Skip to main content

फोटो-यात्रा-10: एवरेस्ट बेस कैंप - फाकडिंग से नामचे बाज़ार

इस यात्रा के फोटो आरंभ से देखने के लिये यहाँ क्लिक करें
20 मई 2016
“आज हम इस ट्रैक पर पहली बार 3000 मीटर से ऊपर आये हैं। हालाँकि कुछ दिन पहले ताकशिंदो-ला से 3000 मीटर से ट्रैकिंग आरंभ की थी, लेकिन आज तक इससे नीचे ही रहे। 3000 मीटर का एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है - अब हम ‘हाई एल्टीट्यूड़’ में थे। नामचे बाज़ार में जब हम प्रवेश कर रहे थे, तो जगह-जगह इसके बारे में चेतावनियाँ और इससे बचने के तरीक़े लिखे थे। हालाँकि मैंने पहले भी काफ़ी ऊँचाईयों पर ट्रैकिंग कर रखी है, लेकिन जब आपके चारों तरफ़ ‘हाई एल्टीट्यूड़’ की चेतावनियाँ लिखी हों, तो इनका भी कुछ तो मानसिक असर पड़ता ही है। अब कहीं न कहीं लग भी रहा था कि कल जब हम नामचे से आगे बढ़ेंगे, तो पता नहीं क्या होगा? क्या हमें भी बाकी ज्यादातर ट्रैकरों की तरह एक दिन नामचे में बिताना चाहिये?
नहीं, हम कल आगे बढ़ेंगे।”
...
“डाइनिंग रूम में बैटरी चार्जिंग के रेट लिखे थे - डिजिटल कैमरा फुल चार्ज 300 रुपये, लैपटॉप 400 रुपये, मोबाइल 300 रुपये। हमने ‘चेक-इन’ करने से पहले ही तय कर लिया था कि कैमरा-मोबाइल-पावर बैंक सब चार्ज करेंगे और वो भी फ्री में। मालकिन ने ‘धीरे बोलो’ कहकर हामी भर ली। शायद उन्हें डर था कि कहीं सामने बैठे दूसरे ग्राहक भी फ्री में चार्जिंग न माँगने लगें।”





एवरेस्ट बेस कैंप ट्रैक पर आधारित मेरी किताब ‘हमसफ़र एवरेस्ट का एक अंश। किताब तो आपने पढ़ ही ली होगी, अब आज की यात्रा के फोटो देखिये:





फाकडिंग में आलीशान होटलों की भरमार है।




Gastehaus को ‘गेस्टहाउस’ पढ़िये।






आज हमें कई बार लंबे सस्पेंशन पुल पार करने पड़े।


टिम्स चेक पोस्ट पर काठमांडू से बनवाये गये टिम्स कार्ड की चेकिंग भी होती है और टिम्स कार्ड न होने पर नये कार्ड भी बनाये जाते हैं। हमने यहीं से कार्ड बनवाया था।

जनवरी 1998 से अब तक जाने वाले ट्रैकर्स की महीनावार संख्या।






हिंदी न जानने वाली महिलाओं को हिंदी सीरियल व फिल्में बड़े पसंद हैं।

नेपाल में जॉनी लीवर



दूधकोसी नदी पर बना यह पुल खासा आकर्षक है। मैंने देखा है कि कई फिल्ममेकर और सीरियल वाले इसे ‘डबल डेकर’ पुल कहते हैं। जबकि ऐसा नहीं है। नीचे वाला पुल कभी क्षतिग्रस्त हो गया, तो ऊपर वाला बनाया गया। अब आना-जाना केवल ऊपर वाले से ही होता है।



ऊपर वाले पुल से दिखता नीचे वाला पुल और दूधकोसी नदी








नामचे बाज़ार की एक गली

नामचे बाज़ार एक घना बसा हुआ शहर है।


कमरे के अंदर लिखी हुई चेतावनी










अगला भाग: फोटो-यात्रा-11: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से डोले


1. फोटो-यात्रा-1: एवरेस्ट बेस कैंप - दिल्ली से नेपाल
2. फोटो-यात्रा-2: एवरेस्ट बेस कैंप - काठमांडू आगमन
3. फोटो-यात्रा-3: एवरेस्ट बेस कैंप - पशुपति दर्शन और आगे प्रस्थान
4. फोटो-यात्रा-4: एवरेस्ट बेस कैंप - दुम्जा से फाफलू
5. फोटो-यात्रा-5: एवरेस्ट बेस कैंप - फाफलू से ताकशिंदो-ला
6. फोटो-यात्रा-6: एवरेस्ट बेस कैंप - ताकशिंदो-ला से जुभिंग
7. फोटो-यात्रा-7: एवरेस्ट बेस कैंप - जुभिंग से बुपसा
8. फोटो-यात्रा-8: एवरेस्ट बेस कैंप - बुपसा से सुरके
9. फोटो-यात्रा-9: एवरेस्ट बेस कैंप - सुरके से फाकडिंग
10. फोटो-यात्रा-10: एवरेस्ट बेस कैंप - फाकडिंग से नामचे बाज़ार
11. फोटो-यात्रा-11: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से डोले
12. फोटो-यात्रा-12: एवरेस्ट बेस कैंप - डोले से फंगा
13. फोटो-यात्रा-13: एवरेस्ट बेस कैंप - फंगा से गोक्यो
14. फोटो-यात्रा-14: गोक्यो और गोक्यो-री
15. फोटो-यात्रा-15: एवरेस्ट बेस कैंप - गोक्यो से थंगनाग
16. फोटो-यात्रा-16: एवरेस्ट बेस कैंप - थंगनाग से ज़ोंगला
17. फोटो-यात्रा-17: एवरेस्ट बेस कैंप - ज़ोंगला से गोरकक्षेप
18. फोटो-यात्रा-18: एवरेस्ट के चरणों में
19. फोटो-यात्रा-19: एवरेस्ट बेस कैंप - थुकला से नामचे बाज़ार
20. फोटो-यात्रा-20: एवरेस्ट बेस कैंप - नामचे बाज़ार से खारी-ला
21. फोटो-यात्रा-21: एवरेस्ट बेस कैंप - खारी-ला से ताकशिंदो-ला
22. फोटो-यात्रा-22: एवरेस्ट बेस कैंप - ताकशिंदो-ला से भारत
23. भारत प्रवेश के बाद: बॉर्डर से दिल्ली




Comments

  1. नामचे बाज़ार और ‘डबल डेकर’ पुल की फोटो देख उन्हें देखने को मन लालायित होने लगा है, पहाड़ भले ही खतरनाक हो लेकिन असली रोमांच वहीँ देखने को मिलता है

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर चित्र.अच्छा होता हरेक चित्र के साथ caption रहता,हालांकि किताब हो पहले ही पढ़ चुका हूँ.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार। आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।

डायरी के पन्ने- 30 (विवाह स्पेशल)

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। 1 फरवरी: इस बार पहले ही सोच रखा था कि डायरी के पन्ने दिनांक-वार लिखने हैं। इसका कारण था कि पिछले दिनों मैं अपनी पिछली डायरियां पढ रहा था। अच्छा लग रहा था जब मैं वे पुराने दिनांक-वार पन्ने पढने लगा। तो आज सुबह नाइट ड्यूटी करके आया। नींद ऐसी आ रही थी कि बिना कुछ खाये-पीये सो गया। मैं अक्सर नाइट ड्यूटी से आकर बिना कुछ खाये-पीये सो जाता हूं, ज्यादातर तो चाय पीकर सोता हूं।। खाली पेट मुझे बहुत अच्छी नींद आती है। शाम चार बजे उठा। पिताजी उस समय सो रहे थे, धीरज लैपटॉप में करंट अफेयर्स को अपनी कापी में नोट कर रहा था। तभी बढई आ गया। अलमारी में कुछ समस्या थी और कुछ खिडकियों की जाली गलकर टूटने लगी थी। मच्छर सीजन दस्तक दे रहा है, खिडकियों पर जाली ठीकठाक रहे तो अच्छा। बढई के आने पर खटपट सुनकर पिताजी भी उठ गये। सात बजे बढई वापस चला गया। थोडा सा काम और बचा है, उसे कल निपटायेगा। इसके बाद धीरज बाजार गया और बाकी सामान के साथ कुछ जलेबियां भी ले आया। मैंने धीरज से कहा कि दूध के साथ जलेबी खायेंगे। पिताजी से कहा तो उन्होंने मना कर दिया। यह मना करना मुझे ब...

रुद्रनाथ यात्रा- पंचगंगा-रुद्रनाथ-पंचगंगा

27 सितम्बर 2015    सुबह छह बजे उठे और चाय-बिस्कुट खाकर रुद्रनाथ की ओर चल दिये। रुद्रनाथ यहां से तीन किलोमीटर दूर है। पंचगंगा समुद्र तल से 3660 मीटर पर है जबकि रुद्रनाथ 3510 मीटर पर। जाहिर है कि ढलान है। पंचगंगा ही वो स्थान है जहां मण्डल से आने वाला रास्ता भी मिल जाता है। हमें चूंकि अनुसुईया और मण्डल के रास्ते वापस जाना था, इसलिये रुद्रनाथ जाकर पंचगंगा आना ही पडता, इसलिये अपना सारा सामान यहीं रख दिया। पानी की एक बोतल, ट्रेकिंग पोल लेकर ही चले। अच्छी धूप निकली थी, रेनकोट की कोई आवश्यकता नहीं थी।    करीब एक किलोमीटर बाद लोहे के सरिये को ऐसे ही मोडकर एक द्वार बना रखा है। यहां से रुद्रनाथ के प्रथम दर्शन होते हैं। बडा ही मनोहारी इलाका है यह। दूर दूर तक फैले बुग्याल, कोई जंगल नहीं। हम वृक्ष-रेखा से ऊपर जो थे। रुद्रनाथ के पीछे के पहाडों पर बादल थे, अन्यथा पता नहीं कौन-कौन सी चोटियां दिखतीं।