शक्ति सिंह दुलावत अपने एक मित्र के साथ सुबह-सुबह ही उदयपुर से आ गये। साथ में ढेर सारा नाश्ता - मेरा पसंदीदा और दीप्ति का ना-पसंदीदा ढोकला भी। अब बड़ी देर तक और बड़ी दूर तक कुछ भी खाने की आवश्यकता नहीं।
एकलिंगजी में भगवान शिव का मंदिर है। यह मेवाड़ के राजाओं की निजी संपत्ति है। फोटो खींचना वर्जित है। लेकिन आठवीं शताब्दी में बने छोटे-बड़े 108 मंदिर मूर्तिकला से भरपूर हैं। मन करता है कि इन्हें देखते रहो और फोटो खींचते रहो। फोटो नहीं खींच सकते, लेकिन देख तो सकते ही हैं।
जिनका भी यह मंदिर है, उनसे मेरी प्रार्थना है कि भले ही थोड़ी-बहुत राशि ले लिया करें, लेकिन फोटोग्राफी होने दो यहाँ। फोटो खींचने से भक्तिभाव में कमी नहीं आती - यक़ीन मानिये। और जिनमें भक्तिभाव नहीं है, उनमें प्रतिबंध लगाकर यह पैदा भी नहीं की जा सकती।
फोटोग्राफी रोकने के लिये चप्पे-चप्पे पर गार्ड़ तैनात रहते हैं।
मंदिर के बाहर एक अंधे बाबा खड़े थे। सुमित उन्हें कल से जानता था और उनसे बात करते-करते उसने काफ़ी समय व्यतीत किया था। कहने लगे कि ग्यारह बजकर ग्यारह मिनट हो गये हैं - चाहो तो देख लो। मैंने चुपचाप जेब से मोबाइल निकालकर समय देखा - ग्यारह बजकर ग्यारह मिनट ही हुए थे। आसपास नज़र दौड़ायी। कहीं कोई घड़ी नहीं दिखी। यह आश्चर्य की बात लगती है, लेकिन ऐसा होता है और यह असंभव नहीं है।एकलिंगजी के मिर्ची-बड़े प्रसिद्ध बताते हैं। लेकिन हमने इसलिये नहीं खाये, क्योंकि मिर्ची से डर लगता है। कई दिन बाद रामगढ़ में जब हिम्मत करके खाये, तो अच्छे लगे। पछतावा हुआ कि एकलिंगजी के मिर्ची-बड़े भी खा लेने चाहिये थे।
बारह बजे के आसपास यहाँ से चल दिये। इरादा था कुंभलगढ़ देखने का। दो-चार फोटो झील के लिये और सास-बहू मंदिर की ओर चल दिये। उसके लिये इस सड़क से कहीं बायें मुड़ना था, लेकिन हमें पता नहीं चला। पता चला पाँच किलोमीटर आगे जाकर। फिर पीछे नहीं मुड़े।
झाम्बुड़िया में चार-लेन की सड़क मिल गयी। इस पर चले तो फिर से मुझसे एक धोखा हो गया। मुझे लगा कि जब हम कुंभलगढ़ जायेंगे, तो रास्ते में हल्दीघाटी भी आयेगा। सोचा कि हल्दीघाटी भी देखते चलेंगे। तो हम कुंभलगढ़ भूलकर हल्दीघाटी के सूचना-पट्ट पढ़ने लगे और सवा एक बजे हल्दीघाटी पहुँच गये। 290 रुपये के टिकट कटाकर घूमते रहे और डेढ़ घंटे में बाहर निकले। गूगल मैप देखा, तो गलती का पता चला। अगर मैं पहले ही गूगल मैप देख लेता, पहले ही पता चल जाता कि कुंभलगढ़ के रास्ते में हल्दीघाटी नहीं आता है, तो हम बिलकुल भी हल्दीघाटी नहीं जाते।
हल्दीघाटी स्मारक अच्छा बना हुआ है। आपको एक लघु फिल्म दिखायी जाती है, कुछ ‘लाइट-साउंड़’ दिखाया जाता है और आप स्वयं को देशभक्ति से सराबोर पाते हैं। फिर गुलाब के उत्पाद दिखाये जाते हैं और आपको उन्हें खरीदने का लालच दिया जाता है, हालाँकि इनमें से अधिकाँश उत्पाद ‘मेड़ इन विदेश’ होते हैं। एक बैल कोल्हू चला रहा होता है, आपको दस रुपये में एक गिलास गन्ने का रस मिल जाता है। गन्ना पता नहीं कहाँ से आता है, कोई मिलावट न होने के बावज़ूद भी रस फीका ही रह जाता है।
कुंभलगढ़ किला यहाँ से लगभग 50 किलोमीटर है। हम डेढ़ घंटे में पहुँच जाने का अंदाज़ा लगाते हैं। पौने तीन बजे हल्दीघाटी से निकल पड़े, साढ़े चार तक पहुँच जायेंगे। फिर घंटे-भर में अंधेरा हो जायेगा। यानी किला देखने को हमें केवल एक घंटा ही मिलेगा। कुंभलगढ़ जैसा किला देखने के लिये पूरा दिन हाथ में होना चाहिये, इसलिये केवल एक घंटा मिलने से मैं थोड़ा विचलित भी हुआ।
खमनोर पहुँचे। गूगल मैप के अनुसार यहाँ से हमें बायें मुड़ना था। फिर भी एक से पूछ लिया। उसने दूसरे से पूछा और एक कागज पर रास्ते में पड़ने वाले गाँवों के नाम लिखकर हमें दे दिये कि यहाँ-यहाँ से आपको जाना पड़ेगा।
कुछ दूर पतले ग्रामीण रास्ते पर चलने के बाद नाथद्वारा से आने वाले स्टेट हाईवे पर जा चढ़े। यह कुछ चौड़ा था और हमारी स्पीड़ भी बढ़ गयी। लेकिन जल्द ही यह भी सिंगल लेन में बदल गया और स्पीड़ पर भी लगाम लग गयी। फिर ख़राब सड़क। आगे तो यह इतनी पतली हो गयी कि सामने से आ रही कार को हमसे बचने के लिये सड़क से नीचे उतरना पड़ता। पहाड़ी रास्ता था।
इससे हम और ज्यादा लेट होते गये। आख़िरकार कुंभलगढ़ जाने की ज़िद हमने तब छोड़ी, जब शाम 04:30 बजे गूगल मैप ने ‘पॉप-अप’ दिखाया - रहने दो भाई, कुंभलगढ़ किले में 05:00 बजे तक ही प्रवेश है और आप शायद 05:00 बजे तक वहाँ नहीं पहुँच पाओगे।
इरादा बदल लिया। कैलवाड़ा से थोड़ा पहले जहाँ चारभुजा से आने वाली सड़क मिलती है, हमने जोधपुर जाने का निर्णय लिया। ख़राब सड़क से हम तंग आ चुके थे और उम्मीद कर रहे थे कि जल्द से जल्द अच्छी सड़क मिले।
रीछेड़ में हमें अच्छी सड़क मिली। आगे गोमती में और भी शानदार सड़क मिल गयी। उधर जोधपुर में प्रशांत को फोन कर दिया कि हम तीन जने आ रहे हैं। प्रशांत का घर जोधपुर में हमारे लिये एक ऐसा ठिकाना है, जहाँ हम किसी भी समय हक़ से जा सकते हैं।
गोमती चौराहे पर थोड़ी-सी चाय और थोड़े-से समोसे खाकर आगे बढ़ गये। अच्छा पहाड़ी रास्ता होने के बावज़ूद भी दो-लेन की बेहद शानदार सड़क। दिल जीत लिया इसने। देसूरी से दाहिने मुड़ गये। लगातार जोधपुर की दूरी लिखी आ रही थी, जो अभी तो तीन अंकों में थी, लेकिन यकीन होता चला गया कि जोधपुर तक अच्छी सड़क मिलेगी।
सोमेसर रुके पाँच-दस मिनट। सात बज चुके थे और ख़ूब अंधेरा हो गया था। चले तो पाली रह ही कितना जाता है? शहर में जाने की ज़रुरत नहीं पड़ी, बाहर ही बाहर निकल गये। अब हम चार-लेन की सड़क पर थे। स्पीड़ भी बढ़ी और सुरक्षा भी।
साढ़े नौ बजे प्रशांत के घर पहुँचे और खा-पीकर सो गये।
आज का दिन उतना अच्छा नहीं गुज़रा, जितना होना चाहिये था। अगर कुंभलगढ़ देखने की ज़िद न होती तो हम कल ही जोधपुर आ चुके होते। हम आज कैलवाड़ा में रुककर कल भी कुंभलगढ़ देख सकते थे, लेकिन उससे आगे थार के लिये एक दिन कम हो जायेगा। थार में भी हमें बहुत बाइक चलानी है। मेवाड़ के लिये फिर कभी आ जायेंगे, और आयेंगे ही। मेवाड़ में हमने देखा ही क्या है? लेकिन इस बार थार पूरी तरह कवर कर लेना है।
थार बाइक यात्रा के सभी लेख:
1. थार बाइक यात्रा - भागमभाग
2. थार बाइक यात्रा - एकलिंगजी, हल्दीघाटी और जोधपुर
3. थार बाइक यात्रा: जोधपुर से बाड़मेर और नाकोड़ा जी
4. किराडू मंदिर - थार की शान
5. थार के सुदूर इलाकों में : किराडू - मुनाबाव - म्याजलार
6. खुड़ी - जैसलमेर का उभरता पर्यटक स्थल
7. राष्ट्रीय मरु उद्यान - डेजर्ट नेशनल पार्क
8. धनाना: सम से आगे की दुनिया
9. धनाना में ऊँट-सवारी
10. कुलधरा: एक वीरान भुतहा गाँव
11. लोद्रवा - थार में एक जैन तीर्थ
12. जैसलमेर से तनोट - एक नये रास्ते से
13. वुड़ फॉसिल पार्क, आकल, जैसलमेर
14. बाइक यात्रा: रामदेवरा - बीकानेर - राजगढ़ - दिल्ली
sabhi photo acche hai lekin no 6 and 14 jyada pasand aaye
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद माथुर साहब...
DeletePhoto No. 16 .... sukha huaa sitafal ... potografi ka alag najriya .. bhut achche.
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी... हमें नहीं पता था कि यह सीताफल है...
Deleteकार को हमसे बचने के लिये सड़क से नीचे उतरना पड़ता।
ReplyDeleteमजेदार :)
धन्यवाद गुरूदेव...
DeletePhoto no 17---Anurag
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराग जी...
Deleteहल्दी घाटी सुंदर जगह है , जरूर देखनी चाहिए। पक्षियों वाला फोटो खूबसूरत है।
ReplyDeleteधन्यवाद पंडित जी...
Deleteये पोस्ट पढ़ कर शांति मिली कि लेखन शैली कुछ-2 पुराने जैसी हो गई है। पर लिखने में भागम-भाग और शॉर्टकट्स साफ़ दिख रहे हैं।
ReplyDeleteहाँ जी, थोड़ी भागमभाग अवश्य थी...
Deleteबेशक़ यह दिन कुछ ख़ास नहीं रहा...
ReplyDeleteफिर भी मेवाड़ के ग्रामीण क्षेत्रों की तंग गलियों वाली सड़कों पर घुमना अच्छा लग रहा था...
कुंभलगढ़ छोड़कर जोधपुर पहुँच जाना अच्छा भी रहा,नहीं तो थार के हिस्से मे एक दिन और कम हो जाता..
जोधपुर पहुँच कर प्रशांत जी के यहाँ रुकना,बहुत अच्छा लगा,किसी दोस्त का परिवार जब इतनी आत्मीयता प्रकट करता है,तो बहुत ही आनंद मिलता है।
जिस तरह इंदौर में हमारा अपना ठिकाना है, उसी तरह जोधपुर में भी है। यही मेरे लिये ब्लॉगिंग की उपलब्धि है।
Deleteचित्र क्रमांक 05 बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteसभी चित्र मनमोहक, कुर्जां (पक्षी) का चित्र अच्छा। कुछ देर रुकते तो ये पक्षी कई तरह की आकृतियां बनाते नजर आते।
ReplyDeleteहाँ जी, ये आकृतियाँ बदलते रहते हैं। लेकिन बड़ी दूर तक ये इसी आकृति में उड़ते चले गये, इसलिये दूसरी किसी आकृति का चित्र नहीं ले सके।
Deleteमेवाड़ पहुँच के 'ड' "ड़" हो गया ( ‘मेड़ इन विदेश’ )
ReplyDeleteहा हा हा हा हा
एकलिंगजी में मैंने कुछ फोटो चोरी से खींच लिए , अंदर एक आदमी देखता रहा ! कुछ नहीं कहा , लेकिन लालच बुरी बाला है - मैं और भी खींचता गया तो उसने मेरा कैमरा ऑफिस में दे दिया और सारे फोटो डिलीट कर दिए ! ये झील एकलिंग जी मंदिर के पीछे वाली है या रोड के किनारे वाली ?
ReplyDeleteNeeraj bhai 04 no. Photo jo ki ek distance board ki hai Udaipur se Mt. abu jaate samay N.H. par lagi thi. Samay ke abhav mein haldighati jo N,H. ke niche se dahine taraf jaati hai ko chhod kar aage badh gaye . Chalti car se iske photo main nahin le paaya tha. photo show karne ke liye dhanyawad.
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