पराशर झील... ह्म्म्म। आखिरकार 7 दिसम्बर को इसे देखने हम निकल ही पडे। ऐसा नहीं है कि यह मेरी पहली कोशिश थी इसे देखने की। इससे पहले भी एक बार नाकाम कोशिश कर चुका हूं। मेरी उस कोशिश की किसी को जानकारी नहीं है। 15 मार्च 2010 को मैं निकला तो पराशर के लिये ही था। लेकिन उसके बदले रिवालसर झील देख आया। और हां, कटौला तक भी पहुंच गया था। कटौला जो है, वो मण्डी-कुल्लू ग्रामीण रोड पर बसा है। मण्डी से दस दस मिनट में बसें निकलती हैं।
तो जी, कटौला पहुंचकर पराशर के बारे में पता किया तो मालूम पडा कि वहां तक पक्की सडक बनी हुई है, और टैक्सी से ही जा सकते हैं। टैक्सी का किराया उसने कटौला से आने जाने का 800 रुपये बता दिया। मैंने पैदल रास्ते के बारे में पूछा तो भला टैक्सी वाला कब पैदल का समर्थन करने लगा। तो भईया, उस दिन मुझे कटौला से ही वापस लौट जाना पडा।
वापस आकर शुरू हुई पराशर तक पैदल जाने की तलाश। इण्टरनेट पर खूब ढूंढ लिया, कुछ नहीं मिला। पराशर झील के बारे में तो बेइंतिहा सामग्री थी, लेकिन पैदल रास्ते के बारे में, ट्रेकिंग के बारे में कुछ नहीं मिला। फिर अपने हाथ लगा गूगल अर्थ। इस चीज की जितनी तारीफ की जाये, कम ही पडेगी। गूगल अर्थ से अन्दाजा लगाया कि पराशर तक जाने के लिये कम से कम चार पैदल रास्ते हैं। अब यह मालूम नहीं कि वे रास्ते जाते कहां कहां से हैं।
अंदाजा कैसे लगाया, इसकी कहानी भी सुनाता हूं। जब हम मण्डी से राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुल्लू की तरफ चलते हैं तो एक जगह आती है- पण्डोह। हिमाचल का नक्शा देखना, मण्डी से निकलकर सडक पूर्व दिशा में चलती है, पण्डोह से कुछ पहले दक्षिण की ओर मुड जाती है, पण्डोह में फिर से पूर्व की ओर हो लेती है और पण्डोह बांध, हणोगी माता को पूर्ववर्ती ही पार करती हुई औट में जाकर कुल्लू जिले में प्रवेश कर जाती है। औट में यह सडक पूर्ववर्ती की बजाय उत्तरवाहिनी हो जाती है। यानी पण्डोह के इर्द-गिर्द यह एक लूप बनाती है, यू की शक्ल में चलती है। इसी यू (U) के केन्द्र में पराशर झील है। अगर मण्डी से सीधी पूर्व दिशा में एक रेखा खींची जाये तो वो पराशर झील से होकर ही जायेगी। तो इस तरह पराशर तक पहुंचने के चार रास्ते बनते हैं- 1. पण्डोह से, 2. हणोगी माता से, 3. औट-बजौरा के बीच में कहीं से और 4. कटौला की तरफ से। यह बात अलग है कि इण्टरनेट पर मुझे सडक मार्ग के अलावा किसी भी रास्ते की जानकारी नहीं मिली।
कुछ दिन बाद... मुझे ट्रेक हिमाचल नामक साइट के दर्शन होते हैं और उसमें शलभ ने पण्डोह-पराशर ट्रेक के बारे में विस्तार से लिखा हुआ है। यानी अपना आइडिया गलत नहीं था कि पण्डोह से भी पराशर के लिये पैदल रास्ता जाता है। शलभ ने इस ट्रेक को खुद कर रखा है। इसलिये जानकारी में किसी तरह का कोई सन्देह नहीं था। उन्हीं के आधार पर मैंने भी पण्डोह की तरफ से ही पराशर तक जाने की योजना बनाई। और योजना बनी शलभ से भी एक कदम आगे निकलकर। शलभ ने बताया कि पराशर से आगे उत्तर-पूर्व दिशा में तुंगा माता नामक एक चोटी है। बडी खूबसूरत जगह है। शलभ तुंगा माता से वापस लौट आये थे जबकि मैंने सोचा कि तुंगा माता से जरूर कुल्लू घाटी में उतरने का रास्ता होगा। मैंने अपनी योजना में पराशर की तरफ से तुंगा माता पहुंचकर उसके दूसरी तरफ से नीचे उतरने की योजना बनाई। बाद में पराशर पहुंचकर पता चला कि तुंगा माता के दूसरी तरफ नीचे ज्वालापुर नामक जगह है जो राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही बसा है। यह ज्वालापुर ठीक वहीं पर है, जहां से मैंने अन्दाजा लगाया था कि औट-बजौरा के बीच से पराशर जा सकते हैं। औट-बजौरा के बीच में है ज्वालापुर।
तय हो गया कि 7 दिसम्बर को दिल्ली से निकलना है। दिसम्बर में वैसे तो काफी ठण्ड होने लगती है लेकिन बर्फबारी कम ही होती है। इसलिये बर्फबारी से मैं पूरी तरह निश्चिन्त था। दिल्ली में अपना रूम पार्टनर है अमित। साथ ही काम करता है। तीन साल से हम एक साथ रह रहे हैं लेकिन बन्दा कभी भी मेरे साथ नहीं गया। घूमने का कीडा अगले में जरा भी नहीं है। दिल्ली आने से पहले वो महाराष्ट्र के अहमदनगर में काम करता था तो एक बार दौलताबाद का किला देख चुका है। मैं जब भी अपनी हिमालय यात्राओं की कथा सुनाता तो वो दौलताबाद का जिक्र जरूर करता। कहता कि दौलताबाद के किले की चढाई के आगे हिमालय की चढाई कुछ भी नहीं है। हालांकि उसे हिमालय का कोई आइडिया नहीं है, और मुझे दौलताबाद का कोई आइडिया नहीं है। फिर भी हिमालय से दौलताबाद की तुलना सुनते ही मुझे गुस्सा आ जाता। सोच रखा था कि कभी ना कभी अमित जरूर मेरे हत्थे चढेगा और तब उसे हिमालय में किसी ऐसी जगह पर ले जाऊंगा कि दौलताबाद का कभी जिक्र नहीं करेगा।
इस बार हत्थे चढ गया। बल्कि कहना चाहिये कि जबरदस्ती तैयार किया गया। दिसम्बर का महीना और उसकी छुट्टियां भी कई बची हुई थीं। फरवरी में उसकी शादी है। उसे ब्लैकमेल किया गया कि अगर इस बार तू साथ नहीं चला तो मैं भी तेरी बारात में नहीं जाऊंगा। पढा लिखा, समझदार इंसान है, आखिरकार मान गया। दूसरा साथी था भरत नागर। वो भी साथ ही काम करता है। मेरे किस्से पढ पढकर हमेशा कहता था कि मुझे भी ले चलते तो इस बार ले लिया। तीसरे साथी तैयार हुए मथुरा से कुलदीप शर्मा। लेकिन ऐन वक्त पर उनकी कम्पनी को उनकी जरुरत पड गई और वे नहीं आ सके। कुल मिलाकर 5 दिसम्बर की शाम को मैं, अमित और भरत कश्मीरी गेट बस अड्डे पर थे। मनाली वाली बस पकडी और पण्डोह तक का टिकट ले लिया।
अगला भाग: पराशर झील ट्रेकिंग- पण्डोह से लहर
पराशर झील ट्रैक
1. पराशर झील ट्रेकिंग- दिल्ली से पण्डोह
2. पराशर झील ट्रेकिंग- पण्डोह से लहर
3. पराशर झील ट्रेकिंग- लहर से झील तक
4. पराशर झील
5. पराशर झील ट्रेकिंग- झील से कुल्लू तक
6. सोलांग घाटी में बर्फबारी
7. पराशर झील- जानकारी और नक्शा
देखता हूं कि दौलताबादी का क्या हाल होने वाला है...
ReplyDeleteनव-वर्ष की मंगल कामनाएं ||
ReplyDeleteधनबाद में हाजिर हूँ --
नीरज बाबू बहुत दिनों बाद पोस्ट लिखी है
ReplyDeleteआखिर कर पराशर झील हो ही लिए
सुन्दर,
आपकी पोस्ट पर किये गए पंडोह के जिक्र से बरसों पहले परिवार के साथ सड़क मार्ग द्वारा की गयी मनाली यात्रा का स्मरण हो आया...हमने रास्ते में पंडोह डैम पर उतर कर फोटोग्राफी के अपने शौक को पूरा किया था...आपकी यात्रा में बहुत मज़ा आ रहा है...अगली किश्त जल्दी ही लिखो...
ReplyDeleteअमित को बताओ के दौलत बाद का किला तो हम जैसे भी चढ़ लेते हैं जो चौथी मंजिल तक सीढियों से जाने में भी घबराते हैं उसका और हिमालय की चढ़ाई का क्या मुकाबला.
नीरज
नीरज जी,
ReplyDeleteगूगल अर्थ वाकई में कमाल का सोफ्टवेयर ... इसकी साहयता से आप कुछ भी सेटेलाईट के नज़र से कुछ भी देख सकते हो .....
चलो नीरज भाई के साथ जाने के लिए कोई हिम्मतवाला तैयार तो हुआ ...
अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा ....
धन्यवाद
ritesh
Udaipur:A Beautiful Travel Destination, झीलों की नगरी : उदयपुर ........Part...1
NEERAJ JI BHAI AGLA BHAG JALDI LIKHE, INTZAR NAHIN HOTI. APNI ADAT PURA VIVRAN SHIRGH PARNE KI HOTI HEI.
ReplyDeleteयह और रोचक होने वाली है।
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteजीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ा नया ब्लॉग 'बेसुरम' और उसकी प्रथम पोस्ट 'दलितों की बारी कब आएगी राहुल ...' आपके स्वागत के लिए उत्सुक है। कृपा पूर्वक पधार कर उत्साह-वर्द्धन करें
मसूरी की कहानी बीच में ही छोड दी मुसाफिर जी....
ReplyDeletelage raho, ye दौलताबादी to gaya
ReplyDeleteरोचक वृतांत...
ReplyDeleteसादर शुभकामनाएं...