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वैष्णों देवी गए और फिर आये, आते ही एक शुभ काम हो गया। खैर, मेरे साथ अभी तक आप जम्मू मेल से सफ़र कर रहे हो, पानीपत से निकलते ही खर्राटे भरने लगे हो। जागने पर क्या हुआ, ये बताऊंगा मैं बाद में, पहले एक खुशखबरी। हमने एक कंप्यूटर खरीद लिया है। अपनी खाट पर बैठे-बैठे ही रजाई की भुक्कल मारकर (ओढ़कर), गोद में कीबोर्ड रखकर, बराबर में माऊस रखकर ई-आनन्द लेना शुरू कर दिया है। लेकिन सुख है, तो दुःख भी है। अरे भाई, एक कंजूस की जेब से जब पैसा निकलता है तो दुःख तो होगा ही। कोई मामूली रकम नहीं, पूरे पांच अंकों में, वो भी एक ही झटके में। चलो खैर, वापस जम्मू मेल में पहुँचते हैं, और देखते हैं कहाँ पहुँच गए।
27 दिसम्बर, 2009। सुबह के सात बजने वाले थे। मैंने रामबाबू की सीट की तरफ देखा। रामबाबू गायब था। ये तो दिमाग में आया नहीं कि टट्टी-पेशाब करने गया होगा। सोचने लगा कि ससुरा जालंधर- वालंधर में उतरा होगा, ट्रेन चल पड़ी होगी, वो वहीं रह गया होगा। ऊपर की बर्थ पर रोहित था। सो रहा था। मैंने उसे आवाज दी, उसकी चादर हिलाई-डुलाई, तब जाकर उसने 'हूँ' कहा। मैंने कहा कि -"ओये, उठ भई, देख जम्मू आने वाला है। चल, कपड़ों की तै-तू कर ले।" जबकि वास्तव में पठानकोट आने वाला था। तभी उसके बराबर में कोने में से नाममात्र बुद्धि रामबाबू उठा। रात को ठण्ड लगने की वजह से रोहित की बगल में जा घुसा था। बोला -"हैं? जम्मू आने वाला है? जय माता दी। चल भई रोहित, जल्दी से नहा-धोकर दोपहर तक वैष्णों देवी के दर्शन कर लेंगे और शाम को वापस चल पड़ेंगे। जय माता दी। नीरज, यहाँ से शाम को दिल्ली की ट्रेन कितने बजे है?"
सुनते ही रोहित ने उसे जोरदार धप (घूँसा) मारा और कहा -"ओ, कटड़ा क्या तेरा बापू जावेगा? चौदह किलोमीटर की चढ़ाई क्या तेरा फूफा करेगा?"
रामबाबू -"हैं, चौदह किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा?"
रोहित -"चलना नहीं, चढ़ना पड़ेगा।"
रामबाबू -"तो भैया, फिर मैं नहीं जाऊँगा। शेरावाली से कह देना कि बेचारा बीमार हो गया।"
मैं -"रोहित, यह आगे रास्ते में भी पंगा करेगा। ससुरे के हाथ-पैर बांध दे।"
फिर हम दोनों ने उसे घेर-घोटकर चादरों से उसके हाथ-पैर बांध दिए। कुछ मूंगफली रखी थी। हम मूंगफली खाने लगे। बीच-बीच में दाने उसे भी देते रहे। वो पड़ा-पड़ा ही मुंह खोल देता था। हम दो-तीन दाने मुंह में डाल देते थे। थोड़ी देर बाद मैंने उसके मुंह में छिलके डाल दिए। हा हा हा हा। उसे ना तो उगलते बना, ना ही निगलते।
खैर, पठानकोट पहुँचे। यहाँ पर गाडी का करीब आधे घंटे का ठहराव है। रामबाबू के बंधन खोल दिए गए। कांगड़ा की तरफ देखा, धुंध थी। मौसम साफ़ होता तो, धौलाधार की बरफ दिखती। यहीं से एक छोटी लाइन पर टॉय ट्रेन भी चलती है-कांगड़ा रेल। यह बैजनाथ होते हुए जोगिन्दर नगर तक जाती है। जब मैं रोहित को छोटी लाइन के प्लेटफोर्म पर ले गया तो छोटी सी पटरी को देखकर वो खुश हो गया।
माधोपुर के बाद रावी नदी पार करके जम्मू कश्मीर राज्य शुरू हो जाता है। पहली बार जम्मू कश्मीर में प्रवेश किया था। यह इलाका डोगरा लैंड भी कहलाता है। आजादी से पहले जम्मू के लिए रेल लाइन सियालकोट से थी। सियालकोट पाकिस्तान में चला गया। जम्मू का रेल संपर्क बाकी देश से कट गया। फिर पठानकोट से यह लाइन बिछाई गयी जिस पर आज हम सफ़र कर रहे थे। बढ़ते यातायात को देखते हुए इसके दोहरीकरण का काम चल रहा है, साथ ही विद्युतीकरण भी होगा। जगह-जगह खम्भे ((MAST) पड़े हुए थे। आतंकवाद के खतरे की वजह से हर किलोमीटर पर चेक पोस्ट बनाई गयी है।
मां वैष्णोंदेवी और बाबा अमरनाथ के इस राज्य में हालात ऐसे हैं कि बाहर से आने वाला कोई भी यहाँ आने से पहले दस बार सोचता है। वो तो वैष्णों मां व अमरनाथ बाबा की शक्ति है, कुछ कश्मीर की सुन्दरता का आकर्षण है, कि हम जैसे लोग खिंचे चले आते हैं, नहीं तो डोगरा प्रदेश व हजरतबल की 'घाटी' को कौन पूछता? वो तो भारतीय सुरक्षा सेनाओं का जलवा है कि हम लोग बेखटके चले जाते हैं, नहीं तो आज इस प्रदेश में हम 'काफिर' कैसे घुसते?
चलो, अब जम्मू आने वाला है। उतरने की तैयारी करो, फिर कटड़ा चलेंगे। इस बार मजाक नहीं कर रहा हूँ, सही कह रहा हूँ। जम्मू आने वाला है - जम्मू कश्मीर की वर्तमान राजधानी। वर्तमान इसलिए कि शीतकाल चल रहा है।
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(अरे, इतनी छोटी सी लाइन? पठानकोट-जोगिन्दर नगर लाइन)
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(ओ काली टोपी वाले।)
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(इस सफ़र के दो साथी- रोहित व रामबाबू।)
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(रावी नदी पर नया बनता दोहरी लाइन का पुल। रावी नदी पंजाब और जम्मू कश्मीर की सीमा रेखा है।)
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(कठुआ रेलवे स्टेशन। हर तरफ सुरक्षा।)
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(अरे खिड़की के सरिये पर सिर टिकाकर क्या सोच रहा है?)
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(अब तो साम्बा भी जिला बन गया है।)
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(बड़ी ब्राहमण। शायद यह बड़ा ब्राहमण नहीं होना चाहिए था?)
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अगला भाग: जम्मू से कटरा
वैष्णों देवी यात्रा श्रंखला
1. चलूं, बुलावा आया है
2. वैष्णों देवी यात्रा
3. जम्मू से कटरा
4. माता वैष्णों देवी दर्शन
5. शिव का स्थान है- शिवखोडी
6. जम्मू- ऊधमपुर रेल लाइन
अव्वल तो कम्प्यूटर खरीदने की मुबारकबाद...कंजूसों के जलवे भी देख लिए. :)
ReplyDeleteघुमक्कड़ी जिन्दाबाद- वाकई. आगे इन्तजार है महाराज!
वाकई यार, किस्सागोई हजब की करते हो. ऐसी सहज और प्रवाहमान भाषा पढते पढते कब आलेख खत्म होगया यह पता ही नही लगता. बहुत जोरदार.
ReplyDeleteकंप्युटर खरीदने की शुभकामनाएं.
रामराम.
भूल सुधार :
ReplyDeleteहजब = गजब
पढा जाये.
रामराम
पठानकोट मेरा जन्म स्थान है उसके स्टेशन के दर्शन करवा के धन्य कर दिया भाई...बहुत रोचक पोस्ट...और चित्र तो बस कमाल के हैं...आगे क्या हुआ जल्दी बताओ...
ReplyDeleteनीरज
chaliye aapke sath hi devi maan ke darshan kar lenge
ReplyDeleteकंप्यूटर की मुबारक. रामबाबू को नमस्ते और माता दी जय. भाई बहुत अच्छा लिखता हो और हमें भी अपने साथ घुमा लाते हो तुम. आभार.
ReplyDeleteनीरज, बहुत अच्छा लिखते हो। यार, ये रामबाबू जैसे हमसफर न हों तो सफर अंग्रेजी वाला suffer हो जायेगा। रामबाबू को हमारी तरफ से समझा दो कि दो जाटों के बीच जरा ध्यान से रहे।
ReplyDeleteक्म्पयूटर की बधाई, अब तो पोस्ट जल्दी-जल्दी छ्पेंगी न?
ACHHA LIKHTE HAI ... BADHAII
ReplyDeleteघुमक्कडी जिन्दाबाद......वाह.. मजा आ गया भाई..!!!!
ReplyDeletemujhe aapki ye site bahut achhi lagi.thanks
ReplyDeleteare bhai mai bhi gaya hun bus ye train aub band ho gai hai
ReplyDeleteare bhai mai bhi gaya hun bus ye train aub band ho gai hai
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