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धनाना में ऊँट-सवारी

18 दिसंबर 2016
जब हम धनाना से लौट रहे थे और दो-तीन किलोमीटर ही चले थे, देखा कि सामने से एक ऊँटवाला अपने ऊँट पर बैठा आ रहा था। सुमित हमेशा की तरह हमसे आगे था। सुमित ने बाइक रोक ली और उसके फोटो लेने लगा। ऊँटवाला और ऊँट दोनों मँजे हुए खिलाड़ी की तरह ‘पोज़’ दे रहे थे। कभी सड़क के दाहिनी तरफ़ आ जाते, कभी बायीं तरफ़ और कभी सड़क घेरकर खड़े हो जाते तो कभी सड़क से नीचे उतर जाते। वे जानते थे कि किस तरह खड़े होना है ताकि अच्छे फोटो आयें।
ऊँटवाले का नाम मुबारक अली था और ये धनाना के रहने वाले थे। इनके पास कई ऊँट हैं और सभी ऊँट और बेटे सम में काम करते हैं - पर्यटकों को ऊँट-सवारी कराने का काम। इनके बाकी सभी ऊँट सम जा चुके हैं। दो ऊँटों को इनका एक बेटा थोड़ी देर पहले ही यहाँ से सम लेकर गया है। कल यह भी सम जायेगा।

आप थार घूमने जा रहे हैं, तो ऊँट-सवारी तो बनती है। सम में करने से अच्छा था कि यहाँ कर लें। इस समय ऊँट पर काठी नहीं पड़ी थी, लेकिन बैठा जा सकता था। मुबारक तुरंत राज़ी हो गये। ऊँट को नीचे बैठाया, लेकिन यह काफ़ी नाराज़ था और बैठने में आनाकानी कर रहा था और शोर भी बहुत मचा रहा था। सबसे पहले दीप्ति जाकर बैठी। नाराज़ ऊँट एक झटके से उठा, लेकिन वह संभल गयी। थोड़ी दूर ऊँट-सवारी की और नीचे उतर गयी।
उसके बाद सुमित बैठा। वह ढंग से बैठने भी नहीं पाया था, कि ऊँट झटके से उठ खड़ा हुआ। पता नहीं सुमित ने कैसे संभाला स्वयं को। संभलने के बाद उसने ऊँटवाले को आँख भी दिखायी, लेकिन जल्दी ही आनंदमग्न हो गया।
मेरी ऊँट-सवारी करने की इच्छा नहीं थी।
चलते समय सौ रुपये दे दिये, मुबारक खुश हो गया और बोला - ढाणी पर चलो और चाय पीकर जाना। इस आमंत्रण में वास्तव में सच्चाई थी। उस समय तो हमने मना कर दिया, लेकिन अब सोचता हूँ कि उसकी ढाणी पर जाना चाहिये था। थार की जिंदगी का एक अलग ही रंग दिखता।
बाइक सम की तरफ़ दौड़ा दी। हमें आता देख राज दूर से ही रोकने को हाथ हिलाने लगा। उसका असली नाम राजू था, लेकिन प्रभावशाली दिखने के लिये अपने कार्ड़ पर ‘राज’ लिखवा दिया था। आपको याद होगा, जब हम कुछ देर पहले यहाँ से धनाना जा रहे थे, तो एक लड़के ने हमें अपना कार्ड़ दिया था और जीप सफ़ारी का लालच दिया था। यह वही था। हम नहीं रुके और सीधे चलते रहे।
सम गाँव से निकलते ही चौड़ी दो-लेन की सड़क आ जाती है। अब चहल-पहल बढ़ गयी। कैंप, ऊँटवाले, जीप सफ़ारी वाले। हम फोटो खींचने रुकते, तो कई लोग दौड़कर हमारी ओर आते और ऊँट-सवारी, जीप-सफ़ारी करने की ज़िद करते।
बहुत सारी गाड़ियाँ, बहुत सारे पर्यटक, सजे-धजे ऊँट और ‘सैंड ड्यून्स’ की ओर जाते ‘काफ़िले’। हमें इनमें से किसी भी बात ने आकर्षित नहीं किया और हम अपने अगले ठिकाने कुलधरा की ओर चल दिये।














सम और धनाना के बीच में इंदिरा गाँधी नहर



सम से पश्चिम दिशा की दूरियाँ



सम में ऊँट अपनी बारी की प्रतीक्षा में





एकाध वीडियो भी हो जाये...









(आपको कौन-सा फोटो सबसे अच्छा लगा? अवश्य बताएँ।)



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9. धनाना में ऊँट-सवारी
10. कुलधरा: एक वीरान भुतहा गाँव
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12. जैसलमेर से तनोट - एक नये रास्ते से
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Comments

  1. हैं तो सभी अच्छे पर एक चुनना हो तो, चित्र संख्या 11
    डॉ साहब का ये चित्र शानदार आया है। वैसे 14 भी अच्छा है, रेगिस्तान में पानी अच्छा लगता है।

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    Replies
    1. सही कहा निशांत भाई... डाक्टर का यह फोटो दीवार में चिनवाने लायक है...

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  2. वैसे तो सम से धनाना जाते समय दो तीन ऊट वाले मिले थे,उनके उनके ऊट पर काठी भी थी लेकिन तब धनाना जाने की जल्दी थी,इसलिए मैने भी कुछ नहीं कहा...
    इसकी कसक धनाना से सम जाते वक़्त पूरी जो गई..
    अली भाई का ऊंट बहुत गुस्सेल था,उसके उठने बैठने के समय संतुलन बनाये रखना थोड़ा सा कठिन था,अली भाई थोड़ी दूर से ही पलटने वाले थे,लेकिन मैने कह दिया घुमाव भाई जितना घुमा सकते हो,तो अली भाई ने मान लिया,उसके बाद रोड पर ऊंट को दौड़ाया भी...
    बहुत मजा आ रहा था...
    आप दोनों के द्वारा की गई फोटोग्राफ़ी श्रेष्ठतम थी...

    ReplyDelete
    Replies
    1. aapne to uunt ke saath ali bhai ko bhi douda diya. sirf unnt doudate to aur maja aataa.
      Prakash

      Delete
    2. हाहाहाहा...
      अली भाई को उनका ऊंट बड़ा प्यारा था,मेरे पास जाते ही ऊंट से चिपक गए,अकेला छोड़ा ही नहीं...
      अकेला छोड़ देते तो ऊँट की अपने काले घोड़े से अदला बदली कर लेता...😊

      Delete
  3. केवल 100 रूपये ? हम ठग लिए क्या ? दो ऊँट के चार सौ रूपये लिए हमसे , लेकिन हम डेढ़ डेढ़ लोग बैठे थे एक ऊँट पर , मैं और बेटा ! चलो अफ़सोस थोड़ा कम रहा ! सम गांव से करीब 3 किलोमीटर आगे भी तो बॉर्डर है जहाँ BSF तैनात रहती है ?

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