरियर नहीं है। गूगल मैप के अनुसार गुंजनगढ़ से भारत-पाक सीमा की सीधी दूरी सात-आठ किलोमीटर है। अमूमन आम नागरिकों को बी.एस.एफ. सात-आठ किलोमीटर पहले ही रोकता है, इसलिये भी मुझे लग रहा है कि इस सड़क पर जाया जा सकता है। इस बार तो हम इधर नहीं जा पाये, लेकिन आगे जब भी थार आना होगा बाइक से, यह सड़क प्राथमिकता में रहेगी।
सीमा देखने में मेरी उतनी उत्सुकता नहीं है, जितनी इन दुर्गम इलाकों को देखने की।
सम पहुँचे। यहाँ से दाहिने जैसलमेर रास्ता जाता है और बायें धनाना। चाय की एक दुकान पर बैठकर चाय के साथ मीठी कचौड़ियाँ खाने लगे।
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अंतिम चित्र...
ReplyDeleteचित्र क्रमांक 20,कब ले लिया पता ही नहीं चला,बहुत प्यारा आया है।
बुलैट की आवाज से में भी परेशान था,तुमने तो थोड़े बहुत चिंकारा, लोमड़ी,पक्षी देख भी लिए मुझे तो इनमे से कोई न मिला।
वो जो काले चश्में वालो की जीप रुकी थी,और पूछ रही थी,नेशनल पार्क कब शुरू होगा,उन्हें बहुत ज्यादा की उम्मीद थी,कि जानवर गाड़ी के सामने ही आ जायेंगे, और पक्षी भी पास दिखेंगे,अगर वो थोड़ा और रुकते तो यह तो ज़रूर कहता...रे भाई कही सुकून से रुक,और इस माचिस के डब्बे से बहार निकल,डेसर्ट नेशनल पार्क मे कदम तो रख,पक्षी-जानवर न भी दिखे तो भी तुझे बहुत अच्छा एहसास होगा,और अगर शांति से खड़ा रहा तो जो देखने आया वो भी दिख ही जायेंगे।
सही कहा भाई...
Deleteनीरज जी पिछले कुछ समय से मैं आपकी सभी पोस्ट पढता आ रहा हूँ। आपका लेखन मुझे इतना अच्छा लगता है कि हमेशा आपके द्वारा अगला पोस्ट प्रकाशित करने का इंतज़ार करता रहता हूँ। और आपकी फैन लिस्ट में एक नाम मेरा भी जुड़ चूका है। उम्मीद करता हूँ आप ऐसे ही यात्राएँ करते रहे और हम सब के साथ अपने अनुभव बाटते रहे। .... और इस पोस्ट में फोटो न. 12, 16 और 20 मुझे सबसे अच्छे लगे।
ReplyDeleteधन्यवाद गौरव जी...
Delete9 नं. में पक्षी तीतर है। शानदार फोटोग्राफी और लेखन के लिये साधुवाद। तालछापर (सुजानगढ के पास) में चिंकारा के टौले घूमते मिल जाते हैं, जो निडर होकर घूमते रहते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी... तालछापर अभी देखना बाकी है...
Deletephoto no. 20 sumit aur tumhara ....
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteकाश ! मैं भी बाइक से गया होता तो मैं भी यहां जरूर पहुँचता ! पक्षी हालाँकि बहुत नहीं हैं लेकिन ऐसे रेगिस्तान में इतने होना भी ख़ुशी प्रदान करता है !!
ReplyDeleteफोटो नं0 6,7,9,12 और 20 बढि़या लगे।
ReplyDeleteफोटो नं.7 देखकर ऐसा लग रहा है जैसे रेतीले देहरादून की सहस्रधारा हो।
- शलभ सक्सेना