18 दिसंबर 2016
(आपको कौन-सा फोटो सबसे अच्छा लगा? अवश्य बताएँ।)
कुलधरा - पता नहीं आपने इस स्थान का नाम सुना है या नहीं, लेकिन मैं मानता हूँ कि सुना भी होगा और देखा भी होगा। जैसलमेर से ज्यादा दूर नहीं है और सम जाने के रास्ते से थोड़ा-सा ही हटकर है।
जब हम वहाँ पहुँचे तो पाँच बज चुके थे और जल्दी ही सूरज छिपने वाला था। यह मरुभूमि को देखते हुए काफ़ी बड़ा गाँव था और इसे योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया था। गाँव के अंदर सीधी सड़कें इसकी पुष्टि करती हैं। फिर किसी कारण से यह उजड़ गया और अब यहाँ कोई नहीं रहता। कोई कहता है कि इसका कारण पानी की तंगी था, कोई कहता है कि जैसलमेर के किसी वज़ीर के कारण उजड़ा और ज्यादा मान्यता है कि यह शापित और भुतहा है।
कारण चाहे जो भी हों, लेकिन कुलधरा को भुतहा स्थान ही माना जाता है और इसे भानगढ़ की श्रेणी में रखा जाता है। इसी कारण यह प्रसिद्ध होता चला गया। राजस्थान सरकार भी इसकी प्रसिद्धि बढ़ाने में जी-जान से लगी है और सफ़ल भी हो रही है। यही कारण है कि जैसलमेर आने वाले लगभग सभी यात्री कुलधरा को भी अपनी लिस्ट में रखते हैं।
लगभग सभी घर पूरी तरह टूट चुके हैं। दो-तीन ही ठीक-ठाक हालत में हैं। इन्हें ठीक-ठाक रखने का श्रेय निश्चित ही राजस्थान सरकार को जाता है। जब हम पहुँचे, कुछ मजदूर टूटे घरों में काम कर रहे थे। इसका अर्थ है कि भविष्य में और भी घर ठीक हालत में मिलेंगे।
एक मंदिर भी है। मंदिर के ऊपर और कुछ अन्य घरों की छत पर खड़े होकर पूरे कुलधरा को देखा जा सकता है।
दरवाजे तो किसी भी घर में नहीं हैं, लेकिन कुछ कुंडियों में ताले लगे हैं - केवल ताले। जितनी पुरानी इसके उजड़ने की कहानियाँ बतायी जाती हैं, ताले उतने पुराने हैं नहीं।
संरक्षण का काम बड़े जोर से चल रहा है। अब यहाँ किसी का बसना संदिग्ध है, लेकिन अत्यधिक संरक्षण इसके मूल स्वरूप को विरूपित कर रहा है।
दो घर काफ़ी अच्छी हालत में हैं। इन दोनों में एक समानता है कि बीच में एक दालान है और चारों तरफ़ कमरे बने हैं। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि छोटे-से दालान में चारों दिशाओं में पतराले बने हुए हैं। मरुभूमि में, जहाँ बारिश नहीं होती, छत का पानी निकालने के लिये पतराले क्यों? जो लोग यहाँ रहते थे 100 साल पहले, उन्होंने शायद ये पतराले नहीं बनाये होंगे। ये अवश्य ही संरक्षणकर्त्ताओं ने बनवाये हैं।
हाल ही में पता चला कि ये पतराले इसलिये इसलिये बनाये जाते थे ताकि गाहे-बगाहे हुई थोड़ी-सी बारिश का पानी भी संरक्षित किया जा सके।
हाल ही में पता चला कि ये पतराले इसलिये इसलिये बनाये जाते थे ताकि गाहे-बगाहे हुई थोड़ी-सी बारिश का पानी भी संरक्षित किया जा सके।
जो भी हो, कुलधरा इस मरुधरा का एक दर्शनीय स्थल तो बन ही गया है।
यहाँ से जब तक वापस चले, तो दिन छिप चुका था। सुमित का मन आज सम में टैंट लगाने का कर रहा था, लेकिन मैं टैंट नहीं लगाना चाहता था। मेरा पक्का इरादा था जैसलमेर जाकर कमरा लेना। सुमित सम की तरफ़ मुड़ गया और हम जैसलमेर की तरफ़। हमें 400 रुपये में एक गंदा-सा कमरा मिला, लेकिन कमरे हमेशा ही टैंट से अच्छे होते हैं। उधर सुमित सम से आगे लखमना की ओर चला गया और सन्नाटे में टैंट लगाया। लेकिन उसका अनुभव अच्छा नहीं रहा - शायद अकेले होने की वजह से - और सुबह सूर्योदय से पहले ही वह जैसलमेर आ गया था। फिर कहीं भी उसने टैंट का नाम नहीं लिया।
एक घर के अंदर |
ऊपर छत पर कोने पर खड़े होकर सेल्फी लेता एक सेल्फी-किंग |
क्या आप यकीन करेंगे कि ये पतराले यहाँ के मूल निवासियों ने बनवाये होंगे? मुझे तो यकीन नहीं होता। |
(आपको कौन-सा फोटो सबसे अच्छा लगा? अवश्य बताएँ।)
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कुलधरा के विषय में जानकर अच्छा लगा। वैसे अब मुझे लगने लगा है कि अगर किसी भी निर्जन स्थान को पर्यटक स्थल में बदलना हो तो उसके साथ कुछ भूतहा इतिहास या कहानी जोड़ दो। पर्यटक लोग दूर दूर से आयेंगे। वैसे आजकल जिस तरह से पलायन चल रहा है उस वजह से कई गाँव ऐसे ही भूतहा पड़े हए हैं।
ReplyDeleteरोचक संस्मरण।
26 वीं तस्वीर बड़ी रोचक है। क्या सोच रहे थे खिंचवाते वक्त???
धन्यवाद विकास जी...
Deleteकुछ भी नहीं सोच रहा था... सेल्फी ले रहा था ऐसे-वैसे मुँह बनाकर...
हा हा... फोटो बड़ी जबर है....
Deleteमूंछें न जचें हैं आप पे।
ReplyDeleteकोई बात ना...
Deleteकुलधारा की क्षबि मन मे और वीरान गाँव की थी,लेकिन वहाँ बहुत भीड़भाड़ के कारण महसूस नहीं कर सका...
ReplyDeleteथार यात्रा शुरू करने से पहले ही सम मे टेन्ट लगाना ही है,ऐसा इरादा ही कर ही लिया था,उसके लिए 25 किलोमीटर वापस पीछे जाना था,बस यही एक दुविधा थी,लेकिन तुमने मेरा साथ दिया,और कोई साथी होता तो जिद्द करता,साथ में ही जैसलमेर चलने की..
बाकि सम पहुँच कर एक ऊँट वाले से सुनसान जगह,जहाँ मोटरसाइकिल चली जाय,ऐसा पूछा तो उसने लखमना की और इशारा कर दिया,दो दिन पहले महाबार बाड़मेर मे कुत्तो ने परेशान किया था,इसलिये बीच रेतीले मैदान मे गाड़ी रोक कर 20 मिनिट रूककर इधर उधर देख लिया कोई जानवर न दिखा तो वही टेन्ट गाड़ लिया...
सम मे आसमान का नज़ारा देखने लायक था,लेकिन बहार ठण्ड भी बहुत थी,बाकि सम मे मेरा अनुभव अच्छा रहा,तुम साथ रहते तो और अच्छा रहता,टेन्ट मे बेठकर खाते पीते,गप्पे मारते..
तो ऐसा बिल्कुल नहीं है की में अकेला था इसीलिए मज़ा आया,तीनों साथ रहते तो तिगुना मज़ा करते।
कोई बात ना भाई... तुम्हारा मन टैंट लगाने का था और मेरा मन नहीं था... दोनों ने ही अपने मन की की...
Deleteचित्र 21...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा
वैसे तो सभी चित्र अच्छे हैं पर विशेष तौर पर 5वाँ व 21 वाँ चित्र उल्लेखनीय हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteजैसलमेर की दूसरी यात्रा में कुलधरा ज़रूर जाऊंगा
ReplyDeleteज़रूर जाना... अच्छी जगह है...
Deleteकुलधारा का रोचक वर्णन। वैसे कुलधारा गाँव पर कुछ डोक्युमेंटरीज भी बन चुकी है। जिसमे तथाकथित श्राप और प्राकृतिक आपदाओ या महामारियों का जिक्र है। जैसलमेर जिला जल संरक्षण मे काफी आगे है यहाँ केवल 15 से 20 मिमी से ज्यादा कभी बारिश नही होती फिर भी यहाँ कभी अकाल जैसी परिस्थितियां नही बनती।
ReplyDeleteसही कहा आपने...
Delete22 photo me ghar ki deewar par dil bana hua he....ANURAG
ReplyDeleteसब ‘पर्यटकों’ की करामात है...
Deleteकुलधरा को देखने के लिए कम से कम आधा दिन चाहिए ! आप उस भुतहा गांव की पतली पतली गलियों से गुजर कर देखिये , उन घरों में लगने वाले टांड देखिये , नहाने और पानी इकठ्ठा करने की जगहों को देखिये , अभिभूत हो जाएंगे ! सही कहा नीरज भाई आपने -संरक्षण के चक्कर में कुलधरा का मूलरूप ही कहीं गायब न हो जाए !!
ReplyDeleteDhanyawad niraj ji hamare purvjo ka itehas batane ke liye.
ReplyDeleteMeri kasmir yatra me aapki madad ke darkar rehegi.
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