8 मई 2015
आराम से सोकर उठे। आज जाना है हमें दारनघाटी। दारनघाटी हमारे इधर आने की एक बडी वजह थी। रास्ता बहुत खराब मिलने वाला है। सराहन में इसके बारे में पूछताछ की तो सुझाव मिला कि मशनू से आप दारनघाटी चढ जाना। फिर दारनघाटी से आगे तकलेच मत जाना, बल्कि वापस मशनू ही आ जाना और वहां से रामपुर उतर जाना। क्योंकि एक तो मशनू से दारनघाटी का पूरा रास्ता बहुत खराब है और उसके बाद तकलेच तक चालीस किलोमीटर का रास्ता भी ठीक नहीं है। यह हमें बताया गया।
भीमाकाली के दर्शन करके और श्रीखण्ड महादेव पर एक दृष्टि डालकर सवा दस बजे हम सराहन से प्रस्थान कर गये। चार किलोमीटर तक तो ज्यूरी की तरफ ही चलना पडता है फिर घराट से मशनू की तरफ मुड जाना होता है। मशनू यहां से बीस किलोमीटर है। दस किलोमीटर दूर किन्नू तक तो रास्ता बहुत अच्छा है, फिर बहुत खराब है। रास्ता सेब-पट्टी से होकर है तो जाहिर है कि मौसम बहुत अच्छा था। सेब-पट्टी 2000 मीटर से ऊपर होती है। चारों तरफ सेब के बागान थे। अभी कहीं फूल लगे थे, कहीं नन्हें-नन्हें सेब आ गये थे। कहीं सेब के पेडों के ऊपर जाल लगा रखा था ताकि आंधी तूफान से ज्यादा नुकसान न हो। दो महीने बाद ये पकने शुरू हो जायेंगे, तब इन बागानों की रौनक भी कुछ और हो जायेगी।
साढे ग्यारह बजे मशनू पहुंचे। यह बहुत सुन्दर स्थान है लेकिन धूलयुक्त सडक सारा बेडागर्क कर देती है। थोडी सी भी बारिश हो जाये तो यहां कीचड ही कीचड हो जाता होगा। यहीं एक तिराहा है जहां से नीचे वाली सडक रामपुर जाती है और ऊपर वाली दारनघाटी। दारनघाटी यहां से 12 किलोमीटर है।
जैसे ही हम मशनू से निकलते हैं तो सडक अत्यधिक खराब होने के बावजूद भी बहुत आनन्द आता है बाइक चलाने में। पूरा रास्ता चढाई भरा है। जंगल का रास्ता है और हमारे सामने हर समय श्रीखण्ड श्रेणी व किन्नौर श्रेणी के बर्फीले पर्वत रहते हैं। जंगल में आप कहीं भी रुक जाओ, बडा अच्छा लगता है। यहां कोई चहल-पहल नहीं है सिवाय पक्षियों की चहचाहट के। जंगली जानवरों में यहां पूरे हिमालय की तरह भालू और तेंदुए भी होंगे। हमें कोई नहीं मिला।
गनीमत थी कि रास्ते पर पानी नहीं था। अगर बारिश का मौसम होता तो इस रास्ते पर चलना बेहद मुश्किल होता। हालांकि अभी भी आसान नहीं था। पूरा रास्ता ‘हेयरपिन बैण्ड’ से भरा पडा है। ज्यादातर दूरी पहले गियर में ही तय हुई। मशनू जहां 2100 मीटर पर है, दारनघाटी 2900 मीटर से भी ऊपर है। दारनघाटी असल में एक दर्रा है जो मशनू घाटी और उधर तकलेच घाटी को जोडता है। यहां पीडब्ल्यूडी का एक रेस्ट हाउस और एक प्राइवेट विश्रामगृह भी है।
जंगल में रुकते-रुकते हमने मशनू से यहां तक की बारह किलोमीटर की दूरी को डेढ घण्टे में तय किया। जैसे ही ऊपर दर्रे पर पहुंचे, एक छोटा सा ढाबा मिला। भूख हमें लग ही रही थी, चाऊमीन और आमलेट का आदेश दे दिया। हिमालय में चाय के लिये तो कहना ही नहीं पडता। ठण्डा वातावरण था, हम थके हुए थे; यहां आकर बडा आराम मिला। अपनी छह दिनी इस यात्रा में मुझे यही स्थान सबसे ज्यादा अच्छा लगा। सबसे ऊंचा तो खैर यह है ही- करसोग, सराहन से बहुत ऊंचा। धूप निकली थी, इसलिये तापमान सहनीय था अन्यथा मौसम खराब होता या रात होती तो ठण्ड से दुर्गति हो जाती।
हर जगह हर राज्य में पर्यटकों का, घुमक्कडों का एक ‘फ्लो पाथ’ होता है। जैसे हिमाचल को ही लें तो यहां का सबसे बडा प्रवेश द्वार है चण्डीगढ, फिर पठानकोट। चण्डीगढ से शिमला और मनाली की तरफ यात्रियों का प्रवाह होता है। शिमला की तरफ एचटी रोड यानी हिन्दुस्तान-तिब्बत सडक यानी वर्तमान एनएच 22 जो स्पीति जाता है, इसके इर्द-गिर्द ही सारा प्रवाह रहता है। कुछ थोडे से यात्री ठियोग से रोहडू की तरफ चले जाते हैं। कुछ जलोडी जोत की तरफ जाते हैं। रामपुर से आगे थोडा सा डायवर्जन करके सराहन और किन्नौर में सांगला घाटी में खूब आवागमन होता है। इन सबके बीच कुछ स्थान बचे रह जाते हैं। जैसे रोहडू से आगे चांशल और यह दारनघाटी। चांशल में अब सडक बन गई है जो हिमाचल के पांगी से भी ज्यादा अछूते डोडरा-क्वार इलाके को जोडती है।
यह दारनघाटी भी कुछ ऐसी ही है। तीन साल पहले जब हम श्रीखण्ड महादेव से लौट रहे थे तो नोगली से तकलेच की तरफ मुड गये थे। तकलेच से सुंगरी होते हुए हम रोहडू चले गये थे। तकलेच में हमने एक पुल देखा था जिसके पार तकलेच गांव बसा हुआ था। वापस दिल्ली लौटकर जब मैंने इधर का मानचित्र खंगालना शुरू किया तो पता चला कि तकलेच से सराहन की एक सडक ऊपर ही ऊपर गई है। नीचे वाली सडक तो रामपुर वाली है ही। लेकिन गूगल मैप में अभी भी यह सडक पूरी नहीं है, उस समय बिल्कुल नहीं थी, बस सैटेलाइट व्यू देखकर ही सडक होने का अन्दाजा लगाना पडा था। फिर पिछले साल सराहन आया तो सबसे ज्यादा इसी सडक की पूछताछ की। इस इलाके पर और इसके यात्रा-वृत्तान्तों पर मेरी निगाह बराबर बनी रहती थी तो इसी तरह एक दिन पता चल गया कि यह दारनघाटी है। इधर का केवल एक यात्रा-वृत्तान्त मुझे पिछले दिनों मिला था जिसमें पंजाब या चण्डीगढ से कुछ बाइक वाले इधर आये थे और उन्होंने तकलेच से दारनघाटी तक की खराब सडक पर यात्रा रात में की थी और यहीं स्थित एकमात्र प्राइवेट विश्रामगृह में रुके थे। बस, तभी दारनघाटी मुझे भा गई थी। करसोग से जब शिकारी देवी नहीं जा पाये तो रामपुर की तरफ मुडने का सबसे बडा कारण यह दारनघाटी ही थी। यह हिमाचल के सबसे अछूते इलाकों में से एक है।
आज मैं बहुप्रतीक्षित दारनघाटी पर खडा गौरवान्वित अनुभव कर रहा था। ऐसी जगहों पर आकर मुझे महसूस होता है कि मैं कोई साधारण इंसान नहीं हूं। निशा, तुझे गर्व होना चाहिये कि तू असाधारण इंसान की जीवनसाथी है। हा हा हा। अब इसी तरह की फीलिंग तब आयेगी जब मैं चांशल पास पर पहुंचूंगा। चांशल के यात्रा-वृत्तान्त तो बहुत हैं लेकिन चांशल पास के बहुत कम हैं। बडा कठिन रास्ता है वहां तक पहुंचने का भी।
अब जब दारनघाटी के बारे में इतनी बात हो गई तो यह भी बताना जरूरी है कि यहां देखने लायक क्या है। पहली चीज है प्राकृतिक सुन्दरता। यहां सिर्फ अपने ही वाहनों से पहुंचा जा सकता है। यहां तक कोई बस नहीं आती या शायद दिनभर में कोई एकाध आती हो रामपुर से। बस केवल एक तरफ मशनू तक आती है और दूसरी तरफ देवठी के पास तक। और जो यहां दर्शनीय है वो है सराय कोटी मन्दिर। मन्दिर दर्रे के पास की एक चोटी पर स्थित है। इसके बारे में अगली पोस्ट में लिखूंगा।
सराहन से दिखता श्रीखण्ड महादेव |
भीमाकाली मन्दिर |
श्रीखण्ड चोटी |
भीमाकाली मन्दिर |
दारनघाटी की ओर |
सेब के बागानों में लगी जालियां |
दारनघाटी की ओर |
मशनू में यह नीचे वाला रास्ता रामपुर जाता है और ऊपर वाला दारनघाटी। |
दारनघाटी |
पीडब्ल्यूडी का रेस्ट हाउस |
चाऊमीन-आमलेट भक्षण |
दारनघाटी की स्थिति बताता मानचित्र।
अगला भाग: दारनघाटी और सरायकोटी मन्दिर
करसोग दारनघाटी यात्रा
1. दिल्ली से सुन्दरनगर वाया ऊना
2. सुन्दरनगर से करसोग और पांगणा
3. करसोग में ममलेश्वर और कामाख्या मन्दिर
4. करसोग से किन्नौर सीमा तक
5. सराहन से दारनघाटी
6. दारनघाटी और सरायकोटी मन्दिर
7. हाटू चोटी, नारकण्डा
8. कुफरी-चायल-कालका-दिल्ली
9. करसोग-दारनघाटी यात्रा का कुल खर्च
Good Neeraj .. Aesa abhiman kabhi mat karna .jo aap bole ki nisha tum aasadharan vyakti ki jeevansathi ho . Unke or hamare tap se hi aap aasadharan bante ho . Hamari or unki aapke liye duaa sadaiv rahati he .
ReplyDeleteGod bless you .
Shrikhand khaya kya ?
nice photo
great Neeraj .
उमेश भाई, यह अभिमान नहीं था लेकिन अगर अभिमान लग रहा है तो शायद हो, मुझे नहीं पता। खैर, खाने वाला श्रीखण्ड मिलता है क्या यहां?
Deleteइतनी ऊँचाई पर पहुँचने पर नीरज का स्वयं को असाधारण महसूस करना कोई अभिमान नही है . क्योंकि सचमुच ही यह साधारण कार्य नही है . फिर अभिमान है या नही यह निशा को ही तय करने दीजिये . निशा जो एक पत्नी ही नही अच्छी मित्र भी है . दोनों के बीच यह स्कनेह भरा परिहास मात्र है ,अभिमान नही . निशा भी असाधारण ही है जो ऐसे महाभियान में बराबर साथ है वह भी सहर्ष . यह जो्ड़ी योंही साथ साथ चलती रहे ..सलामत रहे . सारे चित्र वर्णन की तरह ही बहुत खूबसूरत हैं .
ReplyDeleteजी, यह वास्तव में अभिमान नहीं था। किसी बहुप्रतीक्षित स्थान पर जब मैं जाता हूं तो ऐसी ही फीलिंग आती है। इसे आप गर्व कहें, अभिमान कहें या घमण्ड कहें। बहुत दिनों से मैं यहां जाने के सपने देख रहा था।
Deleteआपके यात्रवृत्तान्त पढ़ते हैं तो उत्साह और बढ़ जाता है। युगल को घुमक्कड़ी शुभकामनायें।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
DeleteNice trip to Kinaur valley,,,,INCREDIBLE INDIA
ReplyDeleteयह पोस्ट किन्नौर वैली की नहीं है जी...
DeleteBhai Kamaal ki post hai...Maza aa gaya...teri aur teri jaatni ki jai ho...jiyo bachcho..khush raho
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद सर जी...
DeleteNeeraj Bhai.............As usual super..........
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा साहब...
DeleteShandar post hai aur ye bacha bahut khubsurat hai padhkr maza aaya
ReplyDeleteCarry on neeraj Bhai
धन्यवाद मलिक साहब...
Deleteपता नही इतनी सब जानकारी कहाँ से मिल जाती है कौन बताता है कुछ झूठ तो नही है और यह सब याद कैसे रहती है ।
ReplyDeleteइसकी दूरी इतनी है उसकी ऊँचाई उतनी है यहाँ ऐसा है वहाँ वैसा है
वर्मा जी, सब गूगल मैप का वरदान है।
Deleteपहली बार ही सूना है इस जगह का नाम पर सुन्दर जगह है,लेकिन हम केवल सुन्दरता ही देख रहे पर वहा तक जाने मे जो कठनाईया आयी होगी वो तो आप ही जानते होगे,
ReplyDeleteक्यो जी नीरज भाई(असाधरण व्यक्ति)
सचिन भाई, बाइक साथ हो और मौसम अच्छा हो तो दारनघाटी जाने में कोई कठिनाई नहीं आती।
Deleteहमेशा की तरह एक शानदार लेख। हिमाचल का जिक्र आते ही बस शिमला कुल्लू मनाली और रोहतांग की ही चर्चा होती है लेकिन आपके लेखो से हिमाचल के अन्य अनछुए खूबसूरत स्थानों की जानकारी भी मिलती है। बहुत किस्मत वाले हो भाई जो मनपसंद जीवनसाथी के साथ मनपसंद स्थानों पर जाने का अवसर और छुट्टियां मिल रही है। हमारी तो जिंदगी झंड है। छुट्टियां मिलना तो दूर सन्डे में भी यहाँ तो बस गधे की तरह काम करते रहो बस.....
ReplyDeleteBEHAD KHOOBSURAT.
ReplyDeleteबस ज्यादा कुछ नहीं
ReplyDeleteमैं भी साथ जाया करूँगा!
मोटिवेटेड