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बारह बजे के आसपास जगदलपुर से तीरथगढ के लिये चल पडे। इस बार हम चार थे। मेरे और सुनील जी के अलावा उनके भतीजे शनि, ममेरे भाई मनीष दुबे और भानजे प्रशान्त भी साथ हो लिये। लेकिन ये तो कुल पांच हो गये। चलो, पांच ही सही। शनि ने अपनी कार उठा ली। बारिश में भीगने का खतरा टला।
कुछ दूर तक दन्तेवाडा वाली सडक पर चलना होता है, फिर एक रास्ता बायें सुकमा, कोंटा की ओर जाता है। इसी पर चल दिये। मुडते ही वही रेलवे लाइन पार करनी पडी जिससे अभी कुछ देर पहले मैं किरन्दुल से आया था।
थोडा ही आगे चलकर कुख्यात जीरम घाटी शुरू हो जाती है जो तकरीबन चालीस किलोमीटर तक फैली है। पिछले साल नक्सलियों ने जोरदार आक्रमण करके 28 कांग्रेसी नेताओं को मौत के घाट उतार दिया था। देश हैरान रह गया था इस आक्रमण को देखकर। यह पूरा इलाका पहाडी है और घना जंगल है। तीरथगढ जलप्रपात और कुटुमसर की गुफाएं इसी घाटी में स्थित हैं।
जंगल में एक चौराहा आता है। दाहिने सडक तीरथगढ की ओर जाती है और बायें वाली कुटुमसर की गुफाओं तक। मानसून के कारण गुफाएं बन्द थीं। ये गुफाएं जमीन के अन्दर हैं, मानसून में इनमें पानी भर जाता है, इसलिये बन्द करनी पडती हैं। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान होने के कारण कुछ शुल्क देकर हम तीरथगढ की ओर मुड गये।
एक स्थान पर पहली बार जलप्रपात के दर्शन होते हैं। प्रपात यहां से बहुत दूर है लेकिन पहाडी इलाका होने के कारण वह दूर से दिख जाता है। एक व्यू पॉइण्ट भी यहां बना है। आगे बढते हैं तो एक छोटा सा बोर्ड लगा दिखता है- तीरथगढ प्रपात तक जाने का ट्रैकिंग मार्ग। जंगल में छोटी सी पगडण्डी चली गई है। और आगे बढते हैं तो प्रपात के बहुत नजदीक से होकर गुजरते हैं। यहां सडक प्रपात के ऊपरी सिरे से मिलकर आगे गई है। मुझे तो पता ही नहीं चला कि यही प्रपात है। सुनील जी ने बताया तब पता चला। लेकिन एक लम्बा चक्कर काटकर प्रपात के नीचे पहुंचा जा सकता है। हम भी पहुंचे। बारिश हो ही रही थी। कभी तेज कभी कम।
भूख लगी थी, यहां खाने पीने की कोई कमी नहीं। बारिश में चाय पकौडे का अलग ही आनन्द है। वो आनन्द हम तब तक लूटते रहे, जब तक पेट न भर गया। पैसे देने लगे तो दुकान वाले ने कहा- झरना घूमकर आ जाओ, वापसी में देते जाना। अच्छा लगा यह सुनकर। हिमालय की याद आ गई।
बारिश के कारण फिसलन हो गई थी लेकिन फिर भी प्रशासन ने अच्छा इंतजाम कर रखा है। रेलिंग लगा रखी हैं। कुछ दर्शक ऊपर थे और कुछ मूर्ख दर्शक बिल्कुल उस स्थान पर खडे थे जहां से पानी नीचे गिरता है। उन्हें रोमांच आ रहा होगा लेकिन ऐसा रोमांच जानलेवा होता है।
तीरथगढ प्रपात असल में एक के नीचे एक कई प्रपातों का समूह है। यहां यह जो भी नदी है, वो सीढीदार तरीके से नीचे गिरती है। हमें जो अभी प्रपात दिख रहा था, वो सबसे ऊपरी प्रपात था। इसके बाद पानी कुछ दूर तक एक तल में बहता है, फिर इतना ही ऊंचा दूसरा प्रपात है, फिर पानी थोडी दूर एक तल में बहता है, फिर तीसरा। ताज्जुब की बात ये है कि आप कहीं भी खडे हो जाओ, आपको हमेशा एक ही प्रपात दिखाई देगा। ऊपर खडे हो जाओ तो ऊपरी प्रपात दिखेगा। नीचे उतर जाओगे तो ऊपरी प्रपात दिखना बन्द हो जायेगा और दूसरा प्रपात दिखेगा। इसी तरह तीसरा। पता नहीं चौथा भी है या नहीं। पूरा नीचे तक जाने का रास्ता है लेकिन मानसून में पानी बढ जाने के कारण उन सीढियों पर पानी आ गया था, वे सुरक्षित नहीं थीं इसलिये हम दूसरे तल के बाद और नीचे नहीं उतरे। पहले तल से दूसरे तल तक उतरने की सीढियां भी बिल्कुल खडी थीं और फिसलन भरी थीं, सावधानी से उतरना पडा।
सुनील जी के अलावा मुझे कोई नहीं जानता था। सभी सोचते थे कि लडका पहली बार इधर आया है, इसलिये ज्यादा देखभाल भी मेरी ही हो रही थी। दुबे जी ने कहा- नीरज जी, हमारी सलाह है कि आप नीचे मत उतरो, बहुत फिसलन भरी सीढियां हैं और खडी भी बहुत हैं। आपको बडी मुश्किल होगी। मैंने तो कुछ नहीं कहा लेकिन सुनील जी ने कहा- इसे कुछ नहीं होगा। मुझे भी दुबे जी की यह बात सुनकर अच्छा लगा। उसके बाद मैं सीढियां उतरने और बाद में चढने में कुछ ऐसा दिखाने लगा ताकि उन्हें लगे कि मुझे वाकई बडी दिक्कत हो रही है। सुनील जी ने मुझसे अकेले में बाद में कहा- ये लोग तुम्हारे बारे में नहीं जानते, बुरा मत मानना। उन्हें क्या पता कि तुम हिमालयी जानवर हो। यह सुनकर और भी अच्छा लगा।
हमारे पास चार छतरियां थीं। ये हमारे बचाव के लिये नहीं, कैमरों के बचाव के लिये थीं। बूंदाबांदी अनवरत जारी थीं। यह स्थान फोटोग्राफी के लिये बहुत शानदार है। सभी के पास महंगे कैमरे थे, उनके भीगने का डर था, छतरियां बडी काम आईं।
एक मलाल रहेगा कि हम सबसे नीचे नहीं पहुंच सके। दुस्साहस करते तो जा सकते थे लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं था। बल्कि अगर कहूं कि दूसरे तल पर जहां हम खडे थे, मानसून के इस मौसम में वो जगह भी सलामत नहीं थी। संकरी जगह है वह। ऊपर से अगर अचानक पानी का रेला आ गया तो न संभलने का मौका मिलेगा और न ही इतनी जगह है। दोबारा बस्तर तो अवश्य आना है, कुटुमसर की गुफाएं देखनी हैं। और तीरथगढ को पूरा नीचे तक देखकर आना है। यही सोचता हुआ मैं सभी के साथ वापस लौट आया।
अगला भाग: जगदलपुर से दिल्ली वापस
7. अरकू घाटी
11. बारसूर
13. तीरथगढ जलप्रपात
कुदरत की चित्रकारी के साथ आपकी भी चित्रकारी। लाजवाब
ReplyDeleteधन्यवाद अहमद साहब...
Deleteअदभुद जल प्रपात की शानदार फोटोग्राफी। सुनील जी की कही बात को थोड़ा ठीक कर दू "हिमालयी जानवर" नही हिमालयी शेर है नीरज जाट।
ReplyDeleteधन्यवाद विनय जी...
Deleteबहुत ही बढ़िया लेख है और उस से भी बढ़िया चित्र ! पढ़कर मज़ा आ गया नीरज भाई !
ReplyDeleteधन्यवाद चौहान साहब...
Deleteफोटो और लेख बढ़िया है। आप का यह जुनून किसी नोबल पुरस्कार से कम नहीं है।
ReplyDeleteधन्यवाद विमलेश सर...
Deleteछतीसगढ़ में इतने रमणीय स्थल भी हैं..!
ReplyDeleteशानदार फोटो..!
पंवार साहब, छत्तीसगढ बेहद शानदार राज्य है। सरकार पर्यटन को खूब बढावा भी दे रही है।
Deletesunil ji ka sath ach6a lag rha h
ReplyDeleteधन्यवाद आपका...
DeleteBhot sunder Photo Aur Jankari, Good Neeraj
ReplyDeleteधन्यवाद शर्मा जी...
Deleteहर बार पहले से बेहतर धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत शानदार जगह है --पर जोखम भरी -- और इन प्राकृतिक झरनो का कुछ भरोसा नहीं --इसलिए समझदारी यही है की अगली बार देखने का प्रोग्राम बनाये जब बारिश न हो ,बारिशो में पहाड़ और झरने वैसे भी खतरनाक होते है
ReplyDeleteबेहतरीन अनुभव।
ReplyDeleteहमारे छत्तीसगढ़ में और भी रोमांचक स्थल हैं।
आपकी लेखनी से पढने का अनुभव भी अद्भूत है।