6 मई 2015
आज हमें वहां नहीं जाना था जहां शीर्षक कह रहा है। हमारी योजना थी शिकारी देवी जाने की। यहां से शिकारी देवी जाना थोडा सा ‘ट्रिकी’ है। कुछ समय पहले तक जो सडक का रास्ता था वो डेढ सौ किलोमीटर लम्बा था- रोहाण्डा, चैल चौक, जंजैहली होते हुए। जंजैहली से शिकारी देवी 16 किलोमीटर है। इसमें 10 किलोमीटर चलने पर एक तिराहा आता है जहां से शिकारी देवी तो 6 किलोमीटर रह जाता है और तीसरी सडक जाती है करसोग जो इस तिराहे से 16 किलोमीटर है।
असल में करसोग और जंजैहली के बीच में एक धार पडती है। यह धार सुन्दरनगर के पास से ही शुरू हो जाती है। कमरुनाग इसी धार के ऊपर है। यह धार आगे और बढती जाती है। आगे शिकारी देवी है। इसके बाद भी धार आगे जाती है और जलोडी जोत होते हुए आगे कहीं श्रीखण्ड महादेव के महाहिमालयी पर्वतों में विलीन हो जाती है। इस तरह अगर हम शिकारी देवी पर खडे होकर दक्षिण की तरफ देखें तो करसोग दिखेगा और अगर उत्तर में देखें तो जंजैहली दिखेगा। लेकिन अभी तक सडक सुन्दरनगर के पास से इसका पूरा चक्कर लगाकर आती थी।
पिछले कुछ महीनों में इस धार के आरपार सडक बनी है। पहले जहां करसोग से शिकारी देवी डेढ सौ किलोमीटर दूर थी, अब मात्र 22 किलोमीटर रह गई है। हमने इन्हीं 22 किलोमीटर पर चलने की सोची। सनारली में स्थानीयों से पूछ लिया तो पता चला कि सडक बहुत खराब है लेकिन बाइक जा सकती है।
तीन किलोमीटर आगे शंकर देहरा गांव है। रास्ता पूरा चढाई भरा है लेकिन ज्यादा मुश्किल नहीं आती चलने में। छोटा सा गांव है शंकर देहरा। तरुण भाई ने बताया था कि शंकर देहरा में एक मन्दिर है जिसका इस्तेमाल हिमाचल के अन्य देवता शिकारी माता के दर्शनों हेतु आते-जाते समय विश्राम के तौर पर करते हैं। यह मन्दिर लकडी का बना है और धूल उडाती सडक व नन्हे से गांव में यह बहुत प्यारा लगता है।
सनारली लगभग 1500 मीटर की ऊंचाई पर है और शिकारी देवी 3300 मीटर पर। ऊंचाईयों का अन्तर हुआ 1800 मीटर जबकि सनारली से शिकारी की सडक की दूरी भी 18 किलोमीटर ही है। इसका अर्थ है कि प्रति किलोमीटर 100 मीटर की चढाई। इस अनुपात को मैं पैदल ट्रैकिंग के लिये भी बहुत ज्यादा मानता हूं। सडक के लिये तो बहुत-बहुत-बहुत ज्यादा हो गया। समझ लीजिये कि जिस रास्ते पर अच्छे-खासे आदमी को पैदल चढने में खूब सांस फूल जाये, उस रास्ते पर बाइक चलाना। यह बात मुझे हजम नहीं हो रही थी। शंकर देहरा में फिर पूछताछ की तो बताया गया कि बाइक चली जायेगी लेकिन कई स्थानों पर पीछे वाली सवारी को बाइक से उतरना पडेगा।
शंकर देहरा से हद से हद एक किलोमीटर ही चले होंगे। इसमें 150 सीसी की बाइक पहले गियर में फुल एक्सीलरेशन में चल पाई और निशा को कम से कम आधा किलोमीटर पैदल चलना पडा। रास्ते में मिट्टी का नामोनिशान नहीं है, बडे बडे व नुकीले पत्थर जमाकर रख दिये हैं। रास्ता चौडी सीढीदार पगडण्डी ही ज्यादा लग रहा था। इस एक किलोमीटर में ही कई बार तो मुझे बाइक से नीचे उतरकर पैदल पहले गियर में डालकर चलानी पडी। दो बार गिरा भी।
आखिरकार फैसला लिया कि वापस चलो। इसमें क्लच प्लेट का नुकसान हो जायेगा। अभी तो बाइक काम कर रही है, कहीं बन्द हो गई तो लेने के देने पड जायेंगे। हालांकि रास्ते में एक स्थानीय बाइक वाला भी मिला, वो इसी रास्ते पर उछलता-कूदता चला जा रहा था लेकिन अनुभव व रिस्क की बात हो जाती है। मैं बाइक खराब होने का कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। जंजैहली-शिकारी सडक यहां से आठ किलोमीटर दूर रह गई थी। अगर हम किसी तरह सौ डेढ सौ किलोमीटर का चक्कर लगाकर जंजैहली की तरफ से आयें तो हमें फिर यहां से आठ किलोमीटर दूर से गुजरना पडेगा।
वास्तव में शिकारी देवी अभी भी पैदल यात्रा के लिये ही है। शिकारी ने हमारा शिकार कर लिया, हम इस बार भी शिकारी नहीं जा पायेंगे। अगली बार पैदल की तैयारी करके आयेंगे।
वापस सनारली पहुंचे और यहां से बायें मुड गये। बायें अर्थात रामपुर की तरफ। निशा ने पूछा कि अब कहां जायेंगे। मैंने कहा- बैठी रह, अब शायद जलोडी जोत पार करके या तो तीर्थन घाटी में जायेंगे या फिर रामपुर से आगे किन्नौर।
सवा बारह बजे थे जब हम सनारली से चले। आधे घण्टे में केलोधार पहुंच गये। केलोधार तक रास्ता चढाई वाला है। केलोधार से एक रास्ता छतरी जाता है जो यहां से 32 किलोमीटर है। बताते हैं कि छतरी तक तो अच्छी सडक बनी है। उससे आगे यह रास्ता जंजैहली भी जाता है। छतरी से जंजैहली तक सडक खराब है लेकिन उस पर बसें चलती हैं जिसका अर्थ है कि ठीकठाक है। लेकिन अब चूंकि हम जंजैहली और शिकारी न जाने का फैसला कर चुके थे इसलिये केलोधार से छतरी की तरफ नहीं मुडे, सीधे चलते रहे।
केलोधार से 16 किलोमीटर आगे कोटलू है। कोटलू से एक तीसरी सडक जाती दिखी, इस पर लिखा था सराहन 9 किलोमीटर। मैंने निशा से कहा- ये लो, इसी छोटे से इलाके में तीसरे सराहन की खोज हो गई। एक सराहन तो रामपुर से जरा सा आगे भीमाकाली वाला है, दूसरा सराहन रामपुर से निरमण्ड होते हुए बागीपुल से थोडा आगे है। उसे कुल्लू सराहन कहते हैं। तीसरा यह कोटलू के पास वाला सराहन यानी कोटलू सराहन। अगर दिल्ली या शिमला से आना चाहें तो तीनों सराहनों के लिये आपको आधार रामपुर ही बनाना पडेगा।
कोटलू से आगे हमें सतलुज नदी मिल गई और जल्दी ही हम बहना गांव में थे। यहां से एक रास्ता जलोडी जोत की तरफ जाता है। थोडी देर एक पेड के नीचे बैठे, विमर्श किया कि जलोडी जोत जायें या किन्नौर जायें। जलोडी जोत जाकर आगे तीर्थन घाटी में उतरना पडेगा। अभी हमारे पास समय बहुत है, इसलिये शायद कुल्लू, मनाली या मणिकर्ण भी जाना पड सकता है और शायद पराशर झील भी। फिर वापसी का सफर या तो उसी सुन्दरनगर-ऊना वाले रास्ते से होगा जिससे दो दिन पहले हम आये हैं या फिर कांगडा के गर्म पठार से होकर। मैं नहीं चाहता था कि वापसी में हमें पूरे एक दिन लू में चलना पडे। जलोडी की तरफ जाना रद्द कर दिया और रामपुर की तरफ बढ चले।
बहना से एक किलोमीटर ही आगे गये होंगे कि सतलुज तट तक उतरने की पगडण्डी मिल गई। बाइक भी बिल्कुल नीचे तक उतार दी और जूते खोलकर यही धूप में बैठ गये। तेज धूप होने के बावजूद भी अच्छा लग रहा था। निशा भी बहुत खुश हुई नदी किनारे जाकर।
आधे घण्टे बाद तीन बजे यहां से चले। अब तो कहीं नहीं रुकना था। जल्दी ही हम नेशनल हाईवे पर आ गये। अभी तक हम सिंगल लेन पर चल रहे थे, अब चौडी सडक पर आ गये, रफ्तार बढना लाजिमी था। रफ्तार बढ भी गई। दत्तनगर में एक राजस्थानी होटल में घण्टे भर तक रुके रहे और पेट भरकर खाना खाया। सुबह सनारली में ही थोडी सी चाऊमीन व आमलेट खाए थे।
पौने सात बजे ज्यूरी पहुंचे। एक गये-गुजरे गन्दे होटल में 400 रुपये का एक कमरा लिया और सो गये। सीधे सुबह ही उठे।
7 मई 2015
साढे आठ बजे ज्यूरी से चल पडे। लक्ष्य था छितकुल। दूरी लगभग 100 किलोमीटर। 15-20 किलोमीटर ही चले होंगे कि किन्नौर जिले में स्वागत हो गया। और जल्दी ही किन्नौर की उस सुरंगनुमा प्रसिद्ध सडक के भी दर्शन हो गये जिसके अब तक मैं फोटो ही देखा करता था। इस जगह का नाम है कुछ, ध्यान नहीं आ रहा।
यहां आकर कुछ अच्छा हो गया। अच्छा ये हुआ कि हम दोनों में लडाई हो गई। खूब घमासान। कोई वाहन आता तो हम फोटो खींचने लगते, उसके गुजरते ही फिर घमासान। छितकुल जाने का सारा मजा किरकिरा हो गया। यहीं एक बडा सा पत्थर था, उस पर बैठ गया। बहुत अच्छा लगा इस पर बैठना। अगली बार उधर जाना होगा तो फिर से वहां बैठूंगा। निशा दूर खडी रही औरे मैं अपना चित्त शान्त करने को इस पर बैठ गया। पांच मिनट में अन्तर्मन से आवाज आई कि वापस चलो।
बाइक वापस मोडी, निशा ने भी कुछ नहीं कहा। रास्ते में एक जगह चाय के लिये रुके। मैंने निशा से पूछा, उसने चाय पीने को ‘हां’ कहा। मुझे ‘ना’ सुनाई दिया। एक कप ही चाय बनवाई और खुद पी गया, निशा देखती रह गई। लेकिन अभी भी दोनों तरफ तनाव और अशान्त चित्त थे; इसलिये बोला कोई नहीं एक दूसरे से।
यहां से चले तो सीधे ज्यूरी के पास पेट्रोल पम्प पर रुके। टंकी फुल करवाई और बाइक सराहन की तरफ मोड ली। दोपहर एक बजे सराहन पहुंचे। मन्दिर में साढे तीन सौ का कमरा मिल गया। यह वही कमरा था जिसमें मैं पिछली सराहन यात्रा में रुका था। पांच बजे तक सोते रहे। उठे तो दोनों के मुंह से निकला- जाना था छितकुल, पहुंच गये सराहन। और सारा तनाव समाप्त हो गया। फिर से हम सामान्य हो गये। फिर तो शाम को हमने मोमो खाये, चाय पी, श्रीखण्ड महादेव के दर्शन किये और रंगोरी वाली सडक पर अन्धेरा होने तक टहलते रहे।
अच्छा ये हुआ कि आज हम छितकुल पहुंचते। कल हमें वापस भागना पडता और परसों शाम तक हर हाल में कालका पहुंचना पडता जो काफी दूर है। ये तीन दिन हमारे सडक रौंदने में ही कट जाते। न छितकुल देख पाते, न सांगला और न ही दारनघाटी।
सनारली से एक रास्ता करसोग जाता है, एक चिण्डी और एक रामपुर। एक नया रास्ता जंजैहली का भी बना है। |
शंकर देहरा |
शंकर देहरा से आगे रास्ता ऐसा है जो धीरे धीरे और मुश्किल होता जायेगा। |
आखिरकार वापस मुडना पडा। |
करसोग घाटी |
केलोधार से छतरी वाला रास्ता आगे जंजैहली जाता है। |
सामने कोटलू गांव दिख रहा है। ऊपर वाली सडक सराहन जा रही है और नीचे वाली रामपुर। |
सतलुज किनारे |
रामपुर |
एक भूस्खलन जोन में |
ये हिमाचल वाले भी कहां कहां चढा देते हैं बसों को! |
ज्यूरी |
किन्नौर की प्रसिद्ध सडक |
और वापस सराहन आकर मोमो खाये... |
अगला भाग: सराहन से दारनघाटी
करसोग दारनघाटी यात्रा
1. दिल्ली से सुन्दरनगर वाया ऊना
2. सुन्दरनगर से करसोग और पांगणा
3. करसोग में ममलेश्वर और कामाख्या मन्दिर
4. करसोग से किन्नौर सीमा तक
5. सराहन से दारनघाटी
6. दारनघाटी और सरायकोटी मन्दिर
7. हाटू चोटी, नारकण्डा
8. कुफरी-चायल-कालका-दिल्ली
9. करसोग-दारनघाटी यात्रा का कुल खर्च
kya baat hai bhai neesha haan khaa maine naa suna hota hai aisa aaj to maza aa gyaa
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteभाई नीरज पहले की तरह इसे भी पढ़ना अच्छा लगा | फोटोग्राफी में भी मास्टरी क्र कर रहे हो | निशा से नारजगी तुमसे कैसे हो सकती है या तुम निशा से कैसे नाराज हो सकते हो | आज कल हम भी पत्नी सहित कोसानी बागेश्वर उत्तराखंड में प्रवास क्र रहे है |24 घंटे से बोल चाल बंद है |
ReplyDeleteहा हा हा... अच्छा लगा कि बोलचाल बन्द है। अकेले मेरी ही बोलचाल बन्द नहीं हुई थी, यानी सबकी होती है।
Deleteधन्यवाद सर जी आपका...
नीरज भाई, मज़ा आ गया इस बार तो पढ़कर... मुझे वो पंक्ति सबसे अच्छी लगी की निशा ने चाय के लिए हाँ बोला और तुम्हें ना सुनाई दिया....मियाँ-बीवी की ये तकरार सच में कभी-2 हँसा देती है... फोटो हमेशा की तरह लाजवाब है...
ReplyDeleteहां जी, बाद में ये सब अच्छा लगता है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
DeleteUs jagah/sadak ka naam hai 'Taranda Dhaank'. Aur ye jo shankar dehra tumne dekha main iski baat nahin kar raha tha, isse aage waale ki baat kar raha tha. dekho yahan https://www.flickr.com/photos/thehimalayanvolunteer/8406794395
ReplyDeleteये बात है? हम तो खुश हो गये थे शंकर देहरा को देखकर कि तरुण भाई ने बताया था इसके बारे में। मन्दिर दिखते ही झट से उसमें जा घुसे थे। खैर, आपका वाला शंकर देहरा बखरोट से शिकारी जो पैदल रास्ता है, उस पर है; शायद इस पर नहीं है।
Deleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteबहुत खूब...
Deleteअच्छा लगा की आप अपने जीवन की कुछ खट्टी मिठ्ठी बाते हमारे साथ बांटते है,अगर पति पत्नी में रूठना मनाना ना हो तो इस जीवन में मजा की क्या है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट...
धन्यवाद सचिन भाई...
Deleteआपसी लड़ाई के बाद बोलचाल में निखार आ जाता है । पर इस यात्रा का क्या हुआ तुम आखिर जा कहाँ रहर हो
ReplyDeleteबस जी, जो आपने पढा, वही हम जा रहे हैं।
Deleteमजा आ गया भाईसाहब खासकर वो किन्नौर वाली सड़क देख के
ReplyDeleteNeeraj Bhai..........hamesh ki tarha.......super................Kinnor wali sadak ka jabab nahi............
ReplyDeleteएक सराहन सिरमौर जिले मेुं भी पडता है, जिसका रास्ता डगशई से निकलता है. विकीमैपिया में देखो तो यह हरियाणा के मोरली हिल्स के नजदीक नजर आता है. इसके लिए रामुपर जाने की जरूरत नहीं.
ReplyDeleteus jagah ka naam hai SRANHA..... SRAHAN NAHI HAI..... KUMHARHATTI SE EK SADAK JAATI HAI.... NAINATIKKER HOTE HUYE.......SRANHA
Deleteजी नहीं, मैं जिस Sarahan की बात कर रहा हूं वह state highwway No. 2 पर पडता है. इस हाइवे पर जब आप डगशई से चलते हुए सदाना से होते हुए आगे बढते हैं तो जुहाना से पहले Sarahan पडता है. सराहां इससे अलग है.
Deletelatude longitude - 30.7197023, 77.202301
DeleteDegree Decimal - 30.7197023N 77.202301E
Degree, minutes, seconds - 30°43′10.9″N 77°12′08.3″E