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11 मई 2014, रविवार
सुन्दरनगर में हमें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पडी। करसोग की बस आ गई। यह हमीरपुर से आई थी और यहां पौन घण्टा रुकेगी। बस के स्टाफ को खाना खाना था। ग्यारह बजे बस चल पडी। सुन्दरनगर से रोहांडा लगभग 40 किलोमीटर है। पूरा रास्ता चढाई भरा है। सुन्दरनगर समुद्र तल से जहां 850 मीटर की ऊंचाई पर है, वही रोहांडा 2140 मीटर पर। रोहांडा से ही कमरुनाग का पैदल रास्ता शुरू होता है। वहां से कमरुनाग करीब 6 किलोमीटर दूर है। हमें आज ही कमरुनाग के लिये चल पडना है। रात्रि विश्राम वहीं करेंगे।
लेकिन जैसा हम सोचते हैं, अक्सर वैसा नहीं होता। जैसे जैसे रोहांडा की ओर बढते जा रहे थे, मौसम खराब होने लगा और आखिरकार बारिश भी शुरू हो गई। जब दो-ढाई घण्टे बाद रोहांडा पहुंचे, बारिश हो रही थी और तापमान काफी गिर गया था। इतना गिर गया कि बस से उतरते ही तीनों को गर्म कपडे पहनने पड गये।
यह मेरे लिये तो अप्रत्याशित नहीं था लेकिन सचिन व सुरेन्द्र के लिये अप्रत्याशित था। वे दोनों हैरान थे कि मई में जहां नीचे मैदानों में भयंकर लू चल रही है, पारा 45 डिग्री के पार चला गया है, वहीं यहां ठण्ड से ठिठुर रहे हैं। सुरेन्द्र तो बार-बार कह रहा था कि नीरज ने गर्म कपडे लाने को कहा था, नहीं तो मैं गर्म कपडे नहीं लाता। सचिन भी बार-बार यही कहे जा रहा था कि बडी भयंकर ठण्ड है।
अब कमरुनाग जाने का सवाल ही नहीं था। बारिश दो-चार मिनट के लिये रुक जाती, फिर पडने लगती। कहीं से भी आसमान खुलने के आसार नहीं थे। मेरे पास रेनकोट था, बाकी दोनों के पास नहीं था। मेरी इच्छा आज यहीं रुकने की थी। सचिन ने हालांकि कहा भी कि कुछ देर प्रतीक्षा कर लेते हैं, मौसम खुल गया तो चल पडेंगे। एक होटल में चाय पीते रहे और पकौडी खाते रहे।
मुझे हिमालय में यही बात सर्वोत्तम लगती है। बिना गडगडाहट के बारिश होती रहे, आप सुकून से किसी होटल में या टैंट में बैठे हों और चाय-पकौडी मिलती रहे। एक-एक चुस्की का, एक-एक पकौडी का स्वाद ही अलग आता है। ठण्डी हवा का एक झौंका आता हो, पूरा शरीर कांप उठता हो, फिर एक चुस्की... बस, एक चुस्की...।
रोहांडा एक छोटा सा गांव है। एक सूचना पट्ट के अनुसार इसकी जनसंख्या 275 है। अगर यह कमरुनाग का आधार-स्थल न होता तो इसे कोई नहीं पूछता। अब इसकी इतनी पूछ है कि किसी भी दिशा से कोई भी बस आये, यहां कम से कम 15 मिनट जरूर रुकती है।
जब बारिश बन्द नहीं हुई, हमें इंतजार करते करते काफी समय हो गया तो एक कमरा लेने का विचार आने लगा। वैसे तो यहां पीडब्ल्यू का रेस्ट हाउस भी है लेकिन वह हमेशा भरा रहता है। इसके अलावा एक होटल भी है। जहां हम चाय पी रहे थे, वहां से उस होटल की दूरी करीब 100 मीटर थी, लेकिन बूंदाबांदी में यह दूरी पार करनी काफी कष्टदायी रही। इसमें 300 रुपये का डबल बेडरूम था, तीसरे बिस्तर के लिये 150 रुपये अतिरिक्त लगे। लेकिन कमरा शानदार था, गीजर भी लगा था और मोबाइल-कैमरे चार्ज करने के लिये पर्याप्त चार्जिंग पॉइंट भी थे। अपनी यात्राओं में मैं अब तक पता नहीं कितनी रजाईयों में सो चुका हूं, लेकिन यहां सबसे बेहतरीन रजाईयां थीं- बेहद नरम नरम।
कुछ देर बाद फिर वहीं चले गये- चाय पीने और पकौडियां खाने। बाहर बारिश हो ही रही थी। हमें डेढ घण्टा हो गया यहीं। इसके सामने ही कमरुनाग जाने वाली सीढियां थीं। न कोई आता दिख रहा था, न कोई जाता। हम इनके बर्तनों के, पकौडियों के, समोसों के, कांच के गिलासों के, केतली के, फर्नीचर के; यानी जो भी सामने आता, फोटो खींचते रहे। और करते भी क्या?
करीब छह बजे एक बन्दे ने दुकान में प्रवेश किया। उसकी दाढी बढी हुई थी, रेनकोट पहने हुए था और पीछे कमर पर छोटा बैग लटका हुआ था। उसकी शक्ल तरुण गोयल से हू-ब-हू मिलती-जुलती थी। तरुण सुन्दरनगर का रहने वाला है और धौलाधार व पीर पंजाल के पहाडों पर ट्रैकिंग करता रहता है या फिर मोटरसाइकिल से घूमता रहता है। फोन पर हमारी तीसरे-चौथे दिन बात होती रहती है। एक बार मिले भी हैं। जब वे दिल्ली आये थे तो हमारे ही यहां रुके थे।
एक मेज पर बैग रखकर वह चाय का ऑर्डर देने आया। मैंने उसकी आवाज सुनने की कोशिश की लेकिन उसने इतना धीरे बोला कि मुझे नहीं सुनाई दिया। जब वह ऑर्डर देकर अपनी मेज पर जाने लगा तो पलभर के लिये हमारी नजरें भी मिलीं लेकिन उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। इस यात्रा पर आने से पहले मेरी तरुण से बात हुई थी। मेरा इरादा सुन्दरनगर आने पर उनसे मिलने का था। लेकिन वे इस दौरान धौलाधार में किसी ट्रैक पर जाने वाले थे। इसलिये सुन्दरनगर आने पर मैंने उनसे मिलने की कोशिश भी नहीं की। फोन बन्द था उनका, इसका अर्थ था कि वे अपनी यात्रा पर चले गये हैं।
खैर, जब दो-तीन बार हमारी नजरें मिल चुकीं और उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मुझे सन्देह होने लगा लेकिन मन नहीं मान रहा था। उन्होंने बैग से अपना बडा वाला डीएसएलआर कैमरा निकालकर मेज पर रखा तो मेरा सन्देह यकीन में बदलने लगा। मैंने सुरेन्द्र से कहा भी कि इससे इसका नाम पूछना। वह नाम पूछता, इससे पहले ही होटल वाला बोल पडा कि ये कल गये थे, सामने इनकी बाइक खडी है। बाइक देखते ही मुझे यकीन हो गया और मेरे मुंह से अचानक निकल पडा- क्या हाल है तरुण भाई?
बस, उन्होंने भी एकदम पहचान लिया। दोनों लिपट गये एक-दूसरे से। वे मुझे हमेशा जट्टा, जाट भाई या जाटराम ही कहते हैं- ओ जाटराम, तू तो उत्तराखण्ड जाने वाला था। फिर अपने बारे में बताया कि वे धौलाधार में एक बेहद मुश्किल ट्रेक पर जाने वाले थे। लेकिन ऐन समय पर साथी ने मना कर दिया। अब भालुओं से भरे जंगल में अकेले चलने की हिम्मत नहीं है। बडे खतरनाक होते हैं हिमालयन काले भालू। उधर नहीं गया तो इधर आ गया।
फिर वे हमारे कमरे पर आ गये। काफी देर बातें होती रहीं। उन्होंने कमरुनाग से शिकारी देवी जाने के रास्ते के बारे में भी बताया। वापसी में सुन्दरनगर आने का न्यौता भी दिया।
रात जब कमरे के नीचे इसी होटल में बैठकर खाना खा रहे थे तो यहीं दो परिवार भी खाना खा रहे थे। इन्हें अब कमरुनाग जाना था। खाना खाकर यात्रा शुरू कर देंगे। सुबह सवेरे कोई मुहूर्त है पूजा-पाठ करने के लिये। उन्होंने हमने भी कहा कि उस मुहूर्त में पूजा करना बहुत अच्छा होता है, आप भी चलो लेकिन हम मुहूर्त वाले नहीं थे। रात हम सोये नहीं थे और कल भी पूरे दिन सफर पर थे तो अब हमें बस नरम नरम रजाईयां ही दिख रही थीं।
हमीरपुर- करसोग बस। इसी बस से हम रोहांडा गये। |
रोहांडा में होटल की बालकनी से सुरेन्द्र फोटो खींच रहा है। |
यह छोटा सा रोहांडा गांव है। |
बारिश ने माहौल को खुशनुमा बना दिया था। |
तरुण भाई अप्रत्याशित रूप से प्रकट हुए। |
यही वो रोहांडा का एकमात्र गेस्ट हाउस है जिसमें हम रुके थे। यह फोटो फोन नम्बर के लिये लगाया है। |
अब कुछ फोटो सुरेन्द्र के कैमरे से: (धन्यवाद सुरेन्द्र भाई)
यात्रा का दूसरा साथी सचिन, सुन्दरनगर बस अड्डे पर। |
जाटराम रोहांडा में |
तरुण भाई के साथ |
अगला भाग: रोहांडा से कमरुनाग
चूडधार कमरुनाग यात्रा
1. कहां मिलम, कहां झांसी, कहां चूडधार2. चूडधार यात्रा- 1
3. चूडधार यात्रा- 2
4. चूडधार यात्रा- वापसी तराहां के रास्ते
5. भंगायणी माता मन्दिर, हरिपुरधार
6. तराहां से सुन्दरनगर तक- एक रोमांचक यात्रा
7. रोहांडा में बारिश
8. रोहांडा से कमरुनाग
9. कमरुनाग से वापस रोहांडा
10. कांगडा रेल यात्रा- जोगिन्दर नगर से ज्वालामुखी रोड तक
11.चूडधार की जानकारी व नक्शा
बहुत खूब.........
ReplyDeleteअचानक कोई जानकार मिल जाए वो भी बाहर,जहां लगता है की हम यहा पर अकेले है. बडा अच्छा लगता है,ऐसा लगता है की दुनिया इतनी छोटी है.
ReplyDeleteमेरे साथ भी मनाली मे ऐसा हो चुका है वहा पर अचानक मेरे मौसा जी मिल गए.
नीरज जी आपने सभी चीजो के फोटो खिच डाले.
बहुत खूब....
यादगार ट्रिप रही होगी इसमें कोई शक नहीं, तरुण भाई जैसे राइडर से मिलना ही पड़ेगा !
ReplyDeleteआपका फोटो सबसे अच्छा लगा, फेसबुक पर प्रोफाइल पिक हो सकता है.
खैर रोहांडा नाम की एक जगह प. बंगाल में भी है !!
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि ब्लॉग बुलेटिन - मेहदी हसन जी की दूसरी पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteशानदार वृतांत ! जारी रहें
ReplyDeleteमध्य जून की यात्रा का कार्यक्रम बरकरार है या कुछ बदलाव किया है उसमें ?
बहुत खूब....शानदार वृतांत नीरज जी
ReplyDeleteइसमें तेरा निचे से दूसरा फोटु जोरदार है नीरज --
ReplyDeletemay me sawan ka maja a a giya hoga,, nice , main bhi is page ke through ghumta rahta hun, practical baad me hogi,,photu dekh ker kahanhi samajh aati hai,,,,,,,
ReplyDeleteNeeraj ji, rukh sar pe surkhi a gai hai thandh jagah ghumne per,,,
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