इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
जगदलपुर से रायपुर की बसों की कोई कमी नहीं है। हालांकि छत्तीसगढ में राज्य परिवहन निगम जैसी कोई चीज नहीं है। सभी बसें प्राइवेट ऑपरेटरों की ही चलती हैं। उत्तर भारत में भी चलती हैं प्राइवेट ऑपरेटरों की लम्बी दूरी की बसें लेकिन उनका अनुभव बहुत कडवा होता है। पहली बात उनका चलने का कोई समय नहीं होता, जब बस भरेगी उसके एक घण्टे बाद चलेगी। दूसरा... क्या दूसरा? सभी निगेटिव पॉइण्ट हैं। मैंने कई बार भुगत रखा है उन्हें।
लेकिन यहां ऐसा नहीं है। सभी बसों की समय सारणी निर्धारित है और बसें उसी के अनुसार ही चलती हैं। लम्बी दूरी की बसें स्लीपर हैं जिनमें नीचे एक कतार बैठने की हैं और बाकी ऊपर सोने व लेटने के लिये। किराये में कोई अन्तर नहीं है, जितना सीट का किराया है, उतना ही बर्थ का। बस में चढो, अपनी पसन्दीदा या खाली जगह पर बैठो या लेटो। जब बस चलेगी तो कंडक्टर आयेगा और आपसे किराया ले लेगा। जगदलपुर से रायपुर 300 किलोमीटर है और इस दूरी का किराया था 240 रुपये। मैं तो हैरान था ही कि इतना सस्ता; सुनील जी भी हैरान थे कि पिछली बार जब जगदलपुर आये थे तो 270 रुपये किराया था, अब बढना चाहिये था लेकिन उल्टा घट गया। मार्ग ज्यादातर तो मैदानी है लेकिन कुछ हिस्सा पर्वतीय भी है खासकर केसकल की घाटी। कोई सन्देह नहीं कि सडक शानदार बनी है। हम ऊपर जाकर लेट गये। कई दिन से बारिश होने के कारण एक जगह से पानी चू रहा था। तौलिया लटकाकर उसे सीधे अपने ऊपर टपकने से बचाया।
ललित जी का फोन आया- कहां है? रायपुर की बस में। बोले की अभनपुर उतर जाना। मतलब साफ था कि हमें आज अभनपुर रुकना है। पांच बजे शाम को जगदलपुर से चले थे, रायपुर पहुंचने में आधी रात हो जानी है। रायपुर से आधे घण्टे पहले अभनपुर आयेगा।
मुझे तो नींद आनी ही थी, आ गई। एक बार आंख केसकल की घाटी में ही खुली थी लेकिन बाहर अन्धेरा होने के कारण कुछ नहीं दिखा। बारिश होते रहने से मौसम भी ठण्डा हो गया था, सुबह किरन्दुल में जल्दी उठ गया था, इसलिये मुझे कोई होश नहीं था। फोन बजा, तब जाकर आंख खुली। ललित जी का था- कहां पहुंचा? मुझे नहीं पता था कि कहां पहुंचे। सुनील जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ देर में धमतरी पहुंचने वाले हैं। सुनील जी जगे हुए थे। ललित जी ने समझा दिया कि पेट्रोल पम्प के पास उतर जाना। समय देखा बारह बज चुके थे। गूगल मैप में देखा तो पता चला कि धमतरी तो कभी का जा चुका, दस मिनट में अभनपुर ही आने वाला है। सुनील जी को बताया तो बोले कि क्या, धमतरी कब निकल गया? पता ही नहीं चला। अच्छा हुआ कि ललित जी ने फोन कर लिया। नहीं तो रायपुर पहुंच जाते, मैं सोता रहता और सुनील जी सोचते धमतरी है।
अभनपुर उतरे तो भयंकर मूसलाधार बारिश पड रही थी। इतनी तेज बारिश थी कि हम बस से उतरे और पूरे भीग गये। थोडा ज्यादा हो गया लेकिन बारिश की भयंकरता को दिखाने के लिये ऐसा लिखना पडा। भागकर बन्द पडे पेट्रोल पम्प के एक शेड में जा घुसे। ललित जी को फोन किया तो उन्होंने कहा- अभी तो तुम धमतरी भी नहीं पहुंचे थे और दस मिनट में अभनपुर कैसे आ गये?
पेट्रोल पम्प के बगल में ही ललित जी का घर है। वे एक ही छाता लेकर आये थे। उन्हें नहीं पता था कि नीरज के साथ कोई और भी है। और उधर जैसे ही छाता मेरे हाथ में आया, मैं हवा हो गया। बाहर मुख्य दरवाजा बन्द करने के चक्कर में ललित जी पूरे भीग गये और नाराजगी भी दिखाई- तेरी वजह से आज बीस साल बाद मैं बारिश में भीगा हूं। जुलाई का महीना था, इसलिये भीगने पर कुछ नहीं हुआ अन्यथा अगर सर्दियां होती तो वे बीमार पड जाते।
ललित शर्मा को मैं एक ब्लॉगर के तौर पर ही जानता था। हम पहले भी कई बार मिले हैं लेकिन आज का मिलना शानदार रहा। वे पुरातत्ववेत्ता और इतिहासवेत्ता भी हैं। आजकल उनका फोकस छत्तीसगढ और विदर्भ के इतिहास पर है। कई पुस्तकें भी लिख चुके हैं। भविष्य में और भी पुस्तकें लिखेंगे। उन्होंने बताया कि उनके सहारनपुर के एक मित्र ने उनसे सहारनपुर और आसपास के इलाके का इतिहास लिखने को कहा है लेकिन अभी वे ऐसा नहीं कर सकते। पहली बात कि उसको शुरू से शुरू करना पडेगा और दूसरी बात कि छत्तीसगढ-विदर्भ छोडना पडेगा। उनकी ‘सिरपुर: सैलानी की नजर से’ पुस्तक का विमोचन दलाई लामा ने किया था और उसका पहला संस्करण तब बिक गया था, जब पुस्तक प्रकाशित भी नहीं हुई थी।
अगले दिन आराम से उठे और नाश्ता करके रायपुर के लिये चल पडे। वैसे यहां से नैरो गेज की ट्रेन भी रायपुर जाती है लेकिन हमने बस को वरीयता दी। सुबह का समय था, इसलिये बस में भीड थी। रायपुर पहुंचे और बिना विलम्ब किये कसडोल की बस में बैठ गये। कसडोल यहां से सौ किलोमीटर है, तीन घण्टे लगे। जब सुनील जी के घर पर पहुंचे, तब भी भारी बारिश हो रही थी। लगता था कि इन्द्रदेव बस्तर और यहां मध्य छत्तीसगढ में कोई भेद नहीं जानते।
अब ज्यादा समय नहीं लूंगा, जांस्कर यात्रा इंतजार कर रही है। सुनील जी का पूरा परिवार और यार-दोस्त सब मुझे जानते हैं। बडी शानदार खातिरदारी हुई। जैसे ही इन्द्रदेव जी कुछ मेहरबान हुए, महाराज सपरिवार मुझे लेकर सिद्धखोल प्रपात देखने चल पडे। यह प्रपात कसडोल से दस किलोमीटर दूर है और बारनावापारा अभयारण्य के अन्दर आता है। एक जगह उफनती बरसाती नदी पार करनी पडी।
अन्धेरा होने लगा था जब हम प्रपात पर पहुंचे। कुछ उजाला होता और बारिश रुकी होती तो अभयारण्य के अन्दर होना और भी आनन्ददायक होता। सारा ध्यान पत्थरों पर फिसलने से बचने और कैमरे को बारिश से बचाने पर था। जब तक इनसे मुक्ति मिली, तब तक अन्धेरा हो गया था, झरने का फोटो भी आना बन्द हो गया था। सुनील जी ने बताया कि वे अक्सर यहां आते रहते हैं और पूरी पूरी रात यहां रुक जाते हैं। हालांकि रुकने का कोई इंतजाम नहीं है। वे अपनी कार में ही रुकते होंगे। इंसान कुछ ही दूर स्थित अपना घर छोडकर ऐसे जंगल में आकर पूरी रात रुक जाये तो समझना चाहिये कि उन्हें घर से भगाया गया है। ... खैर, ऐसी बात नहीं है। उनका एक हंसता-खेलता परिवार है। यह हंसी-खेल ऐसा ही बना रहे।
अगले दिन दोपहर को भाटापारा से मेरी दिल्ली की ट्रेन थी। पता चला कि भाटापारा से करीब आठ-दस किलोमीटर पहले जमनईहा नदी इतनी चढ गई है कि उसे पार करना मुश्किल है। सुबह जब अखबार नहीं आया तो पता चला कि कसडोल व बलौदा बाजार का सम्पर्क रायपुर से भी कट गया है। कोई बस न तो रायपुर से आई है और न ही जा रही है। मेरे मन में एक बार तो धुकधुकी तो हुई कि कहीं ट्रेन न छूट जाये। लेकिन समाधान भी सुनील जी ने ही बताया। भाटापारा से दस किलोमीटर पहले जो जमनईहा नदी है, उस पर रेलवे का पुल है जो सडक से ज्यादा दूर नहीं है। उस पुल से पैदल नदी पार की जा सकती है। उस पार से भाटापारा जाने के लिये कुछ न कुछ मिल जायेगा। बलौदा बाजार जिला मुख्यालय भी है, उसका मुख्य सम्पर्क भाटापारा से ही है तो आना-जाना लगा ही रहता है। इसलिये उस तरफ से कुछ न कुछ साधन दस किलोमीटर दूर भाटापारा जाने के लिये मिल ही जायेगा।
कुछ समय बडे भाई सुधीर पाण्डेय जी के यहां भी रुके। पिछली बार जब मैं दुर्ग से लौट रहा था तो सुधीर जी सपत्नीक भाटापारा में मुझसे मिलने आये थे। ये चार भाई हैं और चारों भाईयों के कसडोल क्षेत्र में गाडियों व बाइकों के पांच शोरूम हैं। अच्छा समृद्ध परिवार है। लेकिन कंजूस भी बहुत हैं। सुनील जी घूमने के बडे शौकीन हैं। लेकिन साहब के पास अभी तक एक भी कैमरा नहीं है। वही मोबाइल से ही फोटो खींचते हैं। कहते हैं कि करना क्या है? यादगार के लिये खींच लेते हैं, वापस लौटकर यार-दोस्तों को दिखाने होते हैं तो काम मोबाइल से ही चल जाता है। खैर, मैंने समझाया तो है; देखते हैं कब लेंगे कैमरा।
गनीमत थी कि जमनईहा नदी में उतना पानी नहीं था, जितना शोर मच रहा था। सुनील जी की बुलेरो आराम से पार हो गई। मुझे स्टेशन छोडते ही तुरन्त वापस लौट गये। क्या पता कब पानी बढ जाये? और वास्तव में पानी बढ गया था। बताया कि लौटते समय पार करने में डर भी लगा था कि कहीं बह न जायें। मानसून में ऐसा होना सामान्य बात है।
दुर्ग-जम्मू तवी एक्सप्रेस ठीक समय पर आई और ठीक ही समय पर रवाना हुई। मेरी आरएसी थी, लेकिन सहयात्री कहीं और जाकर सो गया। जिस तरह छत्तीसगढ आया था, उसी तरह यहां से विदा भी हो रहा हूं।
समाप्त।
7. अरकू घाटी
11. बारसूर
13. तीरथगढ जलप्रपात
14. जगदलपुर से दिल्ली वापस
बाहर मुख्य
ReplyDeleteदरवाजा बन्द करने के चक्कर में ललित
जी पूरे भीग गये और नाराजगी भी दिखाई-
तेरी वजह से आज बीस साल बाद मैं बारिश में
भीगा हूं।
20 sal bad hi sahi pr barish me bhigna sukhad hota h isme narajgi ni dhayawad krna chahiye.
हो सकता है कि उन्हें बारिश में भीगने की मनाही हो।
DeleteThanks nd next wait
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteनीरज भाई की शानदार यात्रा का शानदार समापन। लगातार बरसात के बाद भी यात्रा सकुशल और शानदार रही। आप की भाषा मे खड़ी बोली वाला पुट आ ही जाता है -"कई दिन से बारिश होने के कारण एक जगह से पानी चू रहा था।" शायद आपकी भाषा और शैली ही पाठको को आप तक खीच लती है।
ReplyDeleteधन्यवाद विनय जी...
Deleteरायपुर से कसडोल जाते खरोरा तो आये ही होंगे। होता जाता। खैर फिर कभी।
ReplyDeleteमुझे नहीं पता कि रास्ते में क्या-क्या आया। हां, बलौदा बाजार जरूर आया था जहां हमने बस बदली थी।
Deletephoto kam lag rahi hai aazkal
ReplyDeleteहमेशा शिकायत.... खुद लिखो तो जानो...
Deleteha ha haa
Deleteछत्तीसगढ़ के बारे में बहुत सुन्दर रचना तथा खूबसूरत फोटो।
ReplyDeleteधन्यवाद वशिष्ठ साहब...
Deleteek khatarnak yatra ka shukhad samapan.
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
Deleteआपकी सम्पूर्ण यात्रा में हमने देखा की छत्तिसगढ़ बहुत सुन्दर राज्य है,झरणे यहां पर विशाल रूप समेटे हुए है.
ReplyDeleteमजा आया इल यात्रा को पढकर व फोटो देखकर.
बिल्कुल सचिन भाई...
Deleteइस बार तो एक फोटु ललित का बनता ही था नीरज --पहली बार बेटे की शादी में आये थे ललित ,मेरे बहुत ही अच्छे मित्र है ऐसे मित्र जो मुश्किल से मिलते है
ReplyDeleteकभी ललित के वहाँ जाना हुआ तो ये जलप्रपात जरूर देखना चाहूँगी ---
हां जी, बिल्कुल बनता था... सॉरी...
Deleteआपके साथ यात्रा करके बड़ा मज़ा आया ,मेरा सौभाग्य था जो मुझे मौका मिला ,लेखन शैली एवं फोटो लाजवाब हैं नीरज ,छत्तीसगढ़ में आपका हमेशा स्वागत रहेगा ,फिर आइये
ReplyDeleteसर जी, आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद कि मेरे कहने पर एकदम साथ चलने को तैयार हो गये। पुनः अवश्य आऊंगा।
Deleteअद्भुत शुरू से अंत तक एक सांस में ही पढ़ डाला। जल प्राप्त के फोटो बहुट सुंदर आ रहे है। किस फोटो ग्राफिक ट्रिक का इस्तेमाल किया है बताइयेगा जरूर।
ReplyDeleteधन्यवाद विशाल जी। कोई फोटोग्राफी ट्रिक नहीं है। बस हो गया अपने आप।
Deleteप्रिय दोस्त मझे यह Article बहुत अच्छा लगा। आज बहुत से लोग कई प्रकार के रोगों से ग्रस्त है और वे ज्ञान के अभाव में अपने बहुत सारे धन को बरबाद कर देते हैं। उन लोगों को यदि स्वास्थ्य की जानकारियां ठीक प्रकार से मिल जाए तो वे लोग बरवाद होने से बच जायेंगे तथा स्वास्थ भी रहेंगे। मैं ऐसे लोगों को स्वास्थ्य की जानकारियां फ्री में www.Jkhealthworld.com के माध्यम से प्रदान करता हूं। मैं एक Social Worker हूं और जनकल्याण की भावना से यह कार्य कर रहा हूं। आप मेरे इस कार्य में मदद करें ताकि अधिक से अधिक लोगों तक ये जानकारियां आसानी से पहुच सकें और वे अपने इलाज स्वयं कर सकें। यदि आपको मेरा यह सुझाव पसंद आया तो इस लिंक को अपने Blog या Website पर जगह दें। धन्यवाद!
ReplyDeleteHealth Care in Hindi
आप काम तो बहुत शानदार कर रहे हैं लेकिन इस तरह टिप्पणियों के रूप में प्रचार करना मुझे अच्छा नहीं लगा।
Deleteनीरज भाई
ReplyDeleteआपके जज्बे को सलाम करता हूँ, घुमकड़ी करना और फिर सविस्तार ब्लॉग पर यात्रा का वर्णन.!
अदभुत..
धन्यवाद अरुण भाई...
Delete