आज हम यात्रा करेंगे जैसलमेर से तनोट तक, लेकिन परंपरागत रास्ते से नहीं बल्कि निहायत नये और अनछुए रास्ते से।
जैसलमेर-सम रोड़ पर जहाँ से लोद्रवा की सड़क अलग होती है, वहाँ कुछ दूरियाँ लिखी थीं। इनमें प्रमुख था आसूतार 94 किलोमीटर। हमारी योजना इसी सड़क पर आसूतार, घोटारू, लोंगेवाला होते हुए तनोट जाने की थी। मैं सैटेलाइट से पहले ही इस सड़क की स्थिति देख चुका था। यह पूरी सड़क पक्की बनी है। इंटरनेट पर इसका कोई भी यात्रा-वृत्तांत नहीं मिलता।
लोद्रवा से आगे छत्रैल है और फिर कुछड़ी है। कुछड़ी में एक टी-पॉइंट है - बाये सड़क सम जाती है और दाहिने आसूतार। अगर कल हम सम रुकते, तो शायद सीधे इधर ही आते। हम दाहिने मुड़ गये।
थोड़ा आगे हाबुर गाँव है। यहाँ से सीधी सड़क जैसलमेर-तनोट रोड़ में मोकल के पास जाकर मिल जाती है और बायें जाने वाली सड़क आसूतार जाती है। यहाँ से हम भी आसूतार का पीछा करते-करते बायें मुड़ गये।
दो-लेन की यह सड़क सीमा सड़क संगठन ने बनायी है और बेहद शानदार बनी है। राजस्थान के इस सुदूर इलाके में जरा भी यातायात नहीं है। कभी-कभार कोई जीप आ जाती, जिससे स्थानीय निवासी आना-जाना करते हैं। बस कोई नहीं दिखी।
इस सड़क के बारे में एक चिंता मन में थी। हर जगह आसूतार तक की ही दूरियाँ लिखी थीं, उससे आगे घोटारू का कहीं भी नाम लिखा नहीं मिला। मुझे लगने लगा कि आसूतार में ही बी.एस.एफ. का बैरियर मिलेगा और वे लोग हमें घोटारू नहीं जाने देंगे। हालाँकि मैं इसके लिये भी तैयार था और आसूतार से ही लोंगेवाला जाने का एक और वैकल्पिक मार्ग देख रखा था।
हाबुर से आगे खुईयाला है। यह अपेक्षाकृत बड़ा गाँव है और चाय की भी दुकान है। अगर परसों म्याजलार में हमें विचित्र अनुभव नहीं होता, तो शायद हम यहाँ चाय पी लेते। यहाँ से भी एक रास्ता सियाम्बर होते हुए सम जाता है।
खुईयाला से आगे बांधा गाँव है। यहीं से इंदिरा गाँधी नहर गुजरती है। नहर में थोड़ा-सा पानी था। कुछ लोग जाल लगाकर मछली पकड़ रहे थे। थार में मछली पकड़ते देखना अदभुत अनुभव था।
अब भूदृश्य बदलने लगा। सपाट क्षितिज तक दिखने वाली धरती की जगह अब ऊँची-नीची जमीन ने ले ली थी। और इसके बावज़ूद भी बी.आर.ओ. ने सीधी नाक की सीध में सड़क निकाल रखी है। कहीं कोई मोड़ नहीं।
कुछ छोटे-छोटे कच्चे घरों वाले गाँव भी दिखे और खेत भी।
ढाई बजे आसूतार पहुँच गये। यहाँ कुछ खंड़हर थे, किसी बसावट का कोई निशान नहीं था। एक सड़क रामगढ़ चली जाती है। हम सीधे घोटारू की ओर चलते रहे। यहाँ से घोटारू 18 किलोमीटर दूर है।
एक जलकूप के पास अनगिनत ऊँटों को देखकर रुकना पड़ा। सभी पालतू थे और इनके मालिक इन्हें पानी पिलाने लाये थे।
भेडों का एक छोटा-सा रेवड़ मिला। हमने उनके मालिक से रामराम की, उसने हालचाल पूछा। फिर हम अपने रास्ते, वो अपने रास्ते।
आसूतार के बाद दो-लेन की सड़क समाप्त हो गयी और सिंगल-लेन शुरू हो गयी। लेकिन कहीं कोई गाड़ी नहीं दिखी। केवल हम ही थे। आसूतार में जब बैरियर नहीं मिला, तो पक्का हो गया कि अब आगे कहीं भी बैरियर नहीं मिलेगा। हम निश्चिंत लोंगेवाला पहुँच जायेंगे।
लेकिन घोटारू में बैरियर था। यहाँ यह हमारे लिये होना और न होना दोनों बराबर था। असल में यहाँ से एक सड़क पश्चिम की तरफ़ जाती है जो आगे - बहुत आगे - कहीं रामलाऊ, हरनाऊ चली जाती है। इस सड़क पर जाना आम नागरिकों के लिये प्रतिबंधित था, इसलिये यहाँ बी.एस.एफ. की चौकी थी। हमें चौकी पर एक रजिस्टर में एंट्री करनी पड़ी और लोंगेवाला की तरफ़ चल दिये।
घोटारू में एक किला है। छोटा-सा किला। चौकी से यह 200-300 मीटर पश्चिम में स्थित है। हम इस किले को देखना चाहते थे। लेकिन चौकी इंचार्ज एक खडूस आदमी था, उसने हमें रुकने ही नहीं दिया। अगर वह खडूस न होता और धनाना व मुनाबाओ वालों की तरह होता, तो हम घोटारू किले को अवश्य देख लेते। थार में इस तरह के दो-तीन किले और भी हैं। एक किला तनोट के पास किशनगढ़ में भी है, लेकिन वहाँ भी बी.एस.एफ. का पहरा है। इन किलों के बारे में मुझे ज्यादा नहीं पता, लेकिन शायद जैसलमेर के किसी राजा ने सीमा निर्धारण और निगरानी के लिये इन्हें बनवाया होगा।
शाम पौने चार बजे लोंगेवाला पहुँचे। बड़ी चहल-पहल थी। महेंद्रा की बहुत सारी ‘मोज़ो’ बाइकें थीं - कम से कम 50 तो रही ही होंगी। सभी MH 14 नंबर की थीं। ये लोग भी अभी ही तनोट की तरफ़ से आये थे और पूरा लोंगेवाला इनकी दनदनाती भयानक आवाजों से फिर से युद्धक्षेत्र जैसा बन गया था। इतना शोर तो 1971 में भी नहीं हुआ होगा। और सभी ने अच्छा उजाला होने के बावज़ूद भी हैड़ लाइटें जला रखी थीं - विदाउट डिपर। पता नहीं क्या सोचकर ऐसी रैलियों के आयोजक और प्रचारक इसे ‘थ्रिलिंग एक्सपीरियेंस’ बताते हैं?
मैं तीन साल पहले साइकिल से लोंगेवाला आया था। तब यहाँ पाकिस्तानी टैंक और गाड़ियाँ इधर-उधर रेत में पड़ी थीं। अब इन्होंने इसे एक पार्क जैसा विकसित कर दिया है और इसे सुंदर और आकर्षक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक संग्रहालय है और एक थियेटर भी। थियेटर में 25 रुपये का टिकट लगता है और लोंगेवाला की लड़ाई का जीवंत अनुभव होता है। दो कैंटीन भी खुल गयी हैं, जिन्हें आर्मी ही चलाती है।
मद्रास रेजीमेंट वालों की कैंटीन में समोसे और इडली मिली। आख़िरी कुछ समोसे-इडली ही बचे थे, हमने सब सफाचट कर दिये।
अच्छा लगा। सेना और सिविलियनों का इसी तरह आपस में व्यवहार होना चाहिये।
यहाँ से चले तो सीधे तनोट जाकर रुके। मंदिर में आरती चल रही थी। डेढ़ घंटे तक चलने वाली इस आरती को बी.एस.एफ. के जवान ही संचालित करते हैं। फोटो खींचने और वीडियो बनाने पर कोई प्रतिबंध नहीं। आरती में जवानों का तालमेल देखते ही बनता है।
कैंटीन में 60 रुपये की थाली मिलती है, जितना चाहो खाओ।
रजाई-गद्दे फ्री मिलते हैं। खाली हों तो कमरे भी मिल जाते हैं, नहीं तो हॉल जिंदाबाद।
थार बाइक यात्रा के सभी लेख:
1. थार बाइक यात्रा - भागमभाग
2. थार बाइक यात्रा - एकलिंगजी, हल्दीघाटी और जोधपुर
3. थार बाइक यात्रा: जोधपुर से बाड़मेर और नाकोड़ा जी
4. किराडू मंदिर - थार की शान
5. थार के सुदूर इलाकों में : किराडू - मुनाबाव - म्याजलार
6. खुड़ी - जैसलमेर का उभरता पर्यटक स्थल
7. राष्ट्रीय मरु उद्यान - डेजर्ट नेशनल पार्क
8. धनाना: सम से आगे की दुनिया
9. धनाना में ऊँट-सवारी
10. कुलधरा: एक वीरान भुतहा गाँव
11. लोद्रवा - थार में एक जैन तीर्थ
12. जैसलमेर से तनोट - एक नये रास्ते से
13. वुड़ फॉसिल पार्क, आकल, जैसलमेर
14. बाइक यात्रा: रामदेवरा - बीकानेर - राजगढ़ - दिल्ली
तनोट के लिए रामगढ़ वाला पारम्परिक रास्ता छोड़कर आसुतार होते हुवे घोटारु के रास्ते लोंगेवाला होते हुवे तनोट जाना इस दिन का सबसे बड़ा सरपाइज था।
ReplyDeleteऐसे ही रास्ते पसन्द होते है मुझे भी,खुली सड़क,सुदूर इलाका,कोई बसावट नहीं,बस वीरान हो...
लोंगेवाला मे वो बाइक ग्रुप वाले खालिस मनोरंजन के लिए आये थे,लेकिन बहुत शोर मचा रखा था..
लोंगेवाला कैफे केन्टीन मे एक मजेदार वाक्या हुवा,तुम थोड़ा पीछे थे,निशा और में पहले केन्टीन पहुँच गए और 15 रुपेय की 100 ml कॉफ़ी ले ली,उस कॉफ़ी को जब पीने लगे तो भयंकर कड़वी,उसमे दूध का नामोनिशान नहीं था,में तो गटक गया,निशा भीड़ ख़त्म होते ही कॉफ़ी मशीन चला रहे फौजी के सामने कॉफ़ी का ग्लास रख कर शुरू हो गई..
"आप यह कॉफ़ी पीकर देखो,इसमे दूध का नामोनिशान नहीं है, आप भी ऐसी ही कॉफ़ी पीते हो..."
फौजी ने फटाफट कॉफ़ी मशीन की जाँच की,उसमे दूध पाउडर ख़त्म हो गया था...
फौजी ने माफ़ी मांगी और फिर से दूधवाली कॉफी बनाकर दी।
यह मुझे अच्छा लगा,किसी की गलती है, तो उन्हें उसका एहसास करवाना ही चाहिये।
...
तनोट पहुँचने पर शाम ढल चुकी थी,मंदिर मे आरती चल रही थी,यहाँ का माहौल बहुत पसन्द आया,यहाँ रात रुकना यादगार रहा...
चाहें वह जोश ख़रोश से भरी आरती हो या हॉल मे बेठकर अपन तीनों की गप्पेबाजी..
नीरज भाई सारे फोटो शानदार है। पर इन पाकिस्तानी टैंको पर पाकिस्तानी झंडा उल्टा क्यों बना हुआ है?
ReplyDeleteकोई विशेष कारण है क्या?
ताकि पाकिस्तान का अपमान हो...
DeleteYe Tank ham pak ko harakar laye hai isliye.
Delete22 ,23,31 & 35 नंबर के चित्र बहुत ही अच्छे लगे। जैसलमेर हम भी घूम अाए है अभी अक्टूबर में , किंतु अापने तो अनछुए जैसलमेर की यात्रा करा दी। एक बार फिर से बहुत बढि़या वर्णन। घूमते रहिए और इसी तरह लिखते रहिए।
ReplyDeleteमुसाफ़िर हूँ यारों (मैं भी) परंतु ऐसा कोई साथी नहीं जो यात्रा..फोटोग्राफी..यात्रा वृतांत..इतिहास दर्शन में गहन रूचि रखता हो और यात्रा के कष्ट को आनंद समझता हो ! बहरहाल, आपकी यात्रा..लेख.. फोटोग्राफी कमाल की है ।
ReplyDeleteमुझे फ़ोटो no 9,23,30 और 32 काफ़ी अच्छी लगी। विशेषकर पाकिस्तान की पराजय और हमारे विजय का प्रतीक टैंक वाला फ़ोटो।
ReplyDeleteNeeraj ji is baar koi comment na karke hamari ek ukti kahana chahunga
ReplyDeleteMaru thara Desh me Nipje 3 ratan
pelo dholo
duji marwan
tijo kasumal rang
kesariya balam aavo ni sa padharo mahare desh
(Means hey maru tere is Rajasthan ke 3 Ratna Hai
1 Great Hero Dhola
2 Dhola ki premika marwan
& 3 Kasumal ya kesariya rang
jo veeron ka rang hai
kesariay baalam yani mere veer priyatam
Padharo Mere Desh )
Isaliya kewal Neeraj Ji hi nahi sabhi se kahata hun ki
Kesariya baalam aavo ni sa padharo mahare Desh
welcome to all on the land of gold and sky of silver
25 aur 32 number, aur aaj kal cycle kaha hai?
ReplyDeleteफोटो 33 को सरसरी निगाहों से देखने पर ऐसा लगता है मानो शतुरमुर्ग हों| 31 और 32 भी शानदार हैं |
ReplyDeleteJana jisne Jana hai
ReplyDeleteAjab desh jaisana hai....