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अब बारी थी बारसूर के बाद पहले दन्तेवाडा जाने की और फिर किरन्दुल जाने की। बारसूर से दन्तेवाडा की दूरी 40 किलोमीटर है और दन्तेवाडा से किरन्दुल भी लगभग इतनी ही दूरी पर स्थित है। बारसूर से बीस किलोमीटर दूर गीदम पडता है जहां से जगदलपुर और बीजापुर की सडकें मिलती हैं। गीदम से दन्तेवाडा वाली सडक बहुत खराब हालत में थी। इसकी मरम्मत का काम चल रहा था, ऊपर से लगातार होती बारिश। पूरे बीस किलोमीटर कीचड में चलना पडा। गीदम में बीआरओ की सडक देखकर हैरान रह गया। मैं तो सोचता था कि देश के सीमावर्ती इलाकों में ही सीमा सडक संगठन है लेकिन यहां देश के बीचोंबीच बीआरओ को देखकर आश्चर्य तो होता ही है।
दन्तेवाडा में दन्तेश्वरी मन्दिर है जो एक शक्तिपीठ है। दन्तेवाडा आयें और इस मन्दिर को देखे बिना निकल जायें, असम्भव था। मन्दिर में केवल धोती बांध कर ही प्रवेश किया जा सकता है। यहां लिखा भी था कि पैंट या पायजामा पहनकर प्रवेश न करें। हालांकि मैंने हाफ पैंट पहन रखी थी, इसी के ऊपर वहीं अलमारी में रखी धोती लपेट ली।
दन्तेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी है। इसी के कारण दन्तेवाडा को इसका यह नाम मिला। नवरात्रों में यहां बाकी सभी शक्तिपीठों की तरह बडी भारी भीड रहती है। इन दिनों यानी जुलाई के महीने में यहां इक्का-दुक्का भक्त ही दिख रहे थे।
दन्तेवाडा से किरन्दुल की सडक एकदम शानदार बनी है। पहाडी सडक है और जंगल से होकर जाती है, इसलिये और भी आनन्द आता है। ट्रैफिक तो बिल्कुल भी नहीं था। किरन्दुल से पहले बचेली है। बचेली एक काफी बडा कस्बा है। यहां ठहरने के लिये खूब होटल हैं लेकिन हमें चूंकि किरन्दुल जाना था, इसलिये यहां नहीं रुके।
इस स्थान की प्राकृतिक सुन्दरता के बारे में सुनील जी का कहना था- यह जगह छत्तीसगढ का हिल स्टेशन है। वे भी यहां पहली बार आये थे और इसकी सुन्दरता पर सम्मोहित थे। ऊपर पहाड पर आकाश नगर की लाइटें माहौल को और भी शानदार बना रही थीं।
बैलाडीला का नाम मैंने सातवीं-आठवीं में भूगोल की किताब में पढा था कि यहां लौह-अयस्क की खानें हैं। आपने भी पढा होगा। नहीं याद हो तो समझिये आप भूगोल में कमजोर हैं। बैलाडीला की खानें यहीं हैं। किरन्दुल तक रेलवे लाइन बिछाई ही इसलिये गई थी कि बैलाडीला से लौह-अयस्क ढोया जा सके। यहां बचेली-किरन्दुल से जो ऊंचा पहाड दिखता है, उसके उस तरफ वे खानें हैं। पहाड के ऊपर शीर्ष पर आकाश नगर है जिसे बैलाडीला का नियन्त्रण-केन्द्र भी कहा जा सकता है। कहते हैं कि आकाश नगर से चारों तरफ का विहंगम नजारा देखने को मिलता है। लेकिन वहां जाने के लिये एनएमडीसी से बचेली में परमिशन लेनी होती है। हमारा भी मन था ऊपर आकाश नगर जाने का लेकिन अन्धेरा हो चुका था इसलिये नहीं गये। अगले दिन सुबह-सवेरे ट्रेन है, इसलिये कल भी नहीं जायेंगे। फिर कभी।
किरन्दुल में पहले बस अड्डे पर गये, वहां रेस्ट हाउस में जगह नहीं मिली। फिर और आगे बढे। एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स जैसा कुछ था, नाम याद नहीं लेकिन किरन्दुल की प्रसिद्ध जगह है; वहां कमरा मिल गया। यहां ज्यादातर एनएमडीसी से सम्बन्धित लोग ही आकर ठहरते थे, इसलिये यह कमरा उतना अच्छा न होने के बावजूद भी महंगा था। कुछ दूर एनएमडीसी की ही कैंटीन में खाना खा आये। यहां भी एक रेस्ट हाउस था जहां केवल एनएमडीसी के अधिकारी ही ठहरते थे या फिर अगर आपके पास कोई आज्ञा-पत्र हो, तो आप भी ठहर सकते हैं। हमें पहले इसकी जानकारी नहीं थी अन्यथा जगदलपुर से सुनील जी के लिये अपने परिचित से आज्ञा-पत्र बनवा लेना मुश्किल नहीं था।
एक और काम हमने अच्छा किया। खाना खाने के बाद सुनील जी ने कहा कि अभी एक बार स्टेशन भी देख आते हैं। किरन्दुल असल में लोडिंग प्लांट है। उधर बैलाडीला से लौह अयस्क इधर आता है। पहाड पर बडी शक्तिशाली चेन है जिससे यह काम होता है। लौह-अयस्क को यहां लाकर मालगाडी में भरा जाता है। जब इतनी भारी मात्रा में अयस्क का उत्पादन होगा तो उसके लिये लोडिंग प्लांट भी बडा भारी ही चाहिये। चौडाई तो ज्यादा से ज्यादा सौ मीटर ही है लेकिन इसकी लम्बाई कम से कम तीन किलोमीटर है। स्टेशन उस तरफ है, कोई फुट ओवर ब्रिज नहीं है। उधर जाने के लिये दो रास्ते हैं। एक को हम पहले ही पीछे छोड आये थे, दूसरा और आगे है। हमने सोचा था कि किरन्दुल इस तरफ ही है तो स्टेशन भी इसी तरफ होना चाहिये। काफी दूर जाकर जब पूछताछ की तो उन्होंने सबकुछ बताया। फिर कुछ तो पूछते पूछते और कुछ गूगल मैप की सहायता से हम बडी देर बाद अन्धेरे में दुबके पडे स्टेशन को ढूंढने में कामयाब हो सके। स्टेशन जाने वाला रास्ता बारिश के कारण कीचड बन चुका था।
इस काम में हमें करीब एक घण्टा लग गया। अच्छा हुआ कि आज ही स्टेशन देख आये अन्यथा सुबह देर से उठते, भागदौड में स्टेशन की तरफ निकलते। स्टेशन मिलता नहीं और ट्रेन छूट जाती। इस बहाने यह भी पता चल गया कि आज ट्रेन यहां आई है। इसका अर्थ था कि कल सुबह ट्रेन यहां से रवाना होगी। नक्सली आतंक यहां इतना ज्यादा है कि किरन्दुल तक ट्रेन कम ही आती है, जगदलपुर से ही वापस हो लेती है। देर रात यहां विशाखापट्टनम से ट्रेन आती है, अगले दिन सुबह सवेरे चली जाती है। दिनभर कोई दूसरी यात्री गाडी यहां नहीं आती। इसलिये स्टेशन पर केवल एक ही लाइन है और एक ही प्लेटफार्म है। (आज 8 दिसम्बर 2014 को भी किरन्दुल तक ट्रेन आये अरसा हो गया। पिछले कई दिनों तक ट्रेन पूरी तरह रद्द रही, अब सिर्फ जगदलपुर तक ही चल रही है।)
अगले दिन मुझे स्टेशन छोडकर सुनील जी जगदलपुर चले गये। हम यहां चित्रकोट और बारसूर देखते हुए बाइक से आये थे। इसलिये वे बाइक से चले गये और मैं ट्रेन से जाऊंगा। चार घण्टे बाद ट्रेन डेढ सौ किलोमीटर का सफर तय करके जगदलपुर पहुंचेगी।
बारिश कभी नहीं थमी।
किरन्दुल से अगला स्टेशन बचेली है। ट्रेन में भीड कतई नहीं थी, इक्का-दुक्का यात्री ही थे। थोडी बहुत यह जगदलपुर जाकर भरेगी और अरकू व बोर्रा गुहलू में पूरी भर जायेगी।
दन्तेवाडा से कुछ पहले जंगल में एक जगह पूरी मालगाडी उलटी पडी थी। इसके तीनों इंजन भी गिरे पडे थे। कुछ ही समय पहले नक्सलियों ने यहां पटरी उखाडकर मालगाडी को गिरा दिया था। नक्सली यहां इस तरह के काम करते रहते हैं। अच्छा था कि इसके ड्राइवर बच गये। उन्होंने उखडी पटरी देख ली और ट्रेन पलटने से पहले ही कूद गये।
भानसी और कामालूर के बाद दन्तेवाडा है। इसके बाद गीदम, दाबपाल, कावडगांव, काकलूर, कुम्हार सोडरा, सिलकझोडी, डिलमिली, बडे आरापुर, तोकापाल, कुम्हार मारंगा और जगदलपुर हैं। लगभग पूरा रास्ता पहाडी है और ट्रेन दाहिने-बायें मुडती रहती है। हर स्टेशन पर मालगाडियां भी खडी मिलती हैं। एक बार तीन खाली मालगाडियां एक के पीछे एक जुडकर आईं। ट्रैफिक कम करने का यह शानदार तरीका है।
ठीक दस बजे जगदलपुर पहुंच गया जहां कुछ समय बाद सुनील जी अपने भतीजे शनि, ममेरे भाई मनीष और भानजे प्रशान्त को साथ लिये आ गये- तीरथगढ जाने के लिये।
अगला भाग: तीरथगढ जलप्रपात
7. अरकू घाटी
11. बारसूर
12. किरन्दुल रेलवे- किरन्दुल से जगदलपुर
13. तीरथगढ जलप्रपात
bhai meri to bhugol kanjor nikli
ReplyDeleteहा हा हा...
DeleteMandir mein dhoti ki parampara kyu hai??
ReplyDeleteYatra varnan bahut badiya hai
हर मन्दिर की अपनी परम्परा होती है।
DeleteLovely
ReplyDeleteधन्यवाद गिरी साहब...
Deleteकिरन्दुल से याद आया अपनी प्रोबेशन की बछेली-किरन्दुल में की गयी ट्रेनिंग। तीन दशक होने को आये! ..
ReplyDeleteधन्यवाद पाण्डेय सर...
Deleteनीरज भाई ...............फोटो की गुणवत्ता दिन पर दिन बेहतरीन होती जा रही है..................
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा साहब...
Deleteखतरनाक जगह की खतरनाक यात्रा । फोटो अच्छा है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर...
DeleteNeeraj jo comment post karo wo dikhte kyun nahi hai ??
ReplyDeleteसर जी, दिख तो रहे हैं सभी कमेण्ट।
Deleteye engine kya yun hi pade pade sad jaenge jangal me? karodon rupaye barbaad ho jaenge? Railway inhe uthane aur istemaal ke bare me kyun nahi sochta??
ReplyDeleteप्रदीप जी, ये इंजन अब करोडों के नहीं रहे। इन्हें हटाने और मरम्मत करके चलाने लायक बनाने में वास्तविक कीमत से भी ज्यादा खर्च आयेगा। ये ऐसी जगह पडे हैं जहां से इन्हें हटाना बेहद पेचीदा काम है। रेलवे ने सारी गणनाएं करने के बाद यह फैसला लिया है कि इन्हें ऐसा ही पडा रहने दिया जाये।
DeleteGhoomne ke liye bike,badhiya mausam, khoobsoorat jageh.. aur sath me koi jindadil insaan. Aur kya chahiye.. :-)
ReplyDeletephotos aur post dono bahut badhiya ..
बिल्कुल सही बात...
Deleteअति उत्तम !
ReplyDeletesir
ReplyDeleteKirandul mein aam admi ke kiye rukne ka pravdhan hai kuch ?
Aor sir bailadila ki mines ko dekhne ke liye aam nagrikon ko permit mil sakti hai ? Kahan se ?
किरंदुल में स्टेशन से काफ़ी दूर शहर में एक-दो होटल हैं... स्टेशन पर और इसके आसपास कुछ नहीं है...
Deleteबैलाडीला जाने के लिये कोई जानकार हो तो ठीक रहता है.... परमिट का नहीं पता कि कौन देता है...