इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
बोरा गुफाएं देखकर जब हम अरकू पहुंचे तो शाम हो चुकी थी, धीरे धीरे अन्धेरा होने लगा था। हम थक भी गये थे लेकिन सुनील जी ने कहा कि कल अगर अरकू घूमेंगे तो दोबारा ऑटो करना पडेगा, इससे तो अच्छा है कि आज उतने ही पैसों में इसी ऑटो वाले को साथ रखें। बात तो ठीक थी। फिर कल दोपहर ग्यारह बजे ट्रेन थी, हम सोकर ही नौ बजे उठेंगे, इसलिये इस घाटी में ज्यादा दूर नहीं जा सकेंगे। जब तक देखने लायक उजाला है, फोटो खींचने लायक उजाला है, अरकू ही देख लिया जाये।
सबसे पहले पहुंचे जनजातीय संग्रहालय में। यहां आदिवासियों के जो पुतले बने थे, उनके क्रियाकलाप थे, सब बिल्कुल जीवन्त थे। लेकिन यहां फोटो खींचने की मनाही थी। इन पुतलों ने वास्तव में मन मोह लिया। बाहर से फोटो खींचकर यहां से बाहर निकल गये।
इसके बाद पहुंचे पदमपुरम गार्डन में। यह स्थान अरकू कस्बे से करीब एक-डेढ किलोमीटर दूर है। प्रवेश के लिये मामूली शुल्क लगता है। यहां भी हमारे अलावा कोई नहीं था। नम जलवायु के कारण गार्डन के पथ पर काई जमी हुई थी। हरी काई, सूर्यास्त और पथ के दोनों ओर लगे रंग-बिरंगे फूलों के पौधे; वास्तव में शानदार फोटो आ रहे थे।
पदमपुरम गार्डन का मुख्य आकर्षण है इसके ट्री हाउस। यहां पेडों पर कई घर बने हैं जिनमें कुछ समय पहले तक पर्यटक ठहर सकते थे। किराया भी ठीक ही था। लेकिन बारिश तूफान आदि के कारण आज ये ट्री हाउस जर्जर अवस्था में हैं। ठहरना तो छोडिये, इनमें घुसना भी प्रतिबन्धित है। तेलुगू में लिखी तख्तियां हर घर के नीचे लगी हैं कि इसमें चढना मना है।
कुछ देर सुकून से गुजारने के लिये यह गार्डन ठीक है। हमें जल्दी मची पडी थी। हमसे भी ज्यादा जल्दी रामजी को थी अन्धेरा करने की, तो बाहर निकल आये। ऑटो वाले ने मुख्य बाजार में छोड दिया। हमें खाना खाना था और कुछ दूर पैदल चलकर स्टेशन के सामने अपने होटल पहुंचना था।
मैंने पनीर डोसा खाया और सुनील जी ने आलू का परांठा सब्जी के साथ। मुझे उनका यह तरीका अच्छा लगा। इसके बाद मैं कई बार सब्जी से आलू के परांठे खा चुका हूं। उन्हें भी मेरा एक तरीका अच्छा लगा। खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक पीना। मैं जब भी बाहर यात्राओं पर जाता हूं, तो खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक लेना पसन्द करता हूं। उन्हें भी ऐसा करना पसन्द आया। बाद में अपने घर आकर भी उन्होंने इस तरीके की तारीफ की। स्वाद का स्वाद और बाहर का खाना पचने की गारण्टी भी।
खाकर बाहर निकले तो बारिश हो रही थी। होटल अभी भी करीब दो किलोमीटर दूर था। शेयर्ड ऑटो चलते हैं जिन्होंने दस-दस रुपये में स्टेशन के सामने छोड दिया। अब जो बारिश पडनी शुरू हुई, वो इतनी लम्बी चली कि पांच दिन बाद जब तक मैंने छत्तीसगढ भी नहीं छोड दिया, तब तक एक मिनट के लिये भी थमी नहीं। बारिश थोडी बहुत ही ठीक है। लगातार तो बडी बुरी होती है। बारिश हो लेकिन कम से कम सांस लेने का मौका तो मिलना ही चाहिये।
अगला भाग: किरन्दुल ट्रेन-2 (अरकू से जगदलपुर)
7. अरकू घाटी
11. बारसूर
13. तीरथगढ जलप्रपात
Bahut khub neeraj bhai , good luck he jo aap itna ghum shakte ho . Namaskar .
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी...
Deleteछोटी पोस्ट लेकिन शानदार फोटो , काश हम भी पुतलों के फोटो देख पाते।
ReplyDeleteधन्यवाद विनय कुमार जी...
Deleteशानदार फोटो , जानदार फोटो और मजेदार जानकारी। यह आप के समर्पण और परिषरम का प्रतीक है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteachcha hai ----coldring se pet saaf bhi ho jata hai --isliye to baba Ramdev isko toilet cinging kahte hai
ReplyDeleteमैं इसका परहेज नहीं करता हूं। टॉयलेट तो पानी से भी साफ होता है, तो क्या पानी भी पीना छोड दें?
Deleteये ट्री हाउस तो वाकई शानदार है इनकी तो मरम्मत होनी चाहिए l बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteहां हरेन्द्र भाई, इनकी मरम्मत होनी चाहिये।
Deleteवाह क्या मस्त फोटो खींचे हैं आपने
ReplyDeleteधन्यवाद वर्मा जी...
DeletePhoto Sunder Hai
ReplyDeleteधन्यवाद सोलंकी साहब...
Delete