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16 जुलाई 2014 की सुबह आठ बजे ट्रेन विशाखापट्टनम पहुंची। यहां भी बारिश हो रही थी और मौसम काफी अच्छा हो गया था। सबसे पहले स्टेशन के पास एक कमरा लिया और फिर विशाखापट्टनम घूमने के लिये एक ऑटो कर लिया जो हमें शाम तक सिम्हाचलम व बाकी स्थान दिखायेगा। ऑटो वाले ने अपने साले को भी अपने साथ ले लिया। वह सबसे पीछे, पीछे की तरफ मुंह करके बैठा। पहले तो हमने सोचा कि यह कोई सवारी है, जो आगे कहीं उतर जायेगी लेकिन जब वह नहीं उतरा तो हमने पूछ लिया। वे दोनों हिन्दी उतनी अच्छी नहीं जानते थे और हम तेलगू नहीं जानते थे, फिर भी उन दोनों से मजाक करते रहे, खासकर उनके जीजा-साले के रिश्ते पर।
बताया जाता है कि यहां विष्णु के नृसिंह अवतार का निवास है। यह वही नृसिंह है जिसने अपने भक्त प्रह्लाद की उसके जालिम पिता से रक्षा की थी।
मुझे समझ नहीं आ रहा कि इसके बारे में और क्या लिखूं। मन्दिर एक पहाडी के ऊपर स्थित है। नीचे बस अड्डा है जहां ऑटो वाले ने हमें उतार दिया। ऊपर या तो पैदल जाओ या फिर आन्ध्र प्रदेश परिवहन की बसें दस दस रुपये में ऊपर पहुंचा देती हैं। बस से उतरे और अन्य श्रद्धालुओं के पीछे पीछे चलते चलते हम भी मन्दिर में प्रवेश कर गये। यहां जूते उतारने होते हैं और कैमरा आदि भी मन्दिर में ले जाने की मनाही है। इन दोनों चीजों के सुरक्षित रखाव का यहां शानदार निःशुल्क प्रबन्ध है। शायद निःशुल्क नहीं है, एक-दो रुपये शुल्क लेते हैं।
पास ही कहीं पुष्कर सरोवर है। हम नहीं गये। मानसून के कारण चारों तरफ हरियाली चरम पर थी। एक बार तो सोचा कि पैदल ही उतर लेते हैं, फिर मुकर गये। आखिर ऑटो वाला आज पूरे दिन हमारे ही साथ रहेगा और हम उसे अन्धेरा होने से पहले छोडने वाले नहीं हैं।
सिम्हाचलम में रेलवे स्टेशन भी है। असल में दो सिम्हाचलम स्टेशन हैं- एक तो सिम्हाचलम है ही और दूसरा है उत्तर सिम्हाचलम। उत्तर सिम्हाचलम एक हाल्ट है जहां लोकल ट्रेनें रुकती हैं। बडा स्टेशन सिम्हाचलम है।
अगले मुकाम के लिये चल पडे।
सुनील जी ने पूरा विशाखापटनम देख रखा है। वे कहते हैं कि हम छत्तीसगढ वालों के पास हिमालय तो है नहीं। धर्म-कर्म करना हो तो पुरी नजदीक है और विशाखापटनम भी अच्छा है। उन्हीं के कहे अनुसार ऑटो वाला चले जा रहा था। चिडियाघर के सामने से होते हुए ऋषिकोण्डा बीच पहुंचे। वहां से लौटते हुए चिडियाघर देखेंगे।
यह बीच विशाखापटनम शहर से दूर है, इसलिये यहां बिल्कुल चहल-पहल नहीं थी। हवा बडी तेज चल रही थी जिसकी वजह से लहरें भी बहुत ऊंची ऊंची उठ रही थीं। विशाखापटनम पोर्ट जाने वाले कंटेनरों से लदे जहाज यहां से नन्हें-नन्हें दिख रहे थे। कुछ देर बाद इसी बीच पर मछुआरों की एक नाव आई। इसमें उन्होंने मछलियां पकड रखी थीं। मछुआरे तो जाल उतारने लगे और कौवे मछलियों की ताक में मंडराते रहे। उन्हें सफलता मिल भी रही थी।
ऊंची लहरों को देखना अच्छा लग रहा था। यह बंगाल की खाडी है। ज्यादातर आपदाएं इसी में आती हैं। सुनामी आई थी, इसी में आई थी; तूफान आते हैं, हुदहुद आता है, इसी में आता है। अरब सागर में ऐसा कुछ सुनने को नहीं आया आज तक।
अगला भाग: विशाखापट्टनम- चिडियाघर और कैलाशगिरी
2. विशाखापट्टनम- सिम्हाचलम और ऋषिकोण्डा बीच
7. अरकू घाटी
11. बारसूर
13. तीरथगढ जलप्रपात
घासूं /जबरदस्त फोटोग्राफी
ReplyDeleteजी सा अागै फोटो देख के।
धन्यवाद भाई।
Deleteनीरज भाई की अजब यात्रा और गज़ब की फोटोग्राफी। आप गैर हिन्दी भाषी लोगो के साथ कैसे सामजस्य बैठा लेते है ? जबकि उनकी शायद ही कोई बात आपकी समझ मे आती होगी।
ReplyDeleteयात्रा की अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
सब हो जाता है विनय भाई।
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद।
बढिया फोटो...
ReplyDeleteसही कहां अरब सागर मे ही ज्यादा तुफान आते है
अरब सागर में नहीं सचिन भाई, मैंने बंगाल की खाडी कहा है।
Deleteमाफ करना भाई गलती से लिखा गया,वो इसलिए की अभी हाल में ही अरब सागर मे निलोफर नामक तुफान जो आया था.
Deleteoh wow you are so cute in that photo.other pics is also so nice and clear
ReplyDeleteधन्यवाद जी।
Deletekinaur kia yatra kab hogi....? RAM RAM bhai
ReplyDeleteशायद अगले साल।
DeleteNeeraj bhai.....
ReplyDeletePichle post me photo nahi tha..is post me aap ne uski bharpai kar di.....
Badhia bivran sundar photo......
Ranjit......
धन्यवाद रणजीत जी।
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ReplyDeleteसुन्दर दृश्य और चित्र।
धन्यवाद जी।
Deletepost achha hai aur photos to bahut hi achha hai.
ReplyDeleteधन्यवाद विमलेश सर।
DeleteVarnan tatha chitr dono hi laajawaab the. Bahut Sundar post..
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी।
Deleteसुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteएक फिल्म आई थी नरसिम्हा इससे मिलता जुलता नाम ---विशाखापत्तनम समुद्रीय शहर जैसा ही है पर हमारे मुंबई से सुन्दर है
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