5 मई 2015
कल मैं, निशा, तरुण और उनकी घरवाली चारों बैठे बातें कर रहे थे। तरुण भाई ने भी प्रेमविवाह किया है। मेरे प्रेमविवाह की जब उन्हें जानकारी मिली तो बडे खुश हुए थे। हालांकि वे अपने यात्रा-वृत्तान्तों में भाभीजी का जिक्र नहीं करते लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि भाभीजी को ट्रैकिंग और भूगोल की जानकारी नहीं है। अचानक उन्होंने एक ऐसा प्रश्न भाई से पूछ लिया जिससे मैं अब तक हैरान हूं।
आपको जिसे भी धौलाधार और पीर पंजाल की जानकारी हो तो इस बात को जानते होंगे कि कांगडा से इन्द्रहार आदि किसी भी दर्रे से धौलाधार पार करो और रावी घाटी में पहुंच जाओ; फिर कुगती पास आदि किसी दर्रे से पीर पंजाल पार करो और लाहौल पहुंच जाओ। लेकिन यह कांगडा से सीधे लाहौल का ट्रैक नहीं हुआ। रावी घाटी चम्बा में आती है। ये दो ट्रैक हुए- कांगडा से चम्बा और चम्बा से लाहौल। लेकिन कांगडा से सीधे लाहौल जाने के लिये आपको पहले बडा भंगाल जाना पडेगा और फिर वहां से आशा गली जैसे दर्रे से होकर लाहौल। कांगडा से थमसर जोत को पार करके बडा भंगाल मुट्ठी भर ट्रैकर ही जाते हैं। मुट्ठी भर भी बहुत ज्यादा हो गये। उसके बाद उनमें से आधे रावी घाटी में चले जाते हैं और आधे ब्यास घाटी में। बचे-खुचे ही चन्द्रभागा घाटी में अर्थात लाहौल जा पाते हैं। इसी से दुर्गमता का अन्दाजा लगाया जा सकता है।
तरुण भाई ने हमें कल ही बता दिया था कि वे दोनों मियां-बीवी सुबह पौने नौ बजे निकल जायेंगे। अगर हमें देर तक सोना है तो घर की चाबी रखने की जगह भी बता दी कि दरवाजा बन्द करके चाबी कहां रखनी है। लेकिन हम भी जल्दी ही उठ गये और उनके साथ ही यहां से निकले।
आज का हमारा इरादा करसोग जाने का था। रास्ते में चिन्दी के पास से 30-35 किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लगाकर महूनाग भी हमारे दिमाग में था। ठीक पौने नौ बजे हम सुन्दरनगर से निकल लिये और शीघ्र ही रोहांडा वाली सडक पर थे। यह सडक रोहांडा तक मेरी जानी-पहचानी है। पिछली बार जब कमरूनाग गया था तो सुन्दरनगर से रोहांडा बस से इसी रास्ते से गया था। यह बहुत ही संकरी सडक है और चढाई ही चढाई है। हिमाचल के बस वाले बडी तेज चलाते हैं। एक मोड पर इसी तरह की एक बस से सामना हो गया। बायें गहरी खाई थी। मुझे भी धीमा होना था और बस को भी। बस को देखकर मैं तो जितना बायें हो सकता था, होकर रुक गया लेकिन बस वाला बिना रफ्तार कम किये भगाये चला गया। बडी देर तक आत्मविश्वास डगमगाया रहा।
सवा दस बजे रोहांडा पहुंचे। उसी दुकान के सामने रुके जिसमें पिछली बार लगभग पूरे दिन बारिश के कारण बैठे मक्खियां गिनते रहे और चाय समोसे खाते रहे व कप-केतलियों के फोटो खींचते रहे थे। अभी तक यहां समोसे नहीं बने थे, इसलिये चाय-आमलेट से काम चलाना पडा।
रोहांडा से निकलते ही एक बडे से पत्थर पर हनुमानजी की आकृति उकेरी गई है और पास ही मन्दिर का निर्माण चल रहा है। यह आकृति बिल्कुल बेडौल है, अन्यथा इतने बडे पत्थर पर गजब की आकृति बनाई जा सकती थी।
फिर तो चलते रहे और जहां मन करता रुक जाते, विश्राम करते और फोटो खींचते। डेढ बजे पांगणा पहुंचे। पांगणा का किला बडा प्रसिद्ध है। यह एक मीनार की तरह बना है और जब तक आपको बताया नहीं जाये कि यह किला है, आप यकीन नहीं करेंगे। लकडी और पत्थर से बना हुआ है। इसकी एक कहानी मुझे रुचिकर लगी। राजा की एक कन्या अपनी सहेलियों के साथ आंगन में खेल रही थी। सहेलियों ने मर्दाने कपडे पहन रखे थे। तभी एक सन्यासी आये। उन्होंने राजा से शिकायत कर दी कि उसकी कन्या लडकों के साथ खेल रही थी जो कि नियमविरुद्ध था। राजा ने कन्या को बुलाकर पूछा तो कन्या से सच-सच बता दिया। राजा को यकीन नहीं हुआ और उसे प्राणदण्ड दे दिया। कन्या ने कहा कि उसे जलाने की बजाय दफनाया जाये। छह महीने बाद कब्र खोदी जाये। अगर शव गला-सडा मिला तो समझना कि कन्या लडकों के साथ खेल रही थी लेकिन अगर शव सडा हुआ न मिला, बिल्कुल सही सलामत मिला तो समझना कि कन्या सच बोल रही थी।
छह महीने बाद जब कब्र खोदी गई तो शव सही सलामत था। फिर ये तो नहीं पता कि क्या हुआ लेकिन उस कन्या की पूजा होने लगी- हत्या माता के रूप में। किले के प्रांगण में एक छोटा सा मन्दिर बना है। यह महामाया मन्दिर है।
पांगणा में समोसे खाये। रोहांडा में जो कमी रह गई थी, वो यहां पूरी हो गई।
चिण्डी से दो किलोमीटर पहले एक तिराहा है। सीधा रास्ता तत्तापानी होते हुए शिमला चला जाता है और बायें वाला चिण्डी होकर करसोग। शिमला वाले रास्ते पर चार पांच किलोमीटर चलकर महूनाग के लिये रास्ता अलग होता है। महूनाग जाते तो 30-35 किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर पडता। निशा बहुत थक गई थी, मैं भी संकरी सडक पर चलता चलता थक गया था, इसलिये महूनाग जाने का इरादा छोड दिया। चिण्डी की तरफ मुड गये।
चिण्डी के मन्दिर में कथा चल रही थी। बडी भीड थी। चिण्डी का ही महात्म्य बताया जा रहा था- हे प्रभु! आपने मुझे धन्य कर दिया। आपका श्राप भी मेरे लिये आशीर्वाद है। पहले मैं सिर्फ चिण्डी में ही भजन-कीर्तन किया करता था। अब आपने मुझे कहीं भी न टिकने का श्राप दे दिया है तो मैं पूरे विश्व में भजन-कीर्तन करा करूंगा।
मन्दिर बडा गजब का बना हुआ है। कथा न होती तो यहां कोई भी नहीं होता, हम बडे आराम से पूरा मन्दिर देख सकते थे। लेकिन अब तो बस बाहर से एक निगाह डाली और आगे बढ चले। दाहिने एक बडी खूबसूरत लम्बी-चौडी घाटी दिख रही थी।
यही करसोग की घाटी है। चिण्डी से करसोग तक पूरा रास्ता उतराई का है। सनारली से करसोग चार किलोमीटर रह जाता है। सीधा रास्ता रामपुर जाता है और दाहिने मुडकर करसोग।
सुन्दरनगर से सीधे मण्डी को रास्ता जाता है तो दाहिने जंजैहली, करसोग, चिण्डी, रामपुर और सांगला। |
मण्डी करसोग सडक |
निशा ने बताया कि यह गूलर है। |
रोहांडा में |
चीड का तेल एकत्र करने का इंतजाम |
पांगणा गांव |
पांगणा का किला |
किले के साथ ही महामाया मन्दिर |
ठण्डापानी यहां है तो तत्तापानी और पचास किलोमीटर आगे। |
चिण्डी |
अगला भाग: करसोग में ममलेश्वर और कामाख्या मन्दिर
करसोग दारनघाटी यात्रा
1. दिल्ली से सुन्दरनगर वाया ऊना
2. सुन्दरनगर से करसोग और पांगणा
3. करसोग में ममलेश्वर और कामाख्या मन्दिर
4. करसोग से किन्नौर सीमा तक
5. सराहन से दारनघाटी
6. दारनघाटी और सरायकोटी मन्दिर
7. हाटू चोटी, नारकण्डा
8. कुफरी-चायल-कालका-दिल्ली
9. करसोग-दारनघाटी यात्रा का कुल खर्च
BAHUT SUNDAR 'AISE HI LIKHTE RAHO.
ReplyDeleteDHANYABAD.
धन्यवाद चौधरी साहब...
Deleteराम राम जी, सुन्दर लेखन, प्राकृतिक द्रश्यो का सुन्दर फोटो, आपके द्वारा हम भी घूम रहे हैं, धन्यवाद....
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteab aaya hai aasli rang aap ke photo ke
ReplyDeleteto ham kayal hai sir ji
धन्यवाद विनोद जी...
Deleteनिशा जी ने सही बताया यह गुलर ही है. पके हुए गुलर कुछ कुछ गुलाबी रंग के होते हैं और खाने में स्वादिष्ट. लगता है निशा जी प्रकृति के ज्यादा करीब हैं.
ReplyDeleteरानीखेत से कौसानी के मार्ग पर भी चीड के तेल निकलने ऐसे ही सारे पेड़ों को चीर दिया जाता है, और तो और वहाँ एक फैक्ट्री भी है इसके शोधन के लिए.
हां जी, निशा को वनस्पतियों की काफी जानकारी है। वह मुझे इनके बारे में बहुत सी बातें बताती रहती है।
Deleteमित्रों, ये चीड़ का तेल नहीं बल्कि उसकी राल (गोंद) निकाली जा रही है
Deleteराम राम भाई, दिल्ली की गर्मी मे भी फोटो देखकर ठंडक का अहसास हो रहा है....
ReplyDeleteबढिया यात्रा वृतांत
धन्यवाद सचिन भाई...
DeleteKANGRA SE LAHUL KO KOI TREKKING RASTA NAHI HAI ,,AGAR HAI TO BADHA BHANGAL CROSS KARK JANA PADEGA JO KI BAHUT MUSHKIL RASTA HAI.. APKO EK SUCHNAA JALD HI BILLING ME PARAGLIDING HONE JA RHA HAI WORLD CUP -2015 JISME DUNIA BHARR K PARAGLIDER HISSA LENGE....ABHI HIMACHAL K BAHUT SARE JAGAH JO KI HIDDEN HAI JISME CHITKUL.... TREK... BAHUT FAMOUS HAI...
ReplyDeleteछितकुल ट्रेक??? कौन सा??? हर की दून से या डोडरा क्वार से या कहीं और से???
Deleteबिलिंग मैं एक बार गया हूं। पैराग्लाइडिंग की इच्छा नहीं होती, बहुत महंगा है। लेकिन लोकेशन बहुत अच्छी है।
http://www.journeymart.com/features/trekking-in-sangla-valley,-himachal-pradesh.aspx
Deleteठीक है... ये सांगला वैली में ट्रैकिंग, किन्नर कैलाश, हर की दून के ट्रैक हैं। धन्यवाद आपका।
Deleteनीरज गूलर के को लेकर दो कहावतें प्रसिद्ध हैं , आपने शायद सुनी होंगी ,"जितने ऊमर (गूलर) फोड़ोगे उतने ही कीड़े निकलेंगे . " तथा -गूलर का फूल । पहली का अर्थ है कि बुराइयाँ जितनी ढूँढ़ोगे ,बुराइयाँ बढ़ती जाऐंगेी या तर्कों से मुद्दे हल नही होते बढ़ते ही हैं .दूसरी कहावत का अर्थ है --दुर्लभ वस्तु . दुर्लभ इसलिये कि जबतक यह तथ्य मालूम नही था कि गूलर के फूल ङसके अन्दर ही होते हैं ,यह प्रश्न बना ही रहा कि आखिर गूलर में फूल कहाँ होते हैं और नही तो बिना फूल के फल कैसे आया . खैर..पीरपंजाल,लाहौल घाटी आदि नाम ही किताबों किताबों में पढें थे ,यहाँ स्थानों का विवरण वह भी सुन्दर चित्रों के साथ ...आनन्द आता है पढ़कर .
ReplyDeleteधन्यवाद गिरिजा जी, ये कहावतें मैंने नहीं सुनी थीं।
Deletejat ram, sundernagar ki rajdhani hua karti thi pangna. sundernagar ke raja ne banwaya tha ye mandir/kila. dusre ye bhi bata dete apne darshakon ko ki ham miyan-biwi paidal rohtang paar kar ke aaye the ;) :D
ReplyDeleteरोहतांग पार करने का तो मेरे ध्यान ही नहीं रहा लेकिन यह जरूर ध्यान था कि आप दोनों ने मणिमहेश परिक्रमा कर रखी है। मैं लिखने वाला था, लेकिन लिखा नहीं।
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteधन्यवाद ललित जी...
DeleteNeeraj Bhai...................speechless......
ReplyDeleteअभी पिछले पोस्ट पर कमेन्ट दिया था छपा ही नही | जाने कहा खो गया है | लिखा मेरा | मेरा लिखा तेरे लिए था | तुझ तक पंहुचा की नहीं | ये भी पता नहीं मुझे | अनन्त में खोज रहा हू अपना लिखा | फिर से लिखता हु मन की बात | बहुत सुंदर सरल प्रवाह का मोलिक लेखन | छायाचित्र मनोरम मन मोहक अति सुंदर | चाह है चलूँ तुम्हारे संग | परन्तु जब तक दूसरा साथी और न हो तब तक शायद न हो सम्भव | हो गर कोई और राही | तो कर लेना हमे याद मो ० 09455062286
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