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चित्रकोट से बारसूर की सीधी दूरी 45 किलोमीटर है। वास्तव में इस रास्ते से हम शंकित थे। अगर आप दक्षिण छत्तीसगढ यानी बस्तर का नक्शा देखें तो चार स्थान एक चतुर्भुज का निर्माण करते हैं- जगदलपुर, चित्रकोट, बारसूर और गीदम। इनमें चित्रकोट से जगदलपुर, जगदलपुर से गीदम और गीदम से बारसूर तक शानदार सडक बनी है। इतनी जानकारी मुझे यात्रा पर चलने से पहले ही हो गई थी। जब सुनील जी से रायपुर में मिला तो उन्होंने चित्रकोट-बारसूर सीधी सडक पर सन्देह व्यक्त किया था। हम जगदलपुर पहुंच गये, फिर भी इस रास्ते की शंका बनी रही।
कुछ दिन पहले तरुण भाई बस्तर घूमने आये थे। उनसे बात की तो पता चला कि वे भी बारसूर से पहले गीदम गये, फिर जगदलपुर और फिर चित्रकोट। आखिरकार सन्देह सुनील जी के भतीजे ने दूर किया। उन्होंने बताया कि एक सडक है जो सीधे चित्रकोट को बारसूर से जोडती है जो तकरीबन पचास किलोमीटर की है। लेकिन साथ ही हिदायत भी दी कि उस रास्ते से न जाओ तो अच्छा। क्योंकि एक तो वह सडक बहुत खराब हालत में है और फिर वो घोर नक्सली इलाका है।
अगर आप छत्तीसगढ के बाहर कहीं रहते हैं; दिल्ली, मुम्बई में रहते हैं तो आपके लिये पूरा छत्तीसगढ ही घोर नक्सली इलाका है। यह बिल्कुल ठीक बात है। इस ‘घोर नक्सली’ इलाके में आप जाइये, रायपुर जाइये, दुर्ग जाइये; आपको पता चलेगा कि ये स्थान सुरक्षित हैं, धुर नक्सली इलाका तो कांकेर-बस्तर हैं। यह भी बिल्कुल ठीक बात है। अगर छत्तीसगढ घोर नक्सली इलाका है तो सोचिये कि कांकेर-बस्तर कैसे होंगे जहां के नाम से रायपुर-दुर्ग वाले भी कांपते हैं। चलिये, आगे बढते हैं। बस्तर पहुंचिये यानी जगदलपुर, तो आपको बताया जायेगा कि यह सुरक्षित इलाका है, नक्सल प्रभावित तो सुकमा-कोंटा है या फिर अबूझमाड। अभी कल परसों जो सीआरपीएफ के 15 जवानों पर जानलेवा नक्सली हमला हुआ, वो जगह सुकमा-कोंटा में आती है।
तो यह जो चित्रकोट-बारसूर सडक है, यह एक तरह से अबूझमाड में आती है। इसीलिये हमें इस सडक से जाने को मना किया गया। पूरे छत्तीसगढ में जो भी सडकें हैं, सभी शानदार बनी हैं। लेकिन अगर कोई सडक खराब है तो समझिये कि वह इसलिये नहीं बन पाई क्योंकि नक्सली उसे नहीं बनने दे रहे। यह चित्रकोट-बारसूर सडक भी ऐसी ही एक सडक है। हमें जगदलपुर होते हुए सवा सौ किलोमीटर का चक्कर लगाकर जाने को कहा गया लेकिन इस पचास किलोमीटर की सडक पर नहीं।
लेकिन सुनील जी भी पूरे जीवट से भरपूर इंसान हैं। कहने लगे कि हम इसी सडक से जायेंगे। जो होगा देखा जायेगा। अगर आप कभी सुनील जी से मिलें तो छोटा कद और मृदु मुस्कान देखकर अन्दाजा मत लगाना कि इसमें इतना जीवट भरा होगा। एक बार तो मैं भी डर गया लेकिन फिर सोचा कि जो भी अनुभव होगा, वो नया ही होगा। पिछली छत्तीसगढ यात्रा याद आ गई जब डब्बू मिश्रा ने ‘धमतरी जिले में आपका स्वागत है’ बोर्ड लगा देखकर कहा था- अब हम धुर नक्सली इलाके में प्रवेश कर रहे हैं। जबकि रायपुर-दुर्ग के साथ साथ धमतरी भी सुरक्षित इलाका माना जाता है। जंगल नहीं हैं। पूरे जिले में खेत ही खेत हैं।
करीब पन्द्रह किलोमीटर तक अच्छी सडक बनी है। सामने से आ रहे एक बाइक वाले को रोककर पूछा तो उसने बताया कि वो भी बारसूर से आ रहा है, सडक खराब है; और कोई परेशानी की बात नहीं है। इस गांव में साप्ताहिक हाट लगा हुआ था। दूर दूर से आदिवासी पैदल या साइकिलों पर आ रहे थे। हमें करीब दस किलोमीटर आगे तक आदिवासी आते-जाते मिले। उसके बाद जंगल शुरू हो गया। खराब सडक तो उस गांव के बाद ही शुरू हो गई थी।
ऊपर से लगातार गिरती बूंदें, घोर जंगल और खराब सडक; यह सब बडा ही डरावना था। मुझे वास्तव में कुछ-कुछ डर भी लग रहा था। जंगल का पूरा रास्ता पहाडी है और गोल-गोल सडकें हैं। कभी चढाई है, कभी उतराई। कई कई किलोमीटर तक कोई नहीं दिखता या फिर कभी-कभार कोई दिख जाता। जंगल में पगडण्डियां भी थीं जो आदिवासियों व नक्सलियों के ही काम आती होंगीं। कोई नहीं जानता कि किस पगडण्डी पर कहां बारूदी सुरंग है। फिर भी अबूझमाड की सीमा पर इस तरह घूमना रोमांचक तो था ही।
बारसूर पहुंचे। यहां एक तिराहा है जहां से एक सडक गीदम व दन्तेवाडा चली जाती है और दूसरी सडक अबूझमाड यानी छोटा डोंगर व नारायणपुर। तरुण भाई ने सातधारा का उल्लेख किया था जो यहां से कुछ ही दूर इन्द्रावती नदी पर हैं। हमने पहले वहां जाने का फैसला किया।
बारसूर से नारायणपुर की सडक पर बढ चले। कुछ ही दूर गये थे कि सीआरपीएफ का एक बैरियर मिला। उन्होंने पूछताछ की और सन्तुष्ट होकर आगे जाने दिया। आगे कोई मनुष्य नहीं दिखा सिवाय थोडी-थोडी दूरी पर खडी बख्तरबन्द गाडियों व उनमें हर समय किसी भी स्थिति से निपटने को तैयार कमांडों के। गाडियों में तैनात कमांडो आपको नहीं दिखाई देंगे लेकिन मशीनगनें थोडी सी बाहर निकली दिखती हैं। कई जोडी आंखें हर समय आप पर रहती हैं और आपकी जरा सी सन्दिग्ध हरकत पर मशीनगनों में भी हरकत हो सकती है। रुकने और फोटो खींचने का तो सवाल ही नहीं।
आखिरकार इन्द्रावती आ गई। यहां नदी पर एक पुल है जो अबूझमाड को बस्तर से जोडता है। पुल से थोडा ही पहले रास्ते में कंटीले तार लगे थे जिनमें एक किनारे पर सिर्फ बाइक के ही निकलने का रास्ता था। यहां से निकलकर आगे बढे तो सीआरपीएफ की एक चौकी मिली। यहां भी कई कमांडो और कई हथियार आपकी तरफ ही फायरिंग को तैयार रहते हैं। यहां भी रुके, संक्षिप्त पूछताछ हुई और शीघ्र आगे बढ जाने को कह दिया। आगे इन्द्रावती का वही पुल था।
पुल पार करके रुक गये। यहां कोई नहीं था। घोर जंगल था और वही सडक जो बारसूर से अब तक शानदार बनी थी, अचानक समाप्त हो गई व टूटी-फूटी हालत में आगे जंगल में गायब हो गई। यही टूटी-फूटी सडक आगे छोटा डोंगर व नारायणपुर चली जाती है। इस तरफ कोई मानव जाति नहीं दिख रही थी। यहीं से अबूझमाड शुरू हो जाता है। अबूझ का अर्थ है जिसे बूझा न जा सका हो, जिसके बारे में कुछ भी नहीं पता हो। यह नक्सलियों का ‘देश’ है। यहां कोई पुलिस, कोई फोर्स कभी प्रवेश नहीं करती। जो भी नक्सलियों व सुरक्षा बलों के बीच मुठभेडें होती हैं, सभी इस क्षेत्र से बाहर ही बाहर होती हैं। यहां भी जंगल में कहीं नक्सलियों की चौकी होगी, उनके पास भी हथियार होंगे और वे भी आपकी तरफ मुंह किये तैयार बैठे होंगे। कौन जानता है?
इन्द्रावती यहां सात धाराओं में बहती है, इसीलिये इस स्थान का नाम सातधारा है। लेकिन मानसून के कारण नदी चढी हुई थी, सात धाराओं में भेद करना मुश्किल था। कुछ देर हम उधर ही रुके रहे, फिर मैं पैदल वापस आने लगा। सुनील जी बाइक पर आये। पुल पर खडे होकर नदी का प्रवाह देखना रोमांचक था। और ये सोचना और भी रोमांचक था कि दोनों तरफ दो ‘देश’ हैं, हम दोनों की सीमा पर खडे हैं। दोनों ‘देशों’ के प्रहरियों में रोज खूनी लडाईयां होती हैं। हमें पता नहीं कितनी आंखें देख रही होंगीं और कितनी बन्दूकें हम पर तनी होंगी। वास्तव में बेहद रोमांचक था यह सब। और यह सच्चाई भी है।
अपनी बारसूर यात्रा में तरुण भाई इस स्थान का जिक्र कुछ यूं करते हैं-
“और अब बात करते हैं अभुजमाड़ की | जो महानुभाव हमें मंदिरों और कन्या महाविद्यालय ले गए थे, उन्ही की गाडी में बैठ कर ‘सात धारा ‘ देखने गए, जहाँ इंद्रावती नदी सात धाराओं में बँट जाती है , जो की बारसूर से पांच किलोमीटर की दूरी पर है | जैसे ही दो तीन किलोमीटर आगे गए, ऐसा लगा जैसे उधमपुर कैंट में पहुँच गए हों | चारों तरफ फौजी, जवान, बैरक, नुकीली बाड़, और बन्दूक धारी कमांडो | और जैसे ही नदी के पुल पे पहुंचे, एकदम चौड़ी सड़क एकदम से गायब | एक चेक पोस्ट पे हमें रोका गया, कुछ पूछताछ हुई, और फिर शुरू हुआ डरावनी कहानियों का दौर |
यहीं कहीं, नक्सलियों ने घुस कर सेना के जवानों पर हमला किया था | यहीं पर नक्सली गाँव के लोगों के भेस में आकर इधर से उधर हथियार ले जाते हैं | ऐसा लगता है जैसे जंगल सड़क को खा रहा हो | एकदम से सीधी सड़क, बड़ा सा पुल, नीचे इंद्रावती का नीला पानी, और एकदम से रास्ता गायब | ऐसा लगता है जैसे किसी ने जादू से सड़क गायब कर दी हो | हाथ के इशारे से ‘आबरा – का – डाबरा’ कह के जंगल खड़ा कर दिया हो, एकदम सपाट सड़क के सामने | और जंगल भी ऐसा की घुसना तो दूर की बात, देखने में भी डर लग जाए |”
वापस बारसूर लौट आये। बारसूर को मन्दिरों व तालाबों का शहर भी कहा जाता है। मन्दिर देखने के बाद एक बात समझ में आई कि अगर आपको शिल्प की जानकारी नहीं है तो आपको प्राचीन मन्दिर नहीं देखने चाहिये। बाद में जब हम अभनपुर ललित जी से मिले तो उन्होंने बडे गणेश के बारे में मामूली सी बात पूछ ली। हम दोनों बगलें झांकने लगे। तब समझ में आया कि शिल्प की कुछ न कुछ जानकारी जरूर होनी चाहिये। दिल्ली लौटकर जब तरुण भाई का बारसूर वृत्तान्त दोबारा पढा तो पता चला कि बत्तीसा मन्दिर में जो शिवलिंग है, वह पत्थर का बना होने के बावजूद भी हाथ से घुमाया जा सकता है। बडी शर्म आई स्वयं पर। हम उस शिवलिंग के फोटो खींचते रह गये। जो असली बात थी, वो देखी ही नहीं। फुट भर ही दूर थे हम उस शिवलिंग से, जरा सा हाथ मार देते तो क्या बिगड जाता? घूमने वाला शिवलिंग कहीं नहीं मिलता। वो भी हजारों साल पुराना पत्थर से बना। पता नहीं कब से इसी तरह घुमाया जा रहा है?
अगला भाग: किरन्दुल रेलवे- किरन्दुल से जगदलपुर
7. अरकू घाटी
11. बारसूर
13. तीरथगढ जलप्रपात
शानदार पोस्ट जानदार फ़ोटो के साथ
ReplyDeleteधन्यवाद अहमद साहब...
Deleteअतीव अद्भुत. . . . . आपका ब्लॉग दिनोदिन और अधिक इन्क्रिडीबल (इंडिया) बन रहा है!!! प्रणाम स्वीकार करें|
ReplyDeleteधन्यवाद निरंजन जी...
Deletebap re kis duniya k prani h aap log, hmari to padte wakt hi sans ruki hui thi
ReplyDeletesach me aap k aur sunil ji k sahas ko salam.
धन्यवाद आपका...
Deleteक्या पाया ओर क्या छुट गया यह बाद मे ही जान पडता है.घुमते शिवलिंग के दर्शण तो किये पर आप ने उन्हे छू कर नही देखा इसका मलाल रहेगा आपको जब तक आप वहां दोबारा नही जाओगे.
ReplyDeleteसुन्दर जगह,सुन्दर फोटो व सुन्दर वृतांत
बिल्कुल सचिन भाई, इस बात का मलाल है कि उस घूमते हुए शिवलिंग को हाथ नहीं लगाया। चलो, इस बहाने अगली बार तो जाना होगा।
DeleteNeeraj bhai....
ReplyDeleteIs post ko phadkar sardi me garmi ka ehsas ho raha hai....
Saandar ghummakar ki
Rahasmayi ghummakari..
Ranjit......
धन्यवाद रणजीत जी...
DeleteCRPF k 15 jawan mare gaye. .sunkar bahut dukh hua tha.... yah Incident jaha pe hua tha kya bo pics hai isme.. aur yah jagah bhi bahut darawani si hai... waha log kese rhte hai..!!
ReplyDeleteनहीं, वो घटना सुकमा के पास की है जो यहां बारसूर से कम से कम 100 किलोमीटर दूर है।
DeleteMay me barsur gaya tha yaade taxa ho gai
ReplyDeleteधन्यवाद रोहित जी...
Deleteबरसात का मौसम ,खराब सड़क ,नक्सली इलाका, पर वहां पर भी उसी ठाट से गुमक्कड़ी , वाहा नीरज भाई वाहा। फोटोग्राफी शानदार है। आपके "मैंने अपना दायित्व निभाया, आप अपना दायित्व निभाईये। टिप्पणियां कीजिये- वाहवाही, आलोचना, प्रशंसा, सुझाव, शिकायत या कुछ भी...।" शब्द आखिर टिप्पणी करने पर मजबूर कर ही देते है।
ReplyDeleteधन्यवाद विनय जी...
DeleteNeeraj purane din yaad dila diye, main bhi pichle saal december me hi gaya tha :)
ReplyDeleteaur tum kab se comments ka reply karne lag pade ;)
तरुण भाई, अब तो मैं रिप्लाई करता ही हूं।
Deleteek button twitter share ka bhi lagao neeraj
ReplyDeleteट्विटर पर मैं बिल्कुल भी एक्टिव नहीं हूं। फिर भी देखता हूं लगाऊंगा।
Deleteमैनें भी निभा दिया अपना दायित्व.......... :-)
ReplyDeleteशानदार यात्रा वर्णन
धन्यवाद आपका, अमित भाई...
Deleteजितनी रोमांचक यात्रा, उतना ही रोमांचक वर्णन..!
ReplyDeleteधन्यवाद पंवार साहब...
Deleteनक्सलवाद हो या आतंकवाद ये सब हमारे देश के अंदरुनी दुश्मन है --- चित्रकूट जाने का इरादा केंसिल हो रहा है -- :(
ReplyDeleteआतंकी हमले तो आपकी मुम्बई में भी होते हैं, तो क्या लोग वहां जाना छोड दें? आप चित्रकोट जरूर जाइये।
Deleteशिल्प के जानकार ललित शर्मा का भी एक फोटु लगा देते ---उनके बिना छत्तीसगड़ की यात्रा अधूरी है ---
ReplyDeleteललित शर्मा जी का नाम ही काफी है।
Deleteबहुत सुंदर और रोचक बधाई हो आपको
ReplyDeleteधन्यवाद विशाल जी...
DeleteAapka ye yatra vritant padh kar aapke mann mein hone vale romanch ko bakhoobi mahsoos kiya ja sakta hai. Photos behad sundar hain. Photos dekh kar barish ke mausam ki yaad aa gayi. Bahut achha post.
ReplyDeleteRAJESH GOYAL
GHAZIABAD