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एक बार की बात है। एक असुर था- भस्मासुर। उसने शिवजी से वरदान ले लिया था कि वो जिसके सिर पर भी हाथ रखेगा, भस्म हो जायेगा। इसका पहला प्रयोग उसने शिवजी पर ही करना चाहा। शिवजी की जब जान पर बन आयी तो शिवजी जान बचाकर दौडे। लेकिन भस्मासुर भी कोई लंगडा नही था, शिवजी का पीछा किया। वे एक गुफा में जा घुसे। फिर अपने त्रिशूल से गुफा के अन्दर ही संकरा सा रास्ता बनाते बनाते और अन्दर घुसते रहे। हां, उन्होने इस गुफा का रास्ता भी बन्द कर दिया था। भस्मासुर बाहर ही बैठ गया। कभी ना कभी तो बाहर निकलेंगे ही। शिवजी नहीं निकले। फिर आये विष्णुजी, माता पार्वती का वेश बनाकर। भस्मासुर मोहित हो गया। बोला कि हे पार्वती, मुझसे विवाह करो। पार्वती ने शर्त रख दी कि अगर तुम भोले शंकर की तरह ताण्डव नृत्य करो, तो विवाह हो सकता है। भस्मासुर बोला कि ताण्डव तो मुझे आता ही नही है। पार्वती ने कहा कि, मुझे आता है, मेरे साथ करो। भस्मासुर खुश। पार्वती की नकल करने लगा। जैसे ही पर्वती ने अपना हाथ अपने सिर पर रखा, भस्मासुर ने भी ऐसा ही किया और भस्मासुर ध्वस्त।
कथा में इसके बाद हुआ ये कि सभी ने शिवजी से विनती की और सभी तैतीस करोड देवता उसी गुफा में विराजमान हो गये। आज इस गुफा का नाम है – शिवखोडी। इसे अंग्रेजी में शिवखोरी व स्थानीय लोग शिवखोली कहते हैं। यह जम्मू से करीब 100 किलोमीटर दूर राजौरी जिले में है (या फिर रेयासी जिला भी हो सकता है) और कटरा से 85 किलोमीटर दूर है। कटरा से टैक्सियां व प्राइवेट बसें भी चलती हैं। सुबह को कटरा से चलकर शाम तक वापस भी आ सकते हैं।
मैं, रोहित और रामबाबू। वैष्णों देवी के दर्शन करके शाम तक कटरा आये। रोहित ने आने से पहले ही कह दिया था कि उसे छुट्टी नहीं मिली है, इसलिये वो 28 दिसम्बर को ही वापस जायेगा। लेकिन रामबाबू ने ऐसी कोई बात नही बताई। उसने तो मुझसे ये भी कह दिया था कि जब तेरा मन करे, वापसी का तभी का रिजर्वेशन करा ले। लेकिन अब सब कुछ मुकर गया। बोला कि मैं तो रोहित के साथ ही जाऊंगा, रोहित रुकेगा तो रुकूंगा, नहीं तो जा रहा हूं। वैसे हम दोनों का वापसी का परसों का आरक्षण था, इसलियी मेरा तो अभी दिल्ली जाने का कोई मतलब ही नही। अगर रामबाबू रुक जाता तो मैं उस कुत्ते कमीने को पटनी टॉप भी घुमा लाता। लेकिन लाख गालियां सुनने की बावजूद भी वो नहीं रुका और मैं अकेला रह गया।
अगले दिन शिवखोडी की बस पकडी और चल पडे। रेयासी से पहले चेनाब नदी पार करके बढते रहे। यह सडक अभी तक ग्रामीण सडक ही थी, लेकिन अब शिवखोडी की वजह से धीरे धीरे भीड बढ रही है तो इसका भी बढियाकरण चल रहा है। आने वाले चार-पांच सालों में यह स्थान भी वैष्णों देवी की तरह ही श्रद्धालुओं ही हिट लिस्ट में शामिल हो जायेगा और फिर देखना वहां भीड के नजारे। रनसू गांव से गुफा चार किलोमीटर दूर् पैदल है। सारा मार्ग बिल्कुल ऐसा ही है जैसा कि वैष्णों देवी का। पोनी व पालकी वाले रनसू में मिल जाते हैं। सारा रास्ता दूधगंगा के साथ साथ बढता है।
गुफा का आकार डमरू जैसा है। शुरू में काफी बडी गुफा है, फिर बेहद संकरा रास्ता है। करीब सौ मीटर के बाद फिर असली गुफा आती है, जिसमे तेतीस करोड देवी-देवता विराजमान हैं। गुफा के सौ मीटर वाले भाग में कोई भी सीधा खडा होकर नहीं चल सकता। यह इतनी संकरी है कि दीवारें पेट व कमर दोनों को छूती हैं। गुफा में कैमरा व मोबाइल ले जाना मना है। इसलिये मेरे पास अन्दर का एक भी फोटू नहीं है।
गुफा अन्दर से काफी बडी है, इसमें सौ डेढ सौ आदमी आराम से आ सकते हैं। अन्दर शिवजी की एक प्रतिमा है। ऐसा लगता है कि भोले बाबा ने अपने पीछे जटाओं के नीचे माता पार्वती को छुपा रखा है। बगल में ही गणेश व कार्तिकेय हैं। सभी आकृतियां प्राकृतिक हैं। दीवार के एक हिस्से में राम दरबार है, जिसमें सीता, राम, लक्ष्मण व हनुमान हैं। थोडा हटकर शिवलिंग भी है। कुछ दूर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश हैं। अब एक चमत्कार देखिये। शिवजी की प्रतिमा, शिवलिंग व त्रिदेव वाली मूर्ति में केवल शिवजी के ऊपर गुफा की छत से पानी टपकता रहता है। यह गंगा है, दूधगंगा। गुफा की छत कम से कम दस मीटर ऊंची है। कहते हैं कि शिवरात्रि वाले दिन यहां दूध टपकता है। ऊपर छत के पास शेषनाग की स्पष्ट आकृति है ग्यारह फनों वाली। ऐसा भी लगता है कि किसी ने गुफा की दीवारों के ऊपर छत को रख दिया हो, दीवारों व छत के बीच में एक काफी चौडी दरार सी है। यह दरार पूरी गुफा में गोलाई लिये है। इसे विष्णु का चक्र माना गया है जो सभी की विपत्तियों से रक्षा करता है।
जिस रास्ते से लोग इस गुफा में प्रवेश करते हैं, संकरा होने की वजह से इसी से वापस नहीं जाते। वैष्णों देवी की तर्ज पर ही एक कृत्रिम गुफा भी बना रखी है, इसका उपयोग केवल बाहर निकलने के लिये ही होता है। इसी मुख्य गुफा में से ही दो गुफायें और भी जाती दिखती हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि इनमे से एक अमरनाथ जाती है। वैसे इन दोनों को दूर से ही दिखा दिया जाता है, कोई उनकी तरफ जाता नहीं है।
इस बार जब भी वैष्णों देवी जाओगे तो समय निकालकर शिवखोडी भी चले जाना। अगर आपमें भक्ति भावना ना भी हो या आप नास्तिक हों, तो भी कुदरत का एक चमत्कार देखने में क्या बुराई है? पहाडों में लगातार पानी रहने से इस तरह की आकृतियां बन जाती हैं। अगर किसी गुफा में पानी बह रहा है तो पानी व पत्थर के मेल से उसमें देवी देवताओं की आकृतियां उभरना तय है। जब गुफा में ऊपर से पानी टप टप टपकेगा, तो नीचे पानी तो बह जायेगा, बस रह जायेगा चूना, जिसे हम शिवलिंग कह देते हैं।
किन्हीं अज्ञात तकनीकी कारणों से फोटो दिख नहीं रहे हैं.
कथा में इसके बाद हुआ ये कि सभी ने शिवजी से विनती की और सभी तैतीस करोड देवता उसी गुफा में विराजमान हो गये। आज इस गुफा का नाम है – शिवखोडी। इसे अंग्रेजी में शिवखोरी व स्थानीय लोग शिवखोली कहते हैं। यह जम्मू से करीब 100 किलोमीटर दूर राजौरी जिले में है (या फिर रेयासी जिला भी हो सकता है) और कटरा से 85 किलोमीटर दूर है। कटरा से टैक्सियां व प्राइवेट बसें भी चलती हैं। सुबह को कटरा से चलकर शाम तक वापस भी आ सकते हैं।
मैं, रोहित और रामबाबू। वैष्णों देवी के दर्शन करके शाम तक कटरा आये। रोहित ने आने से पहले ही कह दिया था कि उसे छुट्टी नहीं मिली है, इसलिये वो 28 दिसम्बर को ही वापस जायेगा। लेकिन रामबाबू ने ऐसी कोई बात नही बताई। उसने तो मुझसे ये भी कह दिया था कि जब तेरा मन करे, वापसी का तभी का रिजर्वेशन करा ले। लेकिन अब सब कुछ मुकर गया। बोला कि मैं तो रोहित के साथ ही जाऊंगा, रोहित रुकेगा तो रुकूंगा, नहीं तो जा रहा हूं। वैसे हम दोनों का वापसी का परसों का आरक्षण था, इसलियी मेरा तो अभी दिल्ली जाने का कोई मतलब ही नही। अगर रामबाबू रुक जाता तो मैं उस कुत्ते कमीने को पटनी टॉप भी घुमा लाता। लेकिन लाख गालियां सुनने की बावजूद भी वो नहीं रुका और मैं अकेला रह गया।
अगले दिन शिवखोडी की बस पकडी और चल पडे। रेयासी से पहले चेनाब नदी पार करके बढते रहे। यह सडक अभी तक ग्रामीण सडक ही थी, लेकिन अब शिवखोडी की वजह से धीरे धीरे भीड बढ रही है तो इसका भी बढियाकरण चल रहा है। आने वाले चार-पांच सालों में यह स्थान भी वैष्णों देवी की तरह ही श्रद्धालुओं ही हिट लिस्ट में शामिल हो जायेगा और फिर देखना वहां भीड के नजारे। रनसू गांव से गुफा चार किलोमीटर दूर् पैदल है। सारा मार्ग बिल्कुल ऐसा ही है जैसा कि वैष्णों देवी का। पोनी व पालकी वाले रनसू में मिल जाते हैं। सारा रास्ता दूधगंगा के साथ साथ बढता है।
गुफा का आकार डमरू जैसा है। शुरू में काफी बडी गुफा है, फिर बेहद संकरा रास्ता है। करीब सौ मीटर के बाद फिर असली गुफा आती है, जिसमे तेतीस करोड देवी-देवता विराजमान हैं। गुफा के सौ मीटर वाले भाग में कोई भी सीधा खडा होकर नहीं चल सकता। यह इतनी संकरी है कि दीवारें पेट व कमर दोनों को छूती हैं। गुफा में कैमरा व मोबाइल ले जाना मना है। इसलिये मेरे पास अन्दर का एक भी फोटू नहीं है।
गुफा अन्दर से काफी बडी है, इसमें सौ डेढ सौ आदमी आराम से आ सकते हैं। अन्दर शिवजी की एक प्रतिमा है। ऐसा लगता है कि भोले बाबा ने अपने पीछे जटाओं के नीचे माता पार्वती को छुपा रखा है। बगल में ही गणेश व कार्तिकेय हैं। सभी आकृतियां प्राकृतिक हैं। दीवार के एक हिस्से में राम दरबार है, जिसमें सीता, राम, लक्ष्मण व हनुमान हैं। थोडा हटकर शिवलिंग भी है। कुछ दूर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश हैं। अब एक चमत्कार देखिये। शिवजी की प्रतिमा, शिवलिंग व त्रिदेव वाली मूर्ति में केवल शिवजी के ऊपर गुफा की छत से पानी टपकता रहता है। यह गंगा है, दूधगंगा। गुफा की छत कम से कम दस मीटर ऊंची है। कहते हैं कि शिवरात्रि वाले दिन यहां दूध टपकता है। ऊपर छत के पास शेषनाग की स्पष्ट आकृति है ग्यारह फनों वाली। ऐसा भी लगता है कि किसी ने गुफा की दीवारों के ऊपर छत को रख दिया हो, दीवारों व छत के बीच में एक काफी चौडी दरार सी है। यह दरार पूरी गुफा में गोलाई लिये है। इसे विष्णु का चक्र माना गया है जो सभी की विपत्तियों से रक्षा करता है।
जिस रास्ते से लोग इस गुफा में प्रवेश करते हैं, संकरा होने की वजह से इसी से वापस नहीं जाते। वैष्णों देवी की तर्ज पर ही एक कृत्रिम गुफा भी बना रखी है, इसका उपयोग केवल बाहर निकलने के लिये ही होता है। इसी मुख्य गुफा में से ही दो गुफायें और भी जाती दिखती हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि इनमे से एक अमरनाथ जाती है। वैसे इन दोनों को दूर से ही दिखा दिया जाता है, कोई उनकी तरफ जाता नहीं है।
इस बार जब भी वैष्णों देवी जाओगे तो समय निकालकर शिवखोडी भी चले जाना। अगर आपमें भक्ति भावना ना भी हो या आप नास्तिक हों, तो भी कुदरत का एक चमत्कार देखने में क्या बुराई है? पहाडों में लगातार पानी रहने से इस तरह की आकृतियां बन जाती हैं। अगर किसी गुफा में पानी बह रहा है तो पानी व पत्थर के मेल से उसमें देवी देवताओं की आकृतियां उभरना तय है। जब गुफा में ऊपर से पानी टप टप टपकेगा, तो नीचे पानी तो बह जायेगा, बस रह जायेगा चूना, जिसे हम शिवलिंग कह देते हैं।
किन्हीं अज्ञात तकनीकी कारणों से फोटो दिख नहीं रहे हैं.
(रास्ते में पडने वाली चेनाब नदी)
(पौनी गांव में बस आधा घण्टा रुकी थी)
(यह है गुफा का प्रवेश द्वार। शुरू में यह काफी बडी है, फिर बेहद संकरी हो जाती है और फिर आती है असली गुफा कम से कम दो सौ मीटर के बाद)
अगला भाग: जम्मू-ऊधमपुर रेल लाइन
वैष्णों देवी यात्रा श्रंखला
1. चलूं, बुलावा आया है
2. वैष्णों देवी यात्रा
3. जम्मू से कटरा
4. माता वैष्णों देवी दर्शन
5. शिव का स्थान है- शिवखोडी
6. जम्मू- ऊधमपुर रेल लाइन
रोचक कथा, शानदार विवरण और उम्दा तस्वीरें..
ReplyDeleteजब तुम्हें ऐसा लगा कि यह इतनी संकरी है कि दीवारें पेट व कमर दोनों को छूती हैं
-तो हम तो फंस ही जायेंगे. :)
वाह बहुत बढ़िया... क्या चित्र हैं।
ReplyDeleteमज़ा नहीं आया, तुमसे बात नहीं कर पाया ...मगर तुम्हारा एक फैन मैं भी हूँ ....
ReplyDeleteabhi tasveere dekhi hai ab ktha padhte hai tasveere bhut hi achhi hai
ReplyDeletejai bhole .jai baba mungipa
ktha bhi achhi or jagh bhi achi shandar jankari ke liye achi achi shubhkamnaye
ReplyDeleteवाह भाई भटकती आत्मा. आनंद आगया, पुरानी यात्रा की याद दिलादी आज तो.
ReplyDeleteरामराम.
ये नयी जगह बताई आपने...जय हो...लोग माता के दरबार का दर्शन कर वापस हो लेते हैं और कुछ पत्नी टाप पर जाते हैं लेकिन शिव खेडी जाने वाले बहुत कम मिले...आप सबसे अलग हो जी...वाह...फोटो भी जोरदार खींचे हैं आपने...
ReplyDeleteनीरज
आपने पूछा था कौन सी पोस्ट पढते हो और टिप्पणी किसलिये करते हो तो भाई बता देता हूं मैं ऐसी वाली और मुसाफिर की सभी पोस्ट पढता हूं और यही बताने के लिये टिप्पणी करता हूं
ReplyDeleteफोटुओं के लिये धन्यवाद
राम-राम
ओह राह के मुसाफ़िर हमको भी साथ ले ले रे .....हमको भी साथ ले ले ...घुमक्कडी जिंदाबाद
ReplyDeleteअजय कुमार झा
पोस्ट और चित्रों के माध्यम से
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी दी है आपने!
नीरज भाई जब भी भारत मै घुमने का मन किया तो मै तो तुम्हे ही पकडुंगा, चाहे समय हो या ना हो, भाई जब इतनी सुंदर सुंदर पोस्ट लिखोगे तो मन क्यो ना ललचाय, इस सुंदर विवरण, ओर सुंदर चित्रो के लिये आप का बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteभाई नीरज, छा गये तुम तो। बहुत बढिया यात्रा करवाई तुमने। वैसे मैं पंचमढी(म.प्र.) में भी इसी भस्मासुर वाली कहानी से संबंधित गुफ़ायें देख चुका हूं, हालांकि वो गुफ़ा शिवखोडी वाली गुफ़ा के मुकाबले काफ़ी छोटी है। कभी उधर का भी टूर बनाना, मेरा मानना है कि तुम्हारा जाना वसूल हो जायेगा और हमारा बताना।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने। मै भी पिछले साल शिव खोडी गया था। शानदार जगह है। मै तो लिखने की सोच ही रहा था कि आपने लिख ही दिया।
ReplyDeleteबहुत बढिया फोटो हैं मुसाफिर जी!!!
ReplyDeleteBahut sundar chitr!
ReplyDeletebahut hi rochak blog hai ...
ReplyDeleteaap ke sansmaran /yatra vritaant fursat mein padhungee..tabhi post par kuchh tippani likh sakungee..abhi pictures bhi bahut hi slowly load ho rahi hain.
रोचक कथा, शानदार विवरण और उम्दा तस्वीरें..
ReplyDeletemaza aa gaya
mast ha yar tu
ReplyDeletemast hi yar tu muja be la chalana ok bhai . Take Care
ReplyDeletekya khoob ho neeraj bhai, kya kya najara dekhate ho, achha lagta h , apna dyan bhi rekha kero. main bhi bahut ghumakad tha/hoo, app ko dekh ker bahut sari yade taja ho jati h, seen yad aa jate h. Aap bahut achha vartant kerete ho. Ram Ram (thank you)
ReplyDeleteNeeraj bhai kabhi hume bhi apane saath tour par le jaoo...
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