9 मई 2015
सुबह सात बजे सोकर उठे। नहा-धोकर जल्दी ही चलने को तैयार हो गये। जसवाल जी आ गये और साथ बैठकर चाय पी व आलू के परांठे खाये। परांठे बडे स्वादिष्ट थे। आलू के परांठे तो वैसे भी स्वादिष्ट ही होते हैं। यहां से जसवाल जी ने ऊपर मेन रोड तक पहुंचने का शॉर्ट कट बता दिया। यह शॉर्ट कट बडी ही तेज चढाई वाला है। नौ बजे हम नारकण्डा थे।
देखा जाये तो अब हम दिल्ली के लिये वापसी कर चुके थे। लेकिन चूंकि आज हमें एक रिश्तेदारी में कालका रुकना था, इसलिये कोई जल्दी नहीं थी। नारकण्डा से हाटू पीक की ओर मुड लिये। यहां से इसकी दूरी आठ किलोमीटर है। दो किलोमीटर चलने पर इस नारकण्डा-थानाधार रोड से हाटू रोड अलग होती है।
यह सडक भयंकर चढाई वाली है। और पतली इतनी कि ज्यादातर हिस्से में दो कारें भी नहीं बच सकतीं। सडक ज्यादा अच्छी नहीं है, बजरी बिखरी पडी है जिससे बाइक वालों को बहुत नुकसान होता है। एक जगह फोटो खींचने के लिये मैंने ऐसी ही एक जगह पर बाइक रोकी तो रुकते ही बाइक पीछे फिसलने लगी। मैंने गियर में डालकर क्लच छोडा तो इंजन बन्द हो गया और फिर भी बाइक थोडी सी पीछे फिसली, इंजन में घर्र घर्र की आवाज आई; आयेगी ही।
अब कल्पना कीजिये कि बाइक ऊपर से नीचे उतर रही है और सामने एक कार आती दिख जाती है। आप ब्रेक लगायेंगे तो बाइक फिर भी नीचे फिसलेगी। ऐसा हमारे साथ हुआ। वहां संकरी सडक थी, सामने से कार आती दिखी तो मैंने ब्रेक लगा दिये और बचने की जगह देखने लगा। इतने में कार और नजदीक आ गई, उधर बाइक फिसलती गई। हमारे बायें खाई थी, इसलिये हम खाई की ही तरफ थे। कार में टक्कर लगती या हम असन्तुलित होकर खाई की तरफ गिरते; इससे पहले ही मैंने बाइक को कार के सामने सडक पर गिरा दिया। बस, अब तो हम सुरक्षित थे। कार में से कुछ लोग बाहर निकले, बाइक उठाई, आराम से एक किनारे की, कार चली गई और तब हम आगे बढे। इससे मेरी पिण्डली में हल्की सी खरोंच आई, निशा को कुछ नहीं हुआ।
खैर, हाटू चोटी समुद्र तल से लगभग 3160 मीटर ऊपर है। चोटी से जरा सा पहले बर्फ का एक छोटा सा गन्दा ढेर पडा था। ऊपर बर्फ नहीं थी। यहां एक मन्दिर है और रेस्ट हाउस है। हम पहले रेस्ट हाउस की तरफ गये जहां सडक बिल्कुल समाप्त हो जाती है। सामने थानाधार-कोटगढ की सेब-पट्टी का प्रसिद्ध इलाका दिख रहा था। यही वो इलाका है जहां सत्यानन्द स्टोक्स ने पहली बार हिमाचल को सेब से परिचित कराया था।
सुबह का समय था। अभी यहां ज्यादा लोग नहीं थे। बडी देर तक मैं तो घास में पडा रहा और निशा फूलों के फोटो खींचती रही। जहां मैं जन्नत का अनुभव कर रहा था, वही निशा भी बडी खुश थी।
मन्दिर भी अच्छा बना है और इस एकान्त में यह लगता भी अच्छा है। जैसे जैसे दिन चढता जा रहा था और पर्यटक भी आते जा रहे थे। एक तो गाजियाबाद की कार दिखी। लगा जैसे हमारे ही घर का कोई सदस्य हो। हालांकि न हम उनसे बोले, न वे ही हमसे। वे भी हमारी ही तरह दो थे।
पौने ग्यारह बजे यहां से वापस चल दिये। रास्ते में उसी बर्फ के ढेर में एक परिवार खेलता मिला। उन्होंने हमसे पूछा कि ऊपर चोटी पर कितनी बर्फ है? हमने बताया कि जो भी बर्फ है, आपके सामने ही है। ऊपर बर्फ नहीं है। बेचारे इतने मायूस हुए कि चोटी पर जाये बिना ही कार वापस मोड ली। फिर पूछा कि हमें बर्फ देखनी है, सबसे नजदीक में कहां मिलेगी? मैंने हिसाब लगाया। छितकुल में मिल सकती थी, लेकिन मुझे भरोसा नहीं था। जलोडी जोत पर भी मिल सकती थी लेकिन इस समय हम जलोडी जोत से भी ज्यादा ऊंचाई पर थे। मैंने जवाब दिया- मनाली। पता नहीं गये या नहीं।
नारकण्डा के बाद तो शानदार सडक है। रुकते हुए, फोटो खींचते हुए चलते रहे और डेढ बजे तक कुफरी पहुंच गये। निशा कढी-चावल खाना चाहती थी। कुफरी की भीड से निकलते हुए आखिरकार एक जगह कढी चावल मिल ही गये।
नारकण्डा से दूरियां |
नारकण्डा |
थानाधार कोटगढ की सेब-पट्टी |
हाटू मन्दिर |
हाटू जाने का रास्ता |
शिमला रोड पर |
अगला भाग: कुफरी-चायल-कालका-दिल्ली
करसोग दारनघाटी यात्रा
1. दिल्ली से सुन्दरनगर वाया ऊना
2. सुन्दरनगर से करसोग और पांगणा
3. करसोग में ममलेश्वर और कामाख्या मन्दिर
4. करसोग से किन्नौर सीमा तक
5. सराहन से दारनघाटी
6. दारनघाटी और सरायकोटी मन्दिर
7. हाटू चोटी, नारकण्डा
8. कुफरी-चायल-कालका-दिल्ली
9. करसोग-दारनघाटी यात्रा का कुल खर्च
Waaah...maza aa gaya padhkar!
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteराम राम जी, हाटु पीक पर जाने वाली सड़क वाकई खतरनाक हैं...धन्यवाद खुबसूरत छाया चित्रों के लिए....
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
DeletePHOTO TO KAMAL KE H.
ReplyDeletePOST PADKAR MAJA AA GAYA.
धन्यवाद चौधरी साहब...
DeletePHOTO TO KAMAL KE H.
ReplyDeletePOST PADKAR MAJA AA GAYA.
बाप रे! बाइक से इतनी लम्बी यात्रा कैसे कर लेते हो जाट भाई जी । खैर एक से भले दो . निशा को भी घूमने का शौक है उसे भी मजा आया होगा। हैं न?
ReplyDeleteयात्रा वृतांत पढ़कर और फोटो देखकर मुझे हर बार अपना पहाड़ बहुत याद आने लगता है
हाटू चोटी, नारकण्डा की यात्रा प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!
धन्यवाद कविता जी...
Deleteदेख रही हूँ कि सुबह जितनी भी टिप्पणियाँ कीं एक भी पोस्ट नही हुई .यहाँ भी खैर ..
ReplyDeleteयह वृत्तान्त भी हमेशा की तरह बल्कि ज्यादा रोमांचक . एक जगह तो जैसे साँस सी थम गई . सम्हलकर चलो भाई नीरज . ऐसे खतरनाक रास्तों पर साहस एक दो बार ही ठीक है ..
टिप्पणियों का तो मुझे नहीं पता कि क्या गडबड है... और आपका बहुत बहुत धन्यवाद...
Deleteबहुत कुछ सिखाते हैं आपके यात्रा वृत्तांत...
ReplyDelete............
लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!
धन्यवाद अर्शिया जी...
Deleteनीरज जी, Royal Enfield ki motorbike kharid lo, पहाड़ ke liye behtareen sawaari hai aur long distance travel ke liye bhi.
ReplyDeleteडिस्कवर में क्या दिक्कत है?? मैंने पहाड पर भी चलाई है और लम्बी दूरी पर भी... मुझे तो कभी कोई परेशानी नहीं हुई????
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