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17 जुलाई 2014 की दोपहर बारह बजे तक हम अरकू पहुंच गये थे। अब हमें सबसे पहले बोरा गुफाएं देखने जाना था, हालांकि अभी कुछ ही देर पहले हम ट्रेन से वहीं से होकर आये थे लेकिन इस बात को आप जानते ही हैं कि हमने ऐसा क्यों किया? विशाखापट्टनम से किरन्दुल तक का पूरा रेलमार्ग देखने के लिये। अरकू घाटी में सबसे प्रसिद्ध बोरा गुफाएं ही हैं, इसलिये उन्हें देखना जरूरी था।
एक कमरा लिया और सारा सामान उसमें पटककर, 800 रुपये में एक ऑटो लेकर बोरा की ओर चल पडे। वैसे तो बसें भी चलती हैं लेकिन वे बोरा गुफाओं तक नहीं जातीं। जाती भी होंगी तो हमें इंतजार करना पडता। मुख्य अरकू-विशाखापट्टनम सडक से बोरा गुफाएं आठ-दस किलोमीटर हटकर हैं। अरकू से गुफाओं की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। हमने सोचा कि ऑटो वाला इस पहाडी मार्ग पर कम से कम दो घण्टे एक तरफ के लगायेगा, लेकिन पट्ठे ने ऐसा ऑटो चलाया, ऐसा ऑटो चलाया कि हमारी रूह कांप उठी। पौन घण्टे में ही बोरा जाकर लगा दिया जबकि रास्ते में एक व्यू पॉइण्ट पर दस मिनट रुके भी थे। मैं उससे बार-बार कहता रहा कि भाई, हमें कोई जल्दी नहीं है, धीरे धीरे चल लेकिन पता नहीं उसे मेरी बात समझ में नहीं आई या उसे कोई भयानक जल्दी थी कि उसने मेरी एक न सुनी। पहाडी गोल-गोल सडक और तीन पहिये का ऑटो; जब मोड पर तेजी से काटता तो लगता कि पक्का पलट जायेगा और मैं कूद कर भाग जाने को तैयार बैठा रहता।
अभी जो मैंने व्यू पॉइण्ट का जिक्र किया है, वहां से दूर-दूर के शानदार नजारे दिखते हैं। जंगल से गुजरती रेलवे लाइन भी दिखती है लेकिन इन दस मिनटों में कोई भी ट्रेन वहां से नहीं गुजरी।
विकीपीडिया के इस पेज पर क्लिक करके आप बोरा गुफाओं के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं। नहीं समझ आ रहा हो तो देसी भाषा में मैं कुछ बता सकता हूं।
ये पूर्वी घाट की अनन्तगिरी पहाडियां हैं। वैसे तो पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट दोनों पहाडियों का निर्माण ज्वालामुखीय क्रियाकलाप से हुआ है। ज्वालामुखी से लावा निकलता है जो जमने पर बहुत कठोर हो जाता है। लेकिन यहां पता नहीं कहां से चूने जैसी नरम चट्टानें भी आ गईं। इन चट्टानों को स्टैलैक्टाइट और स्टैलैग्माइट चट्टानें भी कहते हैं। लेकिन ये इतनी नरम भी नहीं होतीं। हजारों सालों में, लाखों सालों में ऐसा होता है। बारिश होती है, पानी जमीन के अन्दर जाता रहता है। इससे नरम चट्टानें पानी में घुल-घुलकर बाहर बहने लगती हैं और जमीन के अन्दर एक खोखलापन आ जाता है। कठोर चट्टानें बची रह जाती हैं, जो छत का काम करती हैं। इस तरह गुफाओं का निर्माण होता है।
यह प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होती। आज भी यह अनवरत जारी है। ऊपर छत से पानी की बूंदें टपकती हैं। जाहिर है कि उनमें नरम चट्टानों के कुछ अवशेष अवश्य रहते हैं। बूंदें टपकती रहती हैं, टपकती रहती हैं। ऊपर जिस स्थान से यह टपककर नीचे गिरती है, वहां धीरे धीरे चूना जमने लगता है और इसी तरह नीचे जहां बूंद जमीन पर गिरती है, वहां भी चूना जमने लगता है। इस तरह ऊपर से भी और नीचे से भी चूने के एक खम्भे का निर्माण शुरू होता है जो कालान्तर में आपस में मिल भी जाते हैं। इसी तरह की अनगिनत और विचित्र आकृतियां इन बोरा गुफाओं में बनी हुई हैं।
गुफा के द्वार पर गाइड बैठे रहते हैं जो पचास रुपये में आपकी सहायता कर देंगे। इस गाइडों को घण्टा पता नहीं होता लेकिन ये गुफा की अन्धेरी दीवारों पर टॉर्च से रोशनी मारते हैं और ऐसी ऐसी आकृतियां दिखा देते हैं जो हम अगर अकेले होते तो शायद न देख पाते।
बोरा गुफाओं का निर्माण चूंकि पानी से हुआ है और अभी भी जारी है तो जाहिर है कि इसमें पानी अवश्य मिलेगा। पूरी गुफा में खूब फिसलन है। अगर प्रशासन चलने के लिये रास्ता न बनाता तो यहां घूमना बेहद मुश्किल होता। अन्दर तक जाने के लिये रास्ता है, सीढियां हैं और रोशनी का भी प्रबन्ध है। यह मौसम मानसून का था तो प्रशासन को विशेष चौकन्ना रहना होता है कि कहीं से अचानक इसमें ज्यादा पानी न आ जाये। हालांकि ये छत्तीसगढ की कुटुमसर गुफाओं जैसी नहीं हैं, अन्यथा मानसून में इन्हें बन्द करना पडता।
गुफा में ऊपर एक छेद भी है। कहते हैं कि कभी एक गाय उस छेद से नीचे गिर गई थी और पानी के बहने के रास्ते से होती हुई बाहर निकल गई। गाय को तो हालांकि कुछ ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा लेकिन उसे ढूंढते ढूंढते ग्वाले ने गुफा ढूंढ ली। ठीक अमरनाथ की तरह। शुक्र है कि यह अभी तक तीर्थ स्थान नहीं बनी। लेकिन करोडों देवता यहां भी पालथी मारे बैठे मिलेंगे और गाइड आपको हर देवता की पहचान कराता आगे बढेगा। हालांकि इस महा विशाल गुफा में एक छोटी सी गुफा भी है जहां एक पुजारी आपको शिवलिंग के दर्शन करायेगा। यह शिवलिंग और कुछ नहीं है बल्कि वही पानी का टपकना और चूने का इकट्ठा होना है। मानसून में पानी बढ जाता है इसलिये भक्त लोग कहते हैं कि सावन का चमत्कार है। ठीक इसी तरह का चमत्कार वैष्णों देवी के पास शिवखोडी की गुफाओं में भी है।
किरन्दुल लाइन ठीक इस गुफा के ऊपर से गुजरती है। पूर्वतट रेलवे ने गुफा के अन्दर एक सूचना पट्ट भी लगा रखा है कि इस बिन्दु के ठीक 176 फीट ऊपर से रेलवे लाइन गुजरती है।
हालांकि हम दिन के ऐसे समय पहुंचे थे जब यहां बहुत थोडे से पर्यटक थे। ज्यादा भीड हो जाती है तो इसमें उमस और घुटन भी होने लगती है। आपको सलाह दी जाती है कि अगर आप इन गुफाओं को देखने जा रहे हैं और ज्यादा भीड है तो इसका विचार त्याग दें। वेंटीलेशन का कोई प्रबन्ध नहीं है। सुनील जी एक बार ऐसी ही स्थिति में फंस चुके थे। तब उन्होंने समझदारी दिखाते हुए बिना गुफा देखे वापस लौटने का फैसला कर लिया था।
गुफा के बिल्कुल आखिर में काफी बडा हॉल जैसा कुछ है। उसकी छत पर खूब चमगादड बैठे रहते हैं और शोर करते रहते हैं। यहां से पानी निकासी का प्रबन्ध है और उसकी वजह से एक संकरी गुफा दूर तक चली गई है। उसमें पर्यटकों को जाने की अनुमति नहीं है। लेकिन जिस हॉल में हम अभी हैं, उसकी छत पर एक लकीर आर पार चली गई है। यह एक दरार है। इधर से शुरू होती है और उधर दूसरे छोर तक चली गई है। पूरे हॉल को दो भागों में बांटती हुई। गाइड ने बताया कि यहां दो पहाड मिल रहे हैं।
दो पहाड मिल रहे हैं, इसका क्या अर्थ है? क्या दो पहाड बाहर खुले में टहल रहे थे और अचानक मिल गये और उनके मिलन स्थान पर यह दरार पड गई? ना। हमें इसके लिये फिर से इन पहाडियों के निर्माण काल में जाना होगा। ये वास्तव में ज्वालामुखीय चट्टानें हैं। धरती के अन्दर से लावा निकला और इकट्ठा होता चला गया। लावा बहुत गहराई पर होता है। कम गहराई पर दूसरी नरम चट्टानें होती हैं। लावे के साथ साथ नरम चट्टानें भी आती गईं और पूरे इलाके में इनका टीला बनता चला गया। पहाडी श्रंखला का निर्माण इसी तरह हुआ है। इस टीलों में दरार कैसे पडी?
इसका जवाब यह हो सकता है कि सारा लावा एक बार में तो नहीं निकला था। हजारों सालों तक, लाखों सालों तक यह प्रक्रिया चली थी। कुछ लावा आज निकल गया और धीरे धीरे ठण्डा पड गया। कुछ हजार साल बाद निकला और वो भी ठण्डा पड गया। दोनों के बीच में निश्चित ही एक दरार रहेगी। दो पहाड मिलते हैं, ऐसा नहीं होता। पहाड कोई चलती फिरती वस्तु नहीं हैं कि मिल गये और मिलन बिन्दु पर दरार पड गई। ना।
व्यू पॉइण्ट से दिखती किरन्दुल रेलवे लाइन |
बोरा गुफाओं का प्रवेश द्वार |
गुफा में निर्मित एक खम्बेनुमा आकृति |
गुफा के अन्दर लगा पूर्वतट रेलवे का सूचनापट्ट |
गुफा काफी विशाल है, प्रकाश की व्यवस्था है और चलने के लिये रास्ता भी है। |
यही वो दरार थी जिसे गाइड ने दो पहाडों का मिलन स्थान बताया था। |
यह आखिरी बिन्दु है। इससे आगे गुफा अत्यधिक संकरी हो जाती है और पर्यटकों के लिये सुरक्षित नहीं है। |
गुफा में चूने के टीले को शिवलिंग मानकर बैठा पुजारी। प्रशासन को ऐसे पुजारियों को तुरन्त बाहर खदेड देना चाहिये। |
ऊपर से चूने का पानी टपकता हो तो नीचे विचित्र आकृतियां बनेंगी ही। |
चलिये, बाहर निकल जाते हैं। |
अगला भाग: चापाराई प्रपात और कॉफी के बागान
5. बोर्रा गुहलू यानी बोरा गुफाएं
7. अरकू घाटी
11. बारसूर
13. तीरथगढ जलप्रपात
17 august ya 17 july
ReplyDelete17 जुलाई, ठीक कर दिया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteक्या बात! बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद गाफिल साहब...
Deleteनीरज भाई , नमस्कार , नई बाइक के लिए हार्दिक शुभकामनाए ,आशा है आप साइकिल की तरह बाइक से भी सफर के नए मुकाम छुयेंगे। किसी पोस्ट मे बाइक के फोटो भी शामिल करना ,हम भी आपकी बाइक के दर्शन के अभिलाषी है। आज की पोस्ट मे अदभुद गुफाओ की ज्ञानवर्द्धक जानकारी मिली। वास्तव मे प्रकृति की लीला अपरम्पार है और आप इस अदभुद -अजब लीला को अपनी लेखनी और फोटो से हम तक पहुंचाते है तो मज़ा आ जाता है। अगली पोस्ट का इंतजार रहैगा।
ReplyDeleteधन्यवाद विनय जी...
Deleteनीरज भाई राम राम,
ReplyDeleteबोरा गुफाएं की विस्तार से जानकारी के लिए आभार. वैसे यह पहाडिया कितनी बहुत प्राचीन होगीं?
सचिन भाई, ये पहाडियां हिमालय से भी लाखों-करोडों साल पुरानी हैं।
DeleteNeeraj bhai......
DeleteBehtar jankari....
Rahasmayi photo....
Ranjit......
इस क्षेत्र में फील्ड वर्क के दौरान मुझे भी जाने का मौका मिला था यहाँ। प्रकृति की अद्भुत विरासत है ये गुफा। अरकू वैली का ट्राइबल म्यूजियम भी देखने योग्य था।
ReplyDeleteधन्यवाद अभिषेक जी, हम ट्राइबल म्यूजियम भी गये थे।
Deleteइतनी बढ़िया जानकारी के लिए धन्यबाद। सभी फोटो अनोखे और खूबसूरत है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
Deleteबहुत बढ़िया रोमांचकारी जानकारी ....
ReplyDeleteधन्यवाद कविता जी...
Deleteवाह! बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद पाबला सर।
Deleteअदभुद गुफाएं है...लगभग पाताल भुवनेश्वर जैसीे...
ReplyDeleteआपकी डायरी पर एक बधाई संदेश लिखा था... नजर ही नही आ रहा
तिवारी जी, आपका सन्देश नहीं मिला है। कोई तकनीकी समस्या रही होगी।
Deleteप्रकृति अभी भी अपने अंदर अनेक रहस्य सजोए हुए है --- सालो में कही जाकर ऐसी चित्रकारी बनती है --अद्भुत ----
ReplyDeleteजी दर्शन जी, बिल्कुल...
Deleteनीरज जी राम राम, नयी बाइक की बहुत बहुत शुभकामनाये. आपने डिस्कवर १५० खरीदी, मैंने भी डिस्कवर १२५ m खरीदी. बहुत खूब, हमारा बजाज....
ReplyDeleteNICE N SO BEAUTIFUL PICK. WRITER SHAB.
ReplyDeleteNeeraj Bhai, bahot achchhi jankari. aaj bahot din ke baad aapke blog dekha. America main light effects se caverns dikhate hai. Please see below link.
ReplyDeletehttp://www.shenandoahcaverns.com/