बहुत दिन हो गये थे कहीं बाहर गये हुए। कभी अप्रैल में यमुनोत्री गया था। दो महीने होने को थे। इस बार सोचा कि हिमालय में नहीं जायेंगे, चलो राजस्थान चलते हैं। माउण्ट आबू तय हो गया, सात जून का वापसी का आरक्षण भी करा लिया। लेकिन चार जून आते-आते दिल्ली में पारा 47 डिग्री को पार कर गया। गर्मी से होश ठिकाने लग गये। राजस्थान में तो 51 पार चला गया था। ऐसे में राजस्थान में घूमना आनन्ददायक नहीं कहा जा सकता। आरक्षण कैंसिल करा दिया। अब फिर से हिमाचल या उत्तराखण्ड। गर्मी है, तो कहीं नदी घाटी में जाऊंगा। उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी या चमोली से पहले सही नहीं लगा। यानी दिन भर का जाना और दिन भर का आना। फिर घूमने को बचेगा ही क्या। आखिरकार तय हुआ हिमाचल में मणिकर्ण। मणिकर्ण पार्वती घाटी में स्थित है। कुल्लू-मनाली जाते समय कुल्लू से जरा सा पहले भून्तर पडता है। भून्तर से ही मणिकर्ण के लिये रास्ता जाता है और यही से पार्वती घाटी शुरू हो जाती है। यहां ब्यास-पार्वती संगम भी है।
4 अप्रैल को मैं पूरे दिन खाली था। लेकिन इधर-उधर के ढेर सारे काम थे, इसलिये रात नौ बजे कश्मीरी गेट से मनाली वाली बस पकडी। टिकट कुल्लू का लिया। कह-सुनकर खिडकी के पास वाली सीट ले ली। सीट नम्बर 42। यहां भी एक सवारी मुझसे लडने लगी कि 42 मेरी है, मैने टिकट पर सीट नम्बर दिखाने को कहा तो जिद पर अड गया कि खडे होओ। मैने कहा कि भाई, एक बार अपना टिकट देख ले कि सीट कौन सी है, 42 तो मेरी है। बोला कि खडा होता है या नहीं। अब अपन भी खदक पडे। नहीं तो क्या कर लेगा तू। वो हाथ उठाने से तो रहा, इधर भी दो हाथ हैं। बस से उतर गया। कंडक्टर को बुलाकर लाया। बोला कि देख लो साहब, ये मेरी सीट पर बैठा है। कंडक्टर ने उससे टिकट मांगा। उसकी सीट 40 थी। 40 मतलब 40,41,42; 41 बीच वाली थी। सुन्दरनगर जाना था उसे। उसके तो सपने धराशायी हो गये होंगे सबसे बाहर वाली सीट देखकर।
खैर, मैने जूते उतारे। अगली सीट के पाये से बांधे, कहीं रात भर में इधर उधर ना हो जायें। जूते पहनकर नींद नहीं आती। फिर ऐसा सोया, ऐसा सोया कि हरियाणा, चण्डीगढ, पंजाब कब निकल गये पता ही नहीं चला। आंख खुली सुबह छह बजे बिलासपुर पहुंचकर। एक बार तो लगा कि मण्डी पहुंच गये। लेकिन जब देखा कि अभी तो बिलासपुर है, मण्डी पहुंचने में कम से कम ढाई-तीन घण्टे और लगेंगे; दोबारा सो गये। अबकी बार आंख खुली मण्डी जाकर। मैं एक बार मण्डी जा चुका था, इसलिये देखते ही पहचान गया।
यहां से मेरी बगल में एक और बन्दा आ बैठा। वो हिमाचल रोडवेज में मैकेनिकल इंजीनियर लालचन्द शर्मा थे। मैने उन्हे बताया कि मैं दिल्ली से आया हूं तो वे मेट्रो के बारे में जानकारी लेने लगे। उन्हे अभी तीन-चार दिन बाद बंगलुरू जाना है, उनका रिजर्वेशन किसी दोस्त ने सेकंड एसी में करा दिया है। उन्होने पहले कभी भी रेल-यात्रा नहीं की थी। उन्हे चिन्ता है कि पता नहीं वो ट्रेन दिल्ली से कैसे मिलेगी। बंगलुरू तक कितनी ट्रेनें बदलनी पडेंगी। सीट मिलेगी या नहीं। रात कैसे कटेगी। मैने उन्हे समझाया कि आप जब भी दिल्ली आओ तो मुझसे सम्पर्क कर लेना, आपका टिकट देखकर ही आपको सही ट्रेन के सही डिब्बे में पहुंचा दूंगा। और हां, आपको बंगलुरू तक कोई ट्रेन बदलनी भी नहीं पडेगी।
पण्डोह से आगे निकलते ही एक नयी दुनिया सामने आती है। पण्डोह में एक बांध भी है। यही से सडक ब्यास के बायें किनारे से दाहिने किनारे पर आ जाती है।
नदी के उस तरफ इस घाटी की आराध्य देवी हणोगी माता का मन्दिर दिख रहा है। |
ब्यास घाटी |
यह चार किलोमीटर लम्बी सुरंग है। इधर एक बिजली परियोजना के कारण सडक पानी में डूब गयी थी। इसलिये यह सुरंग बनायी गयी है। |
सुरंग के बाद कुल्लू जिला शुरू हो जाता है। |
सामने जो पहाड दिख रहा है, उसके बायें तरफ से ब्यास नदी आती है और दाहिने तरफ से पार्वती नदी। उसके नीचे बसा है भून्तर, जहां इन दोनों नदियों का संगम है। |
भून्तर कस्बा |
अगला भाग: कुल्लू से बिजली महादेव
मणिकर्ण खीरगंगा यात्रा
1. मैं कुल्लू चला गया
2. कुल्लू से बिजली महादेव
3. बिजली महादेव
4. कुल्लू के चरवाहे और मलाना
5. मैं जंगल में भटक गया
6. कुल्लू से मणिकर्ण
7. मणिकर्ण के नजारे
8. मणिकर्ण में ठण्डी गुफा और गर्म गुफा
9. मणिकर्ण से नकथान
10. खीरगंगा- दुर्गम और रोमांचक
11. अनछुआ प्राकृतिक सौन्दर्य- खीरगंगा
12. खीरगंगा और मणिकर्ण से वापसी
बहुत सुन्दर फोटो हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मनाली तो मेरी फेवरेट जगह है..
ReplyDeleteखिडकी वाली सीट के लिए दो दो हाथ करने भी पड़े तो... कोई गम नहीं...
वाह अच्छी लगी आपकी कुल्लू की तरफ यात्रा. वैसे मैं हर तरह की यात्रा में यही Aisle (अंदर रास्ते के किनारे वाली सीट) ही पसंद करता हूं क्योंकि इन सीटों पर हाथ-पांव फैलाने की सुविधा रहती है फिर उठना चाहें तो, जब जी चाहे, आपकी मर्ज़ी. पागल था वह जो खिड़की के लिए झगड़ रहा था. मेरे लिए तो खिड़की माने भिंच कर बैठना, धुआं, लू, धूप...
ReplyDeleteवाह भाई नीरज की...कमाल की तस्वीरें हैं..और आपकी वो बात भी मस्त लगी जो आपने उस आदमी को कही, विंडो सीट को लेकर ;)
ReplyDeleteबहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पे आया...बहुत अच्छा लगा :)
वाह मजेदार रहा कुल्लू आपके साथ घूमना, पुरानी यादें ताजा हो आईं।
ReplyDeleteयार तुम कमाल के आदमी हो। इतना घूम चुके हो कि अब तो तीन-चार किताबें छपवा सकते हो। लिखते तो शानदार और मज़दार हो ही।
ReplyDeleteबहुत अच्छा किया...और सभी फोटो इतने सुन्दर और स्पष्ट है की मन मोह लिया.
ReplyDeleteमजा आ गया. चित्र तो बेहद सुन्दर लगे. यात्रा वृत्तान्त भी. अब देखते हैं , कुल्लू में क्या गुल खिलता है.
ReplyDeleteब्यास नदी बहुत विशाल है, बैजानथ जाते हुए सुजानपुर में मैने इसके दर्शन किये थे. इसको देखते ही प्रकृति की ताकत का अंदाजा हो गया था.
ReplyDeleteमाउंट आबू ही आ जाते नीरज भाई,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteचित्र देखकर यादें मुखर हो उठी
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteमै पापा, मम्मी के साथ पिछले साल अप्रैल में कुल्लू मनाली गया था . बहुत मजा आया था . तस्वीरें बहुत अच्छी है .सुरंग का सीन three idiots फिल्म के गाने में भी है . माता हणोगी मंदिर पर हम सभी रुके भी थे , पहाडो की सुरम्य घाटी के बीच व्यास नदी के किनारे, शांत नीरवता में बसी वो माता का मंदिर बहुत सुन्दर है . पोस्ट पढ़कर सारी यादे ताजा हो गयी , बहुत अच्छा , सुन्दर
ReplyDeletethanx for such a nice post
ithe post flashed back me. i had visited the this route last year in April 2009.
ReplyDeletethe Hanogee Mata Temple requires more attention . just one photo is not enough for a stunning temple.
Situated in the lap of lofty mountaions, lush green , on the bank of Holi river Vyas and what more. this temple mesmerizes me . No urban commotion , just tranquility .
भुंतर में ही एक हवाई -अड्डा भी है . पहले सिर्फ जैग्सन एयर-वेज़ का छोटा सा जहाज़ उड़ता था दिल्ली से वहां तक वो भी सवारी पूरी हुई तो . छोटी सी टिकट खिड़की की झाड़ू-बुहारी और उसमें अगर-बत्ती जलाने का काम भी वही करता था जो टिकट काटता था , बल्कि कई बार पायलट को भी टिकट काटते देखा गया . कोई ज़ियादा नहीं ४ साल पहले तक ये हाल था . अब तो कई जहाज़ जाने लगे हैं मगर सड़क -मार्ग का अलग मज़ा है .
ReplyDeleteभाई थारी कितनी भी जय जय कार करूँ कम ही पड़ेगी...भयानक गर्मी में कुल्लू की सैर करवा दी और क्या चाहिए? पंडोह डैम के फोटू ना दिखाए तमने? मुझे अपनी बीस साल पहले की गयी कुल्लू मनाली यात्रा याद हो आई...अगली किश्त जल्दी आन दे रे...सबर न होता इब...
ReplyDeleteआखरी फोटू में सड़क के बीचों बीच चल रहा बन्दा बिलकुल मारी तरह का दीख रहा है...या के चमत्कार है भाई?
नीरज
भय्यु! आपके जैसा जांबाज घुम्मर आज तक नहीं दिखा है. एक दम सही है. शानदार विवरण!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ने हमें भी कुल्लू घुमा दिया!
ReplyDeletesahi kaha shastri ji ne
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ने हमें भी कुल्लू घुमा दिया!
वाह अच्छी लगी आपकी कुल्लू की तरफ यात्रा.
ReplyDeleteब्यास नदी के साथ साथ सड़क मार्ग के नजारे बहुत खूबसूरत हैं इस रूट पर, यादें ताजा कर दीं,
ReplyDeleteनीरज। अभी चित्र बहुत खूबसूरत लगे।
इस रस्ते पर १५ घंटे ड्राइव करके मनाली पहुँचने का सारा सफ़र फिर से याद आ गया । ये जगह सबसे खूबसूरत थी नदी के साथ साथ । सुन्दर तस्वीरें देखकर मज़ा आ गया ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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