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चापाराई प्रपात और कॉफी के बागान

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
बोरा गुफाओं से करीब चार किलोमीटर दूर कतिकी जलप्रपात है। वहां जाने वाला रास्ता बहुत ऊबड-खाबड है इसलिये ऑटो जा नहीं सकता था। हमें चार पहियों की कोई टैक्सी करनी पडती। उसके पैसे अलग से लगते, हमने इरादा त्याग दिया। लेकिन जब एक गांव में ऑटो वाले ने मुख्य सडक से उतरकर बाईं ओर मोडा, तो हम समझ गये कि यहां भी कुछ है।
यह चापाराई जलप्रपात है। यह सडक एक डैड एण्ड पर खत्म होती है। हमें पैदल करीब सौ मीटर नीचे उतरना पडा और प्रपात हमारे सामने था। यह कोई ज्यादा लम्बा चौडा ऊंचा प्रपात नहीं था। फिर भी अच्छा लग रहा था। भीड नहीं थी और सबसे अच्छी बात कि यहां बस हमीं थे। कुछ और भी लोग थे लेकिन हमारे जाते ही वे वहां से चले गये। चारों तरफ बिल्कुल ग्रामीण वातावरण, खेत और जंगल। ऐसे में अगर यहां प्रपात न होता, बस जलधारा ही होती, तब भी अच्छा ही लगता।

कटहल के खूब पेड हैं यहां। यह असल में कटहल भूमि है। कटहल हमें आगे दण्डकारण्य तक मिले। पके कटहल पहली बार देखे। आदिवासी इन दिनों पूरी तरह कटहल पर ही जीते हैं। पके कटहल को तोड लेते हैं और उसे खाते रहते हैं। भरमार थी कटहल के पेडों की। बच्चों को रास्ते में पुलियाओं पर बैठे कटहल खाते ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इन्हें साल में इसी मौसम में भरपेट भोजन मिलता होगा। पके कटहल की सुगन्ध भी अच्छी होती है। दिल्ली तक पके कटहल नहीं पहुंचते, कच्चे की सब्जी मुझे पसन्द नहीं है। फिर भी मैं चाहता था कि एक बार पका कटहल खाकर देखूं। लेकिन सुनील जी ने अजीब सा मुंह बनाकर कहा कि यह होता तो मीठा है लेकिन अजीब सा कसैला स्वाद होता है तो मेरा भी इरादा तुरन्त बदल गया। इसके चार-पांच दिन तक हम कटहलों में ही घूमते रहे, ट्रेन में कटहल, घरों में कटहल, जंगल में कटहल, बाजार में कटहल, गांवों में कटहल; हर जगह कटहल; लेकिन इसका स्वाद नहीं ले पाया। मलाल रहेगा।
चापाराई से चलकर फिर से अरकू वाली सडक पर आ गये। इस बार उस व्यू पॉइण्ट पर नहीं रुके। लेकिन सुनसान जंगल में एक दुकान पर रुक गये। यह जंगल असल में कॉफी का बागान है। पहाडी ढलान पर चारों तरफ कॉफी ही कॉफी थी। दुकान भी कॉफी की ही थी, जो कॉफी बनाकर पिला भी रहा था। हमने भी पी और बागान में थोडा घूमे भी। जितना हम घूमे, उतना और भी पर्यटक घूमते थे, इसलिये उतने इलाके में पौधों से कॉफी के फूल, बीज, जो भी होते हों; गायब थे। दुकान वाले ने बताया कि यह सरकारी बागान है।

कटहल का पेड

चापाराई प्रपात के पास


चापाराई से वापस लौटते कुछ पर्यटक

चापाराई जलप्रपात









कॉफी के बागान में




विशाखापट्टनम-अरकू सडक




अगला भाग: अरकू घाटी

6. चापाराई प्रपात और कॉफी के बागान




Comments

  1. Replies
    1. Sirf dhanyavad se kam nahi chalega kofi k liae bulana padega , dear

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  2. नीरज भाई की शानदार यात्रा और मन को शांति प्रदान करते फोटो। बच्चो को कटहल खाते वाला फोटो नही लगया ? आपको कटहल खाकर देखना चाहिए था। ऐसा मौका बार बार नही मिलता।

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    1. बिल्कुल सर। इसीलिये लिखा है कि मलाल रहेगा।

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  3. shikari devi kab jaoge

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    1. अरकू घूमते घूमते शिकारी देवी कहां से आ गई? वैसे कुछ नहीं पता कि कब जाऊंगा।

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  4. नीरज भाई फोटो एकदम मस्त उतार रहे हो.खास तौर पर कॉफी बीन वाला अच्छा है

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  5. कटहल एक मौसमी फल है -- बहुत ही मीठा फल है जो एक निश्चित तिथि तक आता है फिर अचानक बंद हो जाता है ---"सुनील जी ने अजीब सा मुंह बनाकर कहा कि यह होता तो मीठा है लेकिन अजीब सा कसैला स्वाद होता है तो मेरा भी इरादा तुरन्त बदल गया"
    कभी सुनीलजी ने कटहल खाया भी है वरना वो ऐसा नहीं कहते --- कटहल के अंदर बड़ा सा बीज भी होता है --हमारे बॉम्बे में तो बहुत ही आता है ---मीठा और पक्का हुआ --कच्चा भी आता है जिसकी सब्जी बनती है --माँसाहारी कहते है इसकी सब्जी मांस की तरह लगती है ----

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  6. नीरज भाई फोटो एकदम मस्त उतार रहे हो.खास तौर पर कॉफी बीन वाला अच्छा है

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  7. मजेदार जानकारी वाला लेख । फोटो भी ठीक है।

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  8. कभी ऐसा सोच कर नहीं देखा था के कटहल पकता भी होगा या पकने के बाद कैसा लगता होगा ? ये तो कतई नहीं के ये मीठा होगा l वैसे आपने खा कर तो देखना ही चाहिए था और कटहल खाते बच्चों की फोटो भी डालनी थी l

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    1. बिल्कुल ठीक कह रहे हो हरेन्द्र भाई। मुझे भी नहीं पता था कि कटहल पकता भी है और मीठा हो जाता है। लेकिन इसकी सुगन्ध बडी जबरदस्त होती है।

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  9. वैसे तो मैंने कभी कटहल खाकर नहीं देखा न पके रूप में न सब्जी के रूप में क्योंकि जब से मैंने सुना था इसका स्वाद मांस जैसा होता है मेरे मन में इसको चखने की भी इच्छा कभी नहीं हुई l और न हमारे परिवार में इसे कभी लाया गया है परन्तु अब पका कटहल चखने की इच्छा तो हुई है l देखते है कब मौका मिलता है ?

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    1. ऐसा नहीं है हरेन्द्र जी कि स्वाद मांस की तरह होता हो तो नहीं खाना चाहिये। मांस को भी ऐसा बनाया जा सकता है कि वो बिल्कुल आलू की सब्जी की तरह लगे तो क्या उसे सब्जी समझकर खा लोगे? अगर किसी शाकाहार का स्वाद ऐसा है तो बेचारे उसकी क्या गलती? आप खूब कटहल खाइये।

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